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Mains Marathon

  • 23 Jun 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    दिवस- 7:  भारतीय समाज एक साथ परंपराओं की विविधता वाला एक समृद्ध 'चित्रपट' है और साथ ही आधुनिकता की एक 'संवहनशाला' भी।" इस सामाजिक-सांस्कृतिक द्वैधता के प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारतीय समाज की विरोधाभासी प्रकृति का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
    • इस सामाजिक-सांस्कृतिक विरोधाभास के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
    • एक विद्वत्तापूर्ण अवलोकन के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारतीय समाज एक सभ्यतागत निरंतरता है जहाँ प्राचीन परंपराएँ आधुनिक मूल्यों के साथ सह-अस्तित्व में हैं। परंपराओं के मोज़ेक के रूप में सटीक रूप से वर्णित, भारत सदियों पुराने रीति-रिवाजों, धर्मों और सामाजिक पदानुक्रमों को दर्शाता है। साथ ही, यह आधुनिकता का एक ऐसा केंद्र है जहाँ परिवर्तनकारी विचार— लोकतंत्र, लैंगिक समानता, विज्ञान और मानवाधिकार गढ़े जाते हैं, चुनौती दी जाती है तथा पुनर्परिभाषित की जाती है। यह सामाजिक-सांस्कृतिक विरोधाभास, जटिल होते हुए भी, भारत के विकासात्मक प्रक्षेपवक्र को समझने के लिये केंद्रीय है।

    मुख्य भाग:

    इस सामाजिक-सांस्कृतिक विरोधाभास के प्रतिबिंब और निहितार्थ: 

    • सामाजिक पदानुक्रम और बदलती गतिशीलता:
      • जाति, एक गहराई से अंतर्निहित पारंपरिक संरचना, विवाह, व्यवसाय और राजनीति को प्रभावित करती रहती है। 
      • भारत मानव विकास सर्वेक्षण (IHDS) के अनुसार, 85% से अधिक विवाह अभी भी जातिगत सीमाओं के भीतर होते हैं। 
      • फिर भी, दलित उद्यमियों के उदय, आरक्षण नीतियों और शहरी गुमनामी ने कई लोगों को कठोर पदानुक्रम से बचने में सक्षम बनाया है, जो आधुनिकता के समतावादी आवेगों को दर्शाता है।
    • पारिवारिक संरचना और लैंगिक भूमिकाएँ:
      • पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली अभी भी प्रमुख है, विशेषकर ग्रामीण भारत में। हालाँकि, शहरीकरण के कारण एकल परिवारों का विकास हुआ है और महिलाओं की शिक्षा एवं संपर्क में वृद्धि से लैंगिक भूमिकाएँ पुनः परिभाषित हो रही हैं। 
      • महिला साक्षरता, कार्यबल में भागीदारी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। फिर भी, कामकाज़ी महिलाओं पर दोहरा बोझ, धार्मिक स्थलों पर महिलाओं का प्रतिरोध और लिंग आधारित हिंसा की घटनाएँ अधूरे सामाजिक परिवर्तन को दर्शाती हैं।
    • धर्म, आस्था और संवैधानिक आधुनिकता:
      • भारत अत्यधिक धार्मिक है, फिर भी आधुनिक भारत एक धर्मनिरपेक्ष संविधान पर आधारित है। 
      • धार्मिक त्यौहार और अनुष्ठान सार्वजनिक जीवन पर हावी हैं, भले ही सबरीमाला (वर्ष 2018) या धारा 377 को वैध बनाने जैसे न्यायिक निर्णय परंपरा को व्यक्तिगत अधिकारों और उदार मूल्यों के साथ समेटने के प्रयासों को दर्शाते हैं।
    • युवा संस्कृति: 
      • भारत की 50% से अधिक जनसंख्या 30 वर्ष से कम आयु की है, युवा वर्ग प्रौद्योगिकी, वैश्विक फैशन और डिजिटल अभिव्यक्ति को अपना रहा है तथा साथ ही क्षेत्रीय पहचान, त्योहारों एवं रीति-रिवाजों को भी कायम रख रहा है। 
      • नवरात्रि के दौरान पारंपरिक पोशाक पहनकर पश्चिमी संगीत का प्रचार करने वाले सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों का उदय आधुनिकता और परंपरा के इस मिश्रण को दर्शाता है, जिसे समाजशास्त्री ‘समझौता आधारित आधुनिकता’ कहते हैं।
    • चुनावी राजनीति: 
      • यद्यपि जाति और धर्म महत्त्वपूर्ण चुनावी निर्धारक बने हुए हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, फिर भी शहरी भारत में मुद्दा-आधारित मतदान, नौकरी, विकास, शासन बढ़ रहा है।
      • यह परिवर्तन पहचान-आधारित से आकांक्षा-आधारित राजनीति की ओर क्रमिक बदलाव को दर्शाता है, हालाँकि यह अभी तक पूर्ण नहीं हुआ है।

    निष्कर्ष: 

    जैसा कि प्रसिद्ध समाजशास्त्री ए. आर. देसाई ने कहा है, भारतीय समाज को द्वैध (Binary) रूप में नहीं, बल्कि द्वंद्वात्मक (Dialectical) रूप में समझना चाहिये, यह वह क्षेत्र है जहाँ परंपरा और आधुनिकता टकराती भी हैं, साथ-साथ जीती भी हैं तथा एक-दूसरे में समाहित भी होती हैं। 

    यह विरोधाभास किसी कमज़ोरी का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समुत्थानशीलन एवं रचनात्मक सुधार का स्रोत है, जो उस समाज की स्थापना करता है जो एक साथ प्राचीन भी है तथा आकांक्षी भी, जड़ों में बसा हुआ भी है और प्रगतिशील भी।

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