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भारत-अमेरिका सामरिक स्थिति

  • 01 Jul 2025
  • 38 min read

यह एडिटोरियल 01/07/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Clearing the fog on the state of India-US relations” लेख पर आधारित है। यह लेख भारत और अमेरिका के बीच बदलते संबंध की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि अब दोनों देशों का संबंध सिर्फ सामयिक या प्रतीकात्मक नहीं रहा, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की दिशा में अग्रसर (विशेषकर प्रौद्योगिकी, रक्षा और आर्थिक विकास के क्षेत्रों में) हो रहा है।

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु अप्रसार संधि (NPT) मानदंड, चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता,  आर्टेमिस समझौते, खनिज सुरक्षा साझेदारी, MQ-9B रीपर्स, महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा।  

मेन्स के लिये:

भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र, भारत और अमेरिका के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र।

भारत और अमेरिका के बीच संबंध पारंपरिक ढाँचे से आगे बढ़ रहे हैं, जिसमें प्रौद्योगिकी, रक्षा और आर्थिक विकास जैसे पारस्परिक रणनीतिक हितों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। हाल के संयुक्त वक्तव्य और सहयोग के लिये नए ढाँचे एक गहरी साझेदारी का संकेत देते हैं। हालाँकि, बाहरी चुनौतियों और उतार-चढ़ाव भरे आख्यानों के बावजूद, भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों में एक नया अध्याय लिखने की ज़रूरत है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में सतत्, दीर्घकालिक सहयोग पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। विकसित हो रही गतिशीलता द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाते हुए वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह समय भारत को व्यावहारिक और दूरदर्शी कूटनीति के माध्यम से अमेरिका के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करने का आह्वान करता है।

समय के साथ भारत-अमेरिका संबंध किस प्रकार विकसित हुए? 

