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उच्च शिक्षा गुणवत्ता अधिदेश

  • 24 Feb 2020
  • 17 min read

संदर्भ:

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा विकसित उच्च शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम अधिदेश (Higher Education Quality Improvement Programme Mandate) के अनुरूप उच्च शिक्षा में मूल्यों और नैतिकता के लिये नए दिशा-निर्देशों की घोषणा की है। गुणवत्ता अधिदेश के 5 मानदंडों को शामिल करते हुए मंत्रालय ने 5 दस्तावेज़ प्रस्तुत किये हैं - मूल्यांकन सुधार, पर्यावरण-अनुकूल एवं सतत/संवहनीय विश्वविद्यालय परिसर, मानवीय मूल्य एवं पेशेवर नैतिकता, संकाय प्रेरण कार्यक्रम और शैक्षणिक शोध समग्रता।

गुणवत्ता अधिदेश की अवधारणा

  • सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के हस्ताक्षरकर्त्ता देश के रूप में भारत ने इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु विभिन्न कार्यक्रमों की शुरुआत की है।
    • SDG-4 उच्च शिक्षा में गुणवत्ता से संबंधित है। इस पृष्ठभूमि में UGC ने मई 2018 में उच्च शिक्षा के लिये गुणवत्ता अधिदेश का शुभारंभ किया।
  • अधिदेश का उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार करना है और उच्च शिक्षा प्रणाली का इस प्रकार से विकास करना है जो देश की अगली पीढ़ी को महत्त्वपूर्ण कौशल, ज्ञान और नैतिकता से समृद्ध करे ताकि वे एक संतोषपूर्ण जीवन जी सकें।

अधिदेश के 5 कार्यक्षेत्र:

  • मूल्यांकन सुधार (Evaluation Reforms): इसका उद्देश्य शिक्षार्थी मूल्यांकन को अधिक सार्थक एवं प्रभावी बनाना और इसे सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes) से जोड़ना है। यह इस तथ्य पर आधारित है कि शिक्षार्थी मूल्यांकन देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और संबंधित समस्याओं के समाधान का प्रयास करता है। इसके तहत ‘भारत में उच्च शैक्षणिक संस्थानों में मूल्यांकन सुधार’ (Evaluation Reforms in Higher Educational Institutions in India) शीर्षक रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई है।
  • सतत् (SATAT) - यह उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्यावरण-अनुकूल एवं सतत् परिसर विकास की एक रूपरेखा है जो विश्वविद्यालयों को चिंतनशील नीतियों और अभ्यासों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य हरित और सतत् विधियों को अपनाकर परिसर की पर्यावरण गुणवत्ता में वृद्धि करना है।
  • मूल्यप्रवाह (MulyaPravah) - यह उच्च शिक्षा संस्थानों में मानवीय मूल्यों और पेशेवर नैतिकता के विकास के लिये जारी दिशा-निर्देश है। यह शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा की प्रक्रिया पर चर्चा करने और उन्हें व्यवस्थित करने की आवश्यकता को चिह्नित करता है तथा उन बातों पर ध्यान केंद्रित करता है जो मानव मूल्यों और नैतिकता की संस्कृति के प्रवेश में मदद कर सकते हैं। जारी दिशा-निर्देश में छात्रों से भी उनकी समग्र उपस्थिति एवं व्यवहार में शालीनता का पालन करने, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने एवं किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहने और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति, समुदाय, जाति, धर्म या क्षेत्र के छात्रों के बीच सामंजस्य बनाए रखने का आह्वान किया गया है।
  • गुरु-दक्षता (Guru-Dakshta) - यह एक माह का Faculty Induction Programme (FIP) है जिसका उद्देश्य नवनियुक्त संकाय सदस्य को उच्च शिक्षा में शिक्षार्थी-केंद्रित दृष्टिकोण, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) एकीकृत शिक्षण और अध्यापन/शिक्षण के लिये नए शिक्षण दृष्टिकोणों को अपनाने हेतु जागरूक और प्रेरित करना है। यह नवनियुक्त शिक्षकों के लिये एक अनिवार्य कार्यक्रम है।
    • UGC इस कार्यक्षेत्र में "रिक्रूट, रिटेन एंड रोल मॉडल" (Recruit, Retain and Role model) दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। चूँकि शिक्षक किसी भी शैक्षिक प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ज्ञानवान शिक्षकों की नियुक्ति और उन्हें सेवा में बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। ऐसे शिक्षकों को छात्रों के लिये रोल मॉडल के रूप में पेश करने की आवश्यकता है और इस उद्देश्य के लिये संकाय प्रेरण कार्यक्रम (FIP) आवश्यक है।
  • केयर (CARE- Consortium for Academic and Research Ethics): यह कार्यक्रम उच्च गुणवत्तायुक्त शोध को बढ़ावा देने, संकाय सदस्यों की समग्रता बनाए रखने और ज्ञान के सृजन को बढ़ावा देने के महत्त्व पर बल देता है ताकि विभिन्न विषयों संबंधी गुणवत्तापूर्ण शोध-पत्रिकाओं (Journals) की निगरानी और पहचान हो सके।
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है जिसमें भारतीय कृषि शोध परिषद (ICAR), भारतीय आयुर्विज्ञान शोध परिषद (ICMR) आदि जैसे सभी नियामक प्राधिकरणों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
    • यह उन अच्छी शोध-पत्रिकाओं की पहचान करता है जिनमें शिक्षकों के शोध लेख प्रकाशित किये जा सकते हैं।
    • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये UGC ने पुणे विश्वविद्यालय को नोडल विश्वविद्यालय और तेज़पुर विश्वविद्यालय (असम), MSU (बड़ौदा), हैदराबाद विश्वविद्यालय, JNU (दिल्ली) को 4 क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों के रूप में चुना है।
    • इस संबंध में CARE वेबसाइट और गुणवत्तापूर्ण शोध-पत्रिकाओं की संदर्भ सूची अधिक जागरूकता पैदा करने और अकादमिक गुणवत्ता, समग्रता एवं नैतिक प्रकाशन (पैसे लेकर शोध लेख छापने वाली पत्रिकाओं/ Predatory Journals के महत्त्व को कम करते हुए) को बढ़ावा देने में लाभप्रद साबित हो सकते हैं।
    • शोध (जो पेशेवर, नैतिक और अच्छी गुणवत्ता का हो) के उद्देश्य की पहचान करने की आवश्यकता है। यह सूची उन वैज्ञानिक पत्रिकाओं की पहचान करती है जिनमें अधिक सार्थक, गुणवत्तापूर्ण और नैतिक शोध प्रकाशित किये जा सकते हैं।

