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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय निर्यात प्रोत्साहन व विश्व व्यापार संगठन

  • 20 Mar 2018
  • 21 min read

संदर्भ 
14 मार्च, 2018 को संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि (United States Trade Representative-USTR) कार्यालय ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत की निर्यात संवर्द्धन  योजनाओं को चुनौती दी। अमेरिका का कहना है कि इन कार्यक्रमों से असमान अवसर पैदा हो रहे हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियों को नुकसान हो रहा है। अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान प्रणाली के अंतर्गत भारत के साथ परामर्श प्रक्रिया के प्रावधान के तहत वार्ता की मांग की है। भारत ने इस प्रक्रिया में शामिल होना स्वीकार करते हुए कहा है कि अमेरिका को भारतीय पक्ष से अवगत कराया जाएगा । 

विवाद क्या है? 

  • USTR की प्रमुख शिकायत यह है कि भारत सब्सिडी और काउंटरवेलिंग उपायों (Agreement on Subsidies and Countervailing Measures : SCM Agreement) के समझौते के तहत  की गई अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर रहा है।
  • USTR ने इस संदर्भ में भारत की 5 निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं (निर्यात उन्मुख इकाइयों की योजनाएँ व क्षेत्र-विशिष्ट योजनाएँ) का उल्लेख किया है, जोकि निम्नलिखित हैं-
    ♦ इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर प्रौद्योगिकी पार्क योजना (electronics hardware technology parks scheme)।
    ♦ भारत से मर्चेंडाइज निर्यात के लिये योजना (merchandise exports from India scheme)।
    ♦ निर्यात संवर्द्धन कैपिटल गुड्स संबंधी योजना(export promotion capital goods scheme)।
    ♦ विशेष आर्थिक क्षेत्र (special economic zones)।
    ♦ शुल्क मुक्त आयात अधिकार-पत्र योजना (Duty free import authorization scheme)।  
  • USTR का मुख्य तर्क यह है कि भारत की उपरोक्त पाँच निर्यात संवर्द्धन  योजनाएँ, एससीएम समझौते के प्रावधान 3.1 (ए) और 3.2 का उल्लंघन करती हैं, क्योंकि ये दोनों प्रावधान निर्यात सब्सिडी देने पर रोक लगाते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि 2015 तक भारत को निर्यात सब्सिडी का उपयोग करने की मनाही नहीं थी क्योंकि भारत इस समझौते की अनुसूची VII (annex VII) में शामिल 20 विकासशील देशों में सम्मिलित था।  अनुसूची VII में उन देशों को शामिल किया गया है, जिन्हें तब तक सब्सिडी का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जब तक लगातार तीन वर्षों तक उनका प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) 1000 डॉलर की सीमा को पार नहीं कर जाता है। 
  • अनुसूची VII का यह प्रावधान विकासशील देशों द्वारा निर्यात सब्सिडी को समाप्त करने के लिये लाए  गये विशेष प्रावधानों का अपवाद था, इस प्रावधान को विशेष और विभेदीकृत उपचार (special and differential treatment) के तौर पर जाना जाता है। अनुसूची VII में शामिल विकासशील देशों को छोड़कर, अन्य सभी विकासशील देशों को निर्यात सब्सिडी को खत्म करने के लिये 1995 के विश्व व्यापार संगठन समझौते के लागू होने (बाद में शामिल हुए देशों के लिये, उन देशों के विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने) से 8 साल की अवधि तक की अनुमति दी गई थी।
  • विश्व व्यापार संगठन सचिवालय ने 2017 में की गई अपनी गणना में पाया कि भारत 2015 में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) 1000 डॉलर की सीमा को पार कर गया था। 
  • सब्सिडी और काउंटरवेलिंग उपायों पर बनाई गई समिति के अध्यक्ष ने 2001 की एक रिपोर्ट में कहा कि भारत जैसे देशों को प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) 1000 डॉलर की सीमा को पार करते ही तुरंत प्रभाव से निर्यात सब्सिडी को बंद कर देना चाहिये। उपरोक्त रिपोर्ट को अनुसूची VII को लागू करने की पद्धति प्रदान करने वाले दस्तावेज़ के रूप में भी माना जाता है।
  • दोहा वार्ता में भारत और अनुसूची VII के कई अन्य देशों ने इस समझौते में एक संशोधन की मांग की थी, जिससे उन्हें प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद 1000 डॉलर की सीमा को पार करने के बाद सब्सिडी समाप्त करने के लिये  8 वर्ष का संक्रमण काल (transition period) प्राप्त हो सके।  

