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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तो क्या अब रोबोट्स भी देंगे टैक्स?

  • 01 Mar 2017
  • 9 min read

संदर्भ

गौरतलब है कि समूची दुनिया इस समय बदलाव के दौर से गुज़र रही है, तकनीक और प्रौद्योगिकी की विनिर्माण में इतनी भूमिका बढ़ गई है कि कहा जा रहा है कि रोबोटिक्स और 3 डी प्रिंटिंग के ज़रिये ही चौथी औद्योगिक क्रांति होने वाली है। इस संबंध में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का कहना है कि रोबोट्स अगर इंसानों की तरह नौकरी करते हैं तो उनसे भी कर्मचारियों की तरह ही टैक्स वसूलना चाहिये। बिल गेट्स के इस बयान पर चर्चा लाज़िमी है, क्योंकि पूरी दुनिया में रोबोट के इंसानों की नौकरी लेने पर बहस छिड़ी हुई है।

क्यों रोबोट्स को भी देना चाहिये टैक्स?

  • हम बात चौथी औद्योगिक क्रांति की कर रहे हैं लेकिन पूर्व की औद्योगिक क्रांतियों पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि इसने लोगों के जीवन को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित किया है और चौथी औद्योगिक क्रांति भी इससे अछूती नहीं रहने वाली है।
  • दरअसल, तकनीकी नवाचार की इस सूनामी में हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स से उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रन्तिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे।
  • ध्यातव्य है कि रोज़गार प्राप्त एक बड़ा तबका करों का भुगतान करता है जिसका देश के विकास में उपयोग किया जाता है, अतः जब रोबोट मानवों का स्थान ले रहे हों तो उन्हें कर तो देना ही चाहिये।
  • मान लिया जाए कि एक व्यक्ति 50,000 डॉलर की नौकरी एक कारखाने में कर रहा है, तो उसकी कमाई से देश आयकर तो प्राप्त करता ही है साथ में सामाजिक सुरक्षा कर आदि भी मिलता है। यदि उसका काम एक रोबोट करता है, तो उसे भी उसी स्तर पर “रोबोट टैक्स” देना चाहिये।

क्या है “रोबोट टैक्स”?

  • रोबोट्स से टैक्स वसूलने के क्रम में जो अवधारणा लाई जा रही है उसके तहत होगा यह कि प्रत्येक उद्योगपति से जो कि किसी व्यक्ति के स्थान पर रोबोट को काम पर लगाता है तो उसे उस व्यक्ति को दिये जाने वाले वेतन के अनुपात में टैक्स देना होगा, जिसे रोबोट टैक्स कहा जाएगा। प्रस्ताव तो यह है कि इस रोबोट टैक्स का वितरण सार्वभौमिक बेसिक इनकम के जैसे ही उनमें किया जाए जो रोबोट्स के आने से बेरोज़गार हो गए हैं, लेकिन इस अवधारणा को लागू करने में कई बाधाएँ भी हैं।

