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जगन्नाथ रथ यात्रा और आषाढ़ी पर्व

  • 12 Jul 2024
  • 4 min read

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में प्रधानमंत्री ने जगन्नाथ रथ यात्रा और कच्छी नववर्ष आषाढ़ी बीज के शुभ अवसर पर लोगों को शुभकामनाएँ दीं। गुजरात के मुख्यमंत्री ने रथ यात्रा के लिये जगन्नाथ के रथ के मार्ग की प्रतीकात्मक सफाई हेतु 'पहिंद विधि' की।

  • जगन्नाथ रथ यात्रा: यह एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी छोटी बहन देवी सुभद्रा की ओडिशा के पुरी में उनके घरेलू मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर गुंडिचा में उनकी मौसी के मंदिर तक की यात्रा का जश्न मनाता है।
    • इस उत्सव की शुरुआत कम-से-कम 12वीं शताब्दी से हुई है, जब जगन्नाथ मंदिर का निर्माण राजा अनंतवर्मन चोडगंगा देव ने करवाया था।
    • इस त्योहार को रथों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि देवताओं को तीन विशाल लकड़ी के रथों पर ले जाया जाता है, जिन्हें भक्त रस्सियों से खींचते हैं।
    • यह आषाढ़ (जून-जुलाई) माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को शुरू होता है और नौ दिनों तक चलता है।
  • आषाढ़ी बीज:
    • यह हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पड़ता है।
    • यह त्योहार गुजरात के कच्छ क्षेत्र में बारिश की शुरुआत से जुड़ा हुआ है।
    • आषाढ़ी बीज के दौरान, वातावरण में नमी की जाँच की जाती है ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि आने वाले महीने में कौन-सी फसल सबसे अच्छी होगी।

भारत में पारंपरिक नववर्ष उत्सव

नाम

विशेषताएँ

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

यह विक्रम संवत के नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है जिसे वैदिक (हिंदू) कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है।

गुड़ी पड़वा और उगादि

यह त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र में मनाया जाता है।

नवरेह

कश्मीर में चंद्र नववर्ष मनाया जाता है। यह चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मनाया जाता है।

साजिबू चेराओबा

मणिपुर में मैतेई लोगों द्वारा मनाया जाता है। मणिपुर के चंद्र मास शाजिबू के पहले दिन मनाया जाता है।

चेटीचंड

सिंधी समुदाय द्वारा मनाया जाता है। सिंधियों के संरक्षक संत इष्ट देव उदेरोलाल/झूलेलाल की जयंती।

बिहु

यह वर्ष में तीन बार मनाया जाता है- अप्रैल में रोंगाली या बोहाग बिहू, अक्तूबर में कोंगाली या काटी बिहू और जनवरी में भोगली या माघ बिहू।

बैसाखी

किसानों द्वारा भारतीय आभार दिवस के रूप में मनाया जाता है। खालसा पंथ की नींव इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने रखी थी।

लोसूंग

सिक्किम का नववर्ष, जिसे नामसूंग के नाम से भी जाना जाता है।

और पढ़ें: जगन्नाथ रथ यात्रा, आषाढ़ी बीज

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