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सामाजिक न्याय

विश्व में लैंगिक असमानता की चुनौती

  • 03 Sep 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी पत्रिका ‘अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट’ (American Psychologist) में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, 86 प्रतिशत अमेरिकी वयस्कों ने माना है कि महिला एवं पुरुष का बौद्धिक (Intellectual) स्तर समान है।

प्रमुख बिंदु:

  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 1946 में ऐसे ही एक अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि मात्र 35 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क ही ऐसा मानते हैं कि महिला एवं पुरुष का बौद्धिक स्तर समान होता है।
  • वर्तमान आँकड़े दर्शाते हैं कि 21वीं सदी में समाज का महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में भारी बदलाव आया है। पर क्या इसे इस रूप में लिया जा सकता है कि वैश्विक समाज लैंगिक समानता के अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के करीब है?
  • वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड फॉर वीमेन (World Employment And Social Outlook Trends For Women) 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में पहले से ज्यादा महिलाएँ शिक्षित हैं एवं श्रम बाजार (Labour Market) में भाग ले रही हैं।
  • हालाँकि इन सभी के बीच विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा जारी ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ (Global Gender Gap Report) 2018 में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लिंग भेद को कम करने के लिये कम-से-कम 108 साल तथा कार्यबल में समानता हासिल करने के लिए कम-से-कम 202 साल लगेंगे।
  • यदि विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट को मानें तो लैंगिक समानता के उद्देश्य को प्राप्त करने में हमें अभी काफी समय लगेगा। अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि लैंगिक असमानता के मुद्दे को हल करने के लिये हमें एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

शिक्षित होने एवं कार्यबल में हिस्सेदारी के बावजूद भी महिलाओं को अब तक बराबरी के रूप में क्यों स्वीकार नहीं किया गया है?

  • लाखों वर्षों से कुछ मातृसत्तात्मक समाजों को छोड़कर पुरुष को सदैव ही परिवार का मुखिया माना जाता रहा है। परिवार के अंतर्गत पुरुषों की भूमिका सदैव ही महिलाओं की भूमिका से उच्चतर मानी गई है, जिसके कारण लिंग असमानता को परिवारों में कभी भी सामाजिक मूल्य के रूप में नहीं देखा गया।
  • शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने वर्ष 1970 से 2000 तक के जनगणना आँकड़ों का उपयोग करते हुए कहा था कि उन शादियों में, जहाँ महिलाएँ पुरुषों से अधिक कमाती हैं, तलाक की संभावनाएँ अधिक रहती हैं।
  • विश्व की लगभग सभी धार्मिक मान्यताओं में पुरुषों को ही प्रधान माना जाता है। धर्म के सभी प्रमुख कार्य, जैसे-धार्मिक समारोह आयोजित करना और धार्मिक पदानुक्रम को बढ़ाना, पुरुषों के लिये आरक्षित हैं।

कैसे सुधरेगी स्थिति:

  • लैंगिक समानता के उद्देश्य को हासिल करना जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन और कार्यालयों में कुछ पोस्टर चिपकाने तक ही सीमित नहीं है। यह मूल रूप से किसी भी समाज के दो सबसे मजबूत संस्थानों - परिवार और धर्म की मान्यताओं को बदलने से संबंधित है।
  • लैंगिक समानता का सूत्र श्रम सुधारों और सामाजिक सुरक्षा कानूनों से भी जुड़ा है, फिर चाहे कामकाजी महिलाओं के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना हो या उन्हें सुरक्षित नौकरी की गारंटी देना।

स्रोत: लाइव मिंट

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