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भारतीय राजनीति

कट्टरपंथ का नीतिगत समाधान

  • 30 Oct 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 28/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘India needs a policy solution for the problem of radicalisation’’ लेख पर आधारित है। इसमें कट्टरता की समस्या और संभव समाधानों के संबंध में चर्चा की गई है।

आईएसआई आतंकी मॉड्यूल मामले में कई संदिग्धों की हालिया गिरफ्तारी से पता चलता है कि भारत में कट्टरपंथ का खतरा व्यापक रूप से मौजूद है और उसमें तेज़ी से वृद्धि हो रही है। हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) द्वारा एक ISIS मॉड्यूल का भी भंडाफोड़ किया गया था। जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में सक्रियता के साथ इस मॉड्यूल की अखिल भारतीय उपस्थिति का पता चला। अन्वेषण से उजागर हुआ कि सदस्यों की भर्ती से लेकर चरमपंथी गतिविधियों की तैयारी और/या निष्पादन तक ऑनलाइन कट्टरता प्रसार की उल्लेखनीय भूमिका रही।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने कट्टरपंथ को सभी सदस्य देशों की सुरक्षा और बचाव के लिये सबसे बड़े ख़तरे के रूप में चिह्नित किया था। उन्होंने सदस्य देशों से अपेक्षा की थी कि वे इन चुनौतियों पर ध्यान देंगे और प्रभावी प्रतिक्रियाओं का निर्माण करेंगे। इन प्रतिक्रियाओं को मोटे तौर पर चार शीर्षकों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है—डिरेडिकलाइज़ेशन, काउंटर-रेडिकलाइज़ेशन, एंटी-रेडिकलाइज़ेशन और डिसएंगेजमेंट। इस दृष्टिकोण के अनुरूप, भारत को उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आगे बढ़ना चाहिये और संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान रखते हुए व्यवस्थित प्रतिक्रियाओं का विकास करना चाहिये।

कट्टरता के पीछे के कारक

  • व्यक्तिगत सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारक: जिसमें अलगाव एवं बहिष्करण, क्रोध एवं निराशा और अन्याय का शिकार होने की एक मज़बूत भावना जैसी शिकायतें और आवेग शामिल हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: जिसमें सामाजिक बहिष्करण, वंचना और भेदभाव का शिकार होना (वास्तविक रूप से या कथित रूप से), शिक्षा या रोजगार के सीमित अवसर आदि शामिल हैं।
  • राजनीतिक कारक: जिसमें कमज़ोर और गैर-भागीदारीपूर्ण राजनीतिक प्रणालियाँ शामिल हैं जो सुशासन और नागरिक समाज के प्रति सम्मान की कमी रखती हैं।
  • सोशल मीडिया: जो समान विचारधारा वाले चरमपंथी विचारों के लिये कनेक्टिविटी, आभासी भागीदारी और एक ईको-चैंबर प्रदान करती है और इस तरह कट्टरता के प्रसार की प्रक्रिया को तेज़ करती है।
  • धार्मिक कारक: जहाँ इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (IS) जैसे संगठनों ने विश्व भर में अपने प्रभाव की वृद्धि के लिये धर्म का इस्तेमाल किया।

भारत में कट्टरता या अतिवाद के प्रकार

  • राजनीतिक-धार्मिक अतिवाद: यह धर्म की राजनीतिक व्याख्या और धार्मिक पहचान पर कथित हमले की हिंसक तरीके से रक्षा करने के दृष्टिकोण से संबद्ध है।
    • पूरी दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये ISIS द्वारा धर्म का इस्तेमाल करना इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
  • दक्षिणपंथी अतिवाद: यह फासीवाद, जातिवाद/नस्लवाद, सर्वोच्चतावाद और अतिराष्ट्रवाद से संबद्ध कट्टरपंथ का एक रूप है।
  • वामपंथी अतिवाद: कट्टरपंथ का यह रूप मुख्य रूप से पूँजीवाद विरोधी माँगों पर केंद्रित है और सामाजिक विषमताओं के लिये उतरदायी राजनीतिक प्रणालियों में परिवर्तन का आह्वान करता है, और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये अंततः हिंसक साधनों को नियोजित करने का समर्थन करता है।

