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सामाजिक न्याय

द बिग पिक्चर: महिलाओं की स्वास्थ्य ज़रूरतों को प्राथमिकता

  • 18 May 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

भारत के उपराष्ट्रपति ने महिलाओं की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आह्वान किया है, जो देश की आबादी का लगभग 50% हिस्सा हैं।

प्रमुख बिंदु

  • घर के अंदर और बाहर दोनों जगह कार्यवाहक (Caretakers) के रूप में काम करने के बावजूद महिलाएँ सबसे ज़्यादा उपेक्षित हैं।
  • महिलाओं के लिये प्रोत्साहक और निवारक स्वास्थ्य समान रूप से महत्त्वपूर्ण है और इन पर जोर दिया जाना चाहिये।
  • स्वास्थ्य हस्तक्षेपों (Health Interventions) द्वारा महिलाओं की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु उन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

महिला और स्वास्थ्य

  • जन्म के समय लिंग अनुपात: UNFPA स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2020 ने भारत में जन्म के समय लिंगानुपात 910 होने का अनुमान लगाया है, जो सूचकांक के निचले स्तर पर है।
  • किशोरियों का स्वास्थ्य: किशोर उम्र में 70% लड़कियाँ एनीमिक होती हैं और उनकी मासिक धर्म और स्वच्छता से जुड़ी समस्याएँ अक्सर अनियंत्रित हो जाती हैं।
  • किशोर प्रजनन दर (AFR): संयुक्त राष्ट्र ने प्रति 1,000 महिलाओं पर 15-19 वर्ष की महिलाओं को जन्म की वार्षिक संख्या के रूप में किशोर प्रजनन दर (Adolescent Fertility Rate- AFR) को परिभाषित किया है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के अनुसार, सर्वेक्षण किये गए 22 राज्यों में त्रिपुरा ने प्रति 1,000 महिलाओं पर 69 जन्म के साथ उच्चतम AFR दर्ज किया।
      • प्रति 1,000 महिलाओं पर 14 जन्म के साथ सबसे कम किशोर प्रजनन दर गोवा में दर्ज की गई।
  • किशोर गर्भावस्था: किशोर गर्भावस्था (Teenage Pregnancies) में लड़कियों की मृत्यु की संभावना 3 गुना अधिक होती है। महिलाओं की प्रजनन और यौन स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
    • भारत में प्रतिवर्ष लगभग 113 किशोर महिलाएँ गर्भधारण के कारण परिवादों (libels) के परिणामस्वरूप अपनी जान गवाँँ देती हैं। इसके अलावा ऐसी मौतों की कम रिपोर्टिंग भी होती है।
  • प्रजनन स्वास्थ्य का मुद्दा: भारत की 70% महिलाएँ प्रजनन के दौरान कई (Reproductive Tract) प्रकार के संक्रमण से पीड़ित होती हैं, जिससे बाँझपन, गर्भपात और इसी तरह की समस्याएँ हो सकती हैं जिन्हें सामान्य माना जाता है।
  • मातृ मृत्यु दर: मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio- MMR) को एक निश्चित समय अवधि के दौरान मातृ मृत्यु की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो एक ही समय अवधि के दौरान 1,00,000 जीवित जन्मों में होती है।
    • MMR वर्ष 2015-17 के 122 और वर्ष 2014-2016 के 130 के स्तर से घटकर वर्ष 2016-18 में 113 रह गई है।
  • महामारी के बीच महिलाएँ: जो महिलाएँ महामारी के दौरान फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में काम कर रही हैं, उनमें से कई की PPE किट जैसी साधारण ज़रूरतों तक पहुँच नहीं है, जो उन्हें संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
    • महिलाएँ, फ्रंटलाइन कार्यकर्त्ताओं के अलावा जो संक्रमित हो जाते हैं, उन्हें भी दोहरी परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि माना जाता है कि उन्हें न केवल खुद की देखभाल करनी है बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों की भी देखभाल करनी होती है जो संक्रमित हैं।
    • यहाँ तक ​​कि कोविड-19 से पीड़ित महिलाएँ जो अस्पताल में भर्ती हैं, उनके प्रवेश के दिनों की औसत संख्या उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में बहुत कम है।
    • स्कूल छोड़ने वालों में भी अधिकांश लड़कियाँ हैं।

महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाएँ सुनिश्चित करने की सरकारी पहल

