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भारतीय अर्थव्यवस्था

गिग इकोनॉमी के सामाजिक सुरक्षा संजाल का परीक्षण

  • 16 Jun 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 13/06/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Social Security to Gig Workers” लेख पर आधारित है। इसमें ‘गिग इकॉनमी वर्कर्स’ को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता और इसे सुनिश्चित करने की राह की प्रमुख चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स:

गिग इकोनॉमी, सामाजिक सुरक्षा सहिंता 2020, कर्मचारी भविष्य निधि, नीति आयोग, डिजिटल इकोनॉमी

मेन्स:

गिग वर्कर्स और सामाजिक सुरक्षा चुनौती, गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करना

डिजिटल युग में व्यापक डिजिटलीकरण के प्रसार ने गिग इकोनॉमी (Gig Economy) को अभूतपूर्व ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया है, जहाँ वाणिज्यिक परिदृश्य स्थायी रूप से रूपांतरित हो गया है। चूँकि तकनीकी प्रगतियों ने लोगों के जुड़ने, उपभोग करने और सृजन करने के तरीके को व्यापक रूप से बदल दिया है, कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था में रोज़गार के परिदृश्य को व्यापक रूप से संकटपूर्ण बना दिया, जहाँ पारंपरिक उद्योग असंतुलित होने लगे।

इस अराजकता के बीच गिग इकॉनमी का उभार उम्मीद की एक किरण के रूप में हुआ, जो तेज़ी से बदलती दुनिया की उभरती मांगों की पूर्ति करते हुए लोगों को स्वतंत्र रूप से अपने कौशल एवं प्रतिभा का उपयोग करने का अवसर प्रदान करती है।

हालाँकि जैसे ही कार्य का यह नया युग प्रकट हुआ, संबद्ध गिग वर्कर्स (Gig Workers) के लिये एक अहम मुद्दा भी सामने आया जो उनकी सामाजिक सुरक्षा से संबंधित है। कार्य करने के इस लचीलेपन और स्वतंत्रता— जिसने असंख्य गिग वर्कर्स को अपनी ओर आकर्षित किया, की एक कीमत भी चुकानी पड़ी जहाँ वे उन पारंपरिक सुरक्षा जालों (safety nets) से काफी हद तक वंचित हो गए जिनके लाभ उनके समकक्ष कामगारों को प्राप्त होते हैं।

जैसे-जैसे गिग इकॉनमी का विकास होता जा रहा है, इससे संबद्ध कामगारों की भलाई सुनिश्चित करने के लिये एक स्थायी समाधान की खोज भी वृहत रूप से व्यक्तियों और समाज दोनों के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय बनती जा रही है।

गिग इकॉनमी और गिग वर्कर:

  • गिग इकॉनमी: गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें सामान्यतः अस्थायी कार्य अवसर मौजूद होते हैं और विभिन्न संगठन अल्पकालिक संलग्नताओं के लिये स्वतंत्र कामगारों के साथ अनुबंध करते हैं।
  • गिग वर्कर: वह व्यक्ति जो गिग कार्य व्यवस्था में भाग लेता है या कार्य करता है और पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के बाहर ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है।

भारत में गिग इकॉनमी का परिदृश्य: 

  • विकास परिदृश्य:
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार भारत फ्लेक्सी स्टाफिंग (flexi staffing) या गिग वर्कर्स के लिये विश्व के सबसे बड़े देशों में से एक के रूप में उभरा है।
    • गिग इकॉनमी पर नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यह लगभग 7.7 मिलियन कामगारों को रोज़गार प्रदान करती है, जिनकी संख्या वर्ष 2029-30 तक बढ़कर 23.5 मिलियन हो जाएगी। यह देश में कुल आजीविका का लगभग 4% होगा।
    • वर्तमान में गिग वर्क का लगभग 31% भाग निम्न-कुशल नौकरियों से (जैसे कैब ड्राइविंग एवं फूड डिलीवरी), 47% मध्यम-कुशल नौकरियों से (जैसे प्लंबिंग एवं सौंदर्य सेवाएँ) और 22% उच्च-कुशल नौकरियों से (जैसे ग्राफिक डिज़ाइन एवं ट्यूटरिंग) से संबंधित है।
  • सामाजिक सुरक्षा - एक प्रमुख मुद्दा:
    • अस्पष्ट रोज़गार स्थिति के कारण गिग वर्कर्स प्रायः सामाजिक सुरक्षा और श्रम विधान के दायरे से बाहर हो जाते हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा और अन्य बुनियादी श्रम अधिकार (जैसे न्यूनतम वेतन, कार्य घंटे की सीमा आदि) ‘नियोजित’ या ‘कर्मचारी’ (employee) होने के दर्जे पर आश्रित होते हैं। गिग वर्कर्स का स्वतंत्र अनुबंधकर्ता होना उन्हें इस तरह के लाभ और कानूनी सुरक्षा पाने से अपवर्जित कर देता है।
  • सरकार की प्रमुख पहलें:
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता (Code on Social Security), 2020) में ‘गिग इकॉनमी’ पर एक अलग खंड शामिल है और यह गिग नियोक्ताओं (gig employers) पर दायित्व लागू करती है कि वे सरकार के नेतृत्व वाले एक बोर्ड द्वारा प्रबंधित सामाजिक सुरक्षा कोष (Social Security Fund) में योगदान करें।
    • वेतन संहिता (Code on Wages), 2019 संगठित एवं असंगठित क्षेत्र, दोनों में सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन और निम्न वेतन सीमा (floor wage) का उपबंध करती है।

गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना क्यों आवश्यक है?

