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महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक इनफिल्ट्रेशन

  • 08 May 2025
  • 6 min read

स्रोत: डी.टी.ई

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में "नेचर" पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक केवल सतही प्रदूषक नहीं हैं, बल्कि अब वे समुद्र की गहराइयों में समाहित हो गए हैं, जो पृथ्वी के जैव-रासायनिक और कार्बन चक्रों पर प्रभाव डाल रहे हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • माइक्रोप्लास्टिक इनफिल्ट्रेशन: माइक्रोप्लास्टिक महासागर में व्यापक रूप से फैले हुए हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों पर हावी हैं और महासागरीय घूर्णनों (Gyres) में 100 मीटर तक की गहराई तक पहुँच चुके हैं।
    • जबकि बड़े प्लास्टिक के टुकड़े (100 से 5,000 माइक्रोमीटर) सामान्यतः महासागर की सतह के पास संकेंद्रित होते थे, छोटे कण महासागरीय घूर्णनों में 100 मीटर की गहराई तक समाहित पाए गए।
    • घूर्णन (Gyres), धीमे-गति से चलने वाली, वृत्ताकार महासागरीय धाराएँ, प्लास्टिक को फँसाती हैं और संकेंद्रित करती हैं।
  • मात्रा: वर्ष 1950 से 2015 तक कुल प्लास्टिक इनपुट का अनुमान 17 से 47 मिलियन मीट्रिक टन के बीच लगाया गया था।
    • नायलॉन और पॉलिएस्टर से बना मछली पकड़ने का उपकरण महासागर में घने प्लास्टिक जैसे पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट (PET-Polyethylene Terephthalate) का एक प्रमुख स्रोत है, जिसमें 56 से अधिक पॉलिमर प्रकारों का पता चला है।
  • प्रभाव: जैव-रासायनिक चक्रण के लिये महत्त्वपूर्ण जल स्तंभ, माइक्रोप्लास्टिक्स से तेज़ी से प्रभावित हो रहा है, जिससे महासागर के कार्बन चक्र में संभावित रूप से व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
    • कार्बन चक्र में हस्तक्षेप: प्लास्टिक प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में बाह्य कार्बन (जिसे अलोकथोनस कार्बन (allochthonous carbon) कहा जाता है) जोड़ता है, जबकि माइक्रोप्लास्टिक कार्बन समुंदर के जल में 30 मीटर गहरे स्तर पर कुल कणिकीय कार्बनिक कार्बन (POC) का 0.1% होता है, जो उपोष्णकटिबंधीय गायर में 2,000 मीटर की गहराई पर 5% तक बढ़ जाता है।
      • यह समुद्री नमूनों (Marine samples) को 420 वर्ष पुराना दिखा सकता है।
    • जैव-रासायनिक प्रभाव: माइक्रोप्लास्टिक्स सूक्ष्मजीवों की नाइट्रीफिकेशन और डिनाइट्रीफिकेशन को बदलते हैं और मेटाबोलाइट्स का उत्सर्जन करते हैं जो पोषक तत्त्वों के चक्र को बाधित करते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक क्या हैं?

  • परिचय: माइक्रोप्लास्टिक्स, जिन्हें पाँच मिलीमीटर से छोटे व्यास वाले प्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया जाता है, महासागरों और जलजीवों के लिये हानिकारक हो सकते हैं।
    • सौर यूवी विकिरण, वायु और महासागरीय धाराएँ प्लास्टिक को माइक्रोप्लास्टिक्स (<5 मिमी) और नैनोप्लास्टिक्स (<100 नैनोमीटर) में तोड़ देती हैं।
  • वर्गीकरण: 
    • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: वे वाणिज्यिक उपयोग के लिये बनाए गए छोटे कण होते हैं, जैसे माइक्रोबीड्स, प्लास्टिक छर्रे और कपड़ों के माइक्रोफाइबर ।
    • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: ये तब बनते हैं जब बोतलों जैसे बड़े प्लास्टिक सूर्य के प्रकाश और समुद्री धाराओं के कारण टूट जाते हैं ।
  • चिंताएँ: माइक्रोप्लास्टिक लाल रक्त कोशिकाओं से चिपक सकते हैं, जिससे ऑक्सीजन का परिवहन कम हो जाता है और ये प्लेसेंटा भ्रूण के अंगों में भी पाए गए हैं । 
    • ये मानव कोशिकाओं को नुकसान पहुँचा सकते हैं और छोटे बच्चे विशेष रूप से इसके प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • अनुप्रयोग: इसका उपयोग दवा वितरण, औद्योगिक सफाई तथा स्क्रब और टूथपेस्ट जैसे व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में एक्सफोलियेंट के रूप में किया जाता है।
  • माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित विनियम: 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रश्न: पर्यावरण में छोड़े जाने वाले 'माइक्रोबीड्स' को लेकर इतनी चिंता क्यों है? (2019)   

(a) उन्हें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिये हानिकारक माना जाता है।

(b) उन्हें बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण माना जाता है।

(c) वे सिंचित क्षेत्रों में फसल पौधों द्वारा अवशोषित करने हेतु काफी छोटे हैं।

(d) वे अक्सर खाद्य अपमिश्रण के रूप में उपयोग किये जातेे हैं।

उत्तर: (a)

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