भारतीय पक्ष 

  • 2011 में भारत ने बोलीविया, मिस्र, होंडुरास, निकारागुआ और श्रीलंका के साथ मिलकर मांग की थी कि अनुसूची VII के देशों को अन्य विकासशील देशों पर लागू प्रावधान भी प्राप्त होने चाहिये।  अर्थात् विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने के 8 साल के भीतर अपनी निर्यात सब्सिडी को समाप्त करने के जो प्रावधान ऐसे विकासशील देशों को मिला थे, जिनका प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद 1000 डॉलर की सीमा के ऊपर था, वे प्रावधान अनुसूची VII के देशों को भी मिलने चाहिये, जब उनका प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) 1000 डॉलर की सीमा को पार करे। 
  • इसके अतिरिक्त, इन देशों को 8 वर्ष की इस संक्रमण अवधि की समाप्ति पर सब्सिडी और काउंटरवेलिंग उपायों की समिति के साथ परामर्श करने की अनुमति भी दी गई थी, समिति को इन देशों की आर्थिक, वित्तीय और विकास की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लेना था कि क्या इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है?
  • अर्थात् प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद 1000 डॉलर की सीमा को पार करने के बाद भी अनुसूची VII के देशों को सब्सिडी समाप्त करने के लिये 8 साल का एक संक्रमण काल (transition period) मिलना चाहिये। लेकिन अभी तक इस पर कोई सहमती नहीं बन पाई है।
  • उल्लेखनीय है कि विकसित देश विभिन्न मंचों पर इस मुद्दे को उठाते रहें हैं कि भारत अब निर्यात सब्सिडी देने को लेकर पात्र नहीं है, क्योंकि भारत लगातार तीन साल से 1,000 डॉलर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय की शर्त को पूरा कर चुका है। इस मुद्दे पर भारतीय वाणिज्य सचिव रीता तेवतिया ने कहा कि भारत के पास सब्सिडी व्यवस्था से बाहर निकलने के लिये 8 साल का समय है और भारत अमेरिका के साथ होने वाली परामर्श प्रक्रिया में इस मुद्दे को रखेगा। 

विश्व व्यापार संगठन में भारत से संबंधित अन्य प्रमुख मुद्दे

कृषि सब्सिडी व बौद्धिक संपदा: 

  • कृषि के क्षेत्र में विकसित देशों ने छोटे कृषकों के हितों की पूर्णतः अनदेखी की है। कृषि और बौद्धिक संपदा, दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिन पर विकसित देशों द्वारा एकतरफा नियम बनाने से भारत जैसे विकासशील देश परेशान है। भारत की मांग है कि विकासशील देशों को अपने देश के गरीब वर्ग को सब्सिडी पर भोजन उपलब्ध कराने के बारे में नियम बनाने का पूर्ण अधिकार होना चाहिये। वहीं विकसित देश इसे स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा  का उल्लंघन मानते हैं और इसे संगठन के नियमों के विरुद्ध बताते हैं। 
  • वर्तमान में भारत की मांग को ‘पीस क्लॉज़‘ के तहत स्वीकार कर लिया गया है, किंतु भारत की मांग है कि खाद्य सुरक्षा के लिये गरीब वर्ग को सब्सिडी पर भोजन उपलब्ध कराने हेतु संगठन में हमेशा के लिये  स्वीकृति मिलनी चाहिये। इस पर अभी कोई निर्णय नहीं हो सका। 

व्यापार को सरल बनाने का विषय: 

  • व्यापार को सरल बनाने (Trade Facilitation) के लिये देशों के बीच व्यापार सुविधा समझौते की रूपरेखा का निर्माण किया गया है। इसमें उन सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया, जिसमें आपसी व्यापार के शुल्क को कम किया जा सके। 
  • साथ ही, इस समझौते में देशों को अपने सीमा शुल्क एवं सुविधाओं में परिवर्तन भी करना होगा। गरीब देशों के लिये यह एक मुश्किल काम है, क्योंकि सीमा पर आधुनिक सेवाओं के लिये धन लगाना उनके लिये संभव नहीं है। विकासशील देशों ने शुरुआत में इसका विरोध करते हुए भी इसे बाली सम्मेलन में स्वीकृति दे दी।

ई-कॉमर्स और निवेश को विश्व व्यापार संगठन में शामिल करने का विषय: 