  • आर्थिक सुरक्षा: इस क्षेत्र की ‘मांग-आधारित’ प्रकृति के परिणामस्वरूप रोज़गार सुरक्षा के अभाव की स्थिति बनती है और आय निरंतरता से संबद्ध अनिश्चितता के कारण यह और भी तर्कसंगत है कि उन्हें बेरोज़गारी बीमा, विकलांगता कवरेज और सेवानिवृत्ति बचत कार्यक्रमों जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान किये जाएँ।
  • अधिक उत्पादक कार्यबल: नियोक्ता-प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा और अन्य स्वास्थ्य देखभाल लाभों तक पहुँच का अभाव गिग वर्कर्स को अप्रत्याशित चिकित्सा खर्चों के प्रति संवेदनशील बनाता है। उनके स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्राथमिकता देने से एक स्वस्थ और अधिक उत्पादक कार्यबल का निर्माण हो सकेगा।
  • अवसरों की समता: पारंपरिक रोज़गार सुरक्षा से अपवर्जन असमानता पैदा करती है, जहाँ गिग वर्कर्स को शोषणकारी कार्य दशाओं और अपर्याप्त मुआवजे का सामना करना पड़ता है। सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने से एकसमान अवसर का निर्माण होगा।
  • दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा: नियोक्ता-प्रायोजित सेवानिवृत्ति योजनाओं के बिना गिग वर्कर्स अपने भविष्य के लिये पर्याप्त बचत कर सकने में अक्षम हो सकते हैं। गिग वर्कर्स को सेवानिवृत्ति के लिये बचत करने में सक्षम बनाने से उनके लिये भविष्य की वित्तीय कठिनाई और सार्वजनिक सहायता कार्यक्रमों पर निर्भर होने का जोखिम कम होगा।

गिग कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • वर्गीकरण: गिग क्षेत्र की प्रकृति गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान कर सकने को मुश्किल बनाती है। स्वरोज़गार और निर्भर-रोज़गार के बीच की धुंधली सीमाएँ और कई फर्मों के लिये कार्य कर सकने या अपनी इच्छा से नौकरी छोड़ सकने की स्वतंत्रता, गिग वर्कर्स के प्रति कंपनी दायित्वों की सीमा निर्धारित करना कठिन बना देती है।
  • अतिरिक्त लचीलापन: गिग इकॉनमी को इसके लचीलेपन के लिये जाना जाता है, जहाँ कामगारों को यह तय करने की अनुमति मिलती है कि वे कब, कहाँ और कितना कार्य करें। इस लचीलेपन को समायोजित कर सकने और गिग वर्कर्स की विविध आवश्यकताओं को पूरा कर सकने वाले सामाजिक सुरक्षा लाभों को डिज़ाइन करना एक जटिल कार्य है।
  • वित्त्पोषण और लागत वितरण: पारंपरिक सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ नियोक्ता और कर्मचारी के योगदान पर निर्भर करती हैं, जहाँ नियोक्ता आमतौर पर लागत के एक उल्लेखनीय भाग का वहन करते हैं। गिग इकॉनमी, जहाँ कर्मचारी प्रायः स्व-नियोजित होते हैं, के लिये एक उपयुक्त वित्तपोषण तंत्र की पहचान करना जटिल हो जाता है।
  • समन्वय और डेटा साझाकरण: विभिन्न सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिये गिग वर्कर्स के आय अर्जन, योगदान एवं पात्रता का सटीक आकलन करने के लिये गिग प्लेटफॉर्म, सरकारी एजेंसियों एवं वित्तीय संस्थानों के बीच कुशल डेटा साझाकरण और समन्वयन आवश्यक है। लेकिन चूँकि गिग वर्कर्स प्रायः कई प्लेटफॉर्म या क्लाइंट्स के लिये कार्य करते हैं, जिससे इस संदर्भ में समन्वय करना और उचित कवरेज सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • शिक्षा और जागरूकता: कई गिग वर्कर्स सामाजिक सुरक्षा लाभों के संबंध में अपने अधिकारों और पात्रता से अनभिज्ञ भी हो सकते हैं। इनकी जागरूकता बढ़ाना और सामाजिक सुरक्षा, पात्रता मानदंड एवं आवेदन प्रक्रिया के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये उपाय:

  • CSS 2020 को लागू करना: हालाँकि सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) में गिग वर्कर्स के लिये उपबंध मौजूद हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों द्वारा इस संदर्भ में नियमों को तैयार किया जाना अभी शेष है और बोर्ड की स्थापना के संबंध में भी अधिक कुछ नहीं किया गया है। सरकार को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिये।
    • यू.के. ने गिग वर्कर्स को ‘वर्कर्स’ (workers) के रूप में वर्गीकृत करके एक मॉडल स्थापित किया है जो नियोजित (employees) और स्व-नियोजित (self-employed) के बीच की एक श्रेणी है। यह वर्गीकरण उनके लिये न्यूनतम वेतन, सवेतन अवकाश, सेवानिवृत्ति लाभ योजना और स्वास्थ्य बीमा सुरक्षित करता है।
    • इसी प्रकार इंडोनेशिया में गिग वर्कर्स दुर्घटना, स्वास्थ्य और मृत्यु बीमा के पात्र हैं। भारत इन उदाहरणों का अनुकरण कर सकता है।
  • नियोक्ता उत्तरदायित्वों का विस्तार: गिग वर्कर्स के लिये ठोस समर्थन उन गिग कंपनियों की ओर से होना चाहिये जो इस दक्ष एवं निम्न लागत वाली कार्यव्यवस्था से लाभान्वित होती हैं। जबकि लोकप्रिय चलन यह रहा है कि गिग वर्कर्स को स्व-नियोजित या स्वतंत्र अनुबंधकर्ता के रूप में वर्गीकृत किया जाए, व्यवहार्यतः यह उचित नहीं भी हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, कई कंपनियाँ विभिन्न प्रदर्शन-नियंत्रण उपायों का उपयोग करती हैं जो गिग वर्कर्स को ग्राहकों के साथ प्रत्यक्ष अनुबंध में प्रवेश से अवरुद्ध करती हैं। ऐसे मामलों में उन्हें एक नियमित कर्मचारी के समान लाभ प्रदान किया जाना चाहिये।
  • व्यापक स्वास्थ्य कवरेज: भारत में केवल कुछ फर्म ही ऑन-वर्क दुर्घटना बीमा प्रदान करती हैं; इसे सभी नियोक्ताओं द्वारा प्रदान किया जाना चाहिये।
    • स्वास्थ्य बीमा के संबंध में, कुछ ऐप कर्मचारियों को निर्दिष्ट तृतीय-पक्ष बीमाकर्ताओं के साथ सब्सक्रिप्शन मॉडल पर साइन अप करने के विकल्प प्रदान करते हैं। हालाँकि उनके निम्न स्वास्थ्य कवरेज स्तर को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं लगता है।
    • कामगारों को संकटपूर्ण समय या सेवानिवृत्ति के लिये बचत करने में मदद करना भी कंपनियों द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिये। ऐसा करने का एक तरीका यह हो सकता है कि इनके द्वारा न्यूनतम स्वैच्छिक योगदान किया जाए जो एक कॉर्पस फंड में जमा हो (जिस प्रकार बिज़नेस ट्रस्ट अपने ईपीएफ का प्रबंधन करते हैं)।
  • सरकारी सहायता: सरकार को शिक्षा, वित्तीय सलाह, विधिक कार्य, चिकित्सा या ग्राहक प्रबंधन क्षेत्रों जैसे उच्च-कौशल गिग वर्क में निवेश करना चाहिये, जिससे भारतीय गिग वर्कर्स के लिये वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच को सुगम बनाया जाए।
    • इसके साथ ही, सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की ज़िम्मेदारी साझा करने हेतु निष्पक्ष एवं पारदर्शी तंत्र स्थापित करने के लिये सरकारों, गिग प्लेटफॉर्म और श्रम संगठनों के बीच सहयोग की भी आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

भारत में गिग वर्क के विनियमन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि आने वाले दशक में इसमें दस लाख से अधिक लोगों के शामिल होने की उम्मीद है। गिग वर्कर्स के लिये विनियामक ढाँचा तैयार करने में और देरी से भारत की वृद्धिशील डिजिटल इकोनॉमी और इसके कर्मियों पर असर पड़ेगा।

सरकार को गिग इकॉनमी की बारीकियों को समझने के लिये त्रिपक्षीय परामर्श करना चाहिये तथा एक उपयुक्त विधिक ढाँचा तैयार करना चाहिये जो व्यवसायों के आर्थिक विकास को गिग वर्कर्स के कल्याण के साथ संतुलित करने पर केंद्रित हो।

अभ्यास प्रश्न: वे कौन-सी प्रमुख बाधाएँ हैं जो गिग इकोनॉमी वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच बनाने और इसका अधिकतम लाभ उठाने से वंचित करती हैं? इन बाधाओं को प्रभावी ढंग से कैसे संबोधित किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न- भारत में महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकोनॉमी’ की भूमिका का परीक्षण कीजिये।

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