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सबसे अच्छा समय, सबसे खराब समय

  • 14 Jun 2017
  • 7 min read

संदर्भ
देश में चल रहे किसान आंदोलन ने एक हिंसक रूप धारण कर लिया है। ये आंदोलन एक विरोधाभास को भी जन्म देते हैं कि एक अच्छी पैदावार के बावज़ूद भी किसान ऐसे उग्र-आंदोलन करने पर क्यों उतारू हैं? लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि बम्पर फसल के बाद कीमतों में गिरावट उपभोक्ताओं के लिये तो एक अच्छी बात हो सकती है, लेकिन किसानों के लिए नहीं।

समस्या क्या है?

  • भारतीय कृषि के साथ समस्या यह है कि हम आज भी 1970 के दशक की हरित क्रांति के साथ चिपके हुए हैं जो मुख्य रूप से एक चावल और गेहूं की क्रांति मानी जाती है, क्योंकि इसने भारतीय कृषि की दो तिहाई फसलों, दाल और मोटे अनाजों की उपेक्षा की है।
  • इस क्रांति के बारे में कुछ भी ‘ग्रीन’ नहीं है, क्योंकि इसने एक तरफ कृषि में अस्थिरता को बढ़ावा दिया तो दूसरी तरफ पर्यावरणीय संकट पैदा किया। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर उपयोग ने हमारी मिट्टी और पानी पर बहुत घातक  प्रभाव डाला है।
  • जल-गहन फसलों के उत्पादन ने ट्यूबवेलों द्वारा डीप ड्रिलिंग को बढ़ावा दिया हैं, जिसके कारण गंभीर जल संकट की समस्या उत्पन्न हुई और ‘वाटर लेवल’ एवं ‘पानी की गुणवत्ता’ में तेज़ी से गिरावट आई। पीने के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, पारा और यहाँ तक कि यूरेनियम की मात्र बढ़ गई है, जिसने गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दिया है। 
  • इससे भी बदतर स्थति यह है कि उत्पादन में अधिक वृद्धि प्राप्त करने के लिये किसानों द्वारा अधिक से अधिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है, फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि हुए बिना कृषि लागत में नाटकीय रूप से वृद्धि हो रही है।
  • विमुद्रीकरण के कारण किसानों के उत्पादों को खरीदने के लिये व्यापारियों के पास आवश्यक नकद की कमी हो गई थी। इस समस्या के कारण भी विभिन्न राज्यों में किसान आंदोलनों को बढ़ावा मिला।
  • किसानों का यह भी मानना है कि भरपूर कृषि उत्पादन के बावज़ूद सरकार कृषि उत्पादों के आयात को ज़ारी रखे हुए है जिससे कीमतों में और गिरावट आएगी और अंततः नुकसान किसानों को ही उठाना पड़ेगा।
  • ध्यातव्य है कि पिछले दो दशकों में लगभग तीन लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्याएँ  की हैं। 

हम किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं और आंदोलनों को दूर करने के लिये क्या-क्या  उपाय कर सकते हैं?

  • हमें अधिक से अधिक पारिस्थितिकीय कृषि या जैविक कृषि को अपनाने की आवश्यकता है। यह जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी ज़रूरी है। बड़े पैमाने पर प्रमाण मौजूद हैं कि गैर-रासायनिक कृषि एक लाभदायक विकल्प बन सकता है।
  • जैसे ही किसान सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अपनी निर्भरता कम करेंगे वैसे ही उत्पादकता से समझौता किये बिना खेती की लागत में नाटकीय रूप से कमी आ सकती है।
  • देश में पारिस्थितिकीय कृषि को बढ़ावा देने हेतु सरकार को एक व्यापक सब्सिडी पैकेज की घोषणा करनी चाहिए।
  • किसानों को सिंचाई के लिये पर्याप्त पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिये हमें सतह और भूजल दोनों के प्रबंधन में सुधार करने की आवश्यकता है। इसी को देखते हुये केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय एक ‘नए मॉडल भूजल विधेयक’ लाने की दिशा में आगे बढ़ रही है, ताकि बहुमूल्य जल-संसाधन का अनुकूलतम उपयोग किया जा सके।
  • हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निरंतर विविधीकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।  इस दिशा में पशुपालन और मत्स्य पालन जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करना एक कारगर कदम हो सकता है।
  • हमें पानी गहन, चावल और गेहूं की कृषि से ध्यान को हटाना चाहिये और कम जल आवश्यकता वाली दाल और मोटे अनाज जैसी फसलों की तरफ ध्यान देना चाहिये। उल्लेखनीय है कि ये फसलें पोषक तत्त्वों से भरपूर होती हैं, जिससे देश के गरीब तबके के लोगों की प्रोटीन संबंधी दैनिक आवश्यकताओं को भी पूरा किया जा सकता है।
  • चावल और गेंहूँ के साथ-साथ सरकार को दाल और मोटे अनाजों की भी व्यापक खरीद सुनिश्चित करनी चाहिये। एक अच्छा तरीका यह भी हो सकता है कि आंगनवाड़ी और मिड-डे मील जैसे कार्यक्रमों में दाल और मोटे अनाजों को शामिल किया जाए।
  • कृषि प्रसंस्करण उधोगों से संबंधित बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है ताकि किसानों की आय और रोज़गार दोनों बढ़ाये जा सके।
  • हमें  देश के लगभग 85 फीसदी छोटे और सीमांत किसानों की ऋण और फसल बीमा तक पहुँच  सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • हमें किसानों के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने एवं उन्हें जागरूक करने के लिये ‘किसान निर्माता संगठन’ (Farmer Producer Organisation) बनाने की आवश्यकता है ताकि किसान बाज़ारों से उचित और वास्तविक लाभ उठा सके।

निष्कर्ष
यह सही है कि हिंसा हमें कोई अच्छा रास्ता नहीं दिखा सकती, लेकिन यह कृषि-नीति में तुरंत सुधार करने की तरफ इशारा ज़रूर करती है। अगर हम चाहते हैं कि किसानों का संकट एक अतीत की बात बन जाए तो हमें एक व्यापक कृषि नीति बनाने की आवश्यकता है और ऐसी  नीति बनाते समय सभी हितधारकों को शामिल किया जाए।

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