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संसद टीवी संवाद

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विशेष : ईरान पर प्रतिबंध एवं भारत के विकल्प

  • 04 May 2019
  • 15 min read

संदर्भ

अमेरिका ने ईरान से कच्चे तेल के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, साथ ही ईरान से तेल खरीदने वाले किसी भी देश को प्रतिबंध से छूट नहीं देने का फैसला किया है। अमेरिका के इस फैसले से सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि दुनिया के कई अन्य देश भी प्रभावित होंगे।

  • अमेरिका ने ईरान की सरकार पर कट्टरपंथी और आतंकवाद को मदद पहुँचाने का आरोप लगाकर ये प्रतिबंध लगाए हैं।
  • इससे पहले अमेरिका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाते हुए कुछ देशों को ईरान से सीमित मात्रा में तेल आयात की छूट दी थी जिसे अब समाप्त करने की घोषणा की गई है।
  • इससे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों के बढ़ने के आसार हैं।

ईरान पर प्रतिबंध के मायने

  • अमेरिका ने कच्चा तेल खरीदने के मामले में भारत और अन्य देशों को प्रतिबंधों से दी गई छूट को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है।
  • अमेरिका ने प्रतिबंध की घोषणा करते हुए कहा है कि उसने यह फैसला ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम लगाने और अमेरिका के साथ दोबारा बातचीत के लिये उस पर दबाव डालने के उद्देश्य से किया है।
  • उसका यह फैसला ईरान के तेल निर्यात को शून्य तक लाना और वहाँ के राजस्व के प्रमुख स्रोत को ख़त्म करना है।
  • उल्लेखनीय है कि ईरान के साथ 2015 में हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से हटते हुए अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में ईरान पर पुनः प्रतिबंध लगाया था।
  • अमेरिका ने दुनिया के सभी देशों को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वे अमेरिकी प्रतिबंधों से बचना चाहते हैं तो ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद कर दें।
  • हालाँकि अमेरिका ने भारत समेत चीन, ग्रीस, इटली, ताइवान, जापान, तुर्की और दक्षिण कोरिया को अगले 6 महीने, यानी 2 मई, 2019 तक के लिये प्रतिबंधों में छूट दी थी। इसके साथ ही ईरान से तेल आयात में कटौती की भी शर्त लगाई गई थी।
  • ईरान पर प्रतिबंध लगने से तेल संकट की आशंका को देखते हुए अमेरिका लगातार सहयोगी देशों के साथ बातचीत कर रहा है ताकि तेल का वैकल्पिक स्रोत तलाशा जा सके। इन विकल्पों में UAE और सऊदी अरब भी शामिल हैं।

अमेरिका ने क्यों लगाए ईरान पर प्रतिबंध?

पिछले वर्ष नवंबर में अमेरिका ने वे सभी प्रतिबंध दोबारा लगा दिये थे जो 2015 में हुए परमाणु समझौते के बाद हटा लिये गए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते की आलोचना करते हुए पिछले वर्ष मई में अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया था। ज्ञातव्य है कि 2015 में हुए समझौते के तहत ईरान अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाए जाने के एवज़ में अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर सहमत हुआ था। तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि यह समझौता ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकेगा। लेकिन वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का तर्क है कि समझौते की शर्तें अमेरिका के लिये अस्वीकार्य हैं क्योंकि यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल विकसित करने और पड़ोसी देशों में दखल देने से नहीं रोक पाया है। इन प्रतिबंधों के तहत अमेरिका उन देशों के खिलाफ भी कठोर क़दम उठा सकता है जो ईरान के साथ कारोबार जारी रखेंगे।

(टीम दृष्टि इनपुट)

