-
24 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
आंतरिक सुरक्षा
दिवस 34: “जो राज्य आंतरिक सतर्कता नहीं रखता, वह खुले द्वार वाले किले के समान होता है।” इस संदर्भ में विश्लेषण कीजिये कि किस प्रकार बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारक, भारत की सामाजिक, राजनीतिक एवं क्षेत्रीय स्तर की आंतरिक कमज़ोरियों का लाभ उठाकर राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर करने का प्रयास करते हैं। (250 शब्द
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आंतरिक सतर्कता के महत्त्व से उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- विश्लेषण कीजिये कि किस प्रकार बाह्य सरकारी और गैर-सरकारी तत्त्व राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर करने के लिये भारत की आंतरिक सामाजिक, राजनीतिक एवं क्षेत्रीय कमज़ोरियों का फायदा उठाते हैं।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
राष्ट्रीय सुरक्षा का मतलब केवल सीमाओं की रक्षा करना ही नहीं है, बल्कि आंतरिक सतर्कता और सद्भाव बनाए रखना भी है। भारत की विविधता, जहाँ एक ओर शक्ति का स्रोत है, वहीं दूसरी ओर ऐसी कमज़ोरियाँ भी प्रस्तुत करती है जिनका बाह्य सरकारी तत्त्व (जैसे: पाकिस्तान की ISI, चीनी खुफिया एजेंसी) और गैर-सरकारी तत्त्व (जैसे: लश्कर-ए-तैयबा, ISIS, खालिस्तानी समूह) दुष्प्रचार, धन एवं साइबर प्रभाव के माध्यम से शत्रुतापूर्ण फायदा उठा सकते हैं।
मुख्य भाग:
सामाजिक कमज़ोरियों का फायदा उठाना
- सांप्रदायिक ध्रुवीकरण: बाहरी तत्त्वों द्वारा वित्तपोषित सोशल मीडिया अभियान सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं, जैसे कि वर्ष 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान, जहाँ फर्ज़ी खबरों और भड़काऊ कंटेंट का पता विदेशी नेटवर्क से जुड़े खातों से लगाया गया था।
- कट्टरपंथ और भर्ती: ISIS और अल-कायदा ने असुरक्षित युवाओं को भड़काने के लिये एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया है, जैसा कि केरल में ISIS मॉड्यूल की गिरफ्तारियों (2021) में देखा गया है।
- गलत सूचना और फर्ज़ी खबरें: पाकिस्तान स्थित साइबर सेल ने सामाजिक विभाजन को गहरा करने के लिये CAA-NRC विरोध प्रदर्शनों पर बयानों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।
राजनीतिक खामियों का फायदा उठाना
- प्रभावकारी अभियान: चुनावों के आसपास दुष्प्रचार अभियान, जैसे कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान फर्ज़ी वीडियो, सीमा पार सर्वरों से जुड़े पाए गए।
- आतंकवाद का वित्तपोषण: कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकी फंडिंग हवाला और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से अलगाववादी आंदोलनों का समर्थन करने के लिये धन जुटाती है।
क्षेत्रीय और जातीय खामियों का फायदा उठाना
- कश्मीर उग्रवाद: पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) अब भी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को घुसपैठ कराने तथा वित्तीय सहायता देने का कार्य कर रही है। वर्ष 2019 में हुआ पुलवामा आतंकी हमला इस प्रत्यक्ष समर्थन का एक ज्वलंत उदाहरण है।
- खालिस्तानी पुनरुत्थान: सिख फॉर जस्टिस (SFJ) जैसे प्रवासी समर्थित संगठन ऑनलाइन कट्टरपंथी अभियानों के माध्यम से पंजाब के सामाजिक-राजनीतिक तनाव का फायदा उठा रहे हैं।
- पूर्वोत्तर उग्रवाद: म्याँमार और चीन समर्थित समूहों के माध्यम से सीमा पार समर्थन एवं हथियारों की तस्करी मणिपुर व नगालैंड जैसे राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देती है।
- मणिपुर अशांति (2023): जातीय संघर्षों को तेज़ करने के लिये विदेशी तत्त्वों द्वारा सोशल मीडिया पर कथित तौर पर दुष्प्रचार अभियानों को बढ़ावा दिया गया।
आगे की राह
- सुदृढ़ साइबर सतर्कता: साइबर अपराधों और राज्य प्रायोजित हमलों पर नज़र रखने वाले I4C और NCCC के माध्यम से फर्ज़ी खबरों एवं शत्रुतापूर्ण प्रचार की निगरानी के लिये AI-आधारित उपकरणों की तैनाती की जानी चाहिये ।
- खुफिया एकीकरण: कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी के समन्वय के लिये NATGRID और MAC को मज़बूत किया जाना चाहिये, जैसा कि जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ के प्रयासों को विफल करने में देखा गया है (2021-22)।
- समावेशी विकास: आदिवासी सशक्तीकरण के लिये आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम और PESA अधिनियम के माध्यम से अलगाव को दूर किया जाना चाहिये।
- कानूनी और नियामक उपाय: UAPA (2019), IT नियम 2021 और NIA द्वारा आतंकवाद-रोधी छापेमारी को लागू किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: FATF, क्वाड साइबर सुरक्षा और इंटरपोल के अंतर्गत सहयोग किया जाना चाहिये।
- ड्रोन-रोधी तकनीक: AI-सक्षम ड्रोन-रोधी प्रणालियों के साथ ड्रोन नियम 2021 को लागू किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत की आंतरिक सुरक्षा संरचना एक प्रतिक्रियात्मक से एक पूर्वानुमानित और समुत्थानशील कार्यढाँचे में विकसित हो रही है, जिसमें प्रौद्योगिकी, खुफिया एकीकरण एवं सामाजिक-आर्थिक समावेशन का समावेशन है। हालाँकि, जैसे-जैसे वैश्विक खतरे हाइब्रिड डोमेन जैसे: साइबर युद्ध, दुष्प्रचार एवं आतंकवाद के वित्तपोषण की ओर बढ़ रहे हैं, सुरक्षा को केवल सैन्यीकरण से आगे बढ़कर एक समग्र राष्ट्र-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना होगा।