रैपिड फायर
औद्योगिक लौह प्रदूषण: समुद्री पोषक चक्रों के लिये बढ़ता संकट
- 05 Jun 2025
- 3 min read
स्रोत: द हिंदू
एक अध्ययन में पाया गया है कि औद्योगिक लौह से होने वाला प्रदूषण महासागरीय पोषक तत्त्वों की कमी का कारण बनता है और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है, जिससे गंभीर पारिस्थितिकीय जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- मानव द्वारा उत्सर्जित लौह वसंत ऋतु में फाइटोप्लैंकटन ब्लूम की अत्यधिक वृद्धि को बढ़ावा देता है तथा पोषक तत्त्वों की हानि को तेज़ करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों में पोषक तत्त्वों की कमी और भी अधिक गंभीर रूप ले लेती है।
- इससे ज़ूप्लैंकटन से लेकर व्हेल तक संपूर्ण समुद्री खाद्य शृंखला को खतरा होता है तथा विशेष रूप से उन प्रजातियों पर इसका प्रभाव पड़ता है जो प्रवास करने या अनुकूलन करने में असमर्थ होते हैं।
- फाइटोप्लैंकटन क्लोरोफिल युक्त सूक्ष्म शैवाल होते हैं और जो वृद्धि के लिये सूर्य प्रकाश पर निर्भर करते हैं। ये समुद्री खाद्य शृंखला का आधार बनाते हैं, लेकिन पोषक तत्त्वों की अधिकता विषैले हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन (HAB) को उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे समुद्री जीवन और मानव स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं।
- भारत का लौह और इस्पात क्षेत्र उत्सर्जन: भारत का लौह और इस्पात उद्योग राष्ट्रीय ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 5% योगदान करता है।
- लौह और इस्पात उद्योग कोयला तथा लौह अयस्क के उपयोग के कारण गंभीर प्रदूषण उत्पन्न करता है। भट्ठी संचालन के दौरान सल्फर ऑक्साइड (SOx), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) उत्सर्जित होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, इससे अपशिष्ट जल, खतरनाक अपशिष्ट और ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं, जिससे वायु, जल तथा मृदा प्रदूषण होता है।
और पढ़ें: भारत का इस्पात क्षेत्र