भारत पर प्रतिबंध का प्रभाव

  • ईरान से तेल आयात करने वालों में चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा आयातक देश है। भारत ने ईरान से वर्ष 2017-18 में जहाँ 2 करोड़ 26 लाख टन कच्चे तेल की खरीदारी की थी, वहीँ प्रतिबंध लागू होने के बाद इसे घटाकर 1 करोड़ 50 लाख टन सालाना कर दिया था।
  • भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिये आयात पर सबसे ज़्यादा निर्भर करता है। ऐसे में ईरान से तेल खरीद पर लगे अमेरिका के प्रतिबंध के बाद भारत की आपूर्ति पर काफी असर पड़ने की संभावना है।
  • भारत अपनी ज़रूरत का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है। इस बड़ी ज़रूरत के एक अहम हिस्से का आयात ईरान से होता है।
  • भारत ने 2017 से लेकर अब तक अपनी ज़रूरत का 10 प्रतिशत से ज़्यादा तेल ईरान से आयात किया है। इस तरह ईरान से 2017-18 के बीच 220.4 मीलियन कच्चे तेल का आयात हुआ था लेकिन अमेरिकी दबाव की वज़ह से भारत ने 2018-19 तक ईरान से कम तेल खरीदने का आश्वासन दिया और हर महीने की खरीद 1.25 मिलियन टन यानी हर दिन लगभग सिर्फ 3 लाख बैरल की कम खरीद की, जबकि 2017 से 2018 तक हर महीने 22.6 मिलियन टन यानी प्रतिदिन 4 लाख 52 हज़ार बैरल की खरीद होती थी।
  • इसके अलावा तेल का निर्यात करने वाले देशों में ईरान कई तरह की सहूलियतें और रियायतें भी देता था जैसे-भुगतान के लिये अतिरिक्त 60 दिन का समय, मुफ्त बीमा और मुफ्त शिपिंग।
  • एक साथ इतने फायदे बंद होने से भारत की तेल आपूर्ति और कीमत दोनों पर प्रभाव पड़ना लाजिमी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार में इसका असर दिखाई दे रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल की वज़ह से भारत में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है।

भारत के पास मौजूदा विकल्प

  • अमेरिकी प्रतिबंध के कारण अगर भारत ईरान से तेल आयात नहीं कर पाता है तो तेल की आपूर्ति के लिये उसकी निर्भरता सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात पर बढ़ जाएगी।
  • ईरान से तेल आयात पर प्रतिबंध का ऐलान करने वाले अमेरिका ने भारत के लिये विकल्प का प्रस्ताव दिया है।
  • फ़िलहाल यूएस शेल गैस भंडार से भारत 4 बिलियन डॉलर की तरल गैस की खरीद करता है। इसके अलावा यूएस से तेल की खरीद में भी बढ़ोतरी हुई है।
  • भारत के लिये इतने कम समय में तेल खरीद हेतु कोई दूसरा मुफीद बाज़ार ढूंढना अपने आप में एक चुनौती है क्योंकि इस समय अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार काफी तंगी के दौर से गुज़र रहा है।
  • तेल आयातक देशों का समूह ‘ओपेक’ तेल का 40 प्रतिशत वैश्विक उत्पादन करता है जो कि इसमें कटौती का ऐलान कर चुका है इससे दुनिया भर में आपूर्ति में कमी आएगी।
  • इसके अलावा बेनेज़ुएला के राजनीतिक संकट को लेकर अमेरिका ने बेनेज़ुएला पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया है। वहीँ एक चिंता भारतीय तेल के उत्पादन को लेकर भी है जिसे दुरुस्त करना होगा।
  • भारत की तेल आपूर्ति की मांग 25 प्रतिशत और बढ़ गई है।
  • इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के पास विकल्प के तौर पर मेक्सिको है, इसके साथ भारत 0.7 मिलियन टन कच्चा तेल खरीदने का करार कर चुका है, वहीँ सऊदी अरब के साथ भारत का करार 5.6 मिलियन टन के खरीदने के लिये है।
  • इसके साथ ही ज़रूरत पड़ने पर भारत सऊदी अरब से अतिरिक्त 2 मिलियन टन की खरीद कर सकता है।
  • इसी तरह विकल्प के तौर पर कुवैत से डेढ़ मिलियन टन और यूएई से 1 मिलियन टन कच्चे तेल की खरीद की जा सकती है।

