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कृषि

पराली दहन को समाप्त करना

  • 30 Dec 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 22/10/2022 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Bringing an end to stubble burning” लेख पर आधारित है। इसमें पराली दहन से संबंधित मुद्दों और इनके समाधान के उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

प्राकृतिक संसाधनों के आधार को अक्षुण्ण बनाए रखते हुए बढ़ती आबादी के लिये खाद्यान्न उपलब्ध कराने की आवश्यकता भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियों में से एक बनकर उभरी है। खाद्यान्न ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत हैं और इस प्रकार खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

  • लेकिन विभिन्न फसलों की खेती से खेत में और खेत के बाहर बड़ी मात्रा में अवशेष भी उत्पन्न होते हैं। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का अनुमान है कि सालाना लगभग 500 मीट्रिक टन फसल अवशेष का उत्पादन होता है।
  • मानव श्रम की कमी, खेत से फसल अवशेषों को हटाने की उच्च लागत और फसलों की यंत्रीकृत कटाई के कारण खेतों में अवशेषों को जलाने या ‘पराली दहन’ (Stubble Burning) की समस्या गहरी होती जा रही है जो उत्तर भारत में वायु प्रदूषण में प्रमुखता से योगदान करती है।
  • इस परिदृश्य में, पराली दहन के खतरे पर नियंत्रण के लिये अभिनव समाधान खोजने की आवश्यकता है ताकि स्वस्थ, संवहनीय, प्रदूषण मुक्त कृषि अभ्यासों को बढ़ावा दिया जा सके।

पराली दहन क्या है?

  • पराली दहन (Stubble Burning) धान, गेहूँ जैसे खाद्यानों की कटाई के बाद खेत की सफाई के लिये शेष बचे अवशेषों या पराली में आग लगाने की प्रक्रिया है।
  • भारत में पराली दहन का अभ्यास मुख्यतः खेतों से धान के अवशेषों के निपटान के लिये किया जाता है ताकि गेहूँ की बुवाई की जा सके। सितंबर माह के अंत से नवंबर के आरंभ तक यह अभ्यास किया जाता है।
    • यह अभ्यास विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अक्टूबर और नवंबर माह देखा जाता है।

पराली दहन के दुष्प्रभाव

  • पर्यावरण को क्षति: पराली दहन से कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता हैं।
    • इन प्रदूषकों के आसपास के क्षेत्र में प्रसार से स्मॉग या धूम्र कोहरे की एक मोटी परत का निर्माण होता है, जो अंततः वायु की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। यह दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्राथमिक कारणों में से एक है।
  • मृदा गुणवत्ता पर प्रभाव: फसल अवशेषों के दहन से उत्पन्न ऊष्मा मृदा के तापमान को बढ़ा देती है जिससे मृदा के लाभकारी जीवों की मृत्यु हो जाती है।
    • बार-बार अवशेषों के दहन से सूक्ष्मजीव आबादी पूर्णरूपेण नष्ट हो जाती है और मृदा में नाइट्रोजन एवं कार्बन के स्तर में (जो फसल पादपों की जड़ों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं) कमी आती है।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: परिणामी वायु प्रदूषण के कारण कई तरह के स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न होते हैं, जिनमें त्वचा की जलन से लेकर तंत्रिका, हृदय एवं श्वसन संबंधी गंभीर समस्याएँ शामिल हैं।
    • अनुसंधान से पता चलता है कि प्रदूषण से संपर्क का मृत्यु दर पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उच्च प्रदूषण स्तर के कारण दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में लगभग 6.4 वर्ष की कमी आई है।
  • अपर्याप्त पराली प्रबंधन अवसंरचना: पंजाब सरकार के वर्ष 2017 के आँकड़ों के अनुसार, पराली प्रबंधन अवसंरचना की कमी के कारण किसानों ने कुल 19.7 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) फसल अवशेषों में से लगभग 15.4 मिलियन मीट्रिक टन का दहन खुले खेतों में किया।
    • किसानों द्वारा खुले में पराली दहन का अभ्यास इसलिये किया जाता है क्योंकि यह निपटान का सस्ता और तेज़ उपाय है, जिससे उन्हें अगले फसल मौसम के लिये समय पर भूमि की सफाई में मदद मिलती है।
  • कृषि के लिये सब्सिडी का नकारात्मक प्रभाव: कृषि क्षेत्र में ऋण तक आसान पहुँच के साथ-साथ बिजली और उर्वरकों के लिये सब्सिडी के कारण दशक दर दशक फसल की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है तथा इसके साथ ही पराली दहन के अभ्यास में तेज़ी आई है।

