प्रारंभिक परीक्षा
इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स
- 19 Dec 2025
- 53 min read
पर्यावरण अंतर्राष्ट्रीय में प्रकाशित एक प्रथम प्रकार के व्यापक अध्ययन में यह पता चला है कि भारत के प्रमुख शहरों की हवा में साँस द्वारा प्रवेश करने योग्य माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैं। यह शहरी वायु प्रदूषण का एक छिपा हुआ और खतरनाक पहलू उजागर करता है, जिसे मौजूदा वायु गुणवत्ता ढाँचे अधिकांशतः अनदेखा करते हैं।
- अध्ययन में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के पाँच घनी आबादी वाले बाज़ारों में वायुमंडलीय वायु प्रदूषक सांद्रता की निगरानी की गई।
सारांश
- एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत के प्रमुख शहरों की हवा में साँस द्वारा प्रवेश करने योग्य माइक्रोप्लास्टिक्स/इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स मौजूद हैं, जो शहरी वायु प्रदूषण का एक छिपा हुआ रूप सामने आता हैं, जिसे वर्तमान वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ढाँचे में शामिल नहीं किया गया है।
- ये सूक्ष्म हवा में तैरते प्लास्टिक कण लंबे समय तक वायुमंडल में बने रहते हैं, विषैले सह-प्रदूषक लेकर चलते हैं,\ और गंभीर श्वसन संबंधी तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स क्या होते हैं?
- इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स: ये अत्यंत छोटे, हवा में तैरते प्लास्टिक कण होते हैं, जिनका आकार 10 माइक्रोमीटर (µm) से छोटा होता है। ये हवा में लंबे समय तक बने रहते हैं और फेफड़ों में गहराई तक साँस के माध्यम से पहुँच सकते हैं, जबकि बड़े सूक्ष्म प्लास्टिक जल्दी नीचे बैठ जाते हैं।
- ये अब हवा में मौजूद प्रदूषक के रूप में उभर रहे हैं, जैसे कि पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10)। इनका सामान्य स्रोत हैं: सिंथेटिक कपड़े (पॉलिएस्टर फाइबर), टायर और ब्रेक का घिसाव, प्लास्टिक पैकेजिंग, पेंट्स, कॉस्मेटिक्स और अपशिष्ट जलाना।
- मुख्य वायु प्रदूषक: पार्टिकुलेट मैटर (PM₂.₅ और PM₁₀), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओज़ोन (O₃), लेड (Pb) और अमोनिया (NH₃)।
इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- नए वायु प्रदूषक की उपस्थिति: अध्ययन में पता चला है कि साँस द्वारा प्रवेश करने योग्य माइक्रोप्लास्टिक्स एक महत्त्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखा किया जाने वाला शहरी वायु प्रदूषक है। इसे मौजूदा वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ढाँचों में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है, जो एक नियामक कमज़ोरी (Regulatory Blind Spot) सामने लाता है।
- कम गुरुत्वाकर्षण गति के कारण, इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स लंबे समय तक हवा में तैरते रहते हैं और विषैले सह-प्रदूषक जैसे भारी धातुएँ (सीसा, कैडमियम) और एंडोक्राइन-विघटनकारी रसायन (फ्थेलेट्स) लेकर चलते हैं। इससे साँस के माध्यम से इनके प्रवेश और स्वास्थ्य जोखिम में वृद्धि होती है।
- इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स में वृद्धि में योगदान देने वाले कारक: निष्कर्ष बताते हैं कि दिल्ली और कोलकाता में साँस द्वारा प्रवेश करने योग्य सूक्ष्म प्लास्टिक का स्तर मुंबई तथा चेन्नई की तुलना में काफी अधिक है, मुख्य रूप से इसलिये कि सहवर्ती मौसम मुंबई और चेन्नई में प्रदूषण को फैलाने में मदद करता है, जबकि उच्च जनसंख्या घनत्व एवं खराब अपशिष्ट प्रबंधन दिल्ली व कोलकाता में प्रदूषण के संपर्क को और खराब करते हैं।
- दैनिक मानव जोखिम का उच्च स्तर: शहरी निवासी प्रतिदिन लगभग 132 माइक्रोग्राम (µg) माइक्रोप्लास्टिक साँस के माध्यम से अंदर लेते हैं, जो श्वसन स्तर पर निरंतर (क्रॉनिक) संपर्क को दर्शाता है।
- अधिकांश कण टायर के घिसाव, प्लास्टिक पैकेजिंग, अपशिष्ट के कुप्रबंधन और शहरी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं।
- स्वास्थ्य जोखिम संबंध: अपने अत्यंत छोटे आकार के कारण, श्वास योग्य माइक्रोप्लास्टिक फेफड़ों की गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और ‘ट्रोजन हॉर्स’ की तरह कार्य करते हुए भारी धातुओं (सीसा, कैडमियम) तथा हार्मोन बाधित करने वाले रसायनों (फ्थालेट्स) को शरीर में पहुँचाते हैं, जिससे हार्मोन संबंधी विकार एवं कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
- अध्ययन में पाया गया कि श्वास योग्य माइक्रोप्लास्टिक माइक्रोब्स (जैसे एस्परगिलस फ्यूमिगेटस) को भी ले जा सकते हैं, जिनमें एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन मौजूद होते हैं, जिससे दवा-प्रतिरोधी श्वसन संक्रमणों के प्रति चिंता बढ़ जाती है।
माइक्रोप्लास्टिक
- परिचय: माइक्रोप्लास्टिक ऐसे प्लास्टिक कण होते हैं जिनका व्यास 5 मिमी से छोटा होता है, जबकि इससे भी छोटे 100 नैनोमीटर से कम आकार वाले कणों को नैनोप्लास्टिक कहा जाता है।
- ये समुद्री एवं स्वच्छ जल के पारिस्थितिक तंत्रों में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और महासागरों व जलीय जीवन के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण तब होता है जब बड़े प्लास्टिक पदार्थ सौर पराबैंगनी (UV) विकिरण, पवन, लहरों, समुद्री धाराओं और यांत्रिक घर्षण के प्रभाव में टूटकर धीरे-धीरे माइक्रो तथा नैनो-प्लास्टिक कणों में विघटित हो जाते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक के प्रकार:
- प्राइमरी माइक्रोप्लास्टिक: ये विशेष रूप से सूक्ष्म आकार में व्यावसायिक उपयोग के लिये बनाए जाते हैं।
- इनमें कॉस्मेटिक और टूथपेस्ट में प्रयुक्त माइक्रोबीड्स, औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त प्लास्टिक पेलेट तथा पॉलिएस्टर या नायलॉन वस्त्रों से धुलाई के दौरान निकलने वाले सिंथेटिक रेशे शामिल हैं।
- सेकेंडरी माइक्रोप्लास्टिक: ये तब बनते हैं जब बड़ी प्लास्टिक वस्तुएँ जैसे बोतलें, थैलियाँ, मछली पकड़ने के जाल एवं पैकेजिंग सामग्री सूर्य के प्रकाश, गर्मी, घर्षण और समुद्री लहरों के संपर्क में आकर समय के साथ विघटित हो जाती हैं।
- प्राइमरी माइक्रोप्लास्टिक: ये विशेष रूप से सूक्ष्म आकार में व्यावसायिक उपयोग के लिये बनाए जाते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक के प्रमुख स्रोत: इनमें सिंथेटिक कपड़े, सड़क परिवहन के दौरान टायरों के घिसने से उत्पन्न कण, एकल-उपयोग प्लास्टिक, व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद, और अपर्याप्त प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली शामिल है।
- भारत में विनियमन
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स क्या हैं?
श्वसनीय माइक्रोप्लास्टिक्स वायु में मौजूद 10 माइक्रोमीटर (µm) से छोटे प्लास्टिक कण होते हैं, जो लंबे समय तक वायु में निलंबित रह सकते हैं और मानव फेफड़ों के भीतर गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं।
2. भारत में इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स एक नियामक चिंता क्यों हैं?
वर्तमान वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ढाँचों के तहत इनकी स्पष्ट रूप से निगरानी नहीं की जाती, जिससे इनके स्वास्थ्य जोखिमों के बावजूद एक विनियामक अंतराल बना हुआ है।
3. शहरों में इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
प्रमुख स्रोतों में कृत्रिम कपड़ों के रेशे, टायर और ब्रेक का घिसाव, प्लास्टिक पैकेजिंग, पेंट, सौंदर्य प्रसाधन (कॉस्मेटिक्स) तथा अपशिष्ट दहन शामिल हैं।
4. इनहेलबल माइक्रोप्लास्टिक्स से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम क्या हैं?
ये भारी धातुओं, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स एवं रोगजनकों को फेफड़ों तक ले जाकर श्वसन रोग, हार्मोनल असंतुलन और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न: पर्यावरण में छोड़े जाने वाले 'माइक्रोबीड्स' को लेकर इतनी चिंता क्यों है? (2019)
(a) उन्हें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिये हानिकारक माना जाता है।
(b) उन्हें बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण माना जाता है।
(c) वे सिंचित क्षेत्रों में फसल पौधों द्वारा अवशोषित करने हेतु काफी छोटे हैं।
(d) वे अक्सर खाद्य अपमिश्रण के रूप में उपयोग किये जातेे हैं।
उत्तर: (a)
