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देश देशांतर : ब्रेक्जिट समझौता (Brexit Agreement)

  • 22 Nov 2018
  • 23 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के समझौते पर ब्रिटेन की मंत्रिमंडल ने मुहर लगा दी है। ब्रिटेन सरकार के कैबिनेट मंत्रियों ने पाँच घंटे की लंबी चर्चा के बाद ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने से संबंधित समझौते के प्रस्तावित मसौदे पर मुहर लगाई। लेकिन अभी इस पर संसद की मुहर लगनी बाकी है। इस बीच ब्रिटिश सरकार में उत्तरी आयरलैंड के मंत्री शैलेष वारा ने प्रस्तावित ब्रेक्जिट समझौते के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन के बीच करीब 585 पेज का एक दस्तावेज़ तैयार किया गया है जिसको ब्रिटेन के हित में बताया जा रहा है। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे का कहना है कि यूरोपीय संघ के साथ ब्रेक्जिट समझौते पर बने गतिरोध के संबंध में अपने कैबिनेट सहयोगियों से घंटों की बातचीत के बाद अब उन्हें सभी का साथ मिल गया है।

  • 28 देशों वाले यूरोपीय संघ से अलग होने का फैसला तो ब्रिटेन के लोग जून 2016 में हुए जनमत संग्रह में कर चुके हैं, लेकिन अब यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने की घड़ी करीब आ गई है।
  • 29 मार्च, 2019 से इसकी प्रक्रिया शुरू होगी और 31 दिसंबर, 2020 तक पूरी कर ली जाएगी। वर्तमान में इसके तौर तरीके तय किये जा रहे हैं।
  • इस डील को लेकर थेरेसा मे को उनके अपने और पराए सभी निशाना बना रहे हैं। उनकी सरकार के चार मंत्री इस्तीफा दे चुके हैं और कई धमकी दे रहे हैं कि उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे भी पद छोड़ने से नहीं कतराएंगे।

वर्तमान परिदृश्य

  • बड़ा सवाल यह है कि ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन का क्या होगा? ब्रेक्जिट के मुद्दे पर ब्रिटेन में दो-फाड़ दिखाई देता है। खींचतान सिर्फ इस बात पर नहीं हो रही है कि डील ब्रिटेन के लिये अच्छी या है बुरी, बल्कि कुछ लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि ब्रेक्जिट हो ही ना।
  • ब्रेक्जिट के विरोधी एक नए जनमत संग्रह की मांग कर रहे हैं जिसमें एक बार फिर लोगों से पूछा जाए कि क्या वे वास्तव में यूरोपीय संघ से अलग होना चाहते हैं?
  • वहीँ दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री थेरेसा मे कह चुकी हैं कि ऐसे जनमत संग्रह की कोई गुंजाइश नहीं है। यानी ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकलने का यह फैसला अंतिम होगा। लेकिन इस फैसले को अंजाम तक पहुँचाने में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पसीने छूट रहे हैं। वह फूँक-फूँक कर कदम रखने को मजबूर हैं।
  • ब्रिटेन आज ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। प्रधानमंत्री मे के सामने देश के आर्थिक, व्यापारिक और राजनीतिक हितों को सुरक्षित रखने की चुनौती है।
  • राजनीतिक तौर पर ब्रिटेन भले ही यूरोपीय संघ से अलग हो जाए, लेकिन भौगोलिक तौर पर तो वह हमेशा यूरोप का ही हिस्सा रहेगा। साथ ही आमतौर पर दुनिया के लिये यूरोप का मतलब है यूरोपीय संघ, जिसमें ब्रिटेन के निकलने के बाद 27 देश बचेंगे। यही संघ यूरोप की दिशा तय करता है।
  • इसलिये प्रधानमंत्री मे के लिये ज़रूरी है कि यूरोपीय संघ से भले ही ब्रिटेन अलग हो जाए लेकिन इस प्रक्रिया में कड़वाहट कम-से-कम हो। इसीलिये ब्रेक्जिट डील उनके लिये ज़रूरी है।
  • दूसरी तरफ यह डील मे के विरोधियों के गले नहीं उतर रही है। उनका कहना है कि यह डील ब्रेक्जिट जनमत संग्रह के जनादेश का सम्मान नहीं करती है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग होने पर 50 अरब डॉलर की बकाया रकम चुकानी होगी। डील के विरोधी इसे अलग होने की कीमत बता रहे हैं।
  • ब्रेक्जिट की प्रक्रिया आधिकारिक तौर पर 29 मार्च को शुरू होगी और 31 दिसंबर 2020 तक पूरी कर ली जाएगी। इस अवधि को ट्रांजिट पीरियड कहा जा रहा है, जिसमें यूरोपीय संघ और ब्रिटेन को व्यापारिक समझौते करने का समय मिलेगा।
  • इस दौरान कंपनियों के पास अपने कारोबार को व्यवस्थित करने का वक्त भी होगा। साथ ही यूरोपीय देशों के नागरिक भी 31 दिसंबर, 2020 तक बिना रोकटोक ब्रिटेन आ जा सकेंगे।

