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वेदर बैलून

  • 24 May 2025
  • 3 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

प्रशासन द्वारा बजट में कटौती के बाद अमेरिका ने वेदर बैलून के प्रक्षेपण की संख्या घटा दी है, जिससे मौसम पूर्वानुमान की सटीकता पर प्रभाव को लेकर पूरे विश्व के मौसम वैज्ञानिकों में चिंता उत्पन्न हो गई है। 

वेदर बैलून: 

  • परिचय: लियोन टेसरेंक डी बोर्ट (Léon Teisserenc de Bort) एक फ्राँसीसी मौसम वैज्ञानिक थे, जिन्होंने वर्ष 1896 में वेदर बैलून के उपयोग की शुरुआत की और ट्रोपोपॉज़ तथा समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फीयर) की खोज की।
    • वेदर बैलून बड़े लेटेक्स गुब्बारे होते हैं जो हीलियम या हाइड्रोजन से भरे होते हैं, जिन्हें मौसम विज्ञानी ऊपरी वायुमंडल (5,000 फीट से ऊपर) का अध्ययन करने के लिये उपयोग करते हैं।
    • आधुनिक वेदर बैलून लगभग 2 घंटे में 1,15,000 फीट (35 किमी) तक ऊपर जा सकते हैं।
  • मुख्य घटक: इनमें एक रेडियोसोंड लगा होता है, जो एक छोटा बैटरी से संचालित रेडियो ट्रांसमीटर होता है और लगभग 66 फीट नीचे लटकाया जाता है। यह तापमान, दाब, आर्द्रता और वायु की गति संबंधी वास्तविक समय (रियल-टाइम) डेटा एकत्रित कर रेडियो सिग्नलों के माध्यम से ग्राउंड स्टेशनों तक भेजता है।
    • उच्च तकनीक वाले रेडियोसोंड हल्के, अधिक ऊर्जा-कुशल हैं और सटीक ट्रैकिंग तथा वायु मापन के लिये ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) का उपयोग करते हैं, हालाँकि इन्हें अभी भी वेदर बैलून का उपयोग करके प्रक्षेपित किया जाता है।
    • महत्त्व: यह सतही अवलोकनों और उपग्रह डेटा के बीच के अंतर को पाटने में सहायता करता है तथा सटीक मौसम पूर्वानुमान के लिये आवश्यक वायुमंडल की विस्तृत ऊर्ध्वाधर रूपरेखा प्रदान करता है।
  • भारत का परिदृश्य: नेशनल बैलून फैसिलिटी (NBF), हैदराबाद की स्थापना 1960 के दशक में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) और ISRO के बीच एक सहयोगी पहल के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य वायुमंडलीय तथा अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये हाई-एल्टिट्यूड साइंटिफिक बैलून के प्रक्षेपण को सक्षम बनाना था।
    • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और पूरे विश्व के 900 से अधिक मौसम केंद्र पूर्वानुमान की सटीकता बनाए रखने के लिये प्रतिदिन दो बार वेदर बैलून प्रक्षेपित करते हैं।

और पढ़ें: IMD द्वारा मौसम का अनुवीक्षण, निगरानी गुब्बारा 

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