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संसद टीवी संवाद

भारतीय राजव्यवस्था

स्वामित्त्व योजना

  • 02 May 2020
  • 16 min read

संदर्भ:

भारतीय प्रधानमंत्री ने 24 अप्रैल, 2020 को ‘पंचायती राज दिवस’ के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग’ के माध्यम से देशभर की ग्राम-पंचायतों को संबोधित किया है। इस दौरान उन्होंने देश की ग्राम-पंचायतों और ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से ‘स्वामित्त्व योजना’ की घोषणा की है। इस योजना के तहत नवीनतम सर्वेक्षण पद्धतियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों की रिहायशी इमारतों, मकान आदि का लेखा-जोखा तैयार किया जाएगा। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति का रिकॉर्ड (Property Rights) बनाना और उसका मालिकाना हक तय करना है। 

 

पृष्ठभूमि:  

  • भारत में ऐतिहासिक ग्रंथों में ‘सभा और समितियों’ के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन का उल्लेख मिलता है।
  • वर्ष 1882 में ब्रिटिश शासन के दौरान ‘लार्ड रिपन’ ने देश में स्थानीय स्वशासन की अवधारण प्रस्तुत की थी।
  • देश की स्वतंत्रता के बाद से ही ग्रामीण भारत को मुख्य धारा से जोड़ने और ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित लोगों के विकास के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर कई योजनाएँ लागू की जाती रही हैं।  
  • 2 अक्तूबर, 1959 को ‘बलवंत राय मेहता समिति’ की सिफारिशों के आधार पर राजस्थान के नागौर ज़िले में देश की पहली त्रि-स्तरीय (Three Tier) पंचायत का उद्घाटन किया गया था।   
  • इस त्रि-स्तरीय व्यवस्था में ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर पर), पंचायत समिति (मध्यवर्ती स्तर पर) और ज़िला परिषद (ज़िला स्तर पर) की स्थापना की गई थी।    
  • 24 अप्रैल, 1993 को  भारतीय संविधान के 73वें संशोधन के प्रभाव में आने के बाद भारत में एक त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को आधार प्रदान किया गया। इसीलिए हर वर्ष 24 अप्रैल के दिन को देश में ‘पंचायती राज दिवस’ के रूप में जाना जाता है। 

ग्राम पंचायतों की चुनौतियाँ: 

  • पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना का सबसे प्रमुख लक्ष्य शासन की शक्तियों और कार्यों का विकेंद्रीकरण करना था, परंतु वर्तमान में अधिकांश राजनीतिक दल और सरकारों के हस्तक्षेप के कारण पंचायती व्यवस्था अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं रही है।
  • पंचायतों को अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिये राज्य सरकारों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसके कारण पंचायतों की स्वायत्तता प्रभावित होती है।    
  • आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों की व्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से महिलाओं की सक्रिय भूमिका की कमी पंचायती व्यवस्था की सबसे बड़ी असफलता है। 
  • देश के अधिकांश भागों में पंचायत स्तर पर जनता तथा जन प्रतिनिधियों में जागरूकता और तकनीकी साक्षरता के अभाव के कारण ग्रामीण जनता को सरकार द्वारा चलाई गई अनेक योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।   
  • स्थानीय विकास के लिये आवश्यक योजनाओं के निर्धारण और उनके क्रियान्वयन के लिये  पंचायतों का आत्मनिर्भर न होना पंचायती व्यवस्था के विकास में सबसे बड़ी बाधा है।

संपत्ति से जुड़े प्रमाणिक आँकड़ों का अभाव: 

  • आज भी भारत की अधिकांश (लगभग 60%) आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है परंतु ज़्यादातर ग्रामीणों के पास अपनी आवासीय संपत्ति के आधिकारिक प्रमाण-पत्र नहीं हैं।
  • देश की स्वतंत्रता के पहले से देश के सभी भागों में भूमि का बंदोबस्त होता रहा है परंतु अधिकांश राज्यों में गावों के आबादी क्षेत्रों का मापन संपत्ति के सत्यापन के दृष्टिकोण से नहीं हुआ है। 
  • संपत्ति के प्रमाणिक आँकड़ों के अभाव में पंचायतों के पास कर निर्धारण और कर वसूल करने के लिये कोई आधार नहीं होता है।  

स्वामित्त्व योजना: 

