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ब्याज दरों में हो रही बढ़ोतरी के कारण

  • 29 May 2018
  • 6 min read

संदर्भ 

पिछले दिनों भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Sidbi) ने एक वर्षीय जमा प्रमाणपत्रों (certificates of deposit) के माध्यम से बाजार से ₹500 करोड़ जुटाए। इन पर उसने 8.32% की दर से ब्याज भुगतान किया। आमतौर पर सिडबी जैसे सार्वजनिक वित्तीय संस्थान अल्पकालिक जमा प्रमाणपत्र जारी करते हैं और एक वर्षीय ट्रेजरी बिल (T-Bill) के मुकाबले एक चौथाई प्रतिशत पॉइंट अधिक पर ब्याज भुगतान करते हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • पिछले शुक्रवार एक वर्षीय टी-बिल पर ब्याज प्राप्ति (yield) 6.95% पर बंद हुई। इसका मतलब यह है कि सिडबी ने इस धन को जुटाने के लिये टी-बिल के मुकाबले 137 आधार अंकों (basis points) का अधिक भुगतान किया।
  • एक आधार अंक एक प्रतिशत पॉइंट का 100वाँ हिस्सा होता है।
  • कई निजी बैंकों ने एक वर्षीय थोक जमा प्राप्त करने के लिये रैक दरों की तुलना में कहीं अधिक उच्च दरों की पेशकश करनी शुरू कर दी है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने अप्रैल में कोई भी परिवर्तन न करते हुए अपनी नीतिगत ब्याज दर को 6% के साथ अपरिवर्तित रखा था। लेकिन, मुद्रा बाजार उपकरणों पर ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
  • उदाहरणस्वरूप, 31 मार्च और 28 मई के बीच एक वर्षीय जमा प्रमाणपत्रों पर दर में  95 आधार अंकों की बढ़ोतरी हो चुकी है और यह 7.30% से बढ़कर 8.25% हो चुकी है।
  • सैद्धांतिक रूप से,एक इनवर्टेड यील्ड वक्र (inverted yield curve), जिसमें दीर्घकालिक बॉण्डों पर प्राप्ति, अल्पकालिक बॉण्डों की तुलना में कम होती है, आर्थिक मंदी की ओर संकेत करता है। लेकिन, भारत के मामले में ऐसा नहीं है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर सुधार की ओर अग्रसर है।
  • दरअसल, भारत में ऐसा बैंकों द्वारा सरकारी बॉण्ड खरीदने की अनिच्छा सहित कई अन्य कारणों से हो रहा है।
  • अभी सिस्टम में तरलता आंशिक रूप से नकारात्मक है, क्योंकि सरकार खर्च नहीं कर रही है और भारतीय रिजर्व बैंक स्थानीय मुद्रा को भारी गिरावट से बचाने के लिये डॉलर बेच रहा है। 
  • सरकारी स्वामित्व वाले 21 बैंकों में से 11 को आरबीआई की त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (prompt corrective action) के तहत कई गतिविधियों के निष्पादन से रोक दिया गया है।
  • इन बैंकों के पास धनराशि की भरमार है, क्योंकि ये ऋण नहीं दे रहे हैं। जबकि, अन्य बैंकों के पास तरलता की अनुपस्थिति है, अतः वे उधार लेने के लिये अधिक भुगतान कर रहे हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, जो सरकारी बॉण्डों के प्रमुख खरीदार होते हैं, वे सरकारी बॉण्डों के मूल्य में हो रही सतत् गिरावट को देखकर, बॉण्ड बाजार से काफी हद तक दूर रहे हैं।
  • मार्च तिमाही में ज्यादातर बैंकों ने घाटे की घोषणा की है, जिसके प्रमुख कारणों में से एक कारण इनके बॉण्ड पोर्टफोलियो की कीमतों में गिरावट होना है। यह रुझान नए वित्तीय वर्ष में भी जारी है।
  • संप्रभु बॉण्ड यील्ड (sovereign bond yield) का प्रभाव कोर्पोरेट बॉण्ड बाजार तक फैल गया है।
  • एक ट्रिपल-ए रेटेड कंपनी जो मार्च के अंत तक एक-वर्षीय उधार 7.49% की दर पर ले सकती थी, उसे अब 8.28% का भुगतान करना पड़ रहा है।
  • पाँच-वर्षीय धनराशि पर दर 7.87% से बढ़कर 8.6% हो गई है और दस-वर्षीय धनराशि के मामले में यह 8.17% से बढ़कर 8.56% हो गई है।
  • त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई के अंतर्गत आने वाले बैंक ऋण नहीं दे रहे हैं और जो बैंक ऋण प्रदान कर सकते हैं, उनके पास या तो ऋण प्रदान करने हेतु पर्याप्त धनराशि नहीं है, या वे बैड लोनों की बढ़ती समस्या के डर से नए ऋण प्रदान करने रूचि नहीं दिखा रहे हैं।
  • पिछले कुछ सालों में, बैड लोन की समस्या से ग्रसित बैंकों की ऋण प्रदान न कर पाने के समस्या की भरपाई अपेक्षाकृत जीवंत बॉण्ड बाजार द्वारा हो रही थी, लेकिन अब बॉण्ड बाजार भी कमजोर होता जा रहा है। ऐसे में कंपनियों के समक्ष निवेश हेतु धन जुटाने की समस्या आ खड़ी हुई है।
  • स्पष्ट है कि बैकों को बॉण्ड बाजार में वापस लाने हेतु कुछ प्रयास करने की जरूरत है।
  • तरलता पैदा करने का एक तरीका त्रैमासिक रेपो सुविधा की शुरुआत हो सकती है। इससे बैकों को आरबीआई से लंबी अवधि के लिये फंडों की प्राप्ति हो सकेगी।
  • साथ ही आरबीआई को तरलता उत्पन्न करने के लिये अपने ओपन मार्केट ऑपरेशनों के माध्यम से बैंकों से बॉण्ड खरीदने की जरूरत है।
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