  • प्रारंभिक वर्ष (1947-1960)- शीत युद्ध की तनावपूर्ण स्थितियाँ और वैचारिक भिन्नताएँ: स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक वर्षों में भारत ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई। हालाँकि, इस नीति के कारण भारत और अमेरिका के बीच कई बार मतभेद उत्पन्न हुए, विशेष रूप से शीत युद्ध के दौर में, जब अमेरिका ने सोवियत-विरोधी देशों को प्राथमिकता दी और भारत की तटस्थता को संदेह की दृष्टि से देखा।
    • साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिये अमेरिका ने भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ गठबंधन कर लिया, जिसके कारण दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए। 
  • 1970 का दशक- परमाणु तनाव और मतभेद: 1970 का दशक भारत-अमेरिका संबंधों के लिये एक महत्त्वपूर्ण निम्न बिंदु था, जिसका प्रमुख कारण भारत की परमाणु महत्त्वाकांक्षाएँ थीं।
    • 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसे "स्माइलिंग बुद्धा" (Smiling Buddha) नाम दिया गया। इस परीक्षण से अमेरिका नाराज़ हो गया और उसने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के प्रावधानों के तहत भारत पर प्रतिबंध लगा दिये।
    • इसके अलावा, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को समर्थन तथा बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में उसकी भागीदारी ने और अधिक तनाव उत्पन्न किया।
  • 1980 का दशक - संबंधों को सुधारने के प्रयास: 1980 के दशक में मतभेदों के बावजूद संबंधों को स्थिर करने के प्रयास किये गए। 1982 में इंदिरा गांधी की अमेरिका की राजकीय यात्रा में व्यापार और परमाणु सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए संबंधों को सुधारने की कोशिश की गई। 
    • हालाँकि, 1984 की भोपाल गैस त्रासदी और निरंतर परमाणु तनाव के कारण संबंध तनावग्रस्त रहे। 
    • वर्ष 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जहाँ भारत और अमेरिका ने सोवियत विस्तार का विरोध करने में समान आधार पाया, हालाँकि भारत की सोवियत संघ के साथ निकटता अमेरिका के लिये एक चुनौती बनी रही।
  • 1990 का दशक - शीत युद्ध के बाद संबंधों का एक नया युग: शीत युद्ध की समाप्ति और 1991 में सोवियत संघ के पतन ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ दिया। 
    • प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किये गए आर्थिक सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को बदल दिया, जिससे यह वैश्विक बाज़ार, विशेषकर अमेरिका के साथ और अधिक एकीकृत हो गई। 
    • वर्ष 1991 के खाड़ी युद्ध ने एशियाई क्षेत्र  में एक रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत में अमेरिकी रुचि की शुरुआत की।
    • इसके अतिरिक्त, वर्ष 1998 में भारत द्वारा किये गए परमाणु परीक्षण (पोखरण द्वितीय) के कारण एक बार फिर प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन इन्हें अपेक्षाकृत शीघ्र ही हटा लिया गया, जिससे आने वाले वर्षों में अधिक व्यावहारिक और सहयोगात्मक संबंधों की ओर बदलाव का संकेत मिला।
  • 2000 का दशक-रणनीतिक साझेदारी और असैन्य परमाणु समझौता: वर्ष 2000 के दशक में भारत-अमेरिका संबंधों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया, विशेष रूप से 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा के बाद, जो दो दशकों में किसी पदस्थ अमेरिकी राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी। 
    • वर्ष 2005 का अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौता द्विपक्षीय संबंधों में एक ऐतिहासिक क्षण था। 
    • इस समझौते ने भारत के साथ परमाणु सहयोग पर 30 साल के अमेरिकी प्रतिबंध को समाप्त कर दिया, भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी और परमाणु ऊर्जा एवं सुरक्षा पर सहयोग को बढ़ावा दिया। 
  • वर्ष 2010 - सामरिक और रक्षा संबंधों को मज़बूत करना: राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंध मज़बूत हुए, जिनमें रक्षा सहयोग, आतंकवाद-निरोध और आर्थिक साझेदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • वर्ष 2010 के यूएस-भारत असैन्य परमाणु समझौते के बाद रणनीतिक वार्ता हुई और वर्ष 2016 में अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में नामित किया, जिससे संयुक्त सैन्य अभ्यास सहित सैन्य सहयोग मज़बूत हुआ। 
    • एशिया-प्रशांत रणनीति में भारत का समावेश, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) में इसकी भागीदारी और प्रमुख सैन्य समझौतों (लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट, कम्युनिकेशंस कम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर, दोनों देशों के बीच रक्षा एवं रणनीतिक संरेखण को गहराते हुए दर्शाते हैं।
  • वर्ष 2020 का दशक- एक व्यापक वैश्विक साझेदारी: वर्ष 2020 के दशक में भारत और अमेरिका ने वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के प्रमुख स्तंभ के रूप में अपनी साझेदारी को मज़बूत किया है। 
    • हिंद -प्रशांत रणनीति, चीन के उदय पर साझा चिंताएँ और जलवायु परिवर्तन ने साइबर सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है। 
    • भारत आर्टेमिस समझौते और खनिज सुरक्षा साझेदारी में भी शामिल हुआ जिससे संबंध और मज़बूत हुए। 

भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं? 

  • रक्षा और सामरिक संबंध: अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में नामित किया है, जो रक्षा संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। खुफिया जानकारी साझा करने तथा सैन्य अभ्यास एवं रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में सहयोग का विस्तार हो रहा है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) भारत को संयुक्त अभियानों के दौरान वास्तविक समय डेटा साझा करने के लिये उन्नत संचार प्रौद्योगिकियों तक पहुँच प्रदान करता है।
    • वर्ष 2024 में, दोनों देशों ने MQ-9B रीपर्स के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे भारत की निगरानी क्षमताओं में वृद्धि होगी।
    • भारत चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) का हिस्सा है, जो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मालाबार जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास करता है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उनके साझा सुरक्षा हितों को दर्शाता है।

