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प्रिलिम्स फैक्ट्स: 24 नवंबर, 2020

  • 24 Nov 2020
  • 16 min read

उमंग का अंतर्राष्ट्रीय संस्करण 

UMANG’s International Version

23 नवंबर, 2020 को उमंग (UMANG) के 3 वर्ष पूरे होने और दो हज़ार से अधिक सेवाएँँ उपलब्ध कराने को लेकर केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री की अध्यक्षता में एक ऑनलाइन सम्मेलन का आयोजन किया गया। 

Umang

प्रमुख बिंदु:

  • उमंग (UMANG) का पूर्ण रूप ‘नए युग के शासन के लिये एकीकृत मोबाइल एप्लिकेशन’ (Unified Mobile Application for New-age Governance) है जो कि भारत सरकार की एक पहल है। 
  • यह एकीकृत, सुरक्षित, बहुस्तरीय, बहुभाषी और विभिन्न सेवाओं का मोबाइल एप्लीकेशन है। 
  • यह केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों की महत्त्वपूर्ण सेवाएँ उपलब्ध कराता है।   

उमंग का अंतर्राष्ट्रीय संस्करण:

  • इस अवसर पर विदेश मंत्रालय के साथ समन्वय से केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने उमंग (UMANG) का अंतर्राष्ट्रीय संस्करण लॉन्च किया, जो कुछ चुने हुए देशों अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, नीदरलैंड, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैंड में अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराएगा।
  • यह भारतीय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों, अप्रवासी भारतीयों और भारत से विदेश जाने वाले पर्यटकों की मदद करेगा अर्थात् विशेष रूप से भारत सरकार की सेवाएँ किसी भी समय उपलब्ध रहेंगी।
  • लाभ: इसके अलावा यह अंतर्राष्ट्रीय संस्करण उमंग पर मौजूद भारतीय संस्कृति संबंधी सेवाओं की मदद से विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाएगा। 

उमंग की सेवाओं से संबंधित ई-बुक:

  • उमंग पर उपलब्ध 2000 से अधिक सेवाओं के महत्त्व और इसके 3 वर्ष पूरे होने पर केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने एक ई-बुक का भी अनावरण किया, जो उमंग पर उपलब्ध विभिन्न श्रेणियों की प्रमुख सेवाओं पर आधारित है।

उमंग पुरस्कार (UMANG Award):

  • हाल ही में उमंग के साझेदार के तौर पर केंद्र एवं राज्य सरकारों के विभागों के लिये उमंग पर उपलब्ध सेवाओं के इस्तेमाल के आधार पर उमंग पुरस्कारों (UMANG Awards) का भी शुभारंभ किया गया। 
  • राज्य सरकार की सेवाओं की श्रेणी में औसत मासिक इस्तेमाल के आधार पर तीन राज्य विजेता घोषित किये गए, जिसमें गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश शामिल हैं।

सेंटिनल-6 उपग्रह  

Sentinel-6 Satellite

महासागरों की निगरानी करने के लिये तैयार किये गए काॅपरनिकस सेंटिनल-6 माइकल फ्रेइलिच उपग्रह (Copernicus Sentinel-6 Michael Freilich Satellite) को 21 नवंबर, 2020 को स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट (SpaceX Falcon 9 Rocket) के माध्यम से कैलिफोर्निया के वांडेनबर्ग वायुसेना अड्डे (Vandenberg Air Force) से लॉन्च किया गया। 

Sentinel-6

प्रमुख बिंदु:

  • यह वैश्विक समुद्र तल में परिवर्तनों को मापने के लिये समर्पित अगले मिशन का एक हिस्सा है।
  • वैश्विक स्तर पर महासागरों में परिवर्तन पर नज़र रखने के लिये वर्ष 1992 से लॉन्च किये गए अन्य उपग्रहों में टोपेक्स (TOPEX)/पोसाइडन (Poseidon), जैसन-1 (Jason-1) और ओएसटीएन (OSTN)/ जैसन-2 (Jason-2) शामिल हैं। 
  • ‘सेंटिनल-6 माइकल फ्रेइलिच उपग्रह’ का नाम डॉ. माइकल फ्रेइलिच के नाम पर रखा गया है, जो वर्ष 2006-2019 से नासा के पृथ्वी विज्ञान प्रभाग (Earth Science Division) के निदेशक थे और इस वर्ष अगस्त 2020 में उनका निधन हो गया।
  • इसी तरह के एक अन्य उपग्रह जिसे ‘सेंटिनल-6 बी’ (Sentinel-6B) कहा जाता है, वर्ष 2025 में लॉन्च किया जाएगा।
  • इसे फ्राँस के ‘नेशनल सेंटर फॉर स्पेस स्टडीज़’ (CNES) के योगदान के साथ संयुक्त रूप से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), नासा (NASA), मौसम संबंधी उपग्रहों के पूर्वेक्षण के लिये यूरोपीय संगठन (European Organisation for the Exploitation of Meteorological Satellites- Eumetsat), संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration- NOAA) और यूरोपीय संघ (EU) द्वारा विकसित किया गया है।

जेसन- सीएस मिशन

[Jason Continuity of Service (Jason-CS) Mission]:

  • इस उपग्रह को जेसन-सीएस मिशन के तहत लॉन्च किया गया है।   
  • जेसन-सीएस मिशन (Jason-CS Mission) को समुद्र के बढ़ते स्तर को मापने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो यह समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि पृथ्वी की जलवायु कैसे बदल रही है।

‘सेंटिनल-6 माइकल फ्रेइलिच उपग्रह’ का कार्य: 

  • नासा (NASA) के अनुसार, यह उपग्रह चौथे दशक में समुद्र-स्तर के पर्यवेक्षण की निरंतरता सुनिश्चित करेगा और वैश्विक समुद्र-स्तर में हो रही वृद्धि की माप प्रदान करेगा।

मशरूम की नई प्रजाति

New Specie of Mushroom

हाल ही में भारत एवं चीन के शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने असम में मशरूम (Mushroom) की नई प्रजाति की खोज की है।

New-Specie-of-Mushroom

प्रमुख बिंदु:

  • इन प्रजातियों में सबसे आकर्षक प्रजाति जिसे स्थानीय लोग ‘इलेक्ट्रिक मशरूम’ (Electric Mushrooms) के रूप में वर्णित करते हैं केवल निर्जीव बाँस पर उगता है। 
    • इस प्रजाति को रोरीडोमायज़ फाइलोस्टैचायडिस (Roridomyces Phyllostachydis) नाम से नामांकित किया गया है जिसमें जैव-संदीप्ति (Bioluminescent) जैसा विशेष गुण पाया जाता है अर्थात् यह अपना स्वयं का प्रकाश उत्पन्न करती है।
      • रोरीडोमायज़ (Roridomyces) जीनस से संबंधित प्रजातियाँ बहुत संवेदनशील होती हैं और वे आर्द्र एवं नम परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं।

जैव-संदीप्ति (Bioluminescence):

  • जैव-संदीप्ति जैसी घटना शुष्क भूमि की तुलना में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे अधिक दिखाई देती है। 
  • इसका उपयोग आम तौर पर शिकार को आकर्षित करने के लिये या किसी पौधे की ओर कीटों को आकर्षित करने के लिये या पौधे के पराग या बीजाणुओं को फैलाने के लिये किया जाता है।
  • वर्णित 120000 कवक प्रजातियों में से लगभग 100 प्रजातियों में जैव-संदीप्ति का गुण पाया जाता है, इनमें से केवल कुछ ही भारत की मूल निवासी हैं। ये कवक आमतौर पर सड़ी हुई लकड़ी या निर्जीव लकड़ी पर उगते हैं।
  • जैव-संदीप्ति के गुणों से युक्त कवक का सबसे बड़ा जीनस मायसेना (Mycena) अर्थात् बोनट मशरूम (Bonnet Mushroom) है और मायसेना के आनुवांशिक अध्ययनों से पता चलता है कि यह विशेषता लगभग 160 मिलियन वर्ष पहले विकसित हुई थी। 
  • फाइलोस्टैचायडिस (Phyllostachydis) जीनस से संबंधित बाँस पर उगी हुई इस प्रजाति को शोधकर्त्ताओं की टीम ने ‘रोरीडोमायज़ फाइलोस्टैचायडिस’ नाम दिया है।
  • सामान्य तौर पर जैव-संदीप्ति (Bioluminescent) मशरूम कुछ विशिष्ट कीड़ों के साथ विकसित होते हैं क्योंकि ये मशरूम कीटों के माध्यम से अपने बीजाणुओं को फैलाते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि यह रोरीडोमायज़ (Roridomyces) जीनस की पहली प्रजाति है जिसे भारत में खोजा गया है। वर्तमान में 12 अन्य प्रजातियाँ इस जीनस से संबंधित हैं जिनमें से पाँच जैव-संदीप्ति जैसे विशेष गुणों से युक्त हैं।

हाल ही में ‘रोरीडोमायज़ फाइलोस्टैचायडिस’ से संबंधित शोध को ‘फाइटोटैक्सा’ (Phytotaxa) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।


कम्युनिटी कॉर्ड ब्लड बैंकिंग

Community Cord Blood Banking

वर्ष 2017 में लाइफसेल (LifeCell) द्वारा शुरू की गई स्टेम सेल बैंकिंग पहल ‘कम्युनिटी कॉर्ड ब्लड बैंकिंग’ (Community Cord Blood Banking) ने महाराष्ट्र के नासिक की 7 वर्षीय लड़की की जान बचाने में मदद की, जो अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia) नामक एक दुर्लभ एवं गंभीर रक्त विकार से पीड़ित थी।

Cord-Blood-Banking

कॉर्ड ब्लड (Cord Blood):

  • कॉर्ड ब्लड (Cord Blood), नाभि रज्जु (Umbilical Cord) और गर्भनाल (Placenta) की रक्त वाहिकाओं में पाया जाता है और जन्म के बाद बच्चे की नाभि रज्जु काट कर एकत्र किया जाता है।
  • इसमें रक्त बनाने वाली स्टेम कोशिकाएँ होती हैं जो कुछ रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली विकारों के इलाज में उपयोग की जाती हैं।
    • कॉर्ड ब्लड का उपयोग उसी तरह किया जाता है जैसे हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण (Hematopoietic Stem Cell Transplantation) का उपयोग विभिन्न रक्त कैंसर के लिये विकिरण उपचार के बाद अस्थिमज्ज़ा को पुनर्गठित करने के लिये किया जाता है।
  • कॉर्ड ब्लड, रक्त में पाए जाने वाले सभी तत्वों से मिलकर बना होता है जिनमें लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ, प्लाज़्मा, प्लेटलेट्स शामिल होते हैं।
  • कॉर्ड ब्लड का उपयोग उन लोगों में प्रत्यारोपण के लिये किया जा सकता है जिन्हें इन रक्त बनाने वाली कोशिकाओं के पुनर्जनन की आवश्यकता होती है।

‘कम्युनिटी कॉर्ड ब्लड बैंकिंग

(Community Cord Blood Banking): 

  • ‘कम्युनिटी कॉर्ड ब्लड बैंकिंग’, स्टेम सेल बैंकिंग का एक नया साझाकरण अर्थव्यवस्था मॉडल है जिसे भारत में लाइफसेल (LifeCell) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
  • इस सामुदायिक बैंक में माता-पिता अपने बच्चे के ‘कॉर्ड ब्लड’ को संग्रहित करने का विकल्प चुनते हैं, जिससे भविष्य में बच्चे के इलाज के लिये माता-पिता की सामुदायिक बैंक की अन्य सभी कॉर्ड ब्लड इकाइयों तक पहुँच सुनिश्चित हो सकेगी।
  • यह सामुदायिक बैंक एक ‘सार्वजनिक कॉर्ड ब्लड बैंक’ की तरह होता है किंतु इसमें केवल सदस्य परिवार ही लाभान्वित हो सकते हैं।

अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia):

  • अप्लास्टिक एनीमिया एक बीमारी है जिसमें शरीर पर्याप्त संख्या में नई रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने में विफल रहता है।
  • अस्थि-मज्जा (Bone Marrow) में रक्त कोशिकाओं का उत्पादन स्टेम कोशिकाओं द्वारा किया जाता है जो वहाँ मौजूद रहते हैं।
  • अप्लास्टिक एनीमिया सभी रक्त कोशिका प्रकारों (लाल रक्त कोशिकाएँ, सफेद रक्त कोशिकाएँ एवं प्लेटलेट्स) की कमी के कारण होता है।

लाइफसेल (LifeCell):

  • वर्ष 2004 में स्थापित लाइफसेल (LifeCell) भारत का पहला एवं सबसे बड़ा स्टेम सेल बैंक है जो भारत के 350000 से अधिक परिवारों को लाभान्वित कर रहा है जिन्होंने अपने बच्चों के गर्भनाल को स्टेम सेल कंपनी में जमा करने का विकल्प अपनाया है।
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