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क्या अब विदा हो जाएंगे पी-नोट्स?

  • 11 Jul 2017
  • 9 min read

वर्ष 2007 में जब शेयर बाज़ार उफान पर था तो उस दौरान घरेलू शेयर में होने वाले प्रत्येक डॉलर के विदेशी निवेश में 50 सेंट पार्टिसिपेटरी नोट्स (पी-नोट्स) के ज़रिये आया था। जैसा कि हम जानते हैं कि पी-नोट्स के तहत विदेशी उपक्रमों को स्थानीय प्राधिकरणों में पंजीकृत हुए बिना भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करने की अनुमति होती है। लेकिन, पिछले कुछ समय से कुछ ऐसी परिस्थितियाँ सामने आ रही हैं, जिनके कारण पी-नोट्स पर नियामक एजेंसियों का शिकंजा लगातार कसता जा रहा है।

क्या हैं पी-नोट्स ?

  • पी-नोट्स को पार्टिसिपेट्री नोट्स कहा जाता है। इसके ज़रिये ही विदेशी निवेशक अप्रत्यक्ष रूप में भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं। भारतीय बाज़ार में किया जाने वाला यह निवेश सेबी के पास पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस के ज़रिये किया जाता है।
  • पी-नोट्स को विदेशी निवेशकों के लिये शेयर बाज़ार में निवेश करने का दस्‍तावेज़ भी कहा जाता है। पी-नोट्स का इस्‍तेमाल ‘हाई नेटवर्क इंडीविजुअल्‍स’ (एचएनआई), हेज फंडों एवं अन्‍य विदेशी संस्‍थानों के ज़रिये किया जाता है।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो, जो निवेशक सेबी के पास पंजीकरण करवाए बिना शेयर बाज़ार में पैसा लगाना चाहते हैं वे पी-नोट्स का इस्‍तेमाल करते हैं। क्‍योंकि, निवेशकों को भारतीय शेयर बाज़ार में पी-नोट्स के ज़रिये निवेश करने में सुविधा दी जाती रही है।
  • दरअसल, विदेशी निवेशक सीधे तौर पर भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश नहीं कर सकते, बल्कि पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस के ज़रिये ही निवेश कर सकते हैं। इसके लिये निवेशकों को सेबी के पास अलग से पंजीकरण नहीं कराना पड़ता है।
  • निवेशकों को पी-नोट्स सेबी के पास पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस ही जारी करता है। ऐसे में निवेशकों को निवेश के समय अलग से पहचान बताना और सेबी को पूरा ब्यौरा देना ज़रूरी नहीं होता है।
  • विदित हो कि 1992 में सेबी ने भारतीय शेयर बाज़ार में पंजीकृत विदेशी ब्रोक्रेज़ हाउस को पी-नोट्स के ज़रिये निवेश करने की इज़ाज़तत दी थी।

पी-नोट्स से जुड़ी समस्याएँ ?

  • आमतौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर के निवेश को आकर्षित करने वाले माध्यम को नीति निर्माताओं द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, लेकिन पी-नोट्स के मामले में ऐसा नहीं है।
  • दरअसल, पी-नोट्स की प्रकृति अपारदर्शी होने के कारण प्रायः उसके दुरुपयोग का खतरा बना रहता है। खासकर पी-नोट्स के अंतिम उपयोगकर्त्ता के आसपास गोपनीयता बनी रहती है।
  • जिससे यह आशंका बनी रहती है कि पी-नोट्स के ज़रिये आने वाली रकम का संबंध कहीं राउंड ट्रिपिंग अथवा कालेधन से तो नहीं है।
  • हालाँकि विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) जिन्हें अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) कहा जाता है, के बीच पी-नोट्स की लोकप्रियता को देखते हुए इसके खिलाफ कार्रवाई करना नीति निर्माताओं के लिये हमेशा कठिन रहा है।
  • अक्टूबर 2007 में बाज़ार नियामक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पी-नोट्स पर लगाम लगाने का प्रस्ताव दिया था, जिसके बाद भारतीय शेयर बाज़ार में करीब 10 फीसदी की एक दिनी गिरावट दर्ज़ की गई थी। बहरहाल, पिछले एक दशक के दौरान सेबी ने लगातार निर्गम एवं ओडीआई (offshore derivatives instruments) से संबंधित नियमों को सख्त किया है।

