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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रोज़गार के बाज़ार की अनियमितता

  • 17 Jan 2017
  • 6 min read

पृष्ठभूमि

वैश्विक स्तर पर परेशानी का सबब रहे पिछले वित्तीय संकट के बाद से अभी तक प्रति वर्ष कार्यशील आयु-वर्ग (working age) में प्रवेश करने वाले लोगों तथा रोज़गार की उपलब्धता के मध्य व्याप्त अंतराल भारी चिंता का विषय बना हुआ है| अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO)  द्वारा 12 जनवरी को जारी किये गए एक पूर्वानुमान के तहत यह संभावना व्यक्त की गई है कि पूर्व के सभी अनुमानों के विपरीत इस वर्ष के साथ-साथ अगले वर्ष भी विश्व में रोज़गारविहीन लोगों की संख्या में 3.4 मिलियन की बढ़ोतरी होने की संभावना है| 

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Global Gross Domestic Product) की विकास दर पिछले 6 वर्षों के निम्नतम स्तर पर दर्ज़ की गई, ऐसी स्थिति में रोज़गार के नए अवसरों में निम्नतम वृद्धि होने की ही अपेक्षा की जा सकती है| 
  • हालाँकि, “विश्व रोज़गार तथा सामाजिक आउटलुक 2017” (World Employment and Social Outlook 2017) में ऐसी किसी गंभीर चिंता से इनकार करते हुए विश्व की कुल आबादी की तकरीबन 42 फीसदी कामकाजी आबादी को प्रभावित करने वाली रोज़गार की असुरक्षा संबंधी चुनौतियों के विषय में गंभीर चिंता व्यक्त की गई है| 
  • वस्तुतः इन सभी चिंताओं का प्रमुख कारण स्वरोज़गार तथा संबद्ध श्रेणियों (Self-Employed and Allied Categories) के मध्य (उनके समकक्षों को प्राप्त होने वाली दैनिक आय एवं वेतनभोगी वर्ग की तुलना में) सामाजिक सुरक्षा संबंधी उत्तरदायित्व की निम्न पहुँच का होना है|  
  • ध्यातव्य है कि विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के तकरीबन 50 फीसदी कार्यबल एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के तकरीबन 80 फीसदी कार्यबल के समक्