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ASER 2023: बुनियादी बातों से परे शिक्षा स्थिति का अवलोकन

  • 22 Jan 2024
  • 21 min read

यह एडिटोरियल 19/01/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “ASER 2023 report: On education, let’s listen to the teenagers” लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में प्रकाशित ‘ASER 2023: Beyond Basics’ रिपोर्ट के बारे में चर्चा की गई है, जिसमें कई चिंताओं की ओर ध्यान दिलाया गया है और भारतीय शिक्षा प्रणाली के भीतर बुनियादी अधिगम प्रतिफलों को संवृद्ध करने के उद्देश्य से अनुशंसाएँ की गई हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

ASER 2023,  NEP 2020, सोशल मीडिया, PISA (अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन के लिए कार्यक्रम), जनसांख्यिकीय लाभांशSTEM

मेन्स के लिये:

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट, रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष, रिपोर्ट में शामिल प्रमुख चिंताएँ।

पिछले 20 वर्षों में स्कूली शिक्षा और शिक्षा में बुनियादी अधिगम (लर्निंग) के संबंध में होती रही चर्चाओं के कारण भारत में नीतियों एवं प्राथमिकताओं में उल्लेखनीय बदलाव हुए हैं। हाल ही में ‘ASER 2023: बियॉन्ड बेसिक्स’ रिपोर्ट 26 राज्यों के 28 ज़िलों में आयोजित की गई, जिसमें 14-18 आयु वर्ग के 34,745 युवा शामिल थे। किशोरों पर केंद्रित यह रिपोर्ट भारत में युवजन आबादी के लिये अधिगम प्रतिफलों (learning outcomes) को बेहतर बनाने और देश के जनसांख्यिकीय लाभांश का अधिकतम लाभ उठाने के बारे में नए विचार प्रदान करती है।

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER 2023: Beyond Basics) क्या है?

  • परिचय:
    • ASER गैर-सरकारी संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी नागरिक-नेतृत्वकारी घरेलू सर्वेक्षण है जो ग्रामीण भारत में बच्चों की स्कूली शिक्षा और अधिगम की स्थिति पर एक दृष्टि प्रदान करता है।
    • बेसिक ASER 3 से 16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिये प्री-स्कूल और स्कूल में नामांकन के संबंध में सूचना एकत्र करता है और 5 से 16 आयु वर्ग के बच्चों की बुनियादी पठन (reading) एवं अंकगणित क्षमताओं को समझने के लिये उनका मूल्यांकन करता है।
    • पहली बार वर्ष 2005 में क्रियान्वित बेसिक ASER सर्वेक्षण वर्ष 2014 तक प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा था जिसे फिर वर्ष 2016 में एक वैकल्पिक-वर्ष चक्र (alternate-year cycle) में बदल दिया गया।
  • उद्देश्य:
    • वर्ष 2023 का सर्वेक्षण ग्रामीण भारत में 14 से 18 वर्ष के बच्चों पर, विशेष रूप से रोज़मर्रा के जीवन में पठन एवं गणित कौशल को लागू कर सकने की उनकी क्षमता और उनकी आकांक्षाओं पर केंद्रित था।
    • हालिया सर्वेक्षण ग्रामीण भारत में युवा विकास के विविध पहलुओं पर साक्ष्य प्राप्त करने के व्यापक उद्देश्य के साथ आयोजित किया गया, जिसका उपयोग सभी क्षेत्रों के हितधारक सूचना-संपन्न नीति एवं अभ्यास के लिये कर सकते हैं।
    • वर्ष 2023 के सर्वेक्षण ने निम्नलिखित क्षेत्रों में अन्वेषण किया:
      • गतिविधि: भारत के युवा वर्तमान में किन गतिविधियों में संलग्न हैं?
      • योग्यता: क्या उनके पास बुनियादी और व्यावहारिक पठन एवं गणित क्षमताएँ हैं?
      • डिजिटल जागरूकता और कौशल: क्या उनके पास स्मार्टफोन तक पहुँच है? वे स्मार्टफोन का उपयोग किस लिये करते हैं और क्या वे अपने स्मार्टफोन पर सरल कार्यों को पूरा करने में सक्षम हैं?
      • आकांक्षाएँ: वे क्या बनने की आकांक्षा रखते हैं? उनके आदर्श कौन हैं?

