एथिक्स
युद्ध क्षेत्र रिपोर्टिंग को विनियमित करने की नैतिकता
- 05 May 2025
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भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B) द्वारा हाल ही में जारी किये गए परामर्श में मीडिया आउटलेट्स से रक्षा अभियानों और सुरक्षा बलों की गतिविधियों की लाइव कवरेज से बचने का आग्रह किया गया है, जिससे लोकतंत्र में प्रेस की नैतिक जिम्मेदारियों के संदर्भ में लंबे समय से चली आ रही बहस को फिर से बल मिल गया है। जम्मू और कश्मीर में पहलगाम हमले के बाद आतंकवाद-रोधी प्रयासों में वृद्धि के दौरान अप्रैल 2025 में जारी किये गए इस निर्देश में राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों का हवाला देते हुए तर्क दिया गया है कि रियल टाइम रिपोर्टिंग परिचालन गोपनीयता से समझौता कर सकती है और जान को खतरे में डाल सकती है। हालाँकि, आलोचकों का तर्क है कि इस तरह के प्रतिबंधों से प्रेस की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और जनता के सूचना के अधिकार (जो लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला हैं) को नुकसान पहुँचने का खतरा है।
यह तनाव एक महत्त्वपूर्ण नैतिक प्रश्न उठाता है: क्या कोई लोकतंत्र राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर मीडिया की स्वायत्तता में विनियमन को नैतिक रूप से उचित ठहरा सकता है, या क्या ऐसा कदम जवाबदेह शासन के लिये आवश्यक जाँच और संतुलन को नष्ट कर देता है ?
रक्षा अभियानों के लाइव कवरेज को प्रतिबंधित करने में नैतिक दुविधाएँ क्या हैं?
- राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम प्रेस स्वतंत्रता: लाइव कवरेज को प्रतिबंधित करने से कर्मियों और मिशन की सफलता की सुरक्षा के लिये परिचालन गोपनीयता को प्राथमिकता मिलती है (उदाहरण के लिये आतंकवादियों को रियल टाइम अपडेट का फायदा उठाने से रोकना, जैसा कि 26/11 मुंबई हमलों के दौरान देखा गया था)।
- हालाँकि, इससे एक निगरानीकर्त्ता के रूप में मीडिया की संवैधानिक भूमिका तथा राज्य को जवाबदेह ठहराने के जनता के अधिकार को कमज़ोर करने का जोखिम है।
- परिचालन प्रभावशीलता बनाम सार्वजनिक पारदर्शिता: लाइव रिपोर्टिंग को सीमित करने से शत्रुतापूर्ण तत्त्वों को सुरक्षा बलों पर नज़र रखने से रोका जा सकता है (जैसा कि कारगिल युद्ध में उजागर हुआ था), लेकिन इससे नागरिकों को संकट के दौरान सरकारी कार्रवाइयों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिल पाती है, जिससे लोकतांत्रिक निगरानी कमज़ोर होती है और अविश्वास को बढ़ावा मिलता है।
- कानूनी अनुपालन बनाम नैतिक पत्रकारिता: मीडिया संगठनों को कानूनों का पालन करने (प्रतिबंधित कवरेज अनिवार्य करना) और सच्चाई से रिपोर्ट करने के अपने नैतिक कर्त्तव्य के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिये स्रोत-आधारित रिपोर्टिंग, यद्यपि कानूनी रूप से प्रतिबंधित है, लेकिन प्रायः प्रणालीगत विफलताओं या मानवाधिकारों के हनन को उजागर करने के लिये महत्त्वपूर्ण होती है।
- राज्य प्राधिकरण बनाम मीडिया स्वायत्तता: परामर्श में सुरक्षा को एक ‘साझा नैतिक कर्त्तव्य’ माना गया है तथा सीरिया और रूस-यूक्रेन जैसे आधुनिक संघर्षों का हवाला दिया गया है, जहाँ गलत सूचना को हथियार बनाया जाता है।
- युद्ध संबंधी रिपोर्टिंग को विनियमित करने से दुष्प्रचार का मुकाबला होता है, लेकिन आलोचकों ने चेतावनी दी है कि इससे राज्य के अतिक्रमण को सामान्य बनाने का जोखिम है तथा गलत सूचना से निपटने की आड़ में मीडिया की स्वतंत्रता को नष्ट किया जा सकता है, जैसा कि विनियमन और सेंसरशिप को धुंधला करने वाली पिछले परामर्शों से स्पष्ट है।