न्यायपालिका का रुख

  • दरअसल, नियमों को सख्त बनाने की कवायद तब शुरू की गई, जब कालेधन पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जाँच टीम (एसआईटी) ने इस माध्यम से निवेश के प्रवाह को कहीं अधिक संतुलित बनाने की सिफारिश की।
  • टीम ने अपनी सिफारिश में बाज़ार नियामक संस्था सेबी से पी-नोट्स के असली खरीदार की पहचान और उससे होने वाले लेन-देन को सीमित करने के लिये ठोस कदम उठाने की मांग की थी।
  • हालाँकि सेबी को पी-नोट्स के असली खरीदार के बारे में जानकारी लेने का अधिकार पहले से ही है, लेकिन कई मामलों में पी-नोट्स का आरंभिक खरीदार कोई और होता है और आखिरी का खरीदार कोई और। ऐसा खासकर उन मामलों में होता है, जब पी-नोट्स का लेन-देन कई स्तरों में होता है।
  • टीम को ऐसी आशंका थी कि टैक्स चोरों के लिये भी पी-नोट्स काफी मददगार साबित हो रहा है। टीम के मुताबिक, लोग टैक्स चोरी करते हैं और फिर उसी पैसे को पी-नोट्स के ज़रिये प्रतिभूति बाज़ार में लगाकर उसे ब्लैक से व्हाइट कर लेते हैं।

सेबी एवं अन्य नियामकों द्वारा लाये गए प्रतिबन्ध एवं उनके प्रभाव

  • डेरिवेटिव्स बाज़ार से पी-नोट्स पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव के ज़रिये सेबी ने हाल में पी-नोट्स पर प्रहार किया है। बाज़ार नियामक का कहना है कि केवल हेज़िंग उद्देश्यों के लिये डेरिवेटिव्स क्षेत्र में ओडीआई (offshore derivatives instruments) जारी करने की अनुमति होनी चाहिये।
  • पी-नोट्स के खरीदारों को डेरिवेटिव्स में सौदा करने की अनुमति तभी होगी, जब वह उतने ही शेयरों की खरीदारी नकद श्रेणी में भी करें। इस पहल का मुख्य उद्देश्य इन माध्यमों के ज़रिये सट्टा कारोबार पर लगाम लगाना है। फिलहाल करीब एक चौथाई पी-नोट्स परिसंपत्ति डेरिवेटिव्स श्रेणी में है।
  • विदित हो कि वित्त वर्ष 2017-18 के आरम्भ से ही सेबी ने पी-नोट्स के हरेक खरीदार पर प्रत्येक तीन साल के लिये 1,000 डॉलर का नियामकीय शुल्क लगाने का प्रस्ताव दिया है। हालाँकि विदेशी निवेशकों को ये प्रस्ताव रास नहीं आए हैं।
  • दरअसल, प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) और निवासी भारतीयों को पी-नोट्स के ज़रिये घरेलू शेयर बाज़ार में निवेश करने की अनुमति कभी नहीं रही, लेकिन बाज़ार नियामक ने इसे कहीं अधिक पारदर्शी बनाने की कोशिश की है। सेबी बोर्ड ने ज़ोर देकर कहा है कि एनआरआई और निवासी भारतीय न तो पी-नोट्स खरीद सकते हैं और न ही उसका अंतिम लाभार्थी बन सकते हैं।

निष्कर्ष

  • विदित हो कि पिछले तीन वर्षों में सेबी ने पी-नोट्स ढाँचे में काफी व्यापक बदलाव किया था। इस सख्ती के कारण पी-नोट्स की रफ्तार सुस्त पड़ गई है। देश के कुल एफपीआई परिसंपत्ति में पी-नोट्स की हिस्सेदारी घटकर अब महज 6 फीसदी रह गई है, जोकि वर्ष 2007 में 50 फीसदी थी।
  • उपरोक्त आँकड़े चिंताजनक हैं, लेकिन इसका यह मतलब यह नहीं है कि बाज़ार तबाह होने जा रहा है। विदित हो कि विमुद्रीकरण के बाद काले धन के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई की आशंका के मद्देनज़र स्विटज़रलैड समेत दुनिया के तमाम देशों से काला धन तेज़ी से निकाला जा रहा है।
  • यदि इस काले धन की पी-नोट्स के ज़रिये शेयर बाज़ारों में आने की शुरुआत हो गई तो यह और अधिक गंभीर स्थिति का सूचक होगा। पी-नोट्स के ज़रिये निवेश, शेयर बाज़ार के लिये खतरनाक माना जाता रहा है, क्योंकि इसके ज़रिये शेयर बाज़ार में पैसा लगाने वालों की जानकारी गुप्त रहती है।
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