  • 2017 में ब्यूनस आयर्स में संपन्न हुई 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में इलेक्ट्रॉनिक, ई-कॉमर्स और निवेश को भी शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे छोटे दर्जे के व्यापारियों के लिये नए बाज़ार खुल जाएंगे। ई-कॉमर्स से व्यापार के परंपरागत तरीके को बदला जा सकेगा।
  • समस्या यह है कि वर्तमान में विकासशील और गरीब देशों में इंटरनेट का उपयोग बहुत कम किया जाता है। इससे ई-कॉमर्स का वाकई लाभ उठाने पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। विकासशील देशों ने ई-कामर्स के ज़रिये दूसरे देशों के बाज़ारों से जुड़ने हेतु उनके संसाधनों में भी वृद्धि करने की मांग की है।
  • निवेश पर भी देश आपस में बंटे हुए हैं। विकासशील देशों ने पहले भी इस पर सवाल उठाए थे कि निवेशक देश के अगर निवेश किए जाने वाले मेजबान देश से कुछ विवाद हैं, तो उन्हें किस अंतर्राष्ट्रीय  पैनल में सुलझाया जाएगा? ई-कॉमर्स और निवेश को विश्व व्यापार संगठन में शामिल करने से अमीर एवं गरीब देशों के बीच तनाव पहले से और बढ़ गया है। 

भारत में वर्तमान परिदृश्य 

  • यह पहली बार नहीं है कि अमेरिका ने भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को असमान अवसर पैदा करने वाला बताया हो, हालाँकि यह पहला ऐसा उदाहरण है जब इसके व्यापार प्रशासन ने भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को लेकर डब्ल्यूटीओ में विवाद दायर किया है।
  • 2010 में अमेरिका ने भारत द्वारा वस्त्र और कपड़ों के क्षेत्र को प्रदान किये गए निर्यात प्रोत्साहनों पर सवाल किया था और यह तर्क दिया था कि इन निर्यात प्रोत्साहनों से इस क्षेत्र का वैश्विक व्यापार में हिस्सा लगभग 3.25% बढ़ गया था, जिसने इस क्षेत्र को पहले से अधिक निर्यात प्रतिस्पर्द्धी बना दिया था। 
  • अमेरिका ने तब यह कहते हुए आपत्ति की थी कि एससीएम समझौते के प्रावधान 27.5 के अनुसार यदि अनुसूची VII का कोई विकासशील देश एक या एक से अधिक उत्पादों में निर्यात प्रतिस्पर्द्धा  प्राप्त कर लेता है, तब उस देश को 8 साल की अवधि में ऐसे उत्पादों पर निर्यात सब्सिडी को धीरे-धीरे समाप्त कर देना चाहिये। जिस वजह से उस समय, भारतीय वाणिज्य विभाग पर निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के बारे में अपनी भविष्य की रणनीतियों पर विचार करने के लिये काफी दबाव उत्पन्न हो गया था।
  • इस दबाव का ही परिणाम था कि 2015 में भारत ने विदेश व्यापार नीति (एफ़टीपी) का अनावरण करते समय, निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के भविष्य के बारे में गंभीरता पूर्वक आत्मनिरीक्षण किया।
  • विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2015-20 ने इसे एक संकेतक के रूप में लिया और भारत में भविष्य के निर्यात संवर्द्धन प्रयासों को दिशा देने का प्रयास किया। प्रोत्साहन और सब्सिडी से भिन्न अन्य उपायों के बारे में सोचा गया। दिसंबर 2017 में जारी एफटीपी के मध्य-अवधि की समीक्षा में भी इस पर फोकस किया गया। 
  • किंतु एफटीपी में की गई अधिसूचनाओं के विपरीत सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं पर अपना विस्तार बढ़ाया है। 2016-17 में निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं पर कुल व्यय 58,600 करोड़ रुपए था, जिसमें एफ़टीपी के बाद के तीन वर्षों में 28% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • इस अवधि के दौरान ही सबसे बड़ी निर्यात संवर्द्धन योजना, भारत से मर्चेंडाइज़ निर्यात के लिये  योजना (Merchandise Exports from India Scheme ; MEIS) को शुरू किया गया। 
  • हाल के महीनों में इस योजना का दो तरह से विस्तार किया गया है। एक, तैयार वस्त्रों की एमईआईएस दरों (MEIS rates) को 2% से 4% तक बढ़ाकर और दूसरा, श्रम-गहन और एमएसएमई क्षेत्र (MSME sector) के सभी उत्पादों के लिये 2% एमईआईएस (MEIS) देकर।

