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विश्व खाद्य दिवस 2021

  • 19 Oct 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व खाद्य दिवस 2021

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा और संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

1945 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) खाद्य और कृषि संगठन के स्थापना दिवस की याद में हर वर्ष 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है।

  • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी की समाप्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
  • वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने खाद्य उत्पादन और खपत में बदलाव के तरीकों पर चर्चा करने के लिये पहले खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन का आयोजन किया।

World-Food-Day

प्रमुख बिंदु 

  • विश्व खाद्य दिवस के बारे में:
    • यह वैश्विक स्तर पर भूख की समस्या का समाधान करने के लिये प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
    • यह दिवस विश्व खाद्य कार्यक्रम (जिसे नोबेल शांति पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया गया था) और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष जैसे संगठनों द्वारा भी मनाया जाता है।
    • यह सतत् विकास लक्ष्य 2 (SDG 2) यानी ज़ीरो हंगर पर ज़ोर देता है।
  • आवश्यकता:
    • कोविड-19 महामारी ने इस बात को रेखांकित किया है कि खाद्य सुरक्षा की परंपरागत नीति में तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है।
      • यह प्रयास और भी प्रासंगिक है क्योंकि इसके कारण पहले से ही जलवायु परिवर्तनशीलता और चरम सीमाओं जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं किसानों का जीवन और भी कठिन हो गया है, इसके अतिरिक्त बढ़ती गरीबी के कारण मांग में कमी आदि की वजह से आपातकालीन खाद्य सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • विश्व को स्थायी कृषि-खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता है जो वर्ष 2050 तक 10 अरब लोगों को पोषण देने में सक्षम हों।
  • भारत में FAO का योगदान:
    • इसने पिछले दशकों में कुपोषण के खिलाफ भारत के प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जिसके मार्ग में कई बाधाएँ थीं।
      • कम उम्र में गर्भावस्था, शिक्षा और जानकारी की कमी, पीने के पानी तक अपर्याप्त पहुँच, स्वच्छता की कमी आदि कारणों से भारत वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" के अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने में पिछड़ रहा है, जिसकी परिकल्पना राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत की गई है। 
    • FAO ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया।
      • यह कदम पौष्टिक भोजन के सेवन को प्रोत्साहित करेगा, उसकी उपलब्धता को बढ़ाएगा तथा उन छोटे और मध्यम किसानों को लाभान्वित करेगा जो ज़्यादातर अपनी जमीन पर मोटे अनाज उगाते हैं, जहाँ पानी की समस्या है और भूमि उपजाऊ नहीं है।
  • FAO का भुखमरी सूचकांक और किसान विरोध:
    • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) 2021 में भारत फिसलकर 101वें स्थान पर आ गया है।
    • हालाँकि भारत सरकार ने FAO द्वारा इस्तेमाल किये गए चुनाव आधारित मूल्यांकन और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है।
      • भारत इस पद्धति के अवैज्ञानिक होने का दावा करता है।
    • दूसरी ओर देश के खाद्य उत्पादक (किसान) करीब एक साल से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।
      • किसान इन कानूनों को किसानों के प्रतिकूल बता रहे हैं जो भूख और पोषण से निपटने में भारत की रैंकिंग को और प्रभावित कर सकते हैं।
  • संबंधित भारतीय पहल: 
    • स्वच्छ भारत अभियान, जल जीवन मिशन तथा अन्य प्रयासों के साथ ईट राइट इंडिया और फिट इंडिया आंदोलन भारतीयों के स्वास्थ्य में सुधार करेगा एवं पर्यावरण को संतुलित करेगा।
    • महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी वाली सामान्य किस्म की फसलों की कमियों को दूर करने के लिये फसलों की 17 नई बायोफोर्टिफाइड किस्मों की शुरुआत।
      • उदाहरण: एमएसीएस 4028 गेहूंँ, मधुबन गाजर आदि।
    • खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के दायरे का विस्तार और प्रभावी कार्यान्वयन।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाए जाएँ कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में लागत की डेढ़ गुना राशि मिले, यह सरकारी खरीद के साथ-साथ देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के एक बड़े नेटवर्क का विकास।
    • भारत में अनाज की बर्बादी के मुद्दे से निपटने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन
    • सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के लक्ष्य से एक साल पहले 2022 तक भारत को ट्रांस फैट मुक्त बनाने का प्रयास कर रही है, साथ ही न्यू इंडिया @75 (भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष) के दृष्टिकोण के साथ इसका संतुलन।
      • ट्रांस फैट आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेलों (PHVO) (जैसे- वनस्पति, शॉर्टिंग, मार्जरीन आदि). पके हुए और तले हुए खाद्य पदार्थों में मौजूद एक खाद्य अवयव है।
      • यह भारत में गैर-संचारी रोगों की वृद्धि में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता है और कार्डियो-वैस्कुलर रोगों (सीवीडी) के लिये एक परिवर्तनीय जोखिम कारक भी है। सीवीडी जोखिम कारक को खत्म करना कोविड-19 के दौरान विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि सीवीडी पीड़ित लोगों के कारण मृत्यु दर पर प्रभाव डालने वाली गंभीर स्थिति उत्पन्न होने की संभावना होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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