  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: भारत-अमेरिका साझेदारी तेजी से उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), अर्द्धचालक और अंतरिक्ष अन्वेषण में सहयोग द्वारा परिभाषित हो रही है। 
    • वर्ष 2023 में शुरू की जाने वाली महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (ICET) इन संबंधों को मज़बूत करने, भारत को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच प्रदान करने और दोनों देशों में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। 
    • वर्ष 2023 में, अमेरिका और भारत ने भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग में 825 मिलियन डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई, जो तकनीकी नेतृत्व में उनकी साझा रुचि को दर्शाता है।
  • आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध: वर्ष 2024-25 में, अमेरिका लगातार चौथे वर्ष भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहेगा, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 131.84 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका से भारत में कुल FDI प्रवाह 4.99 बिलियन डॉलर रहा, जिससे अमेरिका भारत के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया।
    • वर्ष 2024 में, दोनों देशों ने लघु और मध्यम उद्यमों (SME) पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें नवाचार और विकास का समर्थन करने वाले क्षेत्रों को बढ़ावा देने में आपसी रुचि पर प्रकाश डाला गया।
  • जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा सहयोग: जलवायु परिवर्तन एजेंडे में भारत और अमेरिका के बीच महत्त्वपूर्ण संरेखण (विशेष रूप से जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 साझेदारी के तहत) देखा गया है। 
    • वर्ष 2024 में शुरू किये जाने वाले स्वच्छ ऊर्जा पर अमेरिका -भारत रोडमैप का उद्देश्य 1 बिलियन डॉलर के बहुपक्षीय वित्तपोषण के साथ सुरक्षित वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना है।
    • वर्ष 2023 में, भारत-अमेरिका अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी कार्रवाई मंच (RETAP) द्वारा अत्याधुनिक ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का संचालन करते हुए प्रयोगशाला-दर-प्रयोगशाला सहयोग को बढ़ावा दिया गया।
  • आतंकवाद-रोधी और सुरक्षा सहयोग: आतंकवाद एक महत्त्वपूर्ण साझा चिंता का विषय बना हुआ है, तथा भारत और अमेरिका दोनों ही खुफिया जानकारी साझा करने, आतंकवाद-रोधी अभियानों और संयुक्त कानून प्रवर्तन प्रयासों पर मिलकर कार्य कर रहे हैं। 
    • आतंकवाद निरोध पर भारत- अमेरिका संयुक्त कार्य समूह ने नियमित बैठकें की हैं, सबसे और सबसे हालिया बैठक मार्च 2024 में हुई थी। इन बैठकों के माध्यम से दोनों देश संचालनात्मक मामलों पर रीयल-टाइम सहयोग सुनिश्चित कर रहे हैं।
    • कश्मीर में वर्ष 2019 के पुलवामा हमले के बाद, दोनों देशों ने अपने आतंकवाद-रोधी सहयोग को बढ़ाया, जिसमें FBI ने सक्रिय रूप से भारतीय अधिकारियों का समर्थन किया।
    • वर्ष 2023 में, दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय ढाँचे के तहत साइबर सुरक्षा प्रयासों का विस्तार किया, डिजिटल क्षेत्र में उभरते खतरों को संबोधित किया, आधुनिक आतंकवाद में साइबर सुरक्षा की बढ़ती प्रासंगिकता को रेखांकित किया।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण और सहयोग: भारत और अमेरिका का अंतरिक्ष अन्वेषण में सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है, दोनों देश अंतरिक्ष विज्ञान, उपग्रह प्रौद्योगिकी और मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन पर मिलकर कार्य करते हैं। 
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और नासा (NASA) के बीच नागरिक अंतरिक्ष सहयोग तेजी से विस्तार की ओर बढ़ रहा है। दोनों एजेंसियों के बीच कई संयुक्त परियोजनाएँ प्रगति पर हैं, जो आने वाले समय में वैज्ञानिक शोध, उपग्रह विकास और अंतरिक्ष अभियानों में सहयोग को और मज़बूत बनाएंगी।
      • चंद्रयान-1 मिशन, जिसे 2008 में लॉन्च किया गया था, भारत-अमेरिका सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण था। इस मिशन में नासा द्वारा विकसित उपकरणों को भी शामिल किया गया था।
    • नासा-इसरो सिंथेटिक एपरचर रडार (NISAR) उपग्रह, जिसे 2025 में लॉन्च किया जाना है, पृथ्वी अवलोकन के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा। यह विशेष रूप से आपदा प्रबंधन और जलवायु विज्ञान में सहयोग को सशक्त बनाएगा।
    • इसके अलावा, नासा के एक्सिओम मिशन-4 में इसरो के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की भागीदारी, भारत-अमेरिका के बीच अंतरिक्ष सहयोग का एक ऐतिहासिक उदाहरण है।

भारत और अमेरिका के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं? 