नई दिल्ली में डब्‍ल्‍यूटीओ की अनौपचारिक मंत्रिस्‍तरीय बैठक 

  • 19–20 मार्च 2018 के मध्य, नई दिल्‍ली में विश्‍व व्‍यापार संगठन (डब्‍ल्‍यूटीओ) की अनौपचारिक मंत्रिस्‍तरीय बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक के दौरान बहुपक्षीय व्‍यापार से संबंधित विभिन्‍न पहलुओं पर चर्चाएँ हुईं। विभिन्न देशों ने इस मंत्रिस्‍तरीय बैठक की मेजबानी करने के लिये भारत द्वारा की गई पहल की सराहना की। 
  • इसका बैठक का मुख्‍य उद्देश्‍य आपसी विश्‍वास उत्‍पन्‍न करने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा एवं कृषि जैसे साझा मुद्दों पर विचार करने के लिये संबंधित देशों को एकजुट करना था। भारत का मानना है कि  विभिन्‍न देशों में मतभेदों को दूर करने के लिये द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संवाद से बेहतर कोई अन्य विकल्‍प नहीं है। इस अवसर पर भारत ने नियम आधारित ऐसी बहुपक्षीय व्‍यापार प्रणाली के लिये  अपनी प्रतिबद्धता दोहराई जो समावेशन, समग्रता और आम सहमति पर आधारित हो।
  • भारत ने वर्तमान परिदृश्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बहुपक्षीय व्‍यापार प्रणाली के समक्ष वर्तमान में उपस्थित चुनौतियों से निपटना आवश्‍यक है। भारत ने इस बात को रेखांकित किया कि दोहा दौर और बाली मंत्रिस्‍तरीय बैठक में लिये गए निर्णयों को अभी तक लागू नहीं किया गया है। भारत ने अल्‍पविकसित देशों के प्रति करुणामय दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत पर पुन: विशेष बल दिया।
  • डब्‍ल्‍यूटीओ के महानिदेशक रॉबर्टो एजेवेडो ने इस अवसर पर कहा कि ब्‍यूनस आयर्स में आयोजित 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक के बाद राजनैतिक स्‍तर पर संवाद का पहला अवसर नई दिल्‍ली में आयोजित बैठक में ही संभव हुआ। उन्‍होंने कहा कि सभी सदस्‍यों देशों ने स्थिति की गंभीरता को भलीभाँति समझा है और उन्‍होंने यह माना है कि सामूहिक प्रयासों से ही विभिन्‍न समस्याओं के हल निकालने होंगे। 
  • उन्‍होंने कहा कि वैसे तो विश्‍व भर में व्‍यापार संबंधों में तनाव व्‍याप्‍त है और कुछ देशों द्वारा लिये जाने वाले एकतरफा निर्णयों पर चिंता जताई गई है, लेकिन सदस्‍य देश समाधान निकालने के लिये आपस में सक्रियता के साथ सहयोग करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। 

संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) कार्यालय क्या है?

  • संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) का कार्यालय संयुक्त राज्य सरकार की एजेंसी है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति को व्यापार की नीति विकसित करने और अनुशंसा करने, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर व्यापार वार्ता के आयोजन तथा सरकार के भीतर व्यापार नीति के समन्वयन के लिये जिम्मेदार संस्था है।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) : प्रमुख तथ्य 

  • स्थापना– 1995 में (मारकेश संधि के तहत) 
  • प्रकार– अंतर-सरकारी संगठन 
  • मुख्यालय– जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
  • सदस्य संख्या– 165 देश 
  • सर्वोच्च निकाय– सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है। 
  • उद्देश्य– विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना, विश्व व्यापार के लिये दिशा - निर्देशों को तैयार करना।

निष्कर्ष
निर्यात को बढ़ावा देने के लिये निर्यात सब्सिडी की उपयोगिता पर हमेशा से प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं, क्योंकि इस प्रकार की सब्सिडी का असली प्रभाव कभी भी स्पष्ट रूप से मापा नहीं गया है। इसलिये सरकार को व्यापार संबंधी बुनियादी ढाँचे और व्यापार सुविधा योजनाओं में निवेश करना चाहिये। व्यापार संबंधी बुनियादी ढाँचे और व्यापार सुविधा योजनाओं में निवेश करने से निर्यात को बिना किसी विवाद के अधिक स्थायी रूप से बढाया जा सकता है। यह दीर्घकालिक दृष्टि से भी अधिक लाभकारी सिद्ध होगा। 

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