इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 21 सितंबर, 2021

  • 21 Sep 2021
  • 7 min read

ब्रिगेडियर एस.वी. सरस्वती: राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार

हाल ही में सैन्य नर्सिंग सेवा की उपमहानिदेशक ब्रिगेडियर ‘एस.वी. सरस्वती’ को राष्ट्रपति द्वारा ‘राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार-2020’ से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति द्वारा यह पुरस्कार नर्स प्रशासक के रूप में ब्रिगेडियर ‘एस.वी. सरस्वती’ के सैन्य नर्सिंग सेवा में महत्त्वपूर्ण योगदान को देखते हुए दिया गया है। ‘राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ ऐसा सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान है, जिसे किसी नर्स को उसकी निःस्वार्थ सेवा और असाधारण कार्यकुशलता के लिये प्रदान किया जाता है। ब्रिगेडियर सरस्वती आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले की रहने वाली हैं और उन्होंने 28 दिसंबर, 1983 को सैन्य नर्सिंग सेवा में कार्य शुरू किया था। उन्होंने सैन्य नर्सिंग के क्षेत्र में साढ़े तीन दशक से अधिक समय तक सेवा की है। एक प्रसिद्ध ऑपरेशन थिएटर नर्स के रूप में ब्रिगेडियर सरस्वती ने 3,000 से अधिक जीवनरक्षक तथा आपातकालीन सर्जरी में सहायता की है और अपने कॅरियर में बहुत से रेज़ीडेंट, ऑपरेशन रूम नर्सिंग प्रशिक्षुओं एवं सहायक कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया है। सैनिकों और उनके परिवारों के लिये नर्सिंग सेवाओं में उनके विशिष्ट योगदान के चलते उन्हें ‘जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ कमेंडेशन’ (2005), ‘संयुक्त राष्ट्र मेडल’ (2007) और ‘चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंडेशन’ (2015) से भी सम्मानित किया गया है। 

ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट: विश्व बैंक

विश्व बैंक ने हाल ही में वर्ष 2018 और वर्ष 2020 के संस्करणों में ‘डेटा अनियमितताओं’ की आंतरिक रिपोर्टों और बैंक कर्मचारियों से जुड़े संभावित ‘नैतिक मामलों’ की जाँच के बाद ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस  रिपोर्ट’ को बंद करने का निर्णय लिया है। विश्व बैंक द्वारा की गई आंतरिक जाँच के मुताबिक, तत्कालीन विश्व बैंक के अध्यक्ष ‘जिम योंग किम’ और तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ‘क्रिस्टालिना जॉर्जीवा’ तथा उनके एक सलाहकार के दबाव में विश्व बैंक के कर्मचारियों ने ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ रैंकिंग में सुधार करने हेतु चीन के डेटा में बदलाव किया था। गौरतलब है कि क्रिस्टालिना जॉर्जीवा वर्तमान में ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ की प्रबंध संचालक’ (MD) हैं। विश्व बैंक द्वारा इस रिपोर्ट को सर्वप्रथम वर्ष 2003 में पेश किया गया था और यह एक व्यवसाय को प्रभावित करने वाले दस मापदंडों पर विश्व की कुल 190 देशों की अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार नियमों और उनके प्रवर्तन का आकलन प्रदान करती है। इस रिपोर्ट के तहत ‘डिस्टेंस-टू-फ्रंटियर’ (DTF) स्कोर के आधार पर देशों को रैंक प्रदान की जाती थी, जो सर्वोत्तम वैश्विक अभ्यासों के संबंध में किसी एक विशिष्ट अर्थव्यवस्था के अंतर को उजागर करता है। 

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस

विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 21 सितंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम रखने के लिये प्रयास करना एवं अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों तथा विवादों पर विराम लगाना है। वर्ष 2021 के लिये इस दिवस की थीम ‘रिकवरिंग बेटर फॉर एन इक्विटेबल एंड सस्टेनेबल वर्ल्ड’ रखी गई है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिवस को अहिंसा और संघर्ष विराम के अवलोकन के माध्यम से शांति के आदर्शों को मज़बूत करने हेतु एक दिवस के रूप में घोषित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1981 में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस मनाने की घोषणा की थी, जिसके पश्चात् पहली बार वर्ष 1982 में इस दिवस का आयोजन किया गया था। वर्ष 1982 से लेकर वर्ष 2001 तक सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता था, किंतु वर्ष 2002 से इसके लिये 21 सितंबर की तारीख निर्धारित कर दी गई है।

विश्व बाँस दिवस

वैश्विक स्तर पर बाँस उद्योग के संरक्षण और जागरूकता को बढ़ावा देने हेतु प्रतिवर्ष 18 सितंबर को ‘विश्व बाँस दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस दिवस का प्राथमिक लक्ष्य बाँस के लाभों के संबंध में जागरूकता फैलाना और रोज़मर्रा के उत्पादों में इसके उपयोग को बढ़ावा देना है। वर्ष 2009 में बैंकाक (थाईलैंड) में आयोजित 8वीं विश्व बाँस काॅन्ग्रेस में ‘विश्व बाँस संगठन’ ने आधिकारिक रूप से 18 सितंबर को विश्व बाँस दिवस (WBD) मनाए जाने की घोषणा की थी। विश्व बाँस संगठन का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण की रक्षा के लिये इसके स्थायी उपयोग सुनिश्चित करने हेतु दुनिया भर में बाँस की खेती को बढ़ावा देना और साथ ही सामुदायिक आर्थिक विकास के लिये स्थानीय रूप से इसके पारंपरिक उपयोग को बढ़ावा देना है। बाँस को ‘ग्रीन गोल्ड’ के रूप में भी जाना जाता है। बाँस का विकास काफी तेज़ी से होता है और इसमें बहुमुखी क्षमता मौजूद होती है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2