अन्य कार्यक्रम

  • दीक्षारंभ (Deeksharambh) - यह छह दिवसीय छात्र प्रेरण कार्यक्रम (Student Induction Programme) है, जिसका उद्देश्य नए छात्रों में संस्था के लोकाचार व संस्कृति का प्रवेश कराते हुए उन्हें नए वातावरण के प्रति सहज और अनुकूल बनाने में सहायता करना है। अभी तक लगभग 500 संस्थानों ने इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया है।
  • परामर्श (Paramarsh) - यह उच्च शिक्षा में गुणवत्ता आश्वासन (Quality Assurance) को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन और मूल्यांकन परिषद (National Accreditation and Assessment Council- NAAC) की मान्यता के आकांक्षी संस्थानों को परामर्श सहयोग की योजना है। यह परामर्श सहयोग प्राप्त करने वाले उन संस्थानों में शोध सहयोग एवं संकाय विकास के लिये ज्ञान, सूचना व अवसरों को साझा करने की सुविधा भी प्रदान करेगा।
    • सरकार ने वर्ष 2022 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के NAAC द्वारा मान्यता प्राप्त कर लेने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उच्च समग्र ग्रेड प्रदर्शन रिपोर्ट (Overall Grade Performance- OGP) वाले संस्थान अन्य संस्थानों (जिन्हें मान्यता प्राप्त नहीं हैं या जो निम्न OGP स्कोर रखते हैं) को परामर्श सहयोग प्रदान करेंगे ताकि उनके समग्र प्रदर्शन में सुधार लाया जा सके।
  • ‘स्कीम फॉर ट्रांस- डिसिप्लिनरी रिसर्च फॉर इंडियाज़ डेवलपिंग इकॉनमी’ (Scheme for Trans-disciplinary Research for India’s Developing Economy- STRIDE) - यह बहु-विषयक और अंतःविषय शोध के प्रोत्साहन के लिये कार्यान्वित एक योजना है। इसके 3 घटक हैं:
    • प्रथम- विविध विषयों में शोध क्षमता निर्माण हेतु।
    • द्वितीय- सभी कार्यक्रमों/क्षेत्रों में सामाजिक नवोन्मेष और शोध की मदद से समस्या समाधान कौशल की वृद्धि हेतु।
    • तृतीय- मानविकी और मानव विज्ञान में चिह्नित महत्त्व वाले क्षेत्रों में सामाजिक रूप से प्रासंगिक, स्थानीय रूप से आवश्यकता आधारित, राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण और विश्व स्तर पर उल्लेखनीय उच्च प्रभाव शोध परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये सहायता प्रदान करने हेतु। ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ ऐसी परियोजनाओं की पहचान और मूल्यांकन करने में मदद कर रहा है।

मूल्यांकन सुधार (Evaluation Reforms)

  • सीखने की रटन प्रणाली (Rote system)- जहाँ बिना किसी विश्लेषण या सार्थक समझ के बस पाठ को याद कर लिया जाता है) से मुक्ति के लिये निरंतर मूल्यांकन की आवश्यकता है। इसके लिये अधिदेश निम्नलिखित पर केंद्रित है:
  • प्रतिफल-उन्मुख रूपरेखा (Outcome-Oriented Framework): किसी विशेष पाठ्यक्रम में दाखिला लेने से पहले शिक्षार्थी को पाठ्यक्रम और कार्यक्रम के सीखने के प्रतिफल ज्ञात हों।
  • मूल्यांकन (Evaluation): इसके उपरांत शिक्षार्थी के आंतरिक परीक्षण (सेमेस्टर के अंत में परीक्षण के बजाय पूरे सेमेस्टर के दौरान) के माध्यम से लगातार अर्जित दक्षताओं का मूल्यांकन किया जाना है।
    • प्रो. एम.एम. सालुंके समिति ने भी शिक्षार्थियों के आंतरिक परीक्षण (Internal Assessment) की सिफारिश की है। इसमें पाठ्यक्रम से अर्जित ज्ञान के साथ-साथ छात्र के वैज्ञानिक तर्क, संचार और संज्ञानात्मक कौशल तथा इसी तरह के अन्य गुणों (जैसे कि टीम भावना, नेतृत्व क्षमता आदि) का भी मूल्यांकन किया जाएगा।
    • इससे शिक्षार्थियों के व्यावहारिक प्रतिफल (Behavioural Outcome; संज्ञानात्मक-ज्ञान, संकल्प-क्रिया भाग और स्नेह- संवेदनशीलता, उत्तरदायित्व व नैतिकता सहित) की पहचान करने में मदद मिलती है।
    • कठिनाई-मुक्त और प्रभावी परीक्षा आयोजन के लिये विभिन्न संस्थानों के प्रमुखों के साथ परीक्षा नियंत्रक को प्रशिक्षित किया गया है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: प्रणाली में पारदर्शिता लाने में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

चुनौतियाँ

  • न केवल लागू किये जाने वाले नियम महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि आत्म-अनुशासन और जिस गुणवत्ता की प्राप्ति के लिये हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वे भी महत्त्वपूर्ण हैं।
    • SDG-4 की प्राप्ति के लिये आत्म-अनुशासन और सहकर्मी का दबाव महत्त्वपूर्ण है, जबकि तैयार नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन में सुधार आना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • शोध के दौरान निरंतर आंतरिक परीक्षण अच्छा कदम है, लेकिन यह छात्रों को पूरी तरह से संबंधित प्राध्यापक के विवेक पर छोड़ देता है, जिसके दुरुपयोग का खतरा है।

आगे का रास्ता

  • नियमों को संहिताबद्ध करने के साथ ही उनका प्रभावी कार्यान्वयन वांछित परिणामों की प्राप्ति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण के लिये, पेशेवर शोध-पत्रिकाओं (Predatory Journals) में प्रकाशन पर रोक के लिये टॉप-डाउन दृष्टिकोण लागू किया जा सकता है। इसके अलावा, कठिन दंड और प्रोत्साहन की कमी इस तरह के कदमों को बाधित करेगी।
  • उच्च शिक्षा संस्थानों के संबंध में पूर्व की नीतियों के लगातार मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है। IITs, NITs सहित सभी महाविद्यालयों के लिये देश के अंदर एक डेटाबेस का निर्माण होना चाहिये और समाज में उनके योगदान का मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
    • इन नीतियों के निर्माण के समय छात्र समूहों या पूर्व छात्रों का समावेश किया जाना भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वे शोध के विषय, इसके संचालन के तरीके और आवश्यक अवसंरचना पर महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान कर सकते हैं।
    • इसके अलावा प्रमुख संस्थानों को आत्मनिर्भर बनने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि सरकारी धन का उपयोग अन्य संस्थानों की सहायता के लिये किया जा सके।
  • परा-स्नातक छात्रों के शोध कार्य को मान्यता देने के साथ ही उद्योगों की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करते हुए व्यावहारिक शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि नवाचार और मानव पूंजी में उच्च शिक्षा की भूमिका को नज़रअंदाज़ न किया जाए। प्रारूपिक राष्ट्रीय शिक्षा नीति (Draft National Education Policy- DNEP), 2019 जिसमें महत्त्वाकांक्षी सुधार का प्रस्ताव किया गया है, एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इस तरह के सुधारों से उन कानूनों को बढ़ावा मिलना चाहिये जो शोध-आधारित विश्वविद्यालयों को निधि प्रदान कर सकते हैं।
    • DNEP, शिक्षा पर व्यय को दोगुना करते हुए इसे सकल घरेलू उत्पाद के 6% तक ले जाने और उच्च शिक्षा में शोध-शिक्षण अंतराल को दूर करने का लक्ष्य रखता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की उच्च-शिक्षा व्यवस्था के विकास में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की भूमिका की चर्चा कीजिये।

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