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03 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 16: "कोलेजियम प्रणाली सैद्धांतिक रूप से उचित है, परंतु व्यवहार में यह अपारदर्शी है।" न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने की दृष्टिकोण :
- कॉलेजियम प्रणाली की समीक्षा कीजिये।
- कॉलेजियम प्रणाली के गुण-दोषों पर प्रकाश डालिये।
- आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
कोलेजियम प्रणाली, जिसे किसी कानून के माध्यम से नहीं बल्कि न्यायिक निर्णयों के आधार पर विकसित किया गया है, भारत में उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इस प्रणाली का उद्देश्य कार्यपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करना था, लेकिन समय के साथ इसे अपारदर्शी, जवाबदेही से रहित और अल्पसमावेशी कार्यप्रणाली के कारण लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा है।
मुख्य भाग:
कॉलेजियम प्रणाली का विकास और संरचना
- कॉलेजियम प्रणाली द्वितीय न्यायाधीश मामले (1993) से विकसित हुई और तृतीय न्यायाधीश मामले (1998) में इसकी पुनः पुष्टि की गई।
- इस प्रणाली ने न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में न्यायपालिका को प्रमुख भूमिका प्रदान की, जिससे पूर्व की कार्यपालिका-प्रधान व्यवस्था समाप्त हो गई। इस प्रणाली में शामिल हैं:
- सर्वोच्च न्यायालय के लिये: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) + 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश।
- उच्च न्यायालयों के लिये: उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश + 2 वरिष्ठतम न्यायाधीश।
कॉलेजियम प्रणाली के गुण
- इस न्यायिक नवाचार का उद्देश्य नियुक्तियों को राजनीतिक पूर्वाग्रह से बचाना था, जिससे अनुच्छेद 50 के तहत शक्तियों के पृथक्करण को बरकरार रखा जा सके।
- संस्थागत निरंतरता और वरिष्ठता-आधारित निर्णय लेने को सुनिश्चित करता है।
- सहकर्मी समीक्षा को बढ़ावा देता है, जो सिद्धांततः योग्य चयनों की ओर ले जाता है।
- कार्यकारी नेतृत्व वाली प्रक्रियाओं की तुलना में नौकरशाही देरी को कम करता है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
- अस्पष्टता और गोपनीयता: चयन के लिये कोई स्पष्ट रूप से परिभाषित मानदंड नहीं हैं, बैठकों का कोई विवरण नहीं है, तथा चयन या अस्वीकृति के कोई कारण सार्वजनिक नहीं किये जाते हैं।
- न्यायमूर्ति रूमा पाल ने एक बार इस प्रणाली को “देश के सबसे गुप्त रहस्यों में से एक” बताया था, जो इसकी बंद और अप्रवेशीय प्रकृति को दर्शाता है।
- विविधता का अभाव: यह प्रणाली उच्च न्यायपालिका में महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों और क्षेत्रीय आवाजों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने में विफल रही है।
- पक्षपात के आरोप: बाह्य जाँच के बिना, चयन को पक्षपातपूर्ण या ‘न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों को चुनने’ की संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाला माना जा सकता है।
- NJAC पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) के ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने NJAC को असंवैधानिक घोषित करते हुए उसे रद्द कर दिया।
- यद्यपि न्यायालय ने न्यायिक स्वतंत्रता को बरकरार रखने का सही निर्णय लिया, लेकिन वह पारदर्शिता, विविधता और जवाबदेही की कमी सहित मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की कमियों को दूर करने में विफल रहा।
सुरक्षा उपायों के साथ सुझाए गए सुधार
- कॉलेजियम प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करना: चयन के लिये एक औपचारिक, लिखित प्रक्रिया लागू करना, जिसमें स्पष्ट पात्रता और मूल्यांकन मानदंड हों।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करना: संवेदनशील जानकारी से समझौता किये बिना, नियुक्तियों/अस्वीकृति के कारणों को प्रकाशित करना।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग: न्यायपालिका, कार्यपालिका और नागरिक समाज के संतुलित प्रतिनिधित्व के साथ एक स्वतंत्र न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश की गई।
- संस्थागत निरीक्षण: सीमित कार्यकारी और सार्वजनिक प्रतिनिधित्व के साथ एक संशोधित NJAC जैसा मॉडल, जो न्यायिक प्रधानता से समझौता किये बिना जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
- वैश्विक मॉडलों से सीख: ब्रिटेन का न्यायिक नियुक्ति आयोग पारदर्शिता को न्यायिक स्वायत्तता के साथ जोड़ता है।
निष्कर्ष:
कोलेजियम प्रणाली को एक संवैधानिक सुरक्षा के रूप में विकसित किया गया था, लेकिन इसकी अपारदर्शी कार्यप्रणाली ने जनता के विश्वास को कम कर दिया है। सुधार न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करने के लिए नहीं, बल्कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये आवश्यक हैं। जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं NJAC फैसले (2015) में कहा था, “पारदर्शिता लोकतंत्र का शासनकारी सिद्धांत है, न कि गोपनीयता का।” इस संतुलन को स्थापित करना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में न्यायिक वैधता के लिये महत्त्वपूर्ण है।