- तात्कालिक सुरक्षा बनाम दीर्घकालिक लोकतांत्रिक सुरक्षा: यद्यपि रियल टाइम कवरेज को अवरुद्ध करने से अल्पकालिक सुरक्षा लक्ष्यों (जैसे: पहलगाम में आतंकवाद विरोधी अभियान) की रक्षा हो सकती है, यह असहमति या आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को दबाने के लिये एक मिसाल कायम करता है, जिससे लोकतांत्रिक मानदंडों का क्षरण हो सकता है तथा अनियंत्रित राज्य शक्ति को बढ़ावा मिल सकता है।
मीडिया रिपोर्टिंग को विनियमित करना राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- शत्रुतापूर्ण शोषण को रोकना और कार्मिकों की सुरक्षा: मीडिया की रियल टाइम कवरेज से सैन्य गतिविधियों जैसे सामरिक विवरण शत्रुओं के समक्ष उजागर हो सकते हैं।
- 26/11 के मुंबई हमलों और कारगिल युद्ध के दौरान, कथित तौर पर लाइव प्रसारणों से आतंकवादियों को मार्गदर्शन में मदद मिली तथा रणनीतिक स्थितियों का खुलासा होने का जोखिम उत्पन्न हुआ।
- लाइव कवरेज को प्रतिबंधित करके, राज्य दोहरी अनिवार्यताओं— शत्रुतापूर्ण तत्त्वों को शोषण योग्य खुफिया जानकारी से वंचित करना तथा मिशन की सफलता सुनिश्चित करने के लिये सुरक्षाकर्मियों के जीवन की रक्षा करना, को प्राथमिकता दे रहा है।
- नियंत्रित पारदर्शिता के माध्यम से सार्वजनिक विश्वास की रक्षा करना: संकट के दौरान असत्यापित या सनसनीखेज रिपोर्टिंग (जैसे: कंधार हाईजैक) से दहशत या गलत सूचना फैल सकती है।
- राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए लोकतांत्रिक स्थिरता को कायम रखना: लोकतंत्र तभी सुविकसित होता है जब आधारभूत सुरक्षा सुनिश्चित हो।
- आतंकवाद-रोधी अभियानों (जैसे: पहलगाम) के दौरान अनियमित रिपोर्टिंग से शासन और सार्वजनिक व्यवस्था अस्थिर होने का खतरा रहता है।
- कानूनी अनुपालन को नैतिक पत्रकारिता के साथ संरेखित करना: विभिन्न कानून रक्षा अभियानों की सीमित कवरेज का आदेश देते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने के कानूनी दायित्वों को दर्शाता है।
- नैतिक रूप से, जिम्मेदार पत्रकारिता सनसनीखेज़ खबरों से बचती है जो सामाजिक सुरक्षा को खतरे में डालती हैं।
राज्य नियंत्रण बनाम मीडिया स्वायत्तता पर दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?
- उपयोगितावाद: उपयोगितावादी दृष्टिकोण उन कार्यों को प्राथमिकता देता है जो सामाजिक कल्याण को अधिकतम करते हैं। लाइव कवरेज को प्रतिबंधित करना उचित हो सकता है यदि यह नुकसान को रोकता है (उदाहरण के लिये, आतंकवादियों को वास्तविक काल की खुफिया जानकारी से वंचित करके जीवन की रक्षा करना)।
- हालाँकि, अत्यधिक राज्य नियंत्रण से लोकतांत्रिक जवाबदेही और संस्थाओं में जनता का विश्वास कम हो सकता है, जिससे दीर्घकालिक नुकसान का खतरा है।
- कर्त्तव्य-सिद्धांत: काण्ट-सिद्धांत के दृष्टिकोण से, नागरिकों की सुरक्षा (निजता के अधिकार कानूनों के माध्यम से) करने का राज्य का कर्त्तव्य, सत्य-कथन को अनिवार्य रूप से बनाए रखने के मीडिया के कर्त्तव्य से असंगत होता है।
- यदि पारदर्शिता एक नैतिक दायित्व है, तो यहाँ तक कि सुरक्षा के लिये भी सेंसरशिप, नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन है, जब तक कि इसे सार्वभौमिक रूप से उचित न ठहराया जाए।
- सद्गुण नैतिकता: सद्गुण नैतिकता के अनुसार, राज्य को प्रेस की निष्ठा के सम्मान के साथ सुरक्षा आवश्यकताओं को संतुलित करके विवेक का प्रदर्शन करना चाहिये।
- इसके विपरीत, मीडिया को संयम (सनसनीखेज खबरों से बचना) और साहस (संचालन को खतरे में डाले बिना दुर्व्यवहार को उजागर करना) जैसे गुणों को विकसित करना चाहिये।
- सामुदायिक नैतिकता: सामुदायिकतावाद में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तुलना में समाज के साझा लक्ष्यों पर ज़ोर दिया जाता है।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के परामर्श में राष्ट्रीय सुरक्षा को एक ‘साझा नैतिक जिम्मेदारी’ बताया गया है, जिसका तात्पर्य यह है कि मीडिया को अपनी स्वायत्तता को सांप्रदायिक सुरक्षा के अधीन रखना चाहिये।
कौन-से समाधान सुरक्षा आवश्यकताओं और नैतिक पत्रकारिता के बीच संतुलन स्थापित कर सकते हैं?