डील से जुड़े प्रमुख मुद्दे

  • डील में जिस मुद्दे को लेकर सबसे ज़्यादा खींचतान दिखाई दे रही, वह है उत्तरी आयरलैंड के बॉर्डर का मुद्दा।
  • उत्तरी आयरलैंड ब्रिटेन का हिस्सा है जिसकी सीमाएँ यूरोपीय संघ के सदस्य देश आयरलैंड से मिलती हैं। दरअसल, ये दोनों हिस्से आयरलैंड द्वीप का हिस्सा हैं।
  • ऐसे में ब्रेक्जिट के बाद आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच सख्त बॉर्डर कायम करने के हक में न तो ब्रिटेन है और न ही यूरोपीय संघ।
  • लेकिन इसका मतलब है कि उत्तरी आयरलैंड को यूरोपीय संघ के कुछ नियम मानने होंगे। डील के विरोधियों को यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि उत्तरी आयरलैंड में नियम-कानून बाकी ब्रिटेन से अलग हों।
  • प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ब्रेक्जिट डील को अपनी कैबिनेट से तो जैसे-तैसे पास करा लिया। अब उनकी कोशिश है कि 25 नवंबर को होने वाले शिखर सम्मेलन में इस डील पर यूरोपीय नेताओं की मंजूरी हासिल करें। वहाँ से हरी झंडी मिलने के बाद इस डील को वह ब्रिटिश संसद में रखेंगी और यही उनके लिये अग्निपरीक्षा है।

ब्रिटेन

  • ब्रेक्जिट के बारे में जानने से पहले हमें ब्रिटेन के बारे में जानना ज़रूरी हैI ब्रिटेन को यूनाइटेड किंगडम (UK) भी कहते हैं लेकिन दोनों में अंतर है। UK जो कि उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स तथा इंग्लैंड इन चार अलग-अलग हिस्सों से बनता है।
  • वहीँ ग्रेट ब्रिटेन स्कॉटलैंड, इंग्लैंड तथा वेल्स से मिलकर बनता है। आयरलैंड एक अलग देश है और कुछ छोटे-छोटे द्वीप समूह ब्रिटिश आईलैंड का हिस्सा हैं।

यूरोपीय यूनियन (EU)

  • EU 28 देशों की एक आर्थिक और राजनीतिक पार्टनरशिप है। ये 28 देश संधि के द्वारा एक संघ के रूप में जुड़े हुए हैं जिससे कि व्यापार आसानी से हो सके और लोग एक-दूसरे से कोई विवाद न करें क्योंकि इकॉनमी का एक सिद्धांत है, जो देश आपस में जितना ज़्यादा व्यापार करते हैं उनकी लड़ाई होने की संभावना उतनी ही कम हो जाती है।
  • यही कारण है कि द्वीतीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में यह कोशिश की गई कि सभी देश आर्थिक रूप से एक साथ आएँ और एकजुट होकर एक व्यापार समूह बनें।
  • इसी व्यापार समूह की वजह से आगे चलकर 1993 में यूरोपीय यूनियन का जन्म हुआ। 2004 में जब यूरो करेंसी लॉन्च की गई तब यह पूरी तरह से राजनीतिक और आर्थिक रूप से एकजुट हुआ।
  • एकल बाज़ार सिद्धांत (single market principle) अर्थात् किसी भी तरह का सामान और व्यक्ति बिना किसी टैक्स या बिना किसी रुकावट के कहीं भी आ-जा सकते हैं एवं बिना रोक टोक के नौकरी, व्यवसाय तथा स्थायी तौर पर निवास कर सकते हैं। फ्री मूवमेंट ऑफ़ पीपल एंड गुड्स EU की खासियत है।

ब्रिटेन (UK) EU का हिस्सा कब से है?