  • व्यापार असंतुलन और बाज़ार पहुँच: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार असंतुलन लगातार विवाद का विषय रहा है। 
    • अमेरिका ने विशिष्ट क्षेत्रों में विदेशी निवेश पर उच्च टैरिफ और प्रतिबंधों के लिये भारत की नियमित रूप से आलोचना की है, जबकि भारत हाल के प्रशासनों के तहत अमेरिकी व्यापार प्रथाओं और संरक्षणवाद से निराश है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019 में अमेरिका ने भारत द्वारा अपने बाज़ारों में "न्यायसंगत और उचित पहुँच" प्रदान करने से इनकार करने का हवाला देते हुए भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज़ (GSP) के तहत दी जाने वाली प्राथमिकता प्राप्त व्यापार स्थिति समाप्त कर दिया था।
      • इसके जवाब में भारत ने अमेरिका के 28 उत्पादों पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगा दिये, जिससे व्यापारिक तनाव और अधिक बढ़ गया।
  • रूस और रक्षा खरीद पर अमेरिका-भारत के बीच मतभेद: रूस के साथ भारत के निरंतर रक्षा संबंध दोनों देशों के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा बने हुए हैं। 
    • अमेरिका के साथ बढ़ते सैन्य सहयोग के बावजूद, भारत एस-400 मिसाइलों सहित रूसी रक्षा उपकरणों की खरीद जारी रखे हुए है, जिसके कारण अमेरिकी प्रतिबंधों (CAATSA - काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट) के तहत तनाव पैदा हो गया है।
    • इन टकरावों के बावजूद, भारत अपनी रक्षा आवश्यकताओं को प्राथमिकता दे रहा है, जिसने भारत को विविध रक्षा खरीद रणनीति बनाए रखने के लिये प्रेरित किया है।
  • डेटा गोपनीयता और डिजिटल व्यापार संबंधी चिंताएँ: अमेरिका ने भारत की डेटा गोपनीयता विधियों (विशेष रूप से व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023) के संबंध में चिंता व्यक्त की है। 
    • डेटा स्थानीयकरण संबंधी अधिनियम के प्रावधानों और गूगल, फेसबुक और अमेज़न जैसे अमेरिकी प्रौद्योगिकी दिग्गजों पर इसके संभावित प्रभाव ने टकराव पैदा कर दिया है। 
      • डेटा संप्रभुता के लिये भारत का प्रयास अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों के परिचालन लचीलेपन को चुनौती देता है, जबकि अमेरिकी सरकार भारत के प्रस्तावित कानूनों के संभावित अतिक्रमण के बारे में चिंता व्यक्त करती है।
    • इस विनियामक विचलन से सीमापार डिजिटल व्यापार बाधित होने का खतरा है और अमेरिका-भारत तकनीकी सहयोग के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार और पेटेंट विवाद: बौद्धिक संपदा (IP) अधिकार, भारत-अमेरिका संबंधों में एक प्रमुख मुद्दा रहा है। 
    • अमेरिका ने अक्सर भारत के पेटेंट कानूनों की आलोचना की है और उसका दावा है कि इससे अमेरिकी दवा कंपनियों की लाभप्रदता प्रभावित होती है। 
      • भारत का जेनरिक दवा उद्योग (जो विकासशील देशों के लिये सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराता है) अक्सर अमेरिकी फार्मास्युटिकल क्षेत्र की मज़बूत बौद्धिक संपदा संरक्षण की मांग से असहमत रहता है।
    • वर्ष 2023 में भारत को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की विशेष 301 रिपोर्ट में IP प्रवर्तन के संबंध में चिंताजनक देश के रूप में नामित किया गया था।