रोबोट टैक्स से संबंधित समस्याएँ

  • यदि रोबोट टैक्स के रूप में प्राप्त राशि का वितरण रोज़गारविहीन लोगों में किया जाए तो समस्या वितरण राशी में समय के साथ संशोधन करने को लेकर है। व्यवहारिक तौर पर देखें तो इस राशि में संशोधन तो किया ही जाना चाहिये क्योंकि जिस व्यक्ति से रोज़गार छीन गया है उसके वेतन में समय के साथ वृद्धि तो होती ही, अतः जब रोबोट ने उसका रोजगार छीन लिया है तो उसकी बढ़ती ज़रूरतों का ख्याल रखा जाए, लेकिन असली समस्या यह है कि उस राशि का निर्धारण कैसे किया जाए।
  • कहा यह जा रहा है कि रोबोट्स को प्राप्त होने वाला वेतन उस व्यक्ति को दे दिया जाए जिसकी जगह रोबोट काम कर रहा है क्योंकि रोबोट तो वेतन की मांग करेगा नहीं। यहाँ समस्या यह है कि रोबोट को कोई वेतन तो नहीं दिया जा रहा इस स्थिति में यह कैसे निर्धारित हो कि प्रभावित व्यक्ति को कितनी राशि दी जाए।
  • मान लिया जाए कि रोबोट के कार्यों से कम्पनी जितना धन-लाभ प्राप्त कर रही है उसके अनुपात में प्रभावित व्यक्ति को धन-राशि दी जाएगी, स्वाभाविक है कि कम्पनियाँ रोबोट से प्राप्त धन-लाभ को कम बताएंगी,और इस तरह से कंपनियों और प्रभावित समूहों के बीच एक कानूनी लड़ाई की स्थिति बनने की पूरी सम्भावना है।
  • विदित हो कि रोबोट टैक्स आरोपित करना सैद्धांतिक तौर पर एक दुष्कर कार्य है। रोबोट टैक्स के सन्दर्भ में कम्पियाँ यह दलील देंगी कि उन्होंने रोबोट्स के रिसर्च और अनुसंधान में बड़े पैमाने पर खर्च किया है, अतः रोबोट टैक्स देने से उनका व्यापार प्रभावित होगा।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • प्रथम दृष्टया रोबोट टैक्स की यह अवधारणा व्यवहारिक प्रतीत होती है लेकिन इससे जुड़ी हुई समस्यायों पर गौर करें तो कंपनियों से नियमित रोबोट टैक्स लेने का बजाय जैसे ही वो रोबोट्स को काम पर लगाएँ उनसे एकमुश्त राशि ले ली जाए, हालाँकि इसके लिये तमाम पहलूओं पर गौर करते हुए आवश्यक प्रावधानों का निर्माण करना होगा। हालाँकि कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जो लोग रोबोट्स की वज़ह से अपनी नौकरी खोएंगे, उन्हें किसी अन्य तरह के कार्यक्रम, ट्रेनिंग या आर्थिक मदद देना श्रेयस्कर होगा।
  • एक उपाय यह भी हो सकता है कि तकनीकों के इस बदलते दौर में लोगों को ‘फिटर’ और ‘प्लम्बर’ जैसे कार्यों के लिये प्रशिक्षित करने के बजाय उन्हें ड्रोन और रोबोट्स के कल-पुर्जे ठीक करने का कौशल दिया जाए और इस कौशल विकास की ज़िम्मेदारी हमारी शिक्षा व्यवस्था को उठानी होगी। लोगों को विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों के लिये कौशल दिया जाए और इसके लिये अवसंरचना का भी विकास किया जाए।
  • पूर्व के अनुभवों से यह ज्ञात होता है कि तकनीक के माध्यम से लोगों के जीवन में आने वाले परिवर्तनों से सर्वाधिक प्रभावित वे समूह होते हैं जो अपने कौशल क्षमता में निश्चित समय के भीतर वांछनीय सुधार लाने में असमर्थ होते हैं अतः सरकार को चाहिये की ऐसे लोगों को प्रशिक्षण के लिये पर्याप्त समय के साथ-साथ संसाधन भी उपलब्ध कराए।

निष्कर्ष

  • गौरतलब है कि अमेरिका आदि देशों में ‘रोबोट्स बनाम रोज़गार’ एक व्यापक बहस का मुद्दा है लेकिन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बात करें तो अर्थव्यवस्था में रोबोट के उपयोग के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है। हालाँकि रोबोटिक्स उद्योग का कहना है कि जिस तेजी से रोबोट बढ़ रहे हैं, यदि यह रुझान और पाँच-दस साल तक जारी रहा तो इससे भारत में रोज़गार पर असर पड़ सकता है और रोबोट की वजह से उद्योग-कारोबार में कुछ नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं। चीन कई उद्योगों में रोबोट की शक्ति के आधार पर पर ऊँचाइयाँ छू रहा है ऐसे में चीन के रोबोटों की कार्यशक्ति को पीछे छोड़ने के लिये भारतीय कामगारों का कौशल प्रदर्शन और उत्पादकता अनुपात बढ़ाए जाने के कारगर प्रयास करने होंगे। हालाँकि यदि हम रोबोट टैक्स की अवधारणा को अमल में लाते हैं तो इससे कम-से-कम अस्थायी तौर पर रोबोट इस्तेमाल की गति धीमी होगी और अन्य प्रकार के रोज़गार के लिये वित्त पोषण किया जा सकेगा। सरकारों को चाहिये की रोज़गार सृजन के मोर्चे पर  वह कंपनियों पर आँख बंद करके भरोसा करने के बजाए स्वयं उस पर नज़र रखें ताकि वंचित तबके के लिये सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
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