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राज्यसभा

विशेष/इन डेप्थ: राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण (NFRA)

  • 08 Mar 2018
  • 17 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
देश में लेखा-परीक्षकों यानी ऑडिटर्स के लिये शीघ्र ही एक स्वतंत्र विनियामक संस्था राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority-NFRA) का गठन होने वाला है। देश में सामने आ रहे बैंकिंग घोटालों में ऑडिटर्स की लापरवाही या अनदेखी प्रमुख मुद्दे के रूप में उभरकर सामने आई है। इसको दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न कार्य क्षेत्रों में महसूस की गई ज़रूरत के मद्देनज़र NFRA की स्थापना की जा रही है।

क्या है NFRA?

  • NFRA का उद्देश्य विनियमन कर रहे तंत्र से इतर स्वतंत्र विनियामकों को स्थापित करना और लेखा-परीक्षा मानकों को लागू करना, लेखा-परीक्षा की गुणवत्ता व लेखा-परीक्षा फर्मों की स्वतंत्रता को सुदृढ़ बनाना है। 
  • इसका अंतिम लक्ष्य कंपनियों की वित्तीय स्थिति के प्रकटीकरण में निवेशकों व सार्वजनिक तंत्र का विश्वास बढ़ाना है। 
  • इसका उद्देश्य कंपनी अधिनियम, 2013 में किये गए संशोधनों के बाद लेखा-परीक्षा के कार्य के लिये एक स्वतंत्र विनियामक के रूप में कार्य करना है। 
  • इसकी स्थापना के पीछे कंपनी अधिनियम, 2013 में किये गए संशोधन हैं, जिसकी सिफारिश वित्त संबंधी स्थायी समिति की विशिष्ट सिफारिशों (21वीं रिपोर्ट) में की गई थी। 
  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 132 के उपबंधों में NFRA का गठन, शक्तियों एवं ज़िम्मेदारियों का उल्लेख किया गया है। 
  • NFRA को ICAI की तुलना में अधिक अधिकार मिलेंगे। इसे ऑडिटर्स की जाँच, कार्रवाई और सज़ा देने का अधिकार भी होगा। 
  • फिलहाल इसके दायरे में 100 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली सूचीबद्ध तथा अन्य बड़ी गैर-सूचीबद्ध कंपनियाँ आएंगी।
  • इसके साथ ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) भी पहले की तरह काम करता रहेगा, लेकिन इसकी भूमिका अब सीमित हो जाएगी।
  • छोटी और गैर-सूचीबद्ध कंपनियाँ ICAI के दायरे में पहले की तरह रहेंगी और NFRA इसके कार्यों में सीधे दखलंदाज़ी नहीं करेगा।
  • CA तथा अन्य पेशेवरों के लिये लाइसेंस जारी करने और पाठ्यक्रम तैयार करने की ज़िम्मेदारी पहले की तरह ICAI के पास ही रहेगी।
  • माना जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में ICAI ने केवल 25 शिकायतों पर कार्रवाई की है, जबकि 1400 से अधिक मामले इसके पास अभी तक लंबित पड़े हुए हैं। 
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत NFRA को सिविल अदालतों जैसे अधिकार प्राप्त होंगे अर्थात् यह समन जारी कर सकता है और सज़ा और ज़ुर्माना भी लगा सकता है।
  • दोषी पाए जाने पर यह किसी CA को 10 साल तक प्रैक्टिस करने से रोक सकता है।
  • कंपनी कानून की धारा 132(4)(ए) के तहत NFRA में कार्रवाई प्रक्रिया शुरू होने के बाद सेबी या अन्य कोई संस्था या निकाय उस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। 
  • केंद्र NFRA में एक अध्यक्ष के अलावा तीन पूर्णकालिक सदस्य और सचिव की नियुक्ति करेगा। वैसे यह कुल 15 सदस्यों वाली अधिकार संपन्न नियामक संस्था होगी।
  • NFRA न केवल ऑडिटर्स की प्रभावी निगरानी करेगा, बल्कि इससे निवेश, आर्थिक विकास, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कारोबार और लेखा-परीक्षा व्यवसाय के विकास में भी मदद मिलेगी।
  • NFRA के पास किसी भी मामले का स्वतः संज्ञान (Suo Moto) लेने का भी अधिकार होगा और यह केंद्र सरकार की ओर से दिये जाने वाले निर्देशक मामलों की जाँच भी कर सकेगा।

