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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कितना उचित है एयर इंडिया का निजीकरण?

  • 29 May 2017
  • 9 min read

संदर्भ
यद्यपि राष्ट्रीय अथवा राज्य स्वामित्व वाली एयरलाइनों का निजीकरण करने का विचार तर्कसंगत प्रतीत होता है, लेकिन कई निजीकरण अंततः असफल हो जाते हैं जिसके कारण सरकार किसी भी एयरलाइन का निजीकरण करने में संकोच करती है। विदित हो कि विश्व स्तर पर कई एयरलाइनों का निजीकरण सफल भी रहा है, जैसे- केन्या एयरवेज़ और सामोआ की पोल्नेसियन ब्लू का 20 वर्ष पहले निजीकरण किया गया था। इन दोनों एयरलाइनों से कई वर्षों तक लाभ प्राप्त हुआ तथा इन्होंने संबंधित देश में पर्यटन क्षेत्र के विकास में अमूल्य योगदान किया। परन्तु, यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि एयरलाइन निजीकरण की सफलता के पीछे कई कारक विद्यमान होते हैं जैसे- 

  • सुधारों की इच्छाशक्ति। 
  • अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा के कारण मूल्यों में कमी आती है फलस्वरूप पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होती है।
  • निजी क्षेत्र के उचित सहयोगी को ढूंढना ताकि निवेश के मामले में मुश्किलों का सामना न करना पड़े।
  • एक ऐसी इकाई की आवश्यकता जिसकी वैश्विक पहुँच हो।
  • जटिल वार्ताओं का समाधान करने के लिये उचित सहयोगी को प्राप्त करना।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • दरअसल, डेढ़ दशक बाद भारत के पास पुनः वह समय आ गया है जब वह राज्य के स्वामित्व वाली एयर इंडिया लिमिटेड से विनिवेश कर देश के विमानन क्षेत्र को गति देने में सहयोग कर सकता है। 
  • सर्वप्रथम वर्ष 1999 में तत्कालीन विनिवेश मंत्री अरुण जेटली ने जब वे एयर इंडिया से विनिवेश का प्रस्ताव रखा था।ध्यातव्य है कि विनिवेश से क्षेत्रों की संभावनाओं में बढ़ोतरी होती है।
  • उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया देश की सबसे बड़ी घरेलू और 140 विमानों वाली विमानन इकाई है तथा इसके विमान 41 अंतर्राष्ट्रीय और 72 घरेलू गंतव्यों पर उड़ान भरते हैं।
  • यह एयरलाइन भारत की अकेली सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय वाहक है जिसकी बाज़ार में हिस्सेदारी 17% है। यह घरेलू यात्री बाज़ार के 14.6% भाग पर नियंत्रण रखती है। हालाँकि इसके इस रिकॉर्ड को कई बार तोड़ा भी जा चुका है क्योंकि वर्तमान में निजी एयरलाइनें निरंतर अपनी क्षमता में विस्तार कर रही हैं।
  • वस्तुतः वर्ष 1999-2000 में विनिवेश मंत्री ने एयर इंडिया से विनिवेश करने का प्रस्ताव रखने के 18 वर्ष पश्चात जेटली पुनः उसी दुविधा में है कि सरकार इस एयरलाइन से विनिवेश करेगी अथवा नहीं?
  • उल्लेखनीय है कि 1999 से वर्तमान समय तक बाज़ार व्यवस्था में कई उतार-चढ़ाव देखे गए हैं। इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड द्वारा संचालित इंडिगो की बाज़ार में हिस्सेदारी 40% है जबकि इसके पश्चात क्रमशः जेट एयरवेज, स्पाइसजेट और गो-एयर का स्थान आता है। टाटा संस लिमिटेड सिंगापुर की एयरलाइन्स के साथ सहयोग करके ‘विस्तारा’ को लांच कर चुका है। विदित हो कि विस्तारा अगले वर्ष से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें भी भरेगी।
  • आज एयर इंडिया की बाज़ार में हिस्सेदारी मात्र 14% है। तथा इस पर 50,000 करोड़ का ऋण है। कई निजी एयरलाइनें (इंडिगो,गो एयर,स्पाइसजेट,जेट एयरवेज) ऐसी हैं जिन पर सरकार द्वारा धन का निवेश नहीं किया जाता है। परन्तु एयर इंडिया का संचालन करने के लिये सरकार को 50,000 करोड़ का निवेश करना पड़ेगा। इसमें निवेश करने की बजाय इस धन का उपयोग विद्यालयी शिक्षा हेतु किया जा सकता है। ध्यातव्य है कि यदि इस एयरलाइन की 86% उड़ानों पर निजी क्षेत्र द्वारा नियंत्रण किया जा सकता है तो इसकी 100% उड़ानों पर भी निजी क्षेत्र द्वारा नियंत्रण किया जा सकता है।
  • अब तक इस एयरलाइन ने सरकार द्वारा वर्ष 2012 में शुरू की गई ‘वित्त पुनर्निर्माण योजना’(financial restructuring plan ) के तहत प्रस्तावित 30,231 करोड़ रूपये में से 23,993 रूपये प्राप्त कर चुकी है। वर्ष 2015- 16 में इसे 3,587 करोड़ रूपये का घाटा हुआ था।
  • वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में इस वर्ष सरकार से एयर इंडिया का निजीकरण करने की सिफ़ारिश भी की गई है।
  • वित्त मंत्री के अनुसार, अगले 10-15 महीनों में नागरिक विमानन क्षेत्र में तीव्र विकास होगा। उन्होंने यह संकेत दिया कि इस क्षेत्र में अनुमानित वृद्धि से यह आवश्यक हो जाएगा कि एयर इंडिया का पूर्णतः निजीकरण कर दिया जाए। 
  • अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन संघ(The International Air Transport Association -IATA)यह अपेक्षा करता है कि भारत वर्ष 2026 तक ब्रिटेन को प्रतिस्थापित कर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाज़ार बन जाएगा। अनुमान है कि वर्ष 2035 तक भारत के विमान यात्रियों की संख्या 442 मिलियन हो जाएगी। 

वर्तमान परिदृश्य

  • वर्तमान में एयरपोर्ट को मुख्यतः सरकार द्वारा संचालित उद्यमों के रूप में विकसित किया जा रहा है परन्तु वे जनता के हित में कार्य करते हैं। 
  • पुल, सड़कें, बंदरगाह और अन्य परिवहन संबंधी प्रोजेक्ट परंपरागत रूप से जनता के हितों का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं। हालाँकि, वर्तमान में इनमें से कई सुविधाओं का निजीकरण किया जा रहा है। सड़कों और पुलों का निर्माण अब पूर्णतः निजी क्षेत्रों अथवा सार्वजनिक -निजी भागीदारी के माध्यम से किया जा रहा है। 

क्या है निजीकरण?

  • निजीकरण का तात्पर्य ऐसे कार्य से है जिसमें किसी विशेष संपत्ति अथवा कारोबार के कार्यों का स्वामित्व सरकारी संगठन से स्थानांतरित कर किसी निजी संस्था को दे दिया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें सार्वजानिक रूप से चलने वाली कंपनी का कार्यभार किसी निजी स्वामित्व वाली कंपनी को सौंप दिया जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि यदि कोई कंपनी निजी स्वामित्व वाली है तो वह सरकारी संस्थाओं से धन प्राप्त नहीं कर सकती है।

निजीकरण के लाभ

  • स्पष्ट है कि निजीकरण के कई लाभ हैं – 

→ यह सरकार के वित्तभार तथा करों से जुड़े हुए जोखिमों को समाप्त कर सकता है।
→ इसके अतिरिक्त यह किसी भी इकाई की दक्षता और प्रतिस्पर्धा में भी सुधार कर सकता है। उदाहरण के लिये, यदि एअरपोर्ट सरकारी विभाग के अंतर्गत है तो इसमें सुविधा का वाणिज्यिकरण करना कठिन हो जाएगा। निजी प्रबंधन इसे वाणिज्यिक मान्यता प्रदान कर सकता है ताकि एयरपोर्ट की लागत और राजस्व की निगरानी की जा सके, उसका उचित प्रबंधन किया जा सके अथवा उसकी लागत में कमी लायी जा सके जिससे अवश्य ही राजस्व में सुधार होगा।

निष्कर्ष
अंततः यदि बाज़ार पर एकाधिकारी शक्ति न होकर प्रतिस्पर्धा का वातावरण है तो निजीकरण एक बेहतर विकल्प हो सकता है । इस प्रकार इस स्थिति में सरकार द्वारा अत्यधिक विनियमन आवश्यक नहीं होता है अतः इससे जनता के हित सुरक्षित रहते हैं तथा उद्यमों को भी लाभ प्राप्त होता है। इसके विपरीत यदि बाज़ार में केवल एकाधिकारी शक्ति है तो किसी भी उद्यम के स्वामित्व में सरकार की भागीदारी होना आवश्यक हो जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें अत्यधिक  सरकारी विनियमन की भी आवश्यकता होती है।

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