    • पेटेंट-मुक्त दवाओं (जिनमें एचआईवी/एड्स के लिये दवाएँ भी शामिल हैं) पर भारत का दृष्टिकोण लोक स्वास्थ्य के लिये आवश्यक माना जाता है लेकिन यह भारत को अमेरिकी दवा उद्योग के साथ विवाद में डालता है, जिसका दावा है कि पेटेंट नियमों को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता और भारत की तटस्थता: जबकि अमेरिका और भारत, हिंद-प्रशांत और वैश्विक मंच पर चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंतित हैं, वहीं अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के प्रति भारत का दृष्टिकोण अधिक सतर्क है। 
    • भारत रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है तथा किसी भी प्रत्यक्ष गठबंधन से बचना चाहता है जो उसे अमेरिका-चीन संघर्ष का हिस्सा बना सकता है। 
      • यह सावधानीपूर्वक किया गया संतुलनकारी कार्य अक्सर टकराव का कारण (विशेष रूप से बहुपक्षीय मंचों पर) बनता है, जब अमेरिका भारत पर चीन के विरुद्ध सख्त दृष्टिकोण अपनाने के लिये दबाव डालता है।
    • वर्ष 2021 में क्वाड शिखर सम्मेलन चीन का प्रत्यक्ष मुकाबला करने की तुलना में सहकारी क्षेत्रीय सुरक्षा पर अधिक केंद्रित था, जो अमेरिका के साथ बढ़ते सुरक्षा संबंधों के बावजूद, चीन के साथ समन्वय के क्रम में भारत की प्राथमिकता को दर्शाता है।
    • जैसे-जैसे अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध बढ़ता जा रहा है, भारत स्वयं को अमेरिका के साथ सामरिक संबंध बनाए रखने और चीन के साथ आर्थिक संबंध बनाए रखने के बीच फँसा हुआ पाता है, जो उसकी विदेश नीति को जटिल बनाता है।
  • H1-B वीज़ा और आव्रजन विवाद: भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव के सबसे महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक H1-B वीजा का मुद्दा है, जो अमेरिका में रोज़गार चाहने वाले भारतीय IT पेशेवरों के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • अमेरिका ने इन वीज़ा पर अक्सर कड़े नियम और सीमाएँ लागू की हैं, जिनका भारतीय श्रमिकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
    • भारत ने इन सीमाओं पर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि ये उच्च कुशल पेशेवरों के लिये आर्थिक अवसरों को प्रभावित करती हैं तथा अमेरिका में भारत के IT सेवा निर्यात की वृद्धि को बाधित करती हैं।
      • वर्ष 2017 में राष्ट्रपति ट्रंप के प्रशासन ने "अमेरिकियों से खरीदें, अमेरिकियों को कार्य पर रखें" पहल की शुरुआत की, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उन भारतीय टेक कंपनियों पर पड़ा जो H1-B वीजा धारकों पर निर्भर हैं।
    • इस वीज़ा की उपलब्धता में कमी से भारत के IT निर्यात उद्योग (जो अमेरिकी ग्राहकों पर बहुत अधिक निर्भर है) पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
  • अमेरिकी प्रतिबंध और ईरान के साथ भारत के संबंध: मध्य पूर्व में भारत के रणनीतिक हितों के कारण अक्सर अमेरिका के साथ तनाव (विशेष रूप से ईरान के साथ उसके संबंधों के संबंध में) पैदा होता है। 
    • ईरान के विरुद्ध अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने तेहरान के साथ ऊर्जा संबंध बनाए रखे हैं तथा वह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का हिस्सा रहा है जो भारत को ईरान से जोड़ता है। 
      • अमेरिका इसे ईरान पर अपने प्रतिबंधों को कमज़ोर करने के रूप में देखता है, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव पैदा होता है।
    • वर्ष 2018 में ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने के बाद, भारत ने ईरान के साथ सहयोग जारी (विशेष रूप से ऊर्जा आयात और चाबहार बंदरगाह परियोजना पर) रखा, जिसे व्यापार के लिये एक रणनीतिक गलियारे के रूप में देखा जाता है।