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • गतिविधि:
    • नामांकन में वृद्धि: कुल मिलाकर 14-18 आयु वर्ग के 86.8% बच्चे किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं। नामांकित नहीं होने वाले युवाओं का प्रतिशत 14 वर्षीय किशोरों के लिये 3.9% और 18 वर्षीय किशोरों के लिये 32.6% है।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण: कॉलेज स्तर के युवाओं द्वारा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने की सबसे अधिक संभावना (16.2%) दिखती है। अधिकांश युवा कम अवधि (6 माह या उससे कम) के पाठ्यक्रम ग्रहण कर रहे हैं।
  • क्षमता:
    • बुनियादी कौशल: 14-18 आयु वर्ग के लगभग 25% बच्चे अभी भी अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा 2 स्तर का पाठ धाराप्रवाह पढ़ सकने में सक्षम नहीं हैं।
      • उनमें आधे से अधिक गणित में विभाजन (3-अंकीय संख्या का विभाजन 1-अंकीय संख्या से करने) में समस्या रखते हैं। 14-18 आयु वर्ग के केवल 43.3% बच्चे ही ऐसी समस्याओं को सही ढंग से हल कर पाते हैं।
    • प्रतिदिन गणना: सर्वेक्षण में शामिल लगभग 85% युवा पैमाने का उपयोग करके लंबाई माप सकते हैं जब प्रारंभिक बिंदु 0 सेमी हो।
      • शुरुआती बिंदु को स्थानांतरित करने पर यह अनुपात तेज़ी से गिरकर 39% हो जाता है। कुल मिलाकर, लगभग 50% युवा अन्य सामान्य गणनाएँ कर सकते हैं।
    • दैनिक जीवन में अनुप्रयोग: जो बच्चे कक्षा I स्तर या उससे ऊपर का पाठ पढ़ सकते हैं, उनमें से लगभग दो-तिहाई लिखित निर्देशों को पढ़ने और समझने के आधार पर 4 में से कम से कम 3 प्रश्नों का उत्तर दे सकने में सक्षम हैं।
    • वित्तीय गणना: जो युवा घटाव या अन्य गणित क्रियाएँ कर सकते हैं, उनमें से 60% से अधिक बजट प्रबंधन कार्य करने में सक्षम हैं, लगभग 37% छूट का अनुप्रयोग कर सकते हैं, लेकिन केवल 10% ही पुनर्भुगतान की गणना कर सकते हैं।
      • हालाँकि, बालिकाएँ लगभग इस सभी कार्यों में बालकों की तुलना में खराब प्रदर्शन रखती हैं।
  • डिजिटल जागरूकता और कौशल:
    • डिजिटल पहुँच: सभी युवाओं में से लगभग 90% के पास घर में स्मार्टफोन है और वे इसका उपयोग करना जानते हैं।
      • बालकों की तुलना में बालिकाओं को स्मार्टफोन या कंप्यूटर का उपयोग करना कम आता है।
    • संचार और ऑनलाइन सुरक्षा: सर्वेक्षण में शामिल सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले सभी युवाओं में से केवल आधे ही ऑनलाइन सुरक्षा सेटिंग्स से परिचित हैं।
    • डिजिटल कार्य: 70% बच्चे किसी प्रश्न का उत्तर खोजने के लिये इंटरनेट ब्राउज़ करना जानते हैं और लगभग दो-तिहाई किसी विशिष्ट समय के लिये अलार्म सेट कर सकते हैं।
      • एक तिहाई से अधिक बच्चे दो बिंदुओं के बीच यात्रा में लगने वाले समय का पता लगाने के लिये गूगल मैप का उपयोग कर सकते हैं। इन सभी कार्यों में बालक बालिकाओं से बेहतर प्रदर्शन करते नज़र आते हैं।

रिपोर्ट में उजागर हुई प्रमुख चिंताएँ कौन-सी हैं?

सीमित शैक्षणिक सफलता से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  • बुनियादी गणना ज्ञान का निम्न स्तर: रिपोर्ट बुनियादी गणना ज्ञान (foundational numeracy) के अपर्याप्त स्तरों को उजागर करती है जो बच्चों की दिन-प्रतिदिन की गणनाओं को संभालने की क्षमता में उल्लेखनीय बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • सपाट अधिगम प्रक्षेपपथ: समय के साथ, छात्रों की शैक्षणिक प्रगति में कोई महत्त्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ है।

