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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एस.सी.ओ.: भारत के लिये एक नई सीमा

  • 24 Jun 2017
  • 9 min read

संदर्भ
अस्ताना (कज़ाकिस्तान) में हुए ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) के सम्मलेन में भारत को इस संगठन का पूर्ण सदस्य चुना गया। ध्यातव्य है कि भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी इसका पूर्ण सदस्य चुना गया है। अत: भारत की औपचारिक सदस्यता के बाद चल रही बहस समाप्त हो जाती है, कि देश की विदेश नीति और सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने में यह सदस्यता कितनी उपयोगी सिद्ध होगी। वास्तव में यह संगठन भारत और चीन के संबंधों को सुधारने में टकराव की बजाय एक रचनात्मक भूमिका निभाने में मदद कर सकता है। स्वर तो ये भी उठ रहे हैं कि क्या चीनी प्रभुत्व वाले इस संगठन का भारत को सदस्य बनाना चाहिये?

भारत का पक्ष

  • बीजिंग के ‘वन बेल्ट वन रोड’ (OBOR) के फोरम के बाद अस्ताना में हुए एस.सी.ओ. के शिखर सम्मेलन से पता चलता है कि भारत और चीन के संबंधों में एक नया बदलाव आ रहा है। लेकिन इन बादलों के बीच भारत एस.सी.ओ. से मिलने वाले अवसरों का लाभ उठाने के लिये तैयार है।
  • भारत ने चीन को एस.सी.ओ. की सदस्यता के लिये समर्थन देने पर धन्यवाद व्यक्त करते हुए "शंघाई की भावना" (Shanghai Spirit) में पूर्ण विश्वास व्यक्त किया। 
  • भारत ने कहा है कि हमारे बीच (भारत-चीन)  मतभेद हैं, लेकिन यह महत्त्वपूर्ण है कि इन मतभेदों को विवाद का विषय नहीं बनने दिया जाएगा और इन्हें एक अवसर के रूप में देखा जाएगा।
  • भारत ने कहा कि वह एस.सी ओ. के साथ अपने संबंधों को और गहरा बनाने की दिशा में कार्य करेगा ताकि भारत को आर्थिक, कनेक्टिविटी और आतंकवाद का मुकाबला करने हेतु सहयोग मिल सके।
  • दोनों नेताओं ने कहा कि जहाँ कुछ मुद्दों पर चिंता है, उन पर दोनों देशों द्वारा गंभीरता से विचार किया जाएगा। (उल्लेखनीय है कि दोनों देशों ने गोवा में ‘ब्रिक्स शिखर’ सम्मेलन में इतना उत्साह नहीं दिखाया था)।
  • भारत ने ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (CPEC) के संबंध में कहा कि यह दोनों देशों के आपसी संबंधों में कोई बाधा नहीं है। दोनों नेताओं का मानना है कि जहाँ हमारे बीच मतभेद हैं, वहाँ हम उन मतभेदों को दूर करने के लिये एक ‘साझा मंच’ (Common Ground) तैयार करेंगे।
  • भारत ने कहा कि वह एस.सी.ओ. में चीन के साथ एक ‘रचनात्मक सहयोगी’ की भूमिका निभाएगा और चीन के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने में पाकिस्तान जैसे मुद्दों को बीच में नहीं आने देगा। 
  • दोनों देशों ने शंघाई के मूल उद्देश्यों जैसे - आपसी विश्वास, पारस्परिक लाभ, समानता, परामर्श, सांस्कृतिक विविधता का सम्मान और सामान्य विकास की खोज इत्यादि की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमति व्यक्त की।
  • भारत ने यह भी कहा कि एस.सी.ओ. दक्षिण एशिया में कनेक्टिविटी और समृद्धि को बढ़ावा देगा।