अमेरिका के साथ संबंध बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • वैश्विक चुनौतियों को ध्यान में रखकर सामंजस्य बनाते हुए रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करना: भारत आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और प्रौद्योगिकी जैसे वैश्विक मुद्दों पर अमेरिका के साथ सहयोग को बढ़ावा देते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर निरंतर बल दे सकता है। 
    • साझा हितों और वैश्विक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत बहुपक्षीय समाधानों की रूपरेखा निर्धारण में अपना प्रभाव बढ़ा सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि उसकी संप्रभुता का सम्मान किया जाए, साथ ही संबंधों की सहयोगात्मक प्रकृति को सुदृढ़ किया जा सके।
    • इस दृष्टिकोण से भारत को अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता की धारणा के बिना उसके साथ रचनात्मक रूप से संबंध बनाने का अवसर मिलेगा, जिससे दीर्घकालिक सह-विकास और संतुलित साझेदारी सुनिश्चित होगी।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग को बढ़ाना: भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवीकरणीय ऊर्जा और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में सह-विकास पहलों में निवेश कर अमेरिका के साथ प्रौद्योगिकी साझेदारी को और अधिक सुदृढ़ करने के लिये सक्रिय कदम उठाने चाहिये। 
    • दोनों देश संयुक्त रूप से अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की खोज कर सकते हैं, तथा इन नवाचारों को वैश्विक स्तर पर; विशेष रूप से उभरते हुए बाजारों में बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं।
  • बहुपक्षीय पहलों के माध्यम से व्यापक आर्थिक जुड़ाव: भारत इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) जैसे बहुपक्षीय व्यापार ढांचे में अधिक सक्रिय रूप से शामिल होकर अमेरिका के साथ अपनी आर्थिक साझेदारी का और अधिक विस्तार कर सकता है, जहां दोनों देशों के महत्त्वपूर्ण हित निहित हैं। 
    • आपूर्ति शृंखला एकीकरण और सीमापार निवेश के माध्यम से संबंधों को मज़बूत करने से परस्पर निर्भरता बढ़ाने में मदद मिलेगी तथा दोनों देशों की बाज़ार तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित होगी। 
    • हरित ऊर्जा, धारणीय बुनियादी ढाँचे और स्मार्ट विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अमेरिका और भारत, दोनों को शामिल करने वाली वैश्विक आर्थिक पहल की शुरुआत पर ध्यान केंद्रित कर दोनों देश साझा समृद्धि को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • साझा रक्षा क्षमताओं और सुरक्षा नवाचार के लिये प्रतिबद्धता: रक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिये, भारत को मौजूदा ढाँचे के आधार पर अमेरिका के साथ रक्षा प्रौद्योगिकियों के सह-उत्पादन और सह-विकास को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना चाहिये।
    • उन्नत निगरानी प्रणाली, साइबर सुरक्षा और स्वायत्त रक्षा प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत न केवल अपनी रक्षा क्षमताओं को मज़बूत कर सकता है बल्कि वैश्विक सुरक्षा नवाचार में भी योगदान दे सकता है। 
    • सुरक्षा के प्रति इस संयुक्त प्रतिबद्धता से सैन्य अंतर-संचालन को बढ़ावा मिलेगा तथा एक मज़बूत रणनीतिक आधार तैयार होगा।
  • सांस्कृतिक और शैक्षणिक सहयोग के लिये मानव-केंद्रित कूटनीति: भारत शैक्षिक आदान-प्रदान, अनुसंधान सहयोग और सांस्कृतिक कूटनीति में निवेश करके अमेरिका के साथ लोगों के बीच संबंधों को बढ़ा सकता है। 
    • फुलब्राइट-नेहरू फेलोशिप जैसे कार्यक्रमों का विस्तार किया जा सकता है ताकि शैक्षणिक संस्थानों में ज्ञान और नवाचार का निरंतर आदान-प्रदान हो सके।
    • सहयोगात्मक शैक्षणिक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करके (विशेष रूप से जलवायु विज्ञान) लोक स्वास्थ्य और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में, भारत और अमेरिका आपसी सम्मान और साझा ज्ञान की नींव रख सकते हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिये प्रमुख क्षेत्रों में सह-विकास हो सकेगा।
  • पारदर्शी और समावेशी वैश्विक शासन ढाँचे की वकालत: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी  वैश्विक शासन संस्थाओं में सुधार की वकालत करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकता है, जहाँ वह लंबे समय से स्थायी सीट की मांग कर रहा है।