  • सबसे पहले UK ने 1973 में यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी को ज्वाइन किया। लेकिन कुछ साल बाद ही वहाँ के एक राजनीतिक दल ने कहा कि हम जनमत संग्रह (referendum) कराएँगे कि EU में रहना है या नहीं।
  • अगले 30 सालों तक कोई जनमत संग्रह नहीं हुआ लेकिन 2010 के बाद से कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए जिसके कारण फिर से जनमत संग्रह की मांग उठी। इस मांग में सबसे बड़ी भूमिका यूनाइटेड किंगडम इंडीपेंडस पार्टी (UKIP) की थी।
  • समय के साथ UKIP की लोकप्रियता बढ़ती गई। उसकी लोकप्रियता को समाप्त करने के लिये कंज़र्वेटिव पार्टी जो कि 2010 से 2015 के बीच सत्ता में थी, ने एक चुनावी वादा किया कि अगर हम सत्ता में पुनः आते हैं तो जनमत संग्रह करवाएंगे कि हमें EU में रहना है या नहीं।
  • यह एक तरह से चुनावी वादा था जिससे कि UKIP के मतदाता कंज़र्वेटिव पार्टी की ओर आकर्षित हो जाएँ और उन्हें वोट दें जो काफी हद तक सफल भी रहा।
  • 2015 में कंज़र्वेटिव पार्टी सत्ता में फिर से काबिज़ हुई और डेविड कैमरून दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
  • कैमरून पर अपना चुनावी वादा पूरा करने का दबाव था। आखिरकार 2016 में उन्होंने अपना चनावी वादा पूरा किया।

ब्रेक्जिट क्या है?

  • यह मुख्यत: दो शब्दों Britain और Exit से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ब्रिटेन का यूरोपीय संघ (European Union-EU) से बाहर निकलना।
  • जून 2016 में इसके लिये ब्रिटेन में जनमत संग्रह कराया गया था। इसमें 71 प्रतिशत मतदान के साथ 30 मिलियन से अधिक लोगों ने मतदान किया था और इस प्रकार 52 फीसदी लोगों ने Brexit के पक्ष में मतदान किया।
  • ब्रिटेन की जनता ने ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए रखने के उद्देश्य से यूरोपीय संघ से बाहर जाने का फैसला लिया।
  • यूरोपीय संघ (निकासी) विधेयक के कानून बन जाने के उपरांत इसने 2017 के यूरोपीय समुदाय अधिनियम का स्थान ले लिया है।
  • 29 मार्च, 2019 तक ब्रिटेन को यूरोपीय संघ छोड़ देना है। ब्रेक्जिट डे यानी 29 मार्च, 2019 से ब्रिटिश कानून ही मान्य होंगे।
  • 29 मार्च, 2019 से 21 महीने का संक्रमण चरण (Transition phase) शुरू होगा और यह दिसंबर 2020 के अंतिम दिन खत्म होगा।
  • यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के समझौते के लिये तैयार मसौदे को ब्रेक्जिट ड्राफ्ट डील कहा जा रहा है।

EU से बाहर निकलने की मांग क्यों की जा रही है?

इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं-

1. सदस्यता शुल्क

  • EU हर साल सदस्यता शुल्क के तौर पर ब्रिटेन से बिलियन ऑफ़ पाउंड लेता है तथा बदले में उसे बहुत कम राशि मिलती है।
  • यह राशि लगभग 13 बिलियन पाउंड है जो दूसरे देशों की अपेक्षा काफी अधिक है।
  • सदस्यता के लिये EU के सभी 28 देश कुछ-न-कुछ राशि EU को देते हैं लेकिन ब्रिटेन के लिये यह राशि काफी अधिक है और बदले में उसे सिर्फ 7 बिलियन यूरो वापिस मिलते हैं। अतः UK (ब्रिटेन) को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

2. प्रशासनिक अड़चन

  • UK में कोई भी प्रशासनिक कार्य करने के दौरान काफी अड़चनें आती हैं। बहुत अधिक डॉक्यूमेंटेशन तथा बहुत सारे कार्यालयों द्वारा काम होता है। कई सारी प्रणालियाँ हैं जिनको पूरा करना पड़ता है।
  • तमाम ऐसे प्रतिबंध हैं जिनसे UK के विकास में रुकावट आ रही है तथा यूरोपीय यूनियन UK को पीछे ढकेल रही है, उसे आगे बढ़ने से रोक रही है।

3. स्वायत्तता

  • लोगों का कहना है कि EU इंग्लैंड को उसके अधिकारों और स्वयं कानून बनाने से वंचित कर रहा है। खासतौर से फिशरीज़ से संबंधित कानून।
  • UK के चारों ओर फिशरीज़ इंडस्ट्री काफी विकसित है और इस उद्योग को लेकर नियम-विनियम EU के द्वारा बनाए जाते हैं।
  • EU का संसद तय करता है कि UK के मछुआरे कितनी मात्रा में मछली पकड़ सकते हैं तथा एक्सपोर्ट रेट क्या रहेगा।