NFRA का कार्य क्षेत्र 

  • अधिनियम की धारा 132 के अंतर्गत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और उनकी फर्मों की जाँच करने के लिये NFRA का कार्यक्षेत्र सूचीबद्ध कंपनियों तथा वृहद् गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को कार्य क्षेत्र में लाना है, जो कि नियमों में निर्धारित अपेक्षा के अयोग्य है। केंद्र सरकार ऐसे अन्य निकायों की जाँच के लिये भी कह सकती है, जहाँ सार्वजनिक हित अंतर्विष्ट हो। 
  • चार्टर्ड एकाउंटेंट अधिनियम, 1949 के प्रावधानों के अनुसार ICAI की व्याप्त विनियामक भूमिका सामान्य रूप से उनके सदस्यों तथा प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों से संबंधित लेखा-परीक्षा के संबंध में विशेष रूप से जारी रहेंगी और निर्धारित सीमा से नीचे सार्वजनिक गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को नियमों में अधिसूचित किया जाएगा। 
  • गुणवत्ता पुनरीक्षा मंडल (Quality Review Board-QRB) की प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों, निर्धारित सीमा से कम सार्वजिनक गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के संबंध में गुणवत्ता लेखा-परीक्षा भी जारी रहने के साथ-साथ उन कंपनियों की लेखा-परीक्षा के संबंध में भी NFRA द्वारा QRB को यह कार्य सौंपा जा सकता है। 

विश्व के कई देशों में ऐसी व्यवस्था पहले से ही लागू है, जो अपने देश के ऑडिटर्स पर नियंत्रण रखने के लिये स्वायत्त संस्थाओं पर निर्भर रहते हैं। लगभग 54 देशों में ऑडिटर्स की निगरानी के लिये स्वतंत्र विनियामक संस्थाएँ हैं। अमेरिका में ऑडिटर्स पर नियंत्रण रखने का काम पब्लिक कंपनी एकाउंटिंग ओवरसाइट बोर्ड करता है, वहीं यूके में फाइनेंशियल रिपोर्टिंग काउंसिल इस काम के लिये है। भारत में भी इन्हीं देशों के अनुभव के आधार पर NFRA के स्थापना की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि NFRA को लागू करने वाली धारा 132 को कंपनी अधिनियम, 2013 के अन्य संशोधनों के साथ अधिसूचित नहीं किया गया था, क्योंकि ICAI का कहना था कि अनुशासित करने का अधिकार उसी के पास रहना चाहिये। पीएनबी घोटाला सामने आने के बाद सरकार ने इसे अधिसूचित करने का निर्णय लिया। वैसे चार्टर्ड अकाउंटेंट्स अधिनियम, 1949 भी अस्तित्व में है और ICAI के 8 सदस्यों को भारत सरकार ही तय नियमों के आधार पर चुनती है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

लेखा मानक राष्ट्रीय सलाहकार समिति
कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 1999 की धारा 211 में 3A, 3B और 3C तीन उपधाराएँ जोड़ी गईं और इनके तहत प्रत्येक कंपनी को अपनी बैलेंस शीट और लाभ-हानि खाते का अनुपालन केंद्र सरकार द्वारा तय लेखा मानकों के तहत करने का प्रावधान किया गया था। जब सरकार को इन मानकों और नीतियों के निर्धारण के लिये एक संस्था की मदद की ज़रूरत पड़ी तो धारा 210A के तहत लेखा मानकों पर राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NACAS) का गठन किया गया, जिसका काम सरकार को कंपनियों पर लागू होने वाली लेखांकन नीतियों और लेखा मानकों पर सलाह देना था। लेकिन NACAS का काम केवल परामर्श देने तक ही सीमित रह गया, जबकि NFRA के पास पर्याप्त विनियामक शक्तियां भी होंगी।