    • अमेरिका और अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर कार्य करते हुए भारत एक समावेशी, नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा दे सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं की आवश्यकताओं को वैश्विक निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में शामिल किया जाए। 
  • सहयोगात्मक स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से जलवायु न्याय को उन्नत बनाना: भारत, अमेरिका के साथ सहयोगात्मक स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को उन्नत बनाकर (विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों में) धारणीय विकास में अग्रणी के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है।
    • संयुक्त पहल (विशेष रूप से सौर ऊर्जा क्षेत्र में) दोनों देशों को जलवायु न्याय की तत्काल वैश्विक आवश्यकता को संबोधित करते हुए अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता कर सकती है। 
    • सस्ती हरित प्रौद्योगिकियों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाकर, भारत और अमेरिका पर्यावरणीय नेतृत्व में अपने हितों को संरेखित करते हुए, कार्बन-तटस्थ भविष्य के लिये बाज़ार-संचालित समाधान तैयार कर सकते हैं।
  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल सहयोग को परिष्कृत और विस्तारित करना: चूँकि डिजिटल सुरक्षा संबंधी खतरे बढ़ते जा रहे हैं, इसलिये भारत और अमेरिका को डेटा संरक्षण, AI-संचालित रक्षा प्रणालियों एवं साइबर आतंकवाद विरोधी उपायों सहित साइबर सुरक्षा सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • भारत सुरक्षित डिजिटल बुनियादी ढाँचे में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये स्थायी संयुक्त साइबर सुरक्षा कार्यबलों की स्थापना का प्रस्ताव कर सकता है, जिससे दोनों देशों की आर्थिक संवृद्धि को लाभ होगा। 
    • साइबर सुरक्षा में यह सह-निर्भरता साझा लाभ प्रदान करेगी, जिससे दोनों राष्ट्र वैश्विक डिजिटल हथियारों की दौड़ में आगे रह सकेंगे, साथ ही प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विश्वास को सुदृढ़ कर सकेंगे।
  • व्यापक स्वास्थ्य कूटनीति को बढ़ावा देना: भारत को अमेरिका के साथ अपनी स्वास्थ्य कूटनीति को मज़बूत करने के लिये अपनी बढ़ती जैव-फार्मास्युटिकल क्षमताओं का लाभ (विशेष रूप से वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी की तैयारी जैसे क्षेत्रों में) उठाना चाहिये। 
    • संयुक्त लोक स्वास्थ्य पहलों और उभरती बीमारियों पर अनुसंधान में संलग्न होकर, दोनों देश एक मज़बूत स्वास्थ्य साझेदारी का निर्माण कर सकते हैं जिससे वैश्विक समुदाय को लाभ होगा। 
    • यह सहयोग आपसी निर्भरता को बढ़ावा देगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि दोनों देश भविष्य के वैश्विक स्वास्थ्य संकटों से निपटने के लिये बेहतर ढंग से सुसज्जित हों, जिससे साझेदारी अधिक लचीली और दूरदर्शी बनेगी।

निष्कर्ष: 

भारत-अमेरिका संबंध ऐतिहासिक तनाव से विकसित होकर एक मज़बूत रणनीतिक साझेदारी में बदल गए हैं जो रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन में आपसी सहयोग द्वारा परिभाषित हैं। जैसा कि एस. जयशंकर ने कहा है कि "भारत-अमेरिका संबंध क्रमिक अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में लगातार मज़बूत हुए हैं ", यह कथन इनकी बढ़ती परस्पर निर्भरता पर बल देता है। वैश्विक शांति और समृद्धि के लिये साझा प्रतिबद्धता के साथ यह भविष्य में और भी अधिक सहयोग के लिये तैयार हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत-अमेरिका संबंध पिछले कुछ दशकों में काफी विकसित हुए हैं, जो शीत युद्ध काल के तनावों से परे बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तित हो गए हैं। इस परिवर्तन में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा करते हुए इनके बीच सहयोग एवं टकराव के वर्तमान क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिये।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स

प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण  वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है,  जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)

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