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08 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 20: “स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना केवल एक आर्थिक हस्तक्षेप ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति भी है।” महिला-नेतृत्व वाले विकास और सामाजिक परिवर्तन में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- स्वयं सहायता समूहों (SHG) और उनके मुख्य उद्देश्य का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- महिला-नेतृत्व वाले विकास और सामाजिक परिवर्तन में SHG की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- स्वयं सहायता समूहों के सामने आने वाली कुछ चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
स्वयं सहायता समूह (SHG) समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के अनौपचारिक समूह होते हैं जो बचत और ऋण प्राप्त करने, क्षमता निर्माण और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये एक साथ आते हैं। हालाँकि इनका प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक उत्थान है, फिर भी SHG ज़मीनी स्तर पर लोगों को संगठित करने के साधन के रूप में विकसित हुए हैं, जिससे ग्रामीण भारत में व्यापक सामाजिक परिवर्तन आया है।
मुख्य भाग:
महिला-नेतृत्व वाले विकास के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण
- ऋण और आजीविका तक पहुँच: माइक्रोफाइनेंस के माध्यम से, स्वयं सहायता समूह सिलाई, कुक्कुट (मुर्गीपालन), डेयरी और खाद्य प्रसंस्करण जैसी आय-उत्पादक गतिविधियों के लिये निम्न ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं।
- NABARD की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 12 मिलियन से अधिक SHG विद्यमान हैं, जिनमें 90 मिलियन से अधिक महिलाएँ शामिल हैं।
- उद्यमिता संवर्द्धन: लिज्जत पापड़ और अमूल की दुग्ध सहकारी समितियों जैसे महिला-स्वामित्व वाले व्यवसाय दर्शाते हैं कि किस प्रकार स्वयं सहायता समूह मॉडल महिला उद्यमियों को सशक्त बनाते हैं।
- महिला-नेतृत्व विकास: केरल के कुदुंबश्री मिशन में, स्वयं सहायता समूहों को स्थानीय शासन और नियोजन में एकीकृत किया गया है, जिससे गरीबी उन्मूलन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और उद्यम विकास में महिला-नेतृत्व को बढ़ावा मिला है।
- स्वयं सहायता समूहों के लिये सरकारी सहायता:
- DAY-NRLM के माध्यम से सहायता: दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (2011) SHG सदस्यों के लिये क्षमता निर्माण, ऋण लिंकेज और कौशल विकास प्रदान करता है।
- स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (SVEP): गैर-कृषि उद्यम स्थापित करने में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सहायता प्रदान करता है।
- महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (MKSP): SHG में महिला किसानों पर ध्यान केंद्रित।
- e-SHG पोर्टल और उद्यम सखी: डिजिटल निगरानी और उद्यमिता सहायता की सुविधा।
सामाजिक परिवर्तन के कारक
- लिंग और सामाजिक समानता: स्वयं सहायता समूह गतिशीलता, साक्षरता और लिंग आधारित भेदभाव के विरुद्ध जागरूकता को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
- सामाजिक लामबंदी: आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में, स्वयं सहायता समूह घरेलू हिंसा, शराब सेवन और बाल विवाह का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल: कोविड-19 महामारी के दौरान, स्वयं सहायता समूहों ने मास्क (mask) का उत्पादन किया, जागरूकता अभियान चलाया और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में सहयोग दिया।
- बिहार की “JEEViKA” परियोजना में, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कोविड-19 जागरूकता और मास्क उत्पादन में योगदान दिया है।
स्वयं सहायता समूहों के समक्ष चुनौतियाँ
- अति-ऋणग्रस्तता: कुछ राज्यों में, एक से अधिक उधार लेने और कमज़ोर पुनर्भुगतान तंत्र के कारण ऋण चक्र उत्पन्न होता है।
- क्षमता संबंधी बाधाएँ: वित्तीय साक्षरता और उद्यमशीलता कौशल की कमी से उत्पादकता में बाधा उत्पन्न होती है।
- अभिजात वर्ग का कब्ज़ा और अपवर्जन: दलित और जनजातीय महिलाओं जैसे कमज़ोर समूह अक्सर उपेक्षित हो जाते हैं।
- सीमित बाज़ार संपर्क: स्वयं सहायता समूह के उत्पाद अक्सर निम्नस्तरीय ब्रांडिंग और औपचारिक बाज़ारों तक सीमित पहुँच से ग्रस्त होते हैं।
निष्कर्ष:
जैसा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “जब महिलाएँ आगे बढ़ती हैं, तो परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र आगे बढ़ता है।” निरंतर नीतिगत समर्थन और ज़मीनी स्तर की भागीदारी के साथ, स्वयं सहायता समूह (SHG) वास्तव में एक शांत सामाजिक क्रांति का आधार बन सकते हैं और भारत में समावेशी, सशक्त और महिला-नेतृत्व वाले विकास के एक सशक्त इंजन के रूप में उभर सकते हैं।