चार्टर्ड अकाउंटेंट और ऑडिटर्स की भूमिका

  • CA तथा ऑडिटिंग फर्म्स ऐसे पद और संस्थान हैं जो किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थानों में हो रही वित्तीय अनियमितता का तुरंत पता लगा सकते हैं और इन्हें रोकने में सहायता कर सकते हैं। 
  • समय पर हुए ऑडिट और उसकी प्रक्रिया को प्रभावी तरीके से अंजाम दिया जाए तो कोई भी घोटाला (छोटा या बड़ा) नज़रों से बच नहीं सकता।
  • देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने, इससे जुड़े सिस्टम का ऑडिट और उसे सत्यापित करने का काम CA का होता है। 
  • बैंक भी अपना वार्षिक ऑडिट CA से कराते हैं, जिसके लिये देश में मौजूद कई CA फर्मों के अलावा अंतरराष्ट्रीय चार्टर्ड एकाउंटेंसी कंपनियों की सेवा ली जाती हैं। 
  • इसके अलावा किसी भी संस्थान में चार्टर्ड एकाउंटेंट (CA) का काम उस संस्थान अथवा कंपनी से जुड़े सभी लेखा एवं वित्त संबंधी कार्यों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  • कंपनी अधिनियम के अनुसार केवल CA ही भारतीय कंपनियों में बतौर ऑडिटर नियुक्त किये जा सकते हैं।
  • इसके अलावा इनका कार्य वित्त प्रबंधन, ऑडिट अकाउंट का विश्लेषण, कराधान तथा वित्तीय सलाह देने का भी होता है। 

दिक्कत कहाँ है?
हाल ही में एसोसिएशंस ऑफ डिवेलपिंग फाइनेंसिंग इंस्टीट्यूशन इन एशिया एंड पैसेफिक के वार्षिक कार्यक्रम में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकिंग प्रणाली के साथ हुई धोखाधड़ी के मामलों में यह माना कि सिस्टम में भारी चूक की वज़ह से बैंकिंग घोटाले हुए हैं और करदाताओं पर इनका बोझ पड़ा है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने भी दिल्ली में ग्लोबल बिज़नेस समिट में  कहा कि आर्थिक गड़बड़ियाँ स्वीकार नहीं की जाएँगी, सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी और वित्तीय घोटालों पर सरकार की पॉलिसी ज़ीरो टॉलरेंस की है। सरकार आर्थिक विषयों से संबंधित अनियमितताओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई कर रही है, करेगी और करती रहेगी। जनता के पैसे का अनियमित अर्जन, इस सिस्टम को स्वीकार नहीं होगा।

  • ऑडिटर्स, मैनेजमेंट और निगरानी एजेंसियों पर प्रश्नचिह्न लगाया गया कि ऑडिट करने वालों को स्वयं से पूछना चाहिये कि वे अनियमिताओं को क्यों नहीं पकड़ पाते। 
  • रिज़र्व बैंक जैसी निगरानी एजेंसियों को यह पता लगाने की ज़रूरत है कि अनियमिताओं को पकड़ने के लिये किस तरह की नई प्रणालियों को अपनाया जाना चाहिये।
  • निगरानी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि छिटपुट मामलों को शुरू में ही पकड़ लिया जाए और उनकी पुनरावृत्ति न हो।
  • बैंकों के प्रबंध तंत्र अपनी ज़िम्मेदारी पर खरे नहीं उतरते, क्योंकि वे यह पता करने में विफल रहते हैं कि उनके बीच में वे कौन हैं जो गड़बड़ी करने वाले हैं।