पाठ्यचर्या संबंधी बाधाओं से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  • तीव्र शैक्षणिक प्रतिस्पर्द्धा: भारत में माता-पिता प्रायः अपने बच्चों के लिये अतिमहत्त्वाकांक्षी आकांक्षाएँ रखते हैं। माता-पिता की ये आकांक्षाएँ तीव्र शैक्षणिक प्रतिस्पर्द्धा, व्यापक कोचिंग और परिवारों द्वारा भारी खर्च में तब्दील हो जाती हैं।
    • इन सबके कारण परीक्षा का दबाव बढ़ जाता है और परीक्षा परिणाम खराब होने पर छात्र एवं उनके परिवार गंभीर निराशा के शिकार होते हैं।
  • अतिमहत्त्वाकांक्षी पाठ्यक्रम: भारतीय शिक्षा प्रणाली में ‘अतिमहत्त्वाकांक्षी’ पाठ्यक्रम पाया जाता है जो इस बात पर ध्यान नहीं देता है कि कई छात्रों में वृहत अधिगम कमी होती है और वे ग्रेड स्तर के पाठ्यक्रम को संभाल सकने में असमर्थ होते हैं।

अस्पष्ट आकांक्षाओं से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  • अध्ययन के लिये प्रेरित नहीं: सर्वेक्षण के निष्कर्षों में बालिकाओं की तुलना में बालकों का एक बड़ा भाग 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई जारी रखने की इच्छा नहीं रखता था। चर्चा के दौरान, बालिकाओं ने कम से कम स्नातक स्तर तक पढ़ाई करने की इच्छा व्यक्त की, जबकि बालक आय अर्जन में लगना चाहते थे।
    • आश्चर्यजनक नहीं है कि वर्तमान में स्कूल या कॉलेज में नामांकित नहीं होने वाले युवाओं का अनुपात आयु वृद्धि के साथ बढ़ता जाता है (14 वर्ष के 3.9% से बढ़कर 16 वर्ष के 10.9% और 18 वर्ष के 32.6% तक)।
  • स्पष्टता की कमी: जब छात्रों के लिये अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने की बात आती है तो उनके पास स्पष्ट मार्गदर्शन की कमी होती है। कई छात्र इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि उन्हें क्या पढ़ना चाहिये, उन्हें और कितनी शिक्षा की आवश्यकता है और उन्हें किस प्रकार की नौकरियों का लक्ष्य रखना चाहिये।
    • ASER रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक पाँच में से एक युवा किसी भी ऐसे काम या नौकरी का नाम बता सकने में असमर्थ था जिसकी वह आकांक्षा रखता था।
  • कोई ‘रोल मॉडल’ नहीं: ASER रिपोर्ट में साझा किये गए आँकड़ों के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल छात्रों में से 42.5% बालकों और 48.3% बालिकाओं के पास अपने इच्छित कार्य के लिये कोई ‘रोल मॉडल’ नहीं था।

डिजिटल अभाव से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  • कम तकनीकी रुझान: इस आयु वर्ग के अधिकांश युवा कला/मानविकी विषय में नामांकित थे। कक्षा XI या इससे उच्चतर स्तर पर आधे से अधिक बच्चे कला/मानविकी विषय (55.7%) में नामांकित हैं, जिसके बाद STEM (31.7%) और वाणिज्य (9.4%) में नामांकित छात्र हैं।
    • STEM विषय में बालकों (36.3%) की तुलना में बालिकाओं (28.1%) के नामांकित होने की संभावना कम दिखी।
  • डिजिटल घटक का सतही स्तर पर उपयोग: लगभग 80% युवाओं ने बताया कि उन्होंने संदर्भ सप्ताह के दौरान मनोरंजन से संबंधित गतिविधि, जैसे फिल्म देखने या संगीत सुनने के लिये अपने स्मार्टफोन का उपयोग किया।
    • डिजिटल घटक दिलचस्प है क्योंकि एक स्तर पर यह दर्शाता है कि हर कोई जानता है कि बुनियादी चीज़ों का उपयोग कैसे करना है। लेकिन वे इसका गहराई से उपयोग नहीं कर रहे हैं; वे सतही स्तर का उपयोग कर रहे हैं, जैसे कि मुख्यतः सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना।
  • तकनीकी पहुँच में लिंग अंतराल: बालिकाओं की तुलना में बालकों के पास अपना स्मार्टफोन होने की संभावना दोगुनी से भी अधिक है और इसलिये वे डिवाइस का उपयोग करने और विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिये इसका उपयोग करने में कहीं अधिक समय व्यतीत कर रहे हैं।

आगे की राह

आरंभिक बाल्यावस्था के संघर्षों को कम करना:

  • वित्तीय सहायता और अनुदान: आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को वित्तीय सहायता एवं अनुदान प्रदान करें क्योंकि इनमें से कई छात्रों को इस आयु वर्ग के दौरान आय अर्जन एवं अपने परिवारों को आर्थिक रूप से सहयोग देने की आवश्यकता होती है और यह एक दुष्चक्र का निर्माण करता है।
  • सामाजिक मानदंडों में बदलाव लाना: बालिकाओं के लिये, विवाह की उचित आयु के संबंध में सामाजिक मानदंडों में बदलाव लाना आगे पढ़ाई जारी रखने की उनकी क्षमता का प्रमुख प्रेरक तत्व है।

अधिगम में सुधार के लिये व्यापक रणनीति:

  • लचीली शिक्षा प्रणाली: लचीलेपन को अपनाने में प्रायः दूरस्थ शिक्षा, ऑनलाइन संसाधनों और इंटरैक्टिव प्लेटफॉर्मों की सुविधा के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना शामिल होता है, जो समग्र शैक्षिक अनुभव को संवृद्ध करता है। एक साधन होना चाहिये जहाँ कोई छात्र कई प्रकार के अधिगम और आय अर्जन के अवसरों के लिये पंजीकरण करा सकता हो।
  • सुधार मूल्यांकन: NEP 2020 में 100% माध्यमिक विद्यालय नामांकन के लक्ष्य की बात की गई है, जिसे “छात्रों के नामांकन, उपस्थिति और अधिगम स्तर की सावधानीपूर्वक ट्रैकिंग के माध्यम से प्राप्त किया जाना है, ताकि उन्हें स्कूल में फिर से प्रवेश करने या आगे बढ़ने के लिये उपयुक्त अवसर प्रदान किये जा सकें।”
    • मूल्यांकन कब और कैसे हो, इसमें सुधार के माध्यम से परीक्षा के दबाव को कम किया जा सकता है।
  • ‘पैथवे लिंकिंग’: माध्यमिक विद्यालय सुधार अवधारणाओं को ‘निपुण’ (NIPUN) के साथ जोड़ना स्कूल सुधार विचारों को व्यावहारिक उपायों में बदलने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • परिणामों की सूक्ष्मता से निगरानी करना सुधार और अंततः सफलता की कुंजी होगा।

‘फ्यूचर रेडी स्टूडेंट्स’ तैयार करना:

  • आलोचनात्मक सोच विकसित करने पर ध्यान देना: आलोचनात्मक सोच और अधिक समग्र, जिज्ञासा-आधारित, खोज-आधारित, चर्चा-आधारित एवं विश्लेषण-आधारित शिक्षा के लिये अवसर प्रदान करने हेतु प्रत्येक विषय में पाठ्यचर्या की सामग्री को उसकी मूल अनिवार्यताओं तक कम किया जाना चाहिये।
  • भविष्योन्मुखी स्कूल प्रणालियाँ: छात्रों को अधिक भविष्योन्मुखी बनाने के लिये हमारी स्कूली शिक्षा प्रणाली को संशोधित करने की आवश्यकता है जो बच्चों को ऐसे रास्तों पर आगे बढ़ सकने में मदद दे और उनका मार्गदर्शन कर सके जिससे उन्हें लाभ हो तथा वे अधिक आशान्वित स्थिति में हों।
  • डिजिटल मेंटरशिप कार्यक्रम: डिजिटल मेंटरशिप कार्यक्रमों को लागू करें जो छात्रों को उनकी रुचि के क्षेत्रों में पेशेवरों और विशेषज्ञों से जोड़ सकें। इससे छात्रों को उनके भविष्य के बारे में सूचित निर्णय लेने में मार्गदर्शन प्रदान करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष:

एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में, युवाओं को आवश्यक ज्ञान, कौशल एवं अवसरों के साथ पर्याप्त रूप से सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण है, ताकि वे अपनी और अपने परिवार एवं समुदायों की उन्नति कर सकें। भारत के अपेक्षित ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ और ‘डिजिटल लाभांश’ की वास्तविक क्षमता को इन व्यापक कार्यों के माध्यम से साकार किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में युवाओं के लिये अधिगम परिणामों को संवृद्ध करने में व्याप्त प्राथमिक चुनौतियों की चर्चा कीजिये। इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये किन उपायों की अनुशंसा की जा सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम के अनुसार, राज्य में शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिये पात्र होने के लिये व्यक्ति को संबंधित राज्य शिक्षक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता रखने की आवश्यकता होगी।
  2.  RTE अधिनियम के अनुसार, प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने के लिये, एक उम्मीदवार को राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद के दिशानिर्देशों के अनुसार आयोजित शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है।
  3.  भारत में 90% से अधिक शिक्षक शिक्षा संस्थान सीधे राज्य सरकारों के अधीन हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

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