भारत में उठाए गए कुछ कदम

  • संस्थागत उपाय: गृह मंत्रालय ने नवंबर 2017 में ‘काउंटर-टेररिज्म एंड काउंटर रेडिकलाइजेशन डिवीजन’ की स्थापना की थी।
    • यह प्रभाग वृहत रूप से आतंकवाद-रोधी कानूनों के कार्यान्वयन एवं प्रशासन और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI), पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, जमात-ए-इस्लामी और सनातन संस्था जैसे कट्टरपंथी संगठनों की निगरानी पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • विधायी उपाय: UAPA अधिनियम, 1967 और NIA अधिनियम, 2008 जैसे कानून कट्टरवाद संबंधी मुद्दों को संबोधित करते हैं।
    • इसके अलावा, उच्च गुणवत्तायुक्त नकली भारतीय मुद्रा के उत्पादन या तस्करी या संचलन को आतंकी कृत्य के रूप में आपराधिक घोषित कर और आतंकवाद के लिये इस्तेमाल की जा सकने वाली किसी भी संपत्ति को आतंकी कृत्य के दायरे में लाकर आतंकी वित्तपोषण से मुकाबला करने के लिये UAPA अधिनियम, 1967 में संशोधन कर इसे और सशक्त किया गया है।

आगे की राह

  • कट्टरपंथ को परिभाषित करना: कट्टरपंथ को परिभाषित किये जाने से राज्य को ऐसे कट्टरपंथी विचारों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिये कार्यक्रमों और रणनीतियों को विकसित करने का अवसर मिलेगा, जिससे कट्टरता से प्रेरित हिंसा की समस्या का समाधान होगा।
    • कट्टरता को परिभाषित किये जाने से कार्ययोजना के कार्यान्वयन के उद्देश्य के संबंध में स्पष्टता प्रदान करने में भी मदद करेगी।
  • डी-रेडिकलाइज़ेशन रणनीतियों को युद्ध स्तर पर आगे बढ़ाना: भारत को डी-रेडिकलाइज़ेशन, काउंटर-रेडिकलाइज़ेशन और एंटी-रेडिकलाइज़ेशन रणनीतियों को अखिल भारतीय एवं अखिल विचारधारा के स्तर पर तत्परता से विकसित तथा लागू करना चाहिये।
    • इस तरह के प्रयासों को इस तथ्य का संज्ञान लेना चाहिये कि कट्टरता के विरूद्ध संघर्ष हिंसा के रूप में प्रकट होने से बहुत पहले दिमाग और दिल में शुरू हो जाता है।
    • कट्टरपंथ को रोकने या उलटने पर लक्षित किसी भी कार्यक्रम को हिंसा या हिंसा के औचित्य के बजाय हिंसा को सक्षम करने वाली वैचारिक प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • दुष्प्रचार के सीमा-पार प्रवाह पर नियंत्रण: सर्वप्रथम सीमा-पार से प्रेरित दुष्प्रचारों को रोकने के प्रयास किये जाने चाहिये।
    • रेडिकलाइज़ेशन, डी-रेडिकलाइज़ेशन और इससे संबद्ध रणनीतियों से निपटने के लिये एक सार्वभौमिक वैधानिक या नीतिगत ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये।
  • पुनर्वास के उपाय: निवारण या प्रतिकार के उपाय के रूप में गिरफ्तार और दोषी व्यक्तियों पर न केवल मुकदमा चलाकर उन्हें दंडित किया जाना चाहिये, बल्कि उनके सुधार और पुनर्वास को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • ‘काउंटर-नैरेटिव’ के विकास के माध्यम से भारत में धर्मों की समन्वित प्रकृति के प्रसार, संवैधानिक मूल्यों एवं गुणों को बढ़ावा देने और शैक्षणिक संस्थानों में खेल एवं अन्य गतिविधियों के प्रोत्साहन के माध्यम से युवाओं को मुख्यधारा में शामिल किये जाने का प्रयास किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

इसके साथ ही, यह समझना आवश्यक है कि कट्टरता अपने आप में एक आवश्यक बुराई नहीं है, बल्कि यह इसके संदर्भ के आधार पर एक सकारात्मक या नकारात्मक विशेषता प्राप्त करती है। पारंपरिक सोच से महज विचलन मात्र को दंडित नहीं किया जाना चाहिये।

कट्टरता तभी समस्याजनक बनती है जब उसमें हिंसा की ओर ले जाने की प्रवृत्ति हो। इस प्रकार की कट्टरता पर नियंत्रण करना हमारी प्रमुख चुनौती है।

कट्टरता की प्रक्रिया के साथ-साथ इसकी विशेषताओं पर एक सूक्ष्म समझ विकसित कर इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने की कार्ययोजना विकसित की जानी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: 'कट्टरता की वृद्धि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये एक बड़ा ख़तरा है।' इस कथन के आलोक में संवैधानिक मूल्यों के संबंध में किए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये।

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