  • यह योजना पंचायती राज मंत्रालय (Ministry of Panchayati Raj), राज्यों के पंचायती राज विभाग (Panchayati Raj Department), राज्य राजस्व विभाग और भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) के सहयोग से चलाई जाएगी।
  • इस योजना के तहत ड्रोन (Drone) और अन्य नवीनतम तकनीकों की सहायता से रिहाइशी भूमि का सीमांकन कर ग्रामीण क्षेत्रों में एकीकृत संपत्ति सत्यापन (Integrated Property Validation) की एक व्यवस्था स्थापित की जाएगी।
  • इसके तहत गाँव की सीमा के भीतर आने वाली प्रत्येक संपत्ति का डिजिटल रूप नक्शा बनाया जाएगा और प्रत्येक राजस्व खंड की सीमा का निर्धारण किया जाएगा। 

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया:

  • इस योजना के तहत सबसे पहले वन्य क्षेत्र व कृषि भूमि से आबादी के इलाके को अलग करते हुए आबादी वाले क्षेत्र नक्शे/मानचित्र पर चिह्नित किया जाएगा।
  • इसके बाद इस सीमा के अंदर सभी संपत्तियों को उनके मालिकों की पहचान के साथ चिह्नित किया जाएगा।
  • इस प्रक्रिया में पंचायतों और स्थानीय प्रशासन की सक्रिय भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • इस प्रक्रिया के दौरान कर विभाग के अधिकारियों द्वारा आधिकारिक विवाद निस्तारण प्रक्रिया के माध्यम से स्थानीय विवादों का निपटारा किया जाएगा।
  • साथ ही कर विभाग के अधिकारियों के सहयोग से तकनीकी चुनौतियों (ड्रोन से सही तस्वीर न आना आदि) या पुराने विवादों जैसे मुद्दों का समाधान किया जाएगा।
  • इस प्रक्रिया के उपरांत तैयार किये गए मालिकाना प्रमाण पत्र (टाइटिल डीड) को संपत्ति मालिकों को दिया जा सकेगा।     
  • इस योजना को पहले चरण में प्रायोगिक (पायलट) रूप में देश के 6 राज्यों  (उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र) के लगभग 1 लाख गाँवों में लागू किया जाएगा।  

स्वामित्त्व योजना के लाभ: 

  • इस योजना के माध्यम से गावों और ग्राम पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों को आधार प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • संपत्ति कर के माध्यम से ग्राम पंचायतों को आमदनी के एक स्थायी स्रोत और स्थानीय व्यवस्था के लिये अतिरिक्त संसाधन का प्रबंध किया जा सकेगा। 
  • एकीकृत संपत्ति सत्यापन व्यवस्था के माध्यम से संपत्ति से जुड़े विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी।
  • इस योजना के तहत प्राप्त आधिकारिक प्रमाण पत्र  के माध्यम से संपत्ति मालिक अपनी संपत्ति पर बैंक ऋण और संपत्ति से जुड़ी अन्य योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे।  
  • वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्र में कृषि भूमि पर बने मकानों और जोत के वास्तविक आकार के संदर्भ में उपलब्ध आंकड़ों में स्पष्टता की भारी कमी है, इस योजना के माध्यम से कृषि जोत के आकार से जुड़े आँकड़ों को मज़बूत बनाने में सहायता मिलेगी।  
  • ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति के आंकड़ों के बेहतर प्रबंधन से भविष्य में ग्रामीण विकास की योजनाओं के निर्धारण और उनके क्रियान्वयन में सहायता प्राप्त होगी। 
  • प्रधानमंत्री आवास योजना की ही तरह इस योजना में भी संपत्ति के पंजीकरण के दौरान महिलाओं को संपत्ति के मालिकाना अधिकार में प्राथमिकता देने पर विचार किया जा रहा है, हालाँकि अभी तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।   

चुनौतियाँ:

  • संपत्ति से जुड़े प्रमाणिक दस्तावेज़ों का अभाव: इस योजना लागू करने का एक मुख्य लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों से जुड़े आंकड़ों में सुधार करना है परंतु वर्तमान में ऐसे आकड़ों के अभाव में इस योजना के क्रियान्यवयन के समय अनेक विवादों का सामना करना पड़ सकता है।      
  • संयुक्त परिवारों में संपत्ति का बँटवारा: अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक परिवारों में संपत्ति का विभाजन बहुत ही जटिल होता है, अतः ऐसी संपत्तियों के मामलों में आधिकारिक पत्र जारी करना एक चुनौती होगी। 
  • स्वामित्त्व पंजीकरण: केंद्र सरकार द्वारा अभी तक इस योजना के अंतर्गत आधिकारिक प्रमाण पत्र में संपत्ति के पंजीकरण के संबंध में बहुत अधिक जानकारी नहीं दी गई है, जैसे- स्वामित्त्व पंजीकरण की प्रकृति क्या होगी (उदाहरण- खेती, शहरी मकान का पंजीकरण आदि)। साथ ही इस योजना के क्रियान्वयन में राज्य सरकारों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होगी, क्योंकि ‘भूमि’ राज्य का विषय है।  
  • ऋण मिलने की प्रक्रिया: केंद्र सरकार के अनुसार, इस योजना का एक प्रमुख उद्देश्य संपत्ति के मालिकों को आसानी से ऋण प्राप्त करने का एक माध्यम प्रदान करना है परंतु सरकार द्वारा ऋण की दरों या ऋण के प्रकार (जैसे-कृषि ऋण की दर, शहरी क्षेत्रों में मकानों के लिये निर्धारित ऋण दर आदि) के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी गई है। 
  • इंटरनेट: वर्तमान समय प्रतिस्पर्द्धा और विकास के इस दौर में इंटरनेट की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो गई है परंतु आज भी देश के बहुत से ग्रामीण क्षेत्र अच्छे मोबाईल नेटवर्क और तेज़ इंटरनेट की पहुँच से बाहर हैं, ऐसे में सुदूर क्षेत्रों में इस योजना के तहत आंकड़ों को ऑनलाइन अपलोड करने और उनकी जाँच करने में समस्याएँ आ सकती हैं।      

समाधान :

  • केंद्र सरकार के अनुसार वर्तमान में भारत नेट योजना के अंतर्गत देश की लगभग 1.5 लाख पंचायतों तक ‘ऑप्टिकल फाइबर केबल’ पहुँचाया जा चुका, साथ ही सरकार द्वारा बीएसएनएल ब्राॅडबैंड के माध्यम देश के अधिकतम ग्राम पंचायतों तक इंटरनेट सुविधा पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • इस योजना के तहत पंजीकृत संपत्तियों के  निर्धारण और उनपर ऋण उपलब्ध करने के लिये बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों के सुझावों के आधार पर समाप्ति के प्रमाण पत्र का निर्धारण किया जाना चाहिये, जिससे संपत्ति के मालिकों को आसानी से उपयुक्त ऋण प्राप्त हो सके।
  • किसी भी समाज के विकास में महिलाओं की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है, इस योजना के माध्यम से महिलाओं को संपत्ति में अधिकार प्रदान करने के साथ ग्राम्य व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • योजनाओं के सफल क्रियान्वयन और जन भागीदारी को बढ़ावा देने पंचायतों सफलता का मूल्यांकन कर पंचायतों के बीच एक सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • जनता को भी अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए पंचायती व्यवस्था में अधिक से अधिक योगदान देना चाहिये और पंचायतों के राजनीतिकरण से बचाना चाहिये, जिससे पंचायती व्यवस्था के मूल उद्देश्य (शासन के विकेंद्रीकरण) को सुरक्षित रखते हुए ग्रामीण विकास को सुनिश्चित किया जा सके।

निष्कर्ष:  

वर्तमान में देश की आबादी का एक बड़ा भाग या तो ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है या किसी-न-किसी रूप में अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में भारत के उज्जवल भविष्य के लिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आत्मनिर्भरता और इसकी स्वयत्ता को महत्त्वपूर्ण बताया था। वर्तमान में जब COVID-19 की महामारी के दौरान शहरी अर्थव्यवस्था के सभी आधार असफल होते प्रतीत हो रहें हैं तो ऐसे में सभी में एक बार पुनः देश के विकास में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इसकी आत्मनिर्भरता के महत्त्व को स्वीकार किया है। स्वामित्त्व योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों के आंकड़ों में स्पष्टता लाने के साथ इसके माध्यम से ग्रामीण जनता और ग्राम पंचायतों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाकर ग्रामीण भारत के विकास को एक मज़बूत आधार प्रदान किया जा सकेगा।

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