  • स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र: भारत में लगभग 76,000 स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र हैं जो उच्च रक्तचाप, मधुमेह, स्तन कैंसर, मुख का कैंसर और ग्रीवा कैंसर जैसे 5 प्रकार के स्वास्थ्य मुद्दों की स्क्रीनिंग करते हैं।
    • इन स्वास्थ्य केंद्रों में प्रतिवर्ष आने वाले मरीजों की संख्या लगभग 46.4 करोड़ है। इनमें से 24.91 करोड़ यानी 53.7% महिलाएँ हैं।
  • किशोर हितैषी स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम: राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (Rashtriya Kishor Swasthya Karyakram) पोषण, यौन प्रजनन स्वास्थ्य, पदार्थों का दुरुपयोग, गैर-संचारी रोग, मानसिक स्वास्थ्य, चोट और हिंसा पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • यह कार्यक्रम लेस्ब‍ियन (LESBIAN ), गे (GAY), बाईसेक्सुअल (BISEXUAL), ट्रांसजेंडर (TRANSGENDER) और क्यूर (Queer) सहित सभी किशोरों तक पहुँचने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • सहायक नर्स मिडवाइफ: सहायक नर्स मिडवाइफ (Auxiliary Nurse Midwife- ANM) जिसे आमतौर पर ANM के रूप में जाना जाता है, भारत में ग्रामीण स्तर की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता है, जिसे समुदाय और स्वास्थ्य सेवाओं के बीच पहले संपर्क व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
  • जननी सुरक्षा योजना (JSY): जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY) माताओं और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को कम करने के लिये भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission-NHM) द्वारा चलाया जा रहा एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप (Safe Motherhood Intervention) है।
    • इसे 12 अप्रैल, 2005 को लॉन्च किया गया था और इसे सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कम प्रदर्शन करने वाले राज्यों पर विशेष फोकस के साथ लागू किया जा रहा है।
    • JSY एक 100% केंद्र प्रायोजित योजना है और प्रसव एवं प्रसव उपरांत देखभाल हेतु नकद सहायता प्रदान करती है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): PMMVY गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये एक योजना है।
    • इस योजना ने 1 करोड़ लाभार्थियों का आँकड़ा पार कर लिया है।
    • यह एक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) योजना है जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद राशि प्रदान की जाती है ताकि बढ़ी हुई पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और आंशिक रूप से मज़दूरी के नुकसान की भरपाई की जा सके।

आगे की राह

  • बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण: महिलाओं के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिये बहु-क्षेत्रीय स्तर जैसे- बाल विवाह के उन्मूलन, गर्भ निरोधकों तक पहुँच और सभी स्तरों पर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये समान व्यवहार किया जाना चाहिये।
    • निस्संदेह मातृ स्वास्थ्य देखभाल महत्त्वपूर्ण है, अतः महिलाओं के पूरे जीवन काल में उनके स्वास्थ्य देखभाल पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, नियमित जाँच और निवारक देखभाल ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की आवश्यकता: अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिये स्वयं महिलाएँ अपनी तरफ से अनिच्छुक होती हैं।
    • यदि महिलाएँ अपने घरों के पास उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करें तो वे अपनी कई भूमिकाओं के कारण अपने लिये समय निकाल सकती हैं।
  • संयुक्त प्रयास: सशक्तीकरण हेतु महिलाओं को भी अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिये और उन सुविधाओं से अवगत होना चाहिये जो सरकार द्वारा उन्हें प्रदान की जा रही हैं।
    • गर्भवती महिलाओं के लिये नियमित जाँच अनिवार्य है और इसके माध्यम से उनके एनीमिया का ध्यान रखा जाना चाहिये तथा सुरक्षित परिस्थितियों में प्रसव सुनिश्चित करना चाहिये।
    • साथ ही समाज में पुरुषों की मानसिकता को बदलना होगा और उन्हें शिक्षित भी होना चाहिये।
    • महिलाओं के लिये और आखिरकार सभी के लिये अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने हेतु शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

  • एक स्वस्थ समाज का निर्माण तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक कि महिलाओं की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की उपेक्षा की जाती रहेगी क्योंकि वे एक स्वस्थ समाज की आधारशिला हैं।
  • महिलाओं का अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित कराना केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकता है। भारत और इसकी अर्थव्यवस्था को एक स्वस्थ महिला कार्यबल की आवश्यकता है क्योंकि महिलाओं की श्रम शक्ति में 10 प्रतिशत की वृद्धि से वर्ष 2025 तक भारत की GDP में लगभग 700 बिलियन डॉलर की वृद्धि की जा सकती है।
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