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भारतीय इतिहास

टीपू सुल्तान

  • 20 Jul 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

टीपू सुल्तान, सहायक संधि

मेन्स के लिये

टीपू सुल्तान द्वारा किये गए प्रमुख सुधार और इतिहास में उनकी भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मुंबई में एक उद्यान का नामकरण टीपू सुल्तान के नाम से किये जाने के कारण विवाद उत्पन्न हो गया।

प्रमुख बिंदु

संक्षिप्त परिचय

Tipu-Sultan

  • नवंबर 1750 में जन्मे टीपू सुल्तान हैदर अली के पुत्र और एक महान योद्धा थे, जिन्हें ‘मैसूर के बाघ’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • वह अरबी, फारसी, कन्नड़ और उर्दू में पारंगत एक सुशिक्षित व्यक्ति थे।
  • हैदर अली (शासनकाल- 1761 से 1782 तक) और उनके पुत्र टीपू सुल्तान (शासनकाल- 1782 से 1799 तक) जैसे शक्तिशाली शासकों के नेतृत्व में मैसूर की शक्ति में काफी बढ़ोतरी हुई।
    • टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल के दौरान कई प्रशासनिक नवाचारों की शुरुआत की, जिसमें उनके द्वारा शुरू किये गए सिक्के, एक नया मौलूदी चंद्र-सौर कैलेंडर और एक नई भूमि राजस्व प्रणाली शामिल थी, जिसने मैसूर रेशम उद्योग के विकास की शुरुआत की।
  • पारंपरिक भारतीय हथियारों के साथ-साथ उन्होंने तोपखाने और रॉकेट जैसे पश्चिमी सैन्य तरीकों को अपनाया ताकि उनकी सेनाएँ प्रतिद्वंद्वियों को मात दे सकें और उनके विरुद्ध भेजी गई ब्रिटिश सेनाओं का मुकाबला कर सकें।

सशस्त्र बलों का रखरखाव:

  • टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को यूरोपीय मॉडल के आधार पर संगठित किया।
    • यद्यपि उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये फ्राँसीसी अधिकारियों की मदद ली, किंतु उन्होंने फ्राँसीसी अधिकारियों को कभी भी एक दबाव समूह के रूप में विकसित होने की अनुमति नहीं दी।
  • वह नौसैनिक बल के महत्त्व से अच्छी तरह वाकिफ थे।
    • वर्ष 1796 में उन्होंने ‘नौवाहन विभाग बोर्ड’ की स्थापना की और 22 युद्धपोतों तथा 20 फ्रिगेट के बेड़े के निर्माण की योजना बनाई।
    • उन्होंने मैंगलोर, वाजेदाबाद और मोलिदाबाद में तीन डॉकयार्ड स्थापित किये। हालाँकि उनकी योजनाएँ साकार नहीं हो सकीं।

मराठों के खिलाफ युद्ध:

  • वर्ष 1767 में टीपू ने पश्चिमी भारत के कर्नाटक क्षेत्र में मराठों के खिलाफ घुड़सवार सेना की कमान संभाली और वर्ष 1775-79 के बीच कई मौकों पर मराठों के खिलाफ युद्ध किया।

आंग्ल-मैसूर युद्धों में भूमिका:

  • अंग्रेज़ों ने हैदर और टीपू को एक ऐसे महत्त्वाकांक्षी, अभिमानी और खतरनाक शासकों के रूप में देखा जिन्हें नियंत्रित करना अंग्रेज़ों के लिये आवश्यक हो गया था।
  • चार आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए जिनके आधार पर निम्नलिखित संधियाँ की गईं।
    • 1767-69: मद्रास की संधि।
    • 1780-84: मैंगलोर की संधि।
    • 1790-92: श्रीरंगपटनम की संधि।
    • 1799: सहायक संधि।
  • कंपनी ने अंततः श्रीरंगपटनम के युद्ध में जीत हासिल की और टीपू सुल्तान अपनी राजधानी श्रीरंगपटनम की रक्षा करते हुए मारा गया।
  • मैसूर को वाडियार वंश के पूर्व शासक वंश के अधीन रखा गया था और राज्य के साथ एक सहायक गठबंधन किया गया।

अन्य संबंधित बिंदु:

  • वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संरक्षक भी थे तथा उन्हें भारत में 'रॉकेट प्रौद्योगिकी के अग्रणी' के रूप में श्रेय दिया जाता है।
    • उन्होंने रॉकेट के संचालन की व्याख्या करते हुए एक सैन्य मैनुअल (फतुल मुजाहिदीन) लिखा।
  • टीपू लोकतंत्र के एक महान प्रेमी और महान राजनयिक थे जिन्होंने वर्ष 1797 में जैकोबिन क्लब की स्थापना में श्रीरंगपटनम में फ्राँसीसी सैनिकों को समर्थन दिया था।
    • टीपू स्वयं जैकोबिन क्लब के सदस्य बने और स्वयं को सिटीज़न टीपू कहलाने की अनुमति दी।
    • उन्होंने श्रीरंगपटनम में ट्री ऑफ लिबर्टी का रोपण किया।

सहायक संधि

  • लॉर्ड वेलेजली ने वर्ष 1798 में भारत में सहायक संधि प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत सहयोगी भारतीय राज्य के शासकों को अपने शत्रुओं के विरुद्ध अंग्रेज़ों से सुरक्षा प्राप्त करने के बदले ब्रिटिश सेना के रखरखाव के लिये आर्थिक भुगतान करने को बाध्य किया गया था।
  • सहायक संधि करने वाले देशी राजा अथवा शासक किसी अन्य राज्य के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने या अंग्रेज़ों की सहमति के बिना समझौते करने के लिये स्वतंत्र नहीं थे।
  • यह संधि राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति थी, लेकिन इसका पालन अंग्रेज़ों ने कभी नहीं किया।
  • मनमाने ढंग से निर्धारित एवं भारी-भरकम आर्थिक भुगतान ने राज्यों की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया एवं राज्यों के लोगों को गरीब बना दिया।
  • वहीं ब्रिटिश अब भारतीय राज्यों के व्यय पर एक बड़ी सेना रख सकते थे।
    • वे संरक्षित सहयोगी की रक्षा एवं विदेशी संबंधों को नियंत्रित करते थे तथा उनकी भूमि पर शक्तिशाली सैन्य बल की तैनाती करते थे।
  • सहायक संधि पर हस्ताक्षर करने वाला पहला भारतीय शासक हैदराबाद का निजाम था।
  • इस संधि पर वर्ष 1801 में अवध के नवाब को हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर किया गया।
  • पेशवा बाजीराव द्वितीय ने वर्ष 1802 में बेसिन में सहायक संधि पर हस्ताक्षर किये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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