भारत-ईरान संबंध और संभावनाएँ

  • भारत और ईरान के बीच सामाजिक, आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग का इतिहास काफी पुराना है।
  • दोनों देशों का सालाना द्वीपक्षीय व्यापार करीब 2 हज़ार करोड़ डॉलर है। ईरान जहाँ भारत की ऊर्जा ज़रूरतों के बड़े हिस्से को पूरा करता है, वहीँ भारत द्वारा ईरान को दवा, भारी मशीनरी, कल-पुर्जे और अनाज का निर्यात किया जाता है।
  • सामरिक तौर पर दोनों देश एक-दूसरे के पुराने सहयोगी हैं। अफगानिस्तान, मध्य एशिया और मध्य-पूर्व में दोनों देशों के साझा सामरिक हित भी हैं।
  • ईरान की राजधानी तेहरान में दूतावास के अलावा जाहिदाद और बंदरअब्बास शहर में भारत के वाणिज्य मिशन हैं।
  • भारतीय कंपनियाँ ईरान में कारोबार की बड़ी संभावनाएँ देखती हैं। ईरान के तेल रिफाइनरी, दवा फ़र्टिलाइज़र और निर्माण क्षेत्र में भारतीय कंपनियाँ पैसा लगा रही हैं।
  • कंपनियों की पैसा खर्च करने की क्षमता और प्रतिबंध हटने के बाद खुला बाज़ार भारतीय कारोबारियों के लिये अपार संभावनाएँ लेकर आएगा।
  • उपभोक्ता वस्तुओं के अलावा भारत मशीनरी, ऑटो और खनन क्षेत्र में भी ईरान के साथ सहयोग कर सकता है।
  • पश्चिमी देशों को ईरान शक की नज़र से देखता है। इसलिये भारत में ईरान निवेश कर सकता है। हालाँकि अमेरिका, इज़राइल और सऊदी अरब के साथ ईरान के ख़राब रिश्तों की वज़ह से मध्य एशिया में भारत के लिये संतुलन बनाए रखना आसान नहीं है।
  • ईरान से बेहतर रिश्तों की वज़ह से भारत को इराक, सीरिया और लेबनान के पुनर्निर्माण हेतु मिले ठेकों में फायदा मिल सकता है।
  • ईरान के रास्ते भारत मध्य एशिया, तज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, रूस और अफगानिस्तान में आसानी से दाखिल हो सकेगा।
  • भारत के सहयोग से चाबहार बंदरगाह का भी विकास किया गया है। इसके साथ ही भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया में अपने उत्पाद भेजने का वैकल्पिक रास्ता मिल गया है।
  • जाहिर है कि चाबहार कई देशों के लिये न सिर्फ वैकल्पिक रास्ता है बल्कि व्यापार बढ़ाने का शानदार मौका भी है।

चाबहार एवं ग्वादर बंदरगाह

  • ग्वादर पोर्ट के माध्यम से होने वाले व्यापार की मात्रा न्यूनतम है। इसके माध्यम से कराची (पाकिस्तान) अभी भी 90-95% व्यापार करता है। ग्वादर से अंतर्देशीय क्षेत्र में अभी भी कनेक्टिविटी नहीं है।
  • चाबहार के लिये ईरान की दीर्घकालिक योजना है। वह संयुक्त अरब अमीरात में जेबेल अली मुक्त क्षेत्र की तरह एक मुक्त व्यापार क्षेत्र विकसित करने की योजना बना रहा है। कई भारतीय और चीनी कंपनियों ने पहले से ही ईरान के मुक्त व्यापार क्षेत्र में रुचि दिखाना शुरू कर दिया है।
  • चाबहार पोर्ट सभी को वैकल्पिक आपूर्ति मार्ग का विकल्प प्रदान करता है, जो व्यापार के संबंध में पाकिस्तान के महत्त्व को कम करता है।
  • भारत के लिये चाबहार बंदरगाह का आर्थिक महत्त्व है जिसके द्वारा वह ग्वादर में होने वाली घटनाओं पर नज़र रख सकता है। इसके अलावा यह भारत, अफगानिस्तान और अन्य मध्य एशियाई गणराज्यों तक सीधी पहुँच प्रदान करता है।
  • यूएई चाबहार के साथ भारत के जुड़ने से खुश नहीं है। यह चिंता का विषय है कि चाबहार के माध्यम से किया जाने वाला व्यापार उस व्यापार की मात्रा को प्रभावित कर सकता है जो दुबई बंदरगाह के रास्ते किया जाता है।
  • यदि भविष्य में अमेरिका और ईरान के बीच के मुद्दों का समाधान हो जाता है तो चाबहार पोर्ट पाकिस्तान को बाहर करने में सक्षम होगा।
  • पाकिस्तान अभी भी उन सभी प्रशासनिक मार्गों को नियंत्रित करता है जिनके द्वारा अफगानिस्तान को वस्तुओं की आपूर्ति की जा सकती है। अमेरिका हमेशा आतंकवादियों, विशेषकर अफगान तालिबानों पर कार्रवाई करने से हिचकिचाता रहा है। चाबहार पोर्ट अमेरिका को ऐसे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने का विकल्प प्रदान करता है।

निष्कर्ष

ईरान भारत का पुराना सामरिक तथा व्यापारिक सहयोगी रहा है। दोनों देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों का काफी पुराना इतिहास है। एक साल पहले ही भारत के सहयोग से बना ईरान के चाबहार बंदरगाह का संचालन भी दोनों देशों के मज़बूत रिश्तों की मिसाल है। भारत और ईरान दोनों क्षेत्रीय महाशक्तियाँ हैं और मिलकर एशिया में स्थिरता और विकास की नई इबारत लिख सकते हैं। सवाल यह है कि क्या भारत अमेरिकी प्रतिबंध को मानेगा या अमेरिका की न सुनते हुए वह स्वतंत्र कदम उठाएगा और ईरान से तेल आयात जारी रखेगा?

प्रश्न : ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत-ईरान संबंध तथा संभावनाओं पर चर्चा करते हुए भारत के आगामी रणनीति पर प्रकाश डालेंI

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