4. अर्थव्यवस्था

  • अगर यूरोपीय यूनियन से UK अलग हो जाता है तो वह अपने आपको फाइनेंसियल सुपर पॉवर बना सकता है क्योंकि लंदन को पहले से ही वित्तीय राजधानी कहा जाता है। वहाँ का वित्तीय बाज़ार दुनिया के बड़े बाज़ारों में से एक है।
  • जबकि EU द्वारा UK को ऐसा करने से रोका जा रहा है।

5. इमीग्रेशन

  • यह एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि सीरिया में सिविल वार के चलते काफी संख्या में आप्रवासी भागकर यूरोप आ रहे हैं।
  • इमीग्रेशन नीति भी EU तय करता है, न कि UK, अगर वह EU से हट जाता है तो उसे अपनी खुद की इमीग्रेशन नीति तय करने का अधिकार होगा।

जनमत संग्रह (Referendum) और उसका प्रभाव

  • यह एक ऐसा चुनाव है जिसमें सभी पात्र मतदाता हिस्सा लेकर अपनी राय दे सकते हैं कि EU में रहना है या इससे बाहर निकलना है।
  • ब्रेक्जिट की तारीख 29 मार्च, 2019 तय की गई है जिसके कारण ब्रिटेन में ब्रेक्जिट को लेकर मचा घमासान और तेज़ हो गया है क्योंकि समय काफी कम है और अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है।
  • UK में 23 जून, 2016 को जनमत संग्रह कराया गया था जिसमें यह प्रश्न पूछा गया था कि UK को EU में रहना चाहिये या नहीं। इसमें 72 प्रतिशत मतदाताओं ने हिस्सा लिया था।
  • मतदान में 51.9 प्रतिशत मतदाताओं ने UK का EU से बाहर निकलने के पक्ष में मत दिया, जबकि 48 प्रतिशत मतदाताओं ने इसके विपक्ष में मतदान किया।
  • इस परिणाम के बाद UK में बदलाव यह आया कि प्रधानमंत्री डेविड कैमरून को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वह EU से बाहर निकलने के पक्ष में नहीं थे।
  • थेरेसा मे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। इसका असर यह हुआ कि मार्केट में अचानक गिरावट आ गई। शेयर मार्केट बुरी तरह से गिर गया, UK की करेंसी की दर काफी नीचे गिर गई और लंदन स्टॉक एक्सचेंज अपने कई दशकों के न्यूनतम स्तर पर जा पहुँचा जिसका असर पूरी दुनिया पर दिखाई दिया।
  • ब्रिटेन के घर-परिवार गरीब हो रहे हैं, कंपनियाँ निवेश को लेकर अधिक सतर्कता बरत रही हैं। प्रॉपर्टी बाज़ार ठंडा पड़ गया है।
  • ब्रिटेन की कुछ बड़ी कंपनियों ने चेतावनी दी है कि ब्रेक्जिट लागू होने की स्थिति में वे अपना कारोबार ब्रिटेन से समेट सकती हैं। इसमें टाटा की जगुआर कार कंपनी और एयरबस शामिल हैं।
  • इससे पहले ब्रिटेन दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के लिये विकास का अगुवा हुआ करता था। लोगों को आशंका है कि ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन में हालात और बिगड़ सकते हैं।

EU से बाहर निकलने की क्या है प्रक्रिया?

  • EU से बाहर निकलने की प्रक्रिया लिस्बन ट्रीटी (Lisbon Treaty) के आर्टिकल 50 में दी गई है। इस आर्टिकल को लागू करना होगा। अगर एक बार आर्टिकल 50 लागू हो जाए तो फिर उसे वापस नहीं लिया जा सकता है। यह वापस तभी होगा जब सभी सदस्य देश इसके लिये सहमत हों।
  • सदस्यता छोड़ने की शर्तों पर 27 सदस्य देशों की संसदों की सहमति लेनी ज़रूरी है जो एक लंबी प्रक्रिया है।
  • लिस्बन ट्रीटी EU को स्थापित करने वाली कुछ प्रमुख संधियों में से एक है। यह 2009 में लागू की गई थी।
  • EU से बाहर निकलने के लिये दो साल का नोटिस पीरियड दिया जाना ज़रूरी होता है और यह उस दिन से शुरू माना जाएगा जब UK की संसद बाहर निकलने के फैसले को स्वीकृत कर देगी।
  • बाहर जाने के बाद अगर कोई देश दोबारा EU में शामिल होना चाहता है तो उस पर विचार किया जा सकता है। दोबारा शामिल होने जैसे प्रस्तावों पर आर्टिकल 49 के तहत विचार किया जाएगा।

ब्रेक्जिट का भारत पर प्रभाव

  • सिर्फ ब्रिटेन में 800 भारतीय कंपनियाँ हैं। जिनमें 1 लाख से ज़्यादा लोग काम करते हैं। भारतीय आईटी कंपनियों की 6 से 18 प्रतिशत कमाई ब्रिटेन से होती है।
  • भारत में कुल एफडीआई का 8 प्रतिशत हिस्सा UK से आता है। इसका असर भारत के कारोबार पर कम पड़ेगा लेकिन ब्रिटेन के साथ अलग से व्यापारिक समझौते करने पड़ेंगे।
  • भारतीय कंपनियों की ब्रिटेन में रुचि की एक बड़ी वज़ह यह है कि ब्रिटेन के रास्ते भारतीय कंपनियों की यूरोप के 28 देशों के बाज़ार तक सीधी पहुँच हो जाती है। जाहिर है जब ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलेगा तो इस बड़े बाज़ार तक आसान पहुँच बंद हो जाएगी।
  • यूरोप के देशों से भारत को नए करार करने होंगे। इससे कंपनियों के खर्च में इज़ाफा होगा। साथ ही हर देश के नियम-कानूनों का भी पालन करना होगा।
  • UK ने हमेशा EU में भारत की तरफदारी की है और भारत का साथ दिया है, विशेष रूप से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के मामले में।
  • ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन में काम कर रहीं भारतीय कंपनियों को यूरोपीय बाज़ार तक पहुँचने के नए रास्ते निकालने होंगे। इतना ही नहीं ब्रिटेन में बने उत्पादों पर भारतीय कंपनियों को यूरोपीय देशों में टैक्स भी देना होगा।
  • जाहिर है ब्रेक्जिट के बाद जिन भारतीय कंपनियों ने ब्रिटेन में पैसा लगाया है उनकी बैलेंसशीट पर सीधा असर पड़ेगा।
  • ब्रिटेन पर दाँव लगाने वाली कुछ बड़ी भारतीय कंपनियाँ हैं टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टेक महिंद्रा, भारत फोर्ज, मदरसन सुमी, वॉकहार्ट, सिप्ला, टोरेंट फार्मा, इप्का लैब और कमिंस।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ब्रेक्जिट डील को अपनी कैबिनेट से तो पारित करा लिया। अब उनकी कोशिश है कि 25 नवंबर को होने वाले शिखर सम्मेलन में इस डील पर यूरोपीय नेताओं की मंजूरी हासिल करना। वहाँ से हरी झंडी मिलने के बाद डील को वह ब्रिटिश संसद में रखेंगी। यही उनके लिये अग्निपरीक्षा है। डील के खिलाफ ब्रिटेन में जिस तरह का बवंडर उठा है, उसे देखते हुए संसद में प्रधानमंत्री मे को शिकस्त मिलनी तय मानी जा रही है। ब्रेक्जिट की पैरवी करने वाले हमेशा से संप्रभुता की दुहाई देते रहे हैं कि यूरोपीय संघ से निकलने के बाद वे अपनी किस्मत के मालिक खुद होंगे। लेकिन मौजूदा दौर की हकीकत यही है कि EU की ताकत उसकी एकता में है। थेरेसा मे के लिये यूरोपीय नेताओं की मंज़ूरी मिलना सबसे बड़ी चुनौती है।

ब्रिटेन आज ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। प्रधानमंत्री मे के सामने देश के आर्थिक, व्यापारिक और राजनीतिक हितों को सुरक्षित रखने की चुनौती है। राजनीतिक तौर पर ब्रिटेन भले ही यूरोपीय संघ से अलग हो जाए लेकिन भौगोलिक तौर पर वह हमेशा यूरोप का ही हिस्सा रहेगा। आम तौर पर दुनिया के लिये यूरोप का मतलब है यूरोपीय संघ, जिसमें ब्रिटेन के निकलने के बाद 27 देश बचेंगे। यही संघ यूरोप की दिशा तय करता है। इसलिये प्रधानमंत्री मे के लिये ज़रूरी है कि यूरोपीय संघ से अलगाव भले ही हो लेकिन इस प्रक्रिया में कड़वाहट कम-से-कम हो।

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