पीएनबी मामले में कहाँ चूक हुई?
मान्य प्रक्रियाओं और मानकों के तहत बैंकिंग सिस्टम की ज़िम्मेदारी है कि संदेहास्पद लेन-देन के बारे में वित्तीय आसूचना एकक (Financial Intelligence Unit-FIU) को बताए, जो उसे प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग जैसी जाँच एजेंसियों को भेजता है तथा वे ऐसे संदिग्ध लेन-देन पर कार्रवाई करते हैं। जब ऑडिटर्स किसी कंपनी की कार्यप्रणाली या कॉर्पोरेट गवर्नेंस में कमी पाते हैं तो कॉर्पोरेट मामलों के विभाग को इसकी जानकारी देते हैं और संबद्ध मंत्रालय उस पर कार्रवाई करता है। 

नीरव मोदी की मुख्य कंपनी फ़ायरस्टार इंटरनेशनल में कंपनी ऑडिटर डेलॉयट हेसकिन्स एंड शेल्स ने आय को खाते में दिखाने के मामले में कमज़ोर आंतरिक नियंत्रण की बात बताई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। दूसरी ओर अर्नस्ट एंड यंग ने पीएनबी के सिस्टम और कुछ अधिकारियों की क्षमता में कमी की रिपोर्ट दी थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजलि ज्वैलर्स के ऑडिट में कंपनी पर आर्थिक दबाव और कर्ज़ को समय से न चुकाने की रिपोर्ट दी गई थी, तब भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।

मेकर एंड चेकर्स, CBS और SWIFT: बैंकों में लेन-देन 'मेकर एंड चेकर्स' व्यवस्था पर होता है यानी कि लेन-देन का ब्योरा एक अधिकारी बनाएगा तो दूसरा उसे जाँचेगा और तीसरा उसे मंज़ूरी देगा इसके बाद भी सतर्कता विभाग का अधिकारी इनके कामकाज पर नज़र रखता है। बैंक का आंतरिक ऑडिट नियमित रूप से रक्षक की भूमिका अदा करता है तथा बैंक का हर लेन-देन कोर बैंकिंग सिस्टम (CBS) पर दर्ज़ होना चाहिये। इसके अलावा स्विफ़्ट-सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) के ज़रिये हुआ लेन-देन इतने वर्षों से पकड़ में न आना बिना मिलीभगत के संभव नहीं हो सकता। 

5 तरह का ऑडिट: बैंक का कारोबार आरबीआई की निगरानी के अलावा, पाँच तरह के ऑडिट निगरानी में होता है। बैंक का क्रेडिट ऑडिट, बैंक का इंटरनल ऑडिट, कॉनकरंट ऑडिट, स्टॉक ऑडिट और एक्सटर्नल स्टेटुरी ऑडिट। लगातार छह वर्षों तक कोई भी ऑडिट पीएनबी में इस घोटाले को पकड़ने में चूक गया या फिर उन्होंने जान-बूझकर ऐसा किया?

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: हाल ही में एक के बाद एक हुए बैंकिंग घोटालों में बेशक बैंकों और ऑडिटर्स की चूक को इसका एक बड़ा कारण माना गया है, लेकिन बैंकों की केंद्रीय नियामक संस्था रिज़र्व बैंक भी कम दोषी नहीं है। इतने बड़े घोटाले/घपले कई स्तरों पर लापरवाही, मिलीभगत या व्यवस्था की गड़बड़ी के बिना अंजाम नहीं दिये जा सकते। पीएनबी घोटाले के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह कहना बिलकुल सही है कि यदि कोई वित्तीय गड़बड़ी इतने सालों तक इतने लोगों की नज़र से बचती रही है तो यह घोर लापरवाही है या फिर जानबूझकर ऐसा किया किया गया है। पीएनबी में 12,600 करोड़ का घोटाला तथा कुछ अन्य घोटाले सामने आने के बाद सरकार ICAI के काम करने की शैली से बहुत खुश नहीं है। यह घोटाला 6 सालों से चल रहा था और ICAI इसे सामने ला पाने में नाकाम रही। इस अनभिज्ञता और ऐसी ही अन्य वित्तीय अनियमितताओं के मद्देनज़र ऑडिटर्स के ऑडिट के लिये NFRA जैसी विनियामक संस्था का गठन करना पड़ा।

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