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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विमुद्रीकरण के आलोक में लघु एवं मध्यम उद्योग की समस्याएँ

  • 11 Jan 2017
  • 8 min read

पृष्ठभूमि

  • विमुद्रीकरण की घोषणा के साथ ही इसके प्रभावों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई थी| विमुद्रीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को लेकर पिछले कुछ दिनों से लगातार बहस हो रही है| हालाँकि, इस बात पर कम ही चर्चा हुई है कि विमुद्रीकरण ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (Micro Small and Medium Enterprises -SMSEs) किस तरह प्रभावित किया है|
  • विदित हो की सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विमुद्रीकरण के पहले से ही समस्याओं का सामना कर रहे थे, ऐसे में विमुद्रीकरण ने इनके ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का कार्य किया है|
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) की समस्याएँ क्या हैं?
  • ध्यातव्य है कि विमुद्रीकरण के कारण नकदी की कमी हुई और एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों को उनके ग्राहकों से मिलने वाला भुगतान बंद सा हो गया है| फलस्वरूप एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों में मुद्रा की कमी आई है, जिसके चलते इन उद्यमों ने जिनसे ऋण लिया है उन्हें ऋण चुकाने की स्थिति में नहीं हैं|
  • विदित हो कि एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों द्वारा होने वाले उत्पादन की आपूर्ति आगे बड़े उद्योगों में की जाती है| यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों का सबसे बड़ा बकाया इन्ही बड़े उद्यमों पर है| सितम्बर 2015 के एक आँकड़े के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों की बड़े उद्योगों पर सम्पूर्ण बकाया राशि 10,000 करोड़ रुपए है; ध्यान रहे कि बकाया राशि का यह आँकड़ा पिछले वर्ष का है
  • विमुद्रीकरण के कारण एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों को अब अनौपचारिक क्षेत्र की भी मदद मिलनी बंद हो गई है क्योंकि 90 प्रतिशत से भी अधिक नकदी बैंकों में जमा हो गई है|

क्या हो आगे का रास्ता?

  • जुलाई 2016 में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों की इस समस्या की पहचान करते हुए कहा था कि एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों को बड़े उद्योगों से समय पर बकाया राशि का न मिल पाना चिंताजनक है| उनका सुझाव था कि एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों को किसी एक बड़े खरीदार पर निर्भर रहने की बजाय खुले बाज़ार में अपने दावों को विक्रय के लिये तैयार रखना चाहिये| इससे, एक तो एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों को खरीदार चुनने की स्वतन्त्रता होगी और दूसरा वे केवल उन्ही खरीदारों की तरफ रुख कर सकेंगे जिनकी बाज़ार में अच्छी साख हो| 
  • श्री राजन ने कहा कि यह सब तब होगा जब आरबीआई द्वारा लाइसेंस प्राप्त व्यापार प्राप्य व्यवस्था (Trade Recievable System) वित्तीय वर्ष 2016-17 तक शुरू हो जाए| ध्यातव्य है कि इस व्यापार प्राप्य व्यवस्था का उद्देश्य स्वचालित लेन-देन के माध्यम से छोटे से छोटे एमएसएमई के लिये नियत समय पर भुगतान उपलब्ध कराना है|
  • हालाँकि, अब तक इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया गया है| सरकार को एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना चाहिये जिससे एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों को समयानुसार भुगतान सुनिश्चित किया जा सके| 

निष्कर्ष

  • सभी प्रकार के व्‍यापार उद्यमों को अपनी नियत या कार्यकारी पूंजी आवश्‍यकताओं के लिये पर्याप्‍त धनराशि की आवश्‍यकता तो होती ही है, साथ ही, उन्‍हें उद्यम के संचालन के लिये ऋण सहायता की भी आवश्‍यकता होती है| 
  • ऋण तक अपर्याप्‍त पहुँच सूक्ष्‍म, लघु और मध्‍यम उद्यम क्षेत्र के समक्ष एक प्रमुख समस्‍या है| आम तौर पर इस प्रकार के उद्यम स्‍वयं के अंशदान से निधिकृत होते हैं, मित्रों और रिश्‍तेदारों से ऋण प्राप्‍त करते हैं साथ ही कुछ हद तक बैंक ऋण का भी उपयोग करते हैं| अधिकांश उद्यम मशीनरी, उपकरण और कच्‍ची सामग्री की खरीद तथा अपने दैनिक खर्चे को पूरा करने के‍लिये पर्याप्‍त वित्तीय संसाधनों की प्राप्ति में अक्षम होते हैं। इसका कारण यह है- उनकी कम साख और अल्‍प नियत निवेश, जिसके चलते वे उचित ब्‍याज दरों पर ऋण प्राप्‍त करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। फलस्‍वरूप उन्‍हें बड़े स्‍तर पर आंतरिक संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है|
  • सूक्ष्‍म, लघु और मध्‍यम उद्यम क्षेत्र के संदर्भ में तो ऋण की समस्‍या और भी अधिक गंभीर बन जाती है, यही कारण है कि कभी-कभार धन की कमी के कारण उन्‍हें अपने प्रचालन बंद करने पड़ते हैं| 
  • भारत के एमएसएमई क्षेत्र में उद्यमों की संख्या लगभग 51 लाख है। एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों में में लगभग 117.1 मिलियन लोग काम कर रहे हैं और देश के सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का योगदान  37.5 प्रतिशत है| 
  • गौरतलब है कि पिछले पांच दशकों में एमएसएमई क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बेहद जीवंत और गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है। यह क्षेत्र न केवल बड़े उद्योगों की तुलना में अपेक्षाकृत कम पूंजी लागत पर रोज़गार के अवसर प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि राष्ट्रीय आय और धन का समान वितरण भी सुनिश्चित करता है|
  • वस्तुतः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने और ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| इसके अलावा, सहायक इकाइयों के रूप में एमएसएमई बड़े उद्योगों के पूरक भी हैं| सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम एक बेहतर समाज के निर्माण में बिना किसी व्यवधान के अपना योगदान दे सकें, इसके लिये आवश्यक है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की वित्त व्यवस्था में सुधार हो|
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