पराली दहन के बदले अन्य विकल्प

  • जैव एंजाइम-पूसा: पूसा (PUSA) नामक जैव-एंजाइम को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-Indian Agriculture Research Institute) द्वारा पराली दहन के एक समाधान के रूप में विकसित किया गया है।
    • छिड़काव करते ही यह एंजाइम 20-25 दिनों में पराली को विघटित कर खाद में बदलना शुरू कर देता है, जिससे मृदा और भी बेहतर हो जाती है।
      • यह अगले फसल चक्र के लिये जैविक कार्बन एवं मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और उर्वरक व्यय को कम करता है।
  • ‘पैलेटाइजेशन’ (Palletisation): धान के पुआल को सुखाकर गुटिका या पैलेट्स (Pellets) में रूपांतरित किया सकता है, जिसे फिर कोयले के साथ मिलाकर थर्मल पावर प्लांट और उद्योगों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे कोयले की बचत के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है।
  • ‘हैप्पी सीडर’ (Happy Seeder): पराली को जलाने के बजाय हैप्पी सीडर नामक एक ट्रैक्टर-माउंटेड मशीन का उपयोग किया जा सकता है जो धान के डंठल को काटकर ऊपर उठाती है, खाली भूमि पर गेहूँ के बीज रोपती है और फिर उसके ऊपर इन डंठलों को पलवार (mulch) की तरह बिछा देती है।
  • ‘छत्तीसगढ़ इनोवेटिव मॉडल’: यह एक अभिनव प्रयोग है जो छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किया गया है, जिसके अंतर्गत ‘गौठान’ स्थापित किया जाना शामिल है।
    • गौठान प्रत्येक गाँव में स्थापित पाँच एकड़ आकार के भूखंड होते हैं जहाँ ‘पराली दान’ के माध्यम से अनुपयोगी पराली एकत्र की जाती है और प्राकृतिक एंजाइम के साथ इनमें गाय का गोबर मिश्रित कर इन्हें जैविक खाद में बदला जाता है।
  • अन्य वैकल्पिक उपयोग: पराली का अन्य कई तरीकों से भी उपयोग किया जा सकता है—जैसे पशु चारा, कम्पोस्ट खाद, ग्रामीण क्षेत्रों में छप्पर निर्माण, पैकिंग सामग्री के लिये, कागज तैयार करने के लिये या बायोएथेनॉल तैयार करने के लिये।

आगे की राह

  • पराली प्रबंधन का पुनरुद्धार: फसल कटाई एवं पराली से खाद निर्माण हेतु तथा फसलोत्तर प्रबंधन को ज़मीनी स्तर पर विनियमित करने के लिये मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाएँ शुरू की जानी चाहिये।
    • उन किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है जो अपने पराली का पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण करते हैं।
  • नई एवं उन्नत बीज किस्मों का प्रयोग: हाल के अध्ययनों से पता चला है कि चावल और गेहूँ की नई एवं उन्नत किस्मों (विशेष रूप पूसा बासमती-1509 एवं PR-126 जैसी छोटी अवधि की फसल किस्मों) का उपयोग पराली दहन की समस्या से निपटने के एक उपाय के रूप में किया जा सकता है, क्योंकि वे जल्दी परिपक्व होते हैं और मृदा की गुणवत्ता में सुधार भी करते हैं।
  • कृषक जागरूकताः इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये व्यवहार में परिवर्तन की भी आवश्यकता है। किसानों को इस बारे में शिक्षित और सूचित किये जाने की आवश्यकता है कि पराली दहन मानव जीवन के साथ-साथ मृदा की उर्वरता को खतरा पहुँचाता है और उन्हें पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुकूल तकनीकों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत में पराली दहन के दुष्प्रभावों की चर्चा कीजिये। इस खतरे से निपटने के लिये अभिनव उपाय भी सुझाइये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रारंभिक परीक्षा

Q. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2012)

  1. कंटूर बंडिंग
  2. रिले क्रॉपिंग
  3. ज़ीरो टिलेज

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन पृथक्करण/भंडारण में मदद करता है?

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3
 (C) 1, 2 और 3
 (D) इनमें से कोई नहीं

उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

Q. चावल-गेहूँ प्रणाली (Rice-wheat System) को सफल बनाने के लिए कौन से प्रमुख कारक ज़िम्मेदार हैं? इतनी सफलता के बावजूद भारत में यह व्यवस्था कैसे अभिशाप बन गई है? (वर्ष 2020)

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