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15 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस 26: "यदि वितरण में न्याय नहीं है, तो उचित मूल्य का कोई अर्थ नहीं रह जाता।" भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में समानता और दक्षता सुनिश्चित करने की प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में समानता और दक्षता सुनिश्चित करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) भारत के खाद्य सुरक्षा कार्यढाँचे का एक प्रमुख स्तंभ है, जो उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध कराती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत, यह लगभग दो-तिहाई आबादी (वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर) को कवर करती है। हालाँकि, इसकी प्रभावशीलता केवल मूल्य निष्पक्षता पर ही नहीं, बल्कि लक्षित लाभार्थियों तक समान और कुशल वितरण पर भी निर्भर करती है।
मुख्य भाग:
PDS वितरण में समता की चुनौतियाँ
- अपवर्जन त्रुटियाँ:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत व्यापक लाभार्थी आधार के बावजूद, कई पात्र परिवार इससे वंचित रह जाते हैं।
- उदाहरण के लिये, प्रवासी मजदूर, घुमंतू या चलवासी जनजातियाँ और शहरी बेघर लोगों के पास प्रायः राशन कार्ड प्राप्त करने के लिये पता-आधारित दस्तावेज़ों का अभाव होता है।
- NITI आयोग (2021) का अनुमान है कि लगभग 10% पात्र परिवार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से वंचित हैं।
- डिजिटल डिवाइड और आधार-लिंक्ड प्रमाणीकरण:
- हालाँकि डिजिटलीकरण का उद्देश्य धोखाधड़ी को कम करना था, लेकिन आधार-आधारित प्रमाणीकरण के तहत बायोमेट्रिक विफलताओं के कारण वास्तविक लाभार्थियों, विशेष रूप से वृद्ध जनों और दिव्यांग जनों को भोजन नहीं मिल पाया है।
- झारखंड मामला (2017): आधार-PDS लिंकेज विफलताओं के कारण भुखमरी से हुई मौतों की रिपोर्टों ने वितरण में गंभीर खामियों को उजागर किया।
- लैंगिक और सामाजिक असमानताएँ:
- महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवार और सामाजिक रूप से सीमांत वाले समूह जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, जानकारी के अभाव, सामाजिक कलंक एवं दुर्गम वितरण केंद्रों के कारण बाधाओं का सामना करते हैं।
PDS में दक्षता की चुनौतियाँ
- भ्रष्टाचारजन्य अपवहन और अन्यत्र वितरण: PDS में सबसे लगातार चुनौतियों में से एक खाद्यान्नों का कालाबाज़ारी में जाना है।
- घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 से पता चलता है कि आवंटित अनाज का लगभग 28%, यानी 19.69 मिलियन मीट्रिक टन, इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाता है।
- अप्रत्यक्ष लाभार्थी और पहचान संबंधी धोखाधड़ी: आधार लिंकेज के प्रयासों के बावजूद, सार्वजानिक वितरण प्रणाली अप्रत्यक्ष लाभार्थियों और डुप्लिकेट राशन कार्डों से जूझ रही है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2021 में एक RTI आवेदन के अनुसार, ओडिशा में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 2 लाख से अधिक अप्रत्यक्ष लाभार्थी थे।
- गुणवत्ता में गिरावट और भंडारण हानि: अपर्याप्त भंडारण अवसंरचना के कारण खाद्यान्न की गुणवत्ता में उल्लेखनीय गिरावट और मात्रा में कमी आती है।
- भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 74 मिलियन टन खाद्यान्न की हानि होती है, जो खाद्यान्न उत्पादन का 22% या कुल खाद्यान्न और बागवानी उत्पादन का 10% है।
- उचित मूल्य की दुकानों में भ्रष्टाचार: उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के संचालक प्रायः कम तौल, अधिक कीमत वसूलने और अनियमित संचालन समय बनाए रखने जैसी गलत प्रथाओं में लिप्त रहते हैं।
- वर्ष 2018 और 2020 के दौरान, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लगभग 19,410 कार्रवाई की गईं, जिनमें निलंबन, रद्दीकरण, कारण बताओ नोटिस एवं FPS लाइसेंसों के विरुद्ध FIR शामिल हैं।
सरकारी उपाय और नवाचार
- एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC): प्रवासी श्रमिकों के लिये खाद्य सब्सिडी की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करता है। वर्ष 2023 तक, इसने सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को कवर किया और 80 करोड़ से अधिक लोगों को लाभान्वित किया।
- अन्न चक्र सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिये एक आपूर्ति शृंखला अनुकूलन उपकरण है जो परिवहन दूरी को 15-50% तक कम करता है और वार्षिक रूप से 250 करोड़ रुपए बचाता है।
- SCAN (कंप्यूटरीकृत आवंटन और अधिसूचना प्रणाली) एक एकीकृत, स्वचालित, नियम-आधारित पोर्टल के माध्यम से खाद्य सब्सिडी दावों को सुव्यवस्थित करता है।
- SMART-PDS योजना (वर्ष 2023–2026) का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के 'एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण एकीकृत प्रबंधन प्रणाली (ImPDS) में तकनीकी उन्नयन करना है।
निष्कर्ष:
शांता कुमार समिति (2015) ने NFSA कवरेज को 67% से घटाकर 40% करने और अनाज वितरण के बजाय नकद अंतरण को बढ़ावा देने की सिफारिश की थी। भारत को आपूर्ति-आधारित व्यवस्था से हटकर मांग-आधारित और जवाबदेह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी योग्य नागरिक प्रणालीगत बाधाओं के कारण वंचित न रहे। खाद्य न्याय का लक्ष्य तभी सही मायने में साकार हो सकता है जब सुलभता में समानता और वितरण में दक्षता कायम रहे।