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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ट्रंप के बाद भारत-अमेरिका व्यापार संबंध

  • 12 Jun 2017
  • 7 min read

संदर्भ
यू.एस.ए. एक ऐसा देश है, जहाँ की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब तक चार बार यात्राएँ कर चुके हैं और जल्द ही जून के अंत में एक और यात्रा करने वाले हैं, यह डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली यात्रा होगी। दोनों देश विभिन्न विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा करेगें, विशेष रूप से व्यापार और निवेश से संबंधित, जो द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सितंबर 2014 में की गई प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिका की पहली यात्रा के दौरान एक ‘संयुक्त वक्तव्य’ जारी किया गया था। जिसमें कहा गया था कि दोनों देशों के मध्य व्यापार 2001 से अब तक पाँच गुना बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुँच गया है और यह भी कहा गया था कि इसे 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिये भविष्य में आवश्यक कदम उठाएंगे।
  • लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की मुख्यत: व्यापार से संबंधित नीति   और दृष्टिकोण दोनों में बदलाव आया है। 
  • राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ट्रंप ने जनवरी 2017 में एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर करते हुए ‘अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि’ (USTR) को निर्देश दिया कि वह टी.पी.पी.(TPP) वार्ता से अमेरिका को स्थायी रूप से अलग कर ले। उल्लेखनीय है कि टी.पी.पी. एक ‘विशाल क्षेत्रीय व्यापार समझौता’ है, जो ओबामा प्रशासन के दौरान यू.एस.ए. सहित 12 देशों द्वारा किया गया था।
  • ट्रंप ने यू.एस.टी.आर. को ये भी निर्देश दिये कि अमेरिकी उद्योग को बढ़ावा देने, अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा करने एवं मज़दूरी बढ़ाने के लिए जहाँ तक संभव हो ‘द्विपक्षीय व्यापार वार्ताएँ’ शुरू करें।
  • ट्रंप ने अपनी नई ‘ट्रेड पॉलिसी एजेंडा-2017' में कहा है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा व्यापार से संबंधित प्रत्येक कदम यू.एस.ए. में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने, विनिर्माण आधार को मज़बूत करने और कृषि और सेवा उद्योग के निर्यात का विस्तार करने के लिये किया जाएगा।
  • ट्रंप ने कहा कि इन उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति बहुपक्षीय वार्ताओं के बजाय द्विपक्षीय वार्ताओं पर ध्यान केंद्रित करके की जाएगी।
  • भारत और अमेरिका ने एफ.टी.ए. (Free Trade Agreement) के बजाय अगस्त 2009 में निवेश को बढ़ावा देने के लिये ‘द्विपक्षीय निवेश संधि’ पर बातचीत शुरू की थी।

ट्रम्प प्रशासन के समक्ष चुनौती

  • व्यापार घाटा, विशेषकर वस्तु व्यापार से संबंधित- 2000 में विनिर्मित वस्तुओं में यू.एस.ए. का समग्र व्यापार घाटा 317 अरब डॉलर था, जो 2016 में बढ़कर 648 अरब डॉलर का हो गया, जिसमें 2000 से अब तक 100% की वृद्धि हुई है। 
  • 2016 में अमेरिका का कुल व्यापार घाटा 750.1 अरब डॉलर रहा।
  • अमेरिका में लगभग 16 सालों (2000 से ) से ‘वास्तविक औसत घरेलू आय’ निम्न बनी हुई है और जनवरी-2000 से लेकर अब तक लगभग 5 लाख नौकरियों का नुकसान भी हो चुका है।
  • 2016 में अमेरिका का भारत के साथ कुल व्यापार घाटा 30.8 अरब डॉलर का रहा, जिसमें वस्तु व्यापार घाटा 24.3 अरब डॉलर का और सेवा उधोग घाटा 6.5 अरब डॉलर का है।

भारत कैसे लाभ उठाए

  • भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने हाल ही में अमेरिकी सरकार को बताया कि  2011-2015 के दौरान, अमेरिका के समग्र व्यापार घाटे में भारत का योगदान केवल 2.5% रहा है।
  • इस प्रकार समग्र अमेरिकी व्यापार घाटे में भारत का हिस्सा अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पैदा नहीं करता है।
  • अमेरिका की ‘अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट’ (AEI) के आंकड़ों के अनुसार 2016 में अमेरिका के 23 राज्यों में चीन से सर्वाधिक आयात हुआ, उसके बाद कनाडा और मैक्सिको से। दूसरी तरफ 33 यू.एस.ए. राज्यों से सबसे ज़्यादा निर्यात कनाडा को किया गया। अत: भारत का अमेरिका के 50 राज्यों के साथ अलग-अलग व्यापारिक अनुबंध करना एक प्रभावी रणनीति हो सकती है।
  • चीन ने अपनी इसी रणनीति के कारण यू.एस.ए. के राज्यों में ‘शीर्ष पाँच आयात देशों’ में जगह बनाई है। 
  • अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार देश होने के बावज़ूद भारत 2016 में अमेरिका के किसी भी राज्य के लिये न तो 'शीर्ष आयातक देश' था और न ही 'शीर्ष निर्यातक देश'। 

निष्कर्ष
भारत एवं अमेरिका के संबंध काफी पुराने हैं और भारत के विदेश व्यापार में अमेरिका एक महत्त्वपूर्ण स्थान भी रखता है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर परिस्तिथियाँ बदल रही हैं। विभिन्न टी.पी.पी. जैसे क्षेत्रीय व्यापारिक संघों का निर्माण हो रहा है। अत: बदलते परिद्रश्य में भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को फिर से मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। अगर हमें अमेरिका के साथ निर्यात को बढ़ावा देना है तो हमें भी चीन के जैसी ‘राज्यवार रणनीति’ बनानी होगी।

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