चीनी पक्ष

  • चीन के राष्ट्रपति ने कहा कि एस.सी.ओ. ने सदस्य देशों के आपसी विश्वास के कारण ही सभी क्षेत्रों में मज़बूत और ठोस प्रगति की है और इस विश्वास ने ही क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ाने में मदद की है।
  • एस.सी.ओ. चार्टर के तहत संयुक्त रूप से आतंकवाद को ख़त्म करना, अलगाववाद और उग्रवाद पर प्रतिक्रिया करना जैसे प्रमुख सिद्धांतों के चलते चीन के लिये पाकिस्तान की अनावश्यक मदद करना और उसका पक्ष लेना मुश्किल होगा।
  • इस सम्मलेन में ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना और भारत-चीन के मध्य तनाव के चलते चीन द्वारा भारत का ‘परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह’ (NSG) की सदस्यता के लिये समर्थन करने के संबंध में कोई संकेत नहीं दिया गया।

चिंता

  • एस.सी.ओ. का सदस्य बनाने के बाद यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि क्या भारत धीरे-धीरे चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का हिस्सा बन जाएगा? उल्लेखनीय है कि भारत एस.सी.ओ. में अकेला एक ऐसा सदस्य देश है, जिसने चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का समर्थन नहीं किया है। 

सम्मेलन की खास बात

  • अस्ताना में एस.सी.ओ. शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुटेर्स की भागीदारी (SCO के इतिहास में पहली बार) इस सम्मलेन की गंभीरता को व्यक्त करती है।
  • महासचिव ने नेताओं से जलवायु परिवर्तन पर ‘पेरिस समझौते’ को लागू करने का विशेष आग्रह किया।
  • ‘पेरिस समझौता’ एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भारत ‘वैश्विक नेतृत्व’ करने में चीन और रूस के साथ-साथ यूरोपीय संघ का समर्थन भी प्राप्त कर सकता है।
  • एस.सी.ओ. के सदस्य बनाने के बाद भारत को बिना अमेरिका के सहयोग के नए पथ पर आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हो सकता है।

भारत को संभावित लाभ

  • एस.सी.ओ. के माध्यम से भारत क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाने हेतु कार्य कर सकता है।
  • भारत के पाकिस्तान और चीन के साथ लम्बे समय से सीमा विवाद बने हुए हैं। एस.सी.ओ के माध्यम से  भारत इन देशों के साथ वार्ता कर समस्या के समाधान के लिये भी पहल कर सकता है।
  • कई वर्षों से ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) और तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) जैसी परियोजनाएँ सुरक्षा कारणों की वज़ह से बंद पड़ी हैं। भारत और पाकिस्तान के इस संगठन में शामिल होने से यह संभावना व्यक्त की जा सकती कि इन परियोजनाओं पर फिर से कार्य शुरू हो।
  • एस.सी.ओ के सभी सदस्य देशों के पास बड़े पैमाने पर खनिज और प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है। भारत के इन देशों से मज़बूत संबंध भारत के ‘ऊर्जा संकट’ (Energy Crisis ) को कम करने में सहायक सिद्ध होंगे।
  • भारत मध्य एशियाई देशों के साथ ‘आर्थिक एकीकरण’ को आगे बढ़ा सकता है, जोकि भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति’ (Connect Central Asia policy ) का एक प्रमुख उद्देश्य है।
  • मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के साथ संबंधों को बेहतर बनाया जा सकता है।
  • आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी तथा ऊर्जा सुरक्षा जैसी समस्याओं का सामना करने के लिये सदस्य देश एक ‘संयुक्त मंच’ भी बना सकते हैं।

निष्कर्ष
भारत इस मंच का उपयोग करके चीन तथा पाकिस्तान से अपने संबंधों को बेहतर बना सकता है तथा वर्षों से लंबित पड़े सीमा विवादों को सुलझा सकता है। इस मंच की सहायता से ही भारत मध्य एशियाई देशों से अपने संबंधों को और प्रगाढ़ बना सकता है और इससे भारत की ‘लुक वेस्ट नीति’ को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत को इस मंच का लाभ राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुये ही उठाना चिहिये।

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