- नामित अधिकारियों के साथ संरचित ब्रीफिंग: सर्वोच्च न्यायालय ने पहले 26/11 हमलों के लाइव कवरेज की निंदा करते हुए इसे लापरवाहीपूर्ण बताया था तथा कहा था कि इससे सुरक्षा कार्यों में बाधा उत्पन्न हुई।
- यह समय-समय पर सरकार द्वारा निर्देशित ब्रीफिंग के माध्यम से नियंत्रित पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिसका उदाहरण कारगिल युद्ध मॉडल है, जहाँ आधिकारिक अपडेट ने परिचालन गोपनीयता के साथ सार्वजनिक जागरूकता को संतुलित किया, जिससे मिशन या कर्मियों को खतरे में डाले बिना सटीकता सुनिश्चित हुई।
- स्व-नियामक मीडिया दिशानिर्देश: मीडिया निकाय स्वैच्छिक आचार संहिता अपना सकते हैं, जो यूके की ‘D-नोटिस’ प्रणाली जैसे सहयोगी मॉडल से प्रेरित हो सकती है, जहाँ मीडिया और सुरक्षा एजेंसियाँ संवेदनशील कवरेज पर एकमत होती हैं।
- इसके साथ ही, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए - उपग्रह इमेजरी, ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) और तथ्य-जाँचकर्ता साझेदारी - बिना सेंसरशिप के दावों को सत्यापित किया जा सकता है।
- दुरुपयोग के विरुद्ध कानूनी रूप से बाध्य सुरक्षा उपाय: कवरेज को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों में अनिश्चितकालीन सेंसरशिप को रोकने के लिये सूर्यास्त खंड (Sunset Clause) और न्यायिक निरीक्षण शामिल होना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, फिलीपींस का मानव सुरक्षा अधिनियम आतंकवाद विरोधी उपायों की न्यायिक समीक्षा को अनिवार्य बनाता है, जिससे राज्य की कार्रवाइयों में जवाबदेही और आनुपातिकता सुनिश्चित होती है।
- मीडिया-सुरक्षा बल सहयोग: पत्रकारों और सुरक्षा कर्मियों के लिये संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम आपसी समझ को बढ़ावा दे सकते हैं।
- कुछ संघर्ष क्षेत्रों में प्रचलित तरीकों के अनुसार, यूनिट्स के साथ रिपोर्टरों को शामिल करना (सहमति वाले आधारभूत नियमों के साथ), परिचालन गोपनीयता के साथ अग्रिम पंक्ति की पहुँच को संतुलित करता है।
- जन जागरूकता और नैतिक समर्थन: रियल टाइम रिपोर्टिंग के जोखिमों पर अभियान, सनसनीखेजता के लिये जनता की मांग को रोक सकता है।
- राज्य प्रशिक्षण, संरक्षण और जिम्मेदार मान्यता के माध्यम से नैतिक युद्ध रिपोर्टिंग का समर्थन कर सकते हैं।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के बीच नैतिक संतुलन अतिवाद को अस्वीकार करने पर आधारित है। राज्य को पारदर्शिता बनाए रखते हुए संचालन की सुरक्षा करनी चाहिये, क्योंकि अनियंत्रित रिपोर्टिंग और अतिक्रमण दोनों ही लोकतंत्र को जोखिम में डालते हैं। सहयोगी मॉडल— संरचित ब्रीफिंग, मीडिया स्व-नियमन तथा न्यायिक निरीक्षण जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं। संयम के माध्यम से विश्वास सुनिश्चित करता है कि न तो सुरक्षा और न ही स्वतंत्रता का बलिदान किया जाए, एक ऐसा भविष्य सुरक्षित किया जाए जहाँ दोनों संतुलन में विकसित हो सकें।