संसद टीवी संवाद

देश देशांतर : ब्रेक्जिट समझौता (Brexit Agreement) | 22 Nov 2018 | भारत-विश्व

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के समझौते पर ब्रिटेन की मंत्रिमंडल ने मुहर लगा दी है। ब्रिटेन सरकार के कैबिनेट मंत्रियों ने पाँच घंटे की लंबी चर्चा के बाद ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने से संबंधित समझौते के प्रस्तावित मसौदे पर मुहर लगाई। लेकिन अभी इस पर संसद की मुहर लगनी बाकी है। इस बीच ब्रिटिश सरकार में उत्तरी आयरलैंड के मंत्री शैलेष वारा ने प्रस्तावित ब्रेक्जिट समझौते के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन के बीच करीब 585 पेज का एक दस्तावेज़ तैयार किया गया है जिसको ब्रिटेन के हित में बताया जा रहा है। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे का कहना है कि यूरोपीय संघ के साथ ब्रेक्जिट समझौते पर बने गतिरोध के संबंध में अपने कैबिनेट सहयोगियों से घंटों की बातचीत के बाद अब उन्हें सभी का साथ मिल गया है।

वर्तमान परिदृश्य

डील से जुड़े प्रमुख मुद्दे

ब्रिटेन

यूरोपीय यूनियन (EU)

ब्रिटेन (UK) EU का हिस्सा कब से है?

ब्रेक्जिट क्या है?

EU से बाहर निकलने की मांग क्यों की जा रही है?

इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं-

1. सदस्यता शुल्क

2. प्रशासनिक अड़चन

3. स्वायत्तता

4. अर्थव्यवस्था

5. इमीग्रेशन

जनमत संग्रह (Referendum) और उसका प्रभाव

EU से बाहर निकलने की क्या है प्रक्रिया?

ब्रेक्जिट का भारत पर प्रभाव

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ब्रेक्जिट डील को अपनी कैबिनेट से तो पारित करा लिया। अब उनकी कोशिश है कि 25 नवंबर को होने वाले शिखर सम्मेलन में इस डील पर यूरोपीय नेताओं की मंजूरी हासिल करना। वहाँ से हरी झंडी मिलने के बाद डील को वह ब्रिटिश संसद में रखेंगी। यही उनके लिये अग्निपरीक्षा है। डील के खिलाफ ब्रिटेन में जिस तरह का बवंडर उठा है, उसे देखते हुए संसद में प्रधानमंत्री मे को शिकस्त मिलनी तय मानी जा रही है। ब्रेक्जिट की पैरवी करने वाले हमेशा से संप्रभुता की दुहाई देते रहे हैं कि यूरोपीय संघ से निकलने के बाद वे अपनी किस्मत के मालिक खुद होंगे। लेकिन मौजूदा दौर की हकीकत यही है कि EU की ताकत उसकी एकता में है। थेरेसा मे के लिये यूरोपीय नेताओं की मंज़ूरी मिलना सबसे बड़ी चुनौती है।

ब्रिटेन आज ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। प्रधानमंत्री मे के सामने देश के आर्थिक, व्यापारिक और राजनीतिक हितों को सुरक्षित रखने की चुनौती है। राजनीतिक तौर पर ब्रिटेन भले ही यूरोपीय संघ से अलग हो जाए लेकिन भौगोलिक तौर पर वह हमेशा यूरोप का ही हिस्सा रहेगा। आम तौर पर दुनिया के लिये यूरोप का मतलब है यूरोपीय संघ, जिसमें ब्रिटेन के निकलने के बाद 27 देश बचेंगे। यही संघ यूरोप की दिशा तय करता है। इसलिये प्रधानमंत्री मे के लिये ज़रूरी है कि यूरोपीय संघ से अलगाव भले ही हो लेकिन इस प्रक्रिया में कड़वाहट कम-से-कम हो।