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RBI की मौद्रिक नीति

  • 23 Jun 2025
  • 9 min read

स्रोत: द हिंदू

जून 2025 की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) की बैठक में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमजोरियों को दर्शाता है, यह देखते हुए कि फरवरी 2025 से 100 bps दर में कटौती के बावजूद, मौद्रिक नीति में विकास का समर्थन करने के लिये सीमित जगह है । मुद्रास्फीति में कमी की धीमी गति और बाहरी अनिश्चितताओं को देखते हुए, एक समायोजन से तटस्थ रुख में बदलाव को उचित माना गया।

नोट: अनुकूल रुख का अर्थ है कि RBI धीमी वृद्धि या कम मुद्रास्फीति के दौरान विकास को बढ़ावा देने, तरलता बढ़ाने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये नीतिगत दरों को कम करता है या कम बनाए रखता है ।

  • तटस्थ रुख से RBI को उभरती मुद्रास्फीति या विकास जोखिमों के आधार पर दरों में वृद्धि या कटौती करने की लचीलापन मिलती है, जिसका उद्देश्य संतुलित नीति दृष्टिकोण अपनाना है।

मौद्रिक नीति समिति (MPC) क्या है?

मौद्रिक नीति क्या है?

  • मौद्रिक नीति के संबंध में: मौद्रिक नीति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से RBI, RBI अधिनियम, 1934 में उल्लिखित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अपने नियंत्रण में विभिन्न मौद्रिक साधनों का उपयोग करके अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को नियंत्रित करता है
  • उद्देश्य: प्राथमिक उद्देश्य मूल्य स्थिरता है, जिसमें मुद्रास्फीति नियंत्रण को प्राथमिक लक्ष्य के रूप में रखा गया है। सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के परामर्श से निर्धारित CPI- (संयुक्त) आधारित मुद्रास्फीति को 2% से 6% की सीमा के भीतर बनाए रखना है। 
    • अन्य उद्देश्यों में आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करना, रोज़गार सृजित करना तथा विनिमय दर स्थिरता सुनिश्चित करना शामिल है।
  • मौद्रिक नीति के साधन: 

मात्रात्मक साधन

  • आरक्षित अनुपात:
    • नकद आरक्षित अनुपात (CRR): बैंकों की शुद्ध माँग एवं समय दायित्व (NDTL) का वह निश्चित प्रतिशत, जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास नकद भंडार के रूप में रखना अनिवार्य होता है।
    • वैधानिक तरलता अनुपात (SLR): बैंकों को अपने NDTL का एक निर्धारित हिस्सा तरल संपत्तियों (जैसे नकदी, स्वर्ण, और अनिर्बंधित प्रतिभूतियों) के रूप में रखना आवश्यक होता है।
  • खुले बाज़ार परिचालन (OMO): सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद एवं बिक्री की प्रक्रिया।
  • रेपो दर एवं रिवर्स रेपो दर:
    • रेपो दर: यह वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), बैंकों को सरकारी एवं अन्य मान्य प्रतिभूतियों को संपार्श्विक रखकर अल्पकालिक तरलता प्रदान करता है।
    • रिवर्स रेपो दर: यह वह दर है जिस पर RBI, बैंकों से पात्र सरकारी प्रतिभूतियों को संपार्श्विक स्वीकार कर एक दिवसीय तरलता को अवशोषित करता है।
  • बैंक दर: यह वह दर है जिस पर रिज़र्व बैंक, विनिमय विपत्रों (बिल्स ऑफ एक्सचेंज) या अन्य वाणिज्यिक प्रपत्रों को पुनर्छूटक (रिडिस्काउंट) करता है अथवा खरीदता है।
    • बैंक दर यह वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), वाणिज्यिक बैंकों को संपार्श्विक के बिना दीर्घकालिक निधियाँ उपलब्ध कराता है। रेपो दर यह वह दर है जिस पर RBI, संपार्श्विक के बदले बैंकों को अल्पकालिक निधियाँ प्रदान कर तरलता प्रबंधन करता है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (MSF): यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, अपने वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) पोर्टफोलियो का उपयोग करते हुए, एक निर्धारित सीमा तक एक दिवसीय निधियाँ उधार ले सकते हैं। इसके लिये उन्हें दंडात्मक ब्याज दर का भुगतान करना होता है।
  • तरलता समायोजन सुविधा (LAF): इसके अंतर्गत एक दिवसीय तथा अवधि रेपो (टर्म रेपो) नीलामियाँ शामिल होती हैं।
  • बाज़ार स्थिरीकरण योजना (MSS): MSS बॉण्ड, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा सरकार की ओर से जारी की जाने वाली विशेष प्रतिभूतियाँ हैं, जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करना होता है, जब नियमित सरकारी बॉन्ड अपर्याप्त सिद्ध होते हैं।
    • ये बॉण्ड सामान्यतः छह महीने से कम अवधि के होते हैं, हालाँकि परिपक्वता अवधि आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न हो सकती है।

गुणात्मक साधन 

  • मार्जिन आवश्यकता: यह परिसंपत्तियों के बाज़ार मूल्य और उसके अधिकतम ऋण मूल्य के बीच का  अंतर है।
    • यह सट्टा उधार को नियंत्रित करने में मदद करता है और चयनात्मक ऋण नियंत्रण के तहत समायोजित किया जाता है
  • उपभोक्ता ऋण नियंत्रण: माल खरीदने हेतु उपयोग किये जाने वाले किस्त ऋण के लिये अग्रिम भुगतान और अधिकतम पुनर्भुगतान अवधि पर नियम निर्धारित करना।
  • राशनिंग/नियंत्रित वितरण: वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण का विनियमन, उदाहरण के लिये, RBI अत्यधिक उधार देने पर रोक लगाने के लिये रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों तक ऋण सीमित कर सकता है।
  • नैतिक अनुनय: RBI द्वारा वाणिज्यिक बैंकों से आर्थिक प्रवृत्तियों के अनुरूप विशिष्ट उपाय अपनाने का आग्रह।
  • प्रत्यक्ष कार्रवाई: RBI द्वारा उन बैंकों के विरुद्ध उठाए गए कदम जो निर्दिष्ट शर्तों या आवश्यकताओं को पूर्ण करने में विफल रहते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

1. यह आरबीआई की बेंचमार्क ब्याज दरों को तय करती है।
2. यह आरबीआई के गवर्नर सहित 12 सदस्यीय निकाय है जिसका प्रतिवर्ष पुनर्गठन किया जाता है।
3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)

प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
2. सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

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