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भारतीय अर्थव्यवस्था

सृजनात्मक अर्थव्यवस्था: अवसर और चुनौतियाँ

  • 26 Sep 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 23/09/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Creative industries can boost economies’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में सृजनात्मक उद्योगों के महत्त्व और प्रभाव के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

सृजनात्मक/रचनात्मक अर्थव्यवस्था, G20 संस्कृति मंत्री स्तरीय बैठक, ऑरेंज इकोनॉमी, IP अधिकार, राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC), राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (NID), विज्ञान की संस्कृति को बढ़ावा देने की योजना (SPoCS), भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य को बढ़ावा देने की योजना (SPIC MACAY), अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (IC) योजना, यूनेस्को का क्रिएटिव सिटी नेटवर्क।

मेन्स के लिये:

सृजनात्मक/रचनात्मक उद्योग: अर्थ, महत्त्व, लाभ, चुनौतियाँ, पहल और आगे का रास्ता।

कला, संगीत, फ़िल्म, थिएटर, त्योहार, साहित्य, शिल्प और उनसे जुड़ी बातें महज मनोरंजन के रूप नहीं हैं, बल्कि वे हमारी पहचान और जीवनानुभवों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे रोज़गार बढ़ाते हैं तथा लोगों के बीच समझ एवं समानुभूति का निर्माण करते हैं। प्रधानमंत्री ने वाराणसी में आयोजित G20 संस्कृति मंत्रियों के शिखर सम्मेलन (G20 Culture Ministers’ summit) में अपने उद्घाटन भाषण में रचनात्मक उद्योगों (Creative industries) की आर्थिक सफलता में कलाकारों और शिल्प कामगारों के योगदान की चर्चा की। G20 नेताओं की घोषणा (G20 Leaders Declaration) में भी इस बात पर बल दिया गया कि संस्कृति किस प्रकार सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की एक प्रमुख चालक है ।

रचनात्मक उद्योग से तात्पर्य:

  • रचनात्मक उद्योग या क्रिएटिव इंडस्ट्रीज (Creative industries) आर्थिक गतिविधियों का एक समूह हैं जो मूल कल्पनाओं (original ideas) पर आधारित होते हैं। इनमें ऐसे व्यवसाय शामिल हैं जो रचनात्मकता पर केंद्रित हैं, जैसे:
    • डिज़ाइन, संगीत, प्रकाशन, वास्तुकला, फ़िल्म एवं वीडियो, शिल्प या क्राफ्ट, दृश्य कला (Visual arts), फ़ैशन, टीवी एवं रेडियो, योग (Yoga), साहित्य, कंप्यूटर गेम, आदि।
  • रचनात्मक उद्योगों को सांस्कृतिक उद्योग (cultural industries) या रचनात्मक अर्थव्यवस्था (creative economy) के रूप में भी जाना जाता है।

रचनात्मक उद्योगों का महत्त्व:

  • रचनात्मक उद्योग भारत में वाणिज्यिक और सांस्कृतिक मूल्य का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • वे वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 3.1% का योगदान करते हैं और अनुमान है कि वे भारत के रोज़गार में लगभग 8% का योगदान करते हैं।
  • अनुमान बताते हैं कि भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का कुल बाज़ार आकार लगभग 36.2 बिलियन डॉलर का है।
    • वर्ष 2019 में भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का निर्यात 121 बिलियन डॉलर का रहा था।
  • प्री-कोविड अवधि में, भारत के रचनात्मक उद्योग भारत की GDP में 2.5% का योगदान कर रहे थे।
  • भारत रचनात्मक वस्तुओं एवं सेवाओं में वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहित करने वाले शीर्ष 10 देशों में भी शामिल है और यह विश्व का सबसे बड़ा फ़िल्म निर्माता देश है (वर्ष 2022 की स्थिति के अनुसार)।
  • रचनात्मक उद्योग निम्नलिखित क्षेत्रों में सहायता कर सकते हैं:
    • रोज़गार सृजन
    • आर्थिक विकास
    • पर्यटन
    • निर्यात
    • समग्र सामाजिक विकास
    • सतत मानव विकास

रचनात्मक उद्योगों के प्रमुख लाभ:

  • रोज़गार सृजन और आय सृजन: रचनात्मक उद्योग रोज़गार और आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं, विशेष रूप युवा और प्रतिभाशाली व्यक्तियों के लिये। एशियाई विकास बैंक (ADB) की वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, रचनात्मक उद्योग भारत के रोज़गार में लगभग 8% का योगदान देते हैं।
  • व्यापक अर्थव्यवस्था पर प्लवन प्रभाव: रचनात्मक उद्योग नवाचार, पर्यटन, शिक्षा और शहरी विकास सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्लवन या ‘स्पिलओवर’ प्रभाव (Spillover Effects) उत्पन्न करते हैं। ये उद्योग विभिन्न क्षेत्रों और विषयों में रचनात्मकता, प्रयोगात्मकता एवं सहकार्यता को प्रोत्साहित कर नवाचार को बढ़ावा देते हैं।
  • पर्यटन को बढ़ावा: रचनात्मक उद्योग पर्यटकों एवं आगंतुकों को आकर्षित करते हैं जो सांस्कृतिक अनुभवों से संलग्न होते हैं और सांस्कृतिक वस्तुओं एवं सेवाओं, आवास, परिवहन एवं अन्य संबंधित गतिविधियों पर व्यय करते हैं। पर्यटकों की यह आमद भारत के पर्यटन उद्योग में और व्यापक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
  • शिक्षा और कौशल विकास: रचनात्मक उद्योग शिक्षा और कौशल विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अधिगम/लर्निंग के अवसर प्रदान करते हैं और सांस्कृतिक जागरूकता एवं विविधता की संवृद्धि करते हैं। रचनात्मक शैक्षिक कार्यक्रम प्रतिभा का संपोषण करते हैं और विभिन्न कलात्मक एवं तकनीकी क्षेत्रों में कौशल विकास के लिये मार्ग प्रदान करते हैं।
  • शहरी विकास: रचनात्मक उद्योग सांस्कृतिक और सामाजिक अंतःक्रिया के लिये जीवंत और आकर्षक स्थानों का सृजन कर शहरी क्षेत्रों का पुनरुद्धार कर सकते हैं। सांस्कृतिक केंद्र, थिएटर, गैलरी और मनोरंजन ज़िले (entertainment districts) शहरों की समग्र जीवन क्षमता या ‘लिवेबिलिटी’ (livability) में योगदान करते हैं और इन क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
  • भारत की विरासत और संसाधनों को बढ़ावा देना: रचनात्मक उद्योग भारत की समृद्ध एवं विविध संस्कृति, इतिहास और परंपराओं को घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करते हैं। वे भारत के प्रचुर प्राकृतिक और मानव संसाधनों, जैसे जैव विविधता, शिल्प कौशल एवं उद्यमशीलता का भी लाभ उठाते हैं।
  • ग्लोबल ब्रांडिंग’ और ‘सॉफ्ट पावर’: भारत रचनात्मक वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात कर अपने ब्रांड मूल्य को बढ़ा सकता है और वैश्विक बाज़ार में उपभोक्ताओं की पसंद को प्रभावित कर सकता है। रचनात्मक उद्योग अन्य देशों के साथ अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान और ज्ञान साझेदारी को सुगम बनाने के रूप में राजनयिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ कर भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ को बढ़ाते हैं।

रचनात्मक उद्योग के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:

  • नीतिगत उपेक्षा: रचनात्मक उद्योग प्रायः राष्ट्रीय और राज्य की नीतियों के हाशिये पर बने रहे हैं, जहाँ उन पर प्राथमिकता से ध्यान नहीं दिया गया है। संबंधित मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय के अभाव से समस्या और भी गंभीर हो गई है।
  • अवसंरचना की कमी: परिवहन, डिजिटल नेटवर्क और बुनियादी सुविधाओं सहित अवसंरचना की अपर्याप्तता रचनात्मक वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण और कामगारों एवं उपभोक्ताओं के लिये गतिशीलता को बाधित करती है।
  • डेटा की कमी: भारत के रचनात्मक उद्योगों के आकार, प्रभाव और योगदान के संबंध में विश्वसनीय डेटा की कमी इस क्षेत्र के विकास, नीति-निर्माण और मान्यता में बाधा उत्पन्न करती है।
  • वित्तपोषण संबंधी संघर्ष: सीमित, अनियमित सार्वजनिक वित्तपोषण और जोखिम-प्रतिकूल निजी निवेश के साथ, रचनात्मक उद्योगों के लिये वित्तीय सहायता सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण है। ‘क्राउडफंडिंग’ और उद्यम पूंजी जैसे नवीन वित्तपोषण तंत्र का कम उपयोग किया गया है।
  • बौद्धिक संपदा संबंधी भेद्यता: रचनात्मक क्षेत्र को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों में पाइरेसी, जालसाजी और IP अधिकारों के उल्लंघन के खतरों का सामना करना पड़ता है। पुराने पड़ चुके कानूनी ढाँचे और जागरूकता की कमी रचनात्मक अधिकारों की सुरक्षा एवं कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं।

रचनात्मक उद्योगों के संवर्द्धन के लिये कुछ प्रमुख पहलें:

  • राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम (NFDC) सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है जो भारतीय फ़िल्म उद्योग के एकीकृत एवं कुशल विकास हेतु योजना निर्माण, प्रोत्साहन एवं आयोजन पर लक्षित है।
  • राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (NID) वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है जो डिज़ाइन के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा, अनुसंधान, परामर्श और आउटरीच सेवाएँ प्रदान करता है।
  • विज्ञान की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु योजना (Scheme for Promotion of Culture of Science- SpoCS) संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत क्रियान्वित एक योजना है जिसका उद्देश्य विज्ञान उत्सव, प्रदर्शनी, प्रतिस्पर्द्धा, कार्यशाला और कैंप आयोजन जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से आम लोगों, विशेषकर युवाओं, के बीच विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना है।
  • स्पिक मैके (SPIC MACAY) एक स्वैच्छिक आंदोलन है जो देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में औपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और भारत की समृद्ध एवं विविध सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूकता का प्रसार करने के उद्देश्य से शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य, लोक कला, शिल्प, योग, ध्यान और सिनेमा संबंधी कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग (IC) योजना सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत क्रियान्वित एक योजना है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, व्यापार मेलों, क्रेता-विक्रेता बैठकों और अन्य प्रमोशनल आयोजनों में भाग लेने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान कर MSMEs की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है।
  • यूनेस्को का ‘क्रिएटिव सिटी नेटवर्क’ एक कार्यक्रम है जो शहरों को सांस्कृतिक गतिविधियों के सृजन, उत्पादन और वितरण को सुदृढ़ करने के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के साथ-साथ नागरिक समाज को संलग्न करने के रूप में सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी करने और भागीदारियाँ विकसित करने में मदद देता है।
    • इस कार्यक्रम के तहत मुंबई को ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ फ़िल्म्स’ और हैदराबाद को ‘क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी’ के रूप में नामित किया गया है।
      • इससे पूर्व, चेन्नई एवं वाराणसी जैसे भारतीय शहरों को यूनेस्को के ‘सिटीज़ ऑफ म्यूजिक’ जबकि जयपुर को ‘सिटीज़ ऑफ क्राफ्ट्स एंड फोक आर्ट्स’ में शामिल किया गया था।

सृजनात्मक उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • भारत की सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं की विविधता एवं समृद्धि का लाभ उठाते हुए अद्वितीय और प्रामाणिक उत्पाद एवं सेवाओं का निर्माण करना जो घरेलू और वैश्विक दोनों बाज़ारों में आकर्षक हों।
    • उदाहरण के लिये, स्टोरीटेलिंग, संगीत, नृत्य, कला, डिज़ाइन और शिल्प के नए रूपों का विकास करना जो भारत के समाज और इतिहास के बहुलवाद एवं गतिशीलता को प्रकट करें।
  • रचनात्मक उत्पाद/आउटपुट की पहुँच, गुणवत्ता एवं नवीनता को संवृद्ध करने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों और मंचों के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिये, विभिन्न दर्शक वर्गों और क्षेत्रों के लिये आकर्षक एवं अंतःक्रियात्मक अनुभव के सृजन के लिये एनीमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और इमर्सिव मीडिया का उपयोग करना।
  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था में कलाकारों, उद्यमियों, शोधकर्ताओं, शिक्षकों, नीति-निर्माताओं और उपभोक्ताओं जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच सहकार्यता और सह-सृजन की संस्कृति को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिये, ऐसे नेटवर्क, हब और क्लस्टर स्थापित करना जो रचनात्मक अभ्यासकर्ताओं और उद्योगों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान, कौशल विकास एवं संसाधन साझेदारी की सुविधा प्रदान करें।
  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था में विद्यमान चुनौतियों और अंतरालों—जैसे डेटा, नीति समर्थन, बौद्धिक संपदा संरक्षण और वित्तपोषण की कमी, को दूर करना।
    • उदाहरण के लिये, रचनात्मक उद्योगों पर और अधिक अनुसंधानों का आयोजन करना, और अधिक सहायक नीतियाँ विकसित करना, IP अधिकारों के प्रवर्तन एवं जागरूकता को प्रबल करना तथा वित्तपोषण एवं निवेश के अवसरों तक अधिक पहुँच प्रदान करना।

अभ्यास प्रश्न: भारत के संदर्भ में रचनात्मक उद्योगों के विकास से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों की चर्चा कीजिये। राष्ट्रीय विकास के लिये रचनात्मक उद्योगों की पूरी क्षमता का दोहन कर सकने के उपाय भी सुझाइये।


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