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संसद टीवी संवाद

सामाजिक न्याय

द बिग पिक्चर : लैंगिक अंतराल कम करने का प्रयास

  • 12 Mar 2019
  • 11 min read

संदर्भ

प्रतिवर्ष 8 मार्च को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा की गई प्रगति को प्रतिबिंबित करना है। यह दिवस लैंगिक समानता की आवाज़ उठाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस दिन उन महिलाओं को और उनके योगदान को याद किया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में बेहतरीन योगदान दिया है। 2019 की थीम ‘think equal, build smart, innovate for change’ है।

मज़दूरी तथा रोज़गार में लिंग अंतराल

  • अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों और महिलाओं के बीच मज़दूरी और रोज़गार की असमानता वैश्विक स्तर पर एक मुद्दा बना हुआ है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, काम (work) में लिंग अंतराल को हल करने के लिये अभी भी एक लंबा सफ़र तय करना है।
  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सबसे गतिशील अर्थव्यवस्थाओं, भारत और चीन में बेहतर शिक्षा और जागरूकता के बावजूद महिलाओं की रोज़गार दर पुरुषों की तुलना में अधिक स्पष्ट रूप से गिरती हुई दिखती है।
  • जनसांख्यिकी के अलावा कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का औद्योगिक अर्थव्यवस्था में तेज़ी से रूपांतरण एवं औद्योगिक क्षेत्रों में महिलाओं के लिये आधारभूत सुविधाओं का अभाव इसका एक मुख्य कारण है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, 71.4 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में विश्व स्तर पर केवल 45.3 प्रतिशत महिलाओं के पास काम है। 2018 में विश्व स्तर पर 1.3 बिलियन महिलाओं के मुकाबले 2.0 बिलियन पुरुषों को काम के लिये नियुक्त किया गया था। वैश्विक लिंग रोज़गार अंतराल (Global Gender Employment Gap) में पिछले 27 वर्षों में केवल 2 प्रतिशत की कमी आई है जो चिंता का विषय है।
  • वर्तमान में पूरे विश्व में लैंगिक भुगतान अंतर (Gender Pay Gap) अभी भी 18.8 प्रतिशत है, जो निम्न-आय वाले देशों में 12.6% से लेकर 20.9% तक है।
  • महिलाओं को काम पर रखने के लिये पर्याप्त अवसर की कमी है। महिलाओं की प्रबंधकीय पदों पर नियुक्ति भी काफी कम है। 1991 के बाद केवल 27.1 प्रतिशत महिलाएँ प्रबंधक और लीडर के रूप में कार्यरत हैं।
  • पाँच अलग-अलग देशों में लिंक्डइन की सहायता से 22% वैश्विक नियोजित जनसंख्या के वास्तविक समय में प्राप्त आँकड़ों के अध्ययन के पश्चात् यह तथ्य सामने आया है कि महिलाओं की रोज़गार दर में गिरावट और उनके कम वेतन का मुख्य कारण केवल शिक्षा नहीं है।

मानसिकता में बदलाव लाए जाने की ज़रूरत

  • पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता के बिना सतत् विकास का लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है। समानता के लिये एक समग्र एवं व्यापक दृष्टिकोण के साथ मानसिकता में बदलाव जेंडर जस्टिस और लिंग समानता को बनाए रखने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण तरीकों में से एक है।
  • दुनिया को सामाजिक ज़िम्मेदारी के विभिन्न मुद्दों को तत्काल परिभाषित करने की ज़रूरत है, ताकि मानव जाति से जुड़े प्रमुख विषयों को साझा किया जा सके।
  • पुरुषों और महिलाओं या लड़कों और लड़कियों के बीच समानता घरेलू हिंसा का मुकाबला करने या कम आय वाले समूहों को सशक्त बनाने के समान ही महत्त्वपूर्ण है।
  • लैंगिक समानता संयुक्त राष्ट्र का पाँचवा सतत् विकास लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र अपने सभी कार्यक्रमों में महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने का काम करता है।
  • लैंगिक समानता पर कदम बढ़ाने के साथ दुनिया का हर हिस्सा 2030 तक सतत् विकास की ओर बढ़ सकता है।
  • महिलाओं को भी अपनी मानसिकता बदलने की ज़रूरत है क्योंकि सामाजिक संरचना में पितृसत्ता जैसी शोषणकारी प्रणाली हावी है और पुरुषों के वर्चस्व वाले एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहायक की भूमिका निभा रही हैं।

क्या किये जाने की ज़रूरत है?

  • कई महिलाओं के लिये उनकी क्षमता की मान्यता और सराहना दिन-प्रतिदिन के जीवन का हिस्सा है। लेकिन यह दुख की बात है कि ज्यादातर महिलाओं को इसका श्रेय नहीं मिलता है जिससे वे अपने को सशक्त महसूस कर सकें। यह एक गंभीर और मनोवैज्ञानिक रूप से दुर्बल करने वाली समस्या है।
  • अधिकांश महिलाएँ समान कार्य की स्थिति में पुरुषों की तुलना में कम आय अर्जित करती हैं, भेदभाव का शिकार होती हैं, काम और घर के बीच संघर्ष करना पड़ता है और अक्सर आक्रामकता और यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।
  • महिलाओं की क्षमता तथा भागीदारी के बिना उस सतत् विकास की कल्पना कैसे की जा सकती जिसे अब तक दुनिया भर में पर्याप्त समर्थन नहीं मिल सका है।
  • हमें नए विचारों के साथ गंभीर और ज़िम्मेदार तरीके से इस पर ध्यान केंद्रित करने के लिये आवश्यक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि लैंगिक समानता की राह में कई बाधाएँ हैं।
  • हमें महिलाओं को स्वतंत्रता हेतु प्रयास के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये और उन विकल्पों पर विचार करने से डरना नहीं चाहिये जो उनकी आय को बढ़ाने के विभिन्न तरीके उत्पन्न कर सकते हैं।
  • माता-पिता को बेटों और बेटियों को समान रूप से शिक्षित करने की आवश्यकता है। लड़कों को "यह एक महिला की बात है" जैसे अभिव्यक्तियों को न दोहराने की सीख दी जानी चाहिये।
  • बच्चों और किशोरों के विरुद्ध हिंसा, दुर्व्यवहार और यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करना हम सभी की नैतिक ज़िम्मेदारी है।

आगे की राह

  • लैंगिक समानता का हमारा लक्ष्य महिलाओं और बालिकाओं के साथ भेदभाव के सभी प्रकारों को समाप्त करना, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना, जिसमें मानव तस्करी, यौन और अन्य प्रकार के शोषण, बाल विवाह, बलपूर्वक विवाह तथा महिला जननांग विकृति (Genital Mutilation) जैसी हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करना शामिल होना चाहिये।
  • अन्य लक्ष्य जैसे-सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सुरक्षा नीतियों में बदलाव की ज़रुरत है।
  • राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में सभी स्तरों पर निर्णय लेने, महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी तथा नेतृत्वकर्त्ता के रूप में उनके लिये अवसर सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • महिलाओं को आर्थिक संसाधनों पर समान अधिकार देने के लिये सुधारों के अलावा राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार भूमि पर स्वामित्व और नियंत्रण तथा संपत्ति के अन्य रूपों तक पहुँच, महिलाओं को सशक्त बनाने वाली प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त नीतियों और कानूनों को लागू करना शामिल है।
  • महिलाएँ सक्रिय रूप से उत्पादक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में योगदान देती हैं, साथ ही पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर समाज के विकास में योगदान दे रही हैं। अतः समानता के बिना लैंगिक न्याय की कल्पना निरर्थक है।

निष्कर्ष

भारत जैसे देश में पूर्ण रूप से लैंगिक समानता की स्थिति प्राप्त करना आमतौर जटिल है। भारत में संस्कृतियों, उपसंस्कृतियों जैसी विविधता तथा परंपराओं और मान्यताओं के पालन की अधिक कठोरता है। शिक्षा की कमी, विकास की कमी, गरीबी, कानूनों का अनुचित प्रवर्तन, महिलाओं में जागरूकता की कमी, पितृसत्ता की गहरी जड़ें, महिलाओं की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता आदि हमारे समाज में महिलाओं को विध्वंसक स्थिति की ओर ले जाती हैं। यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में लैंगिक सोपानक्रम भारत की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक संतुलित है।

भारत में अधिकांश लैंगिक समानता कानून रोज़गार और कार्यस्थल पर केंद्रित हैं। किसी भी देश के विकास में लैंगिक समानता एक महत्त्वपूर्ण घटक है। विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, कार्यकर्त्ताओं ने लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई है। हालाँकि, लैंगिक समानता की खाई को पाटने में प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

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