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शासन व्यवस्था

सतत् शहरी नियोजन की ओर

  • 22 Nov 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 08/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “What does the World Bank report say about India’s cities?” लेख पर आधारित गई। इसमें भारत के ‘अर्बन स्पेस’ और उससे संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इसका या विकास इसके शहरों से प्रेरित है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि वर्ष 2030 तक भारतीय शहर देश के सकल घरेलू उत्पाद में 70% योगदान कर रहे होंगे। विश्व बैंक के अनुसार, भारत को अपनी तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी की मांगों की पूर्ति करने के लिये अगले 15 वर्षों में 840 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी।

  • ऐसे निष्कर्ष शहरीकरण (urbanisation) की उस घातीय दर में परिलक्षित भी होते हैं जिनसे देश गुज़र रहा है। जबकि यह वृहत आर्थिक विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय मोड़ है, यह जीवनक्षमता (liveability) के संबंध में चुनौतियों का एक समूह भी लेकर आता है। उन चुनौतियों में गहराई से उतरने पर शहरीकरण के ढाँचे के भीतर एक अंतर्निहित सीमा का भी पता चलता है।
  • शहरीकरण अपने आप में कोई समस्या नहीं है, लेकिन अरक्षणीय और अनियोजित शहरीकरण सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ पैदा करने के लिये बाध्य है। इन समस्याओं से योजनाबद्ध और वैज्ञानिक तरीके से मुक़ाबला करने की ज़रूरत है।

भारत शहरी क्षेत्र को एक विकास इकाई के रूप में कैसे चिह्नित करता है?

  • भारत का अखिल भारतीय शहरी दृष्टिकोण सर्वप्रथम 1980 के दशक में राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग (वर्ष 1988) के गठन के रूप में व्यक्त हुआ था।
  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों और 74वें संशोधन अधिनियम, 1992के माध्यम से भारतीय संविधान भारत के शहरी क्षेत्र में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (नगर निकाय के रूप में) के लिये एक स्पष्ट अधिदेश लागू करता है।
  • इसके साथ ही, स्थानीय निकायों पर 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने भी शहरी शासन संरचनाओं और उनके वित्तीय सशक्तिकरण की आवश्यकता पर बल दिया।

शहरी विकास से संबंधित हाल की प्रमुख पहलें

भारत के शहरी क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • कुशल परिवहन का अभाव: लोग सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर निजी परिवहन का उपयोग करना अधिक पसंद करते हैं। कारों पर निर्भरता के परिणामस्वरूप सड़कों पर भीड़भाड़, प्रदूषण और शहरों में यात्रा समय में वृद्धि की स्थिति बनी है।
    • इसके साथ ही, भारतीय शहरों में वाहनों की बढ़ती संख्या को जलवायु परिवर्तन के आवश्यक चालक के रूप में देखा जाता है क्योंकि ये वाहन दहन ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता रखते हैं।
  • मलिन बस्तियाँ और अवैध बस्तियाँ: शहरी क्षेत्रों में रहना महँगा होता है, लेकिन अधिकांश लोग जो ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जाते हैं, वे इस तरह के जीवनयापन को वहन कर सकने की क्षमता नहीं रखते। यह स्थिति फिर प्रवासियों के लिये सुरक्षित आश्रय के रूप में मलिन बस्तियों के विस्तार की ओर ले जाती है।
    • विश्व बैंक के अनुसार भारत में मलिन बस्तियों में रहने वाली आबादी कुल शहरी आबादी का लगभग 35.2% थी।
    • मुंबई की धारावी को एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती माना जाता है।
  • पर्यावरणीय गुणवत्ता में गिरावट: शहरीकरण पर्यावरणीय क्षरण के प्रमुख कारकों में से एक है। सीमित स्थानों में लोगों की भीड़ हवा की गुणवत्ता को कम करती है और जल को दूषित करती है।
    • भवनों और कारखानों के निर्माण के लिये जंगलों एवं कृषि भूमि का विनाश भूमि की गुणवत्ता का क्षरण करता है।
    • घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट और अन्य अपशिष्ट जो सीधे नदियों में प्रवाहित कर दिये जाते हैं, जल की गुणवत्ता को कम करते हैं।
      • इसके साथ ही, शहरी क्षेत्र के बाहर कूड़ों के बड़े ढेर भारत के किसी भी महानगरीय शहर की पहचान ही बन गए हैं।
  • सीवेज की समस्या: तीव्र शहरीकरण शहरों के अनियोजित और अव्यवस्थित विकास की ओर ले जाता है और इनमें से अधिकांश शहर अक्षम सीवेज सुविधाओं से त्रस्त हैं।
    • अधिकांश शहरों में सीवेज कचरे के उपचार की उपयुक्त व्यवस्था मौजूद नहीं है। भारत सरकार के अनुसार, भारत में उत्पन्न सीवेज का लगभग 78% अनुपचारित ही रहता है जिसे इसे नदियों, झीलों या समुद्र में बहा दिया जाता है।
  • अर्बन हीट आइलैंड:शहरी क्षेत्रों में फुटपाथ, इमारतों और अन्य सतहों की सघन सांद्रता के साथ प्राकृतिक भूमि आवरण कम हो जाता है जो फिर ऊष्मा के अवशोषण और उसे बनाए रखने के साथ ‘अर्बन हीट आइलैंड’ (Urban Heat Island) का निर्माण करता है।
    • यह ऊर्जा लागत (जैसे, एयर कंडीशनिंग के लिये), वायु प्रदूषण के स्तर और गर्मी संबंधी बीमारियों एवं मृत्यु का कारण बनता है।
  • शहरी बाढ़:शहर के केंद्रीय क्षेत्रों में भूमि की कीमतों में वृद्धि और उपलब्ध भूमि की कमी के कारण भारतीय शहरों और कस्बों में नए विस्तार एवं विकास उनके निचले इलाकों में हो रहे हैं जिनके लिये प्रायः झीलों, आर्द्रभूमियों और नदियों की भूमि का अतिक्रमण भी किया जाता है।
    • नतीजतन, प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था की प्रभाविता कम हो गई है, जिससे शहरी बाढ़ (Urban Flooding) की समस्या उत्पन्न हुई है।
    • इसके अलावा बदतर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अत्यधिक वर्षा जल की निकासी में रुकावट उत्पन्न करता है, जिससे जलजमाव और बाढ़ की स्थिति बनती है।
  • शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) की अप्रभावी कार्यप्रणाली: यद्यपि संविधान द्वारा शहरी स्थानीय निकायों के लिये कार्यों की एक विस्तृत शृंखला रेखांकित की गई है, उन कार्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक राजस्व के लिये वे केंद्र और राज्य पर निर्भर होते हैं।
    • ULBs को सौंपी गई शक्तियों, ज़िम्मेदारियों और धन के बीच असंतुलन तथा समयबद्ध ऑडिट की कमी के परिणामस्वरूप उनके अप्रभावी कार्यकरण की स्थिति बनती है।

आगे की राह

  • सुव्यवस्थित शहरी नियोजन:हमारे प्रयासों को शहरी समस्याओं के संवहनीय एवं प्रभावी समाधान की दिशा में संरेखित करने की आवश्यकता है जिसमें हरित अवसंरचना, सार्वजनिक स्थानों का मिश्रित उपयोग और सौर एवं पवन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना शामिल हो सकता है।
    • सुव्यवस्थित शहरी नियोजन शहरी क्षेत्रों और पास-पड़ोस को स्वास्थ्यप्रद एवं अधिक कुशल क्षेत्रों में बदलते हुए निवासियों के कल्याण में सुधार लाने में मदद कर सकता है।
    • वहनीय और बेहतर शहर प्रबंधन के लिये अधिकाधिक नवोन्मेषी विचारों का उभार होना चाहिये। इस संबंध में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भी अवसर दिया जाना चाहिये।
  • शहरी रोज़गार गारंटी:शहरी गरीबों को एक आधारभूत जीवन स्तर प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों में मनरेगा योजना जैसी किसी योजना के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
    • राजस्थान में शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • हरित परिवहन:सार्वजनिक परिवहन पर पुनर्विचार करने और इनका पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता है। इसके तहत ई-बसों को अपनाना, बस कॉरिडोर बनाना, और बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम का उपयोग करना शामिल है जो भारत के शहरी क्षेत्र में हरित गतिशीलता (Green Mobility) को सक्षम करेगा।
  • अनौपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण: प्रवासी श्रमिकों के हित में प्रवासियों के डेटा को संकलित करने और शहर की विकास गतिविधियों में इनका उपयोग करने की आवश्यकता है।
    • इसके अलावा, श्रम मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित असंगठित कामगार सूचकांक नंबर कार्ड (UWIN Card) भी कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद करेगा।
  • सतत् विकास का लोकतंत्रीकरण: शहर के विकास के संबंध में प्रचलित ‘आर्थिक’ दृष्टिकोण को एक ‘संवहनीय’ दृष्टिकोण से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें पारिस्थितिक और सामाजिक दृष्टिकोण से विचार किया जाना भी शामिल होगा।
    • तदनुसार, शासन में नागरिकों की भागीदारी से भारत में स्थानीय स्तर पर सतत् विकास का लोकतंत्रीकरण किया जाना चाहिये, जैसे कि हर शहर में सहभागी बजट का उपयोग किया जाना चाहिये, स्थानीय रूप से सबसे उपयुक्त साधनों का चयन करना चाहिये और सबसे तात्कालिक मुद्दों को लक्षित किया जाना चाहिये।
      • किसी भी विकासात्मक गतिविधि के संबंध में स्थानीय स्तर पर संवहनीयता प्रभाव आकलन (Sustainability Impact Assessments- SIA) को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत में मौजूदा अर्बन स्पेस से संबंधित कुछ प्रमुख समस्याओं की चर्चा करें और बताएँ कि कैसे इसकी पुनर्कल्पना की जा सकती है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या निम्न अभ्यास के रूप में की जा सकती है: (वर्ष 2017)

 (A) संघवाद
 (B) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
 (C) प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
 (D) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

 उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

Q. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिए आवश्यक सामाजिक संसाधनों की रक्षा करके उनके उत्थान के लिए सरकार  योजनाएँ बनाने के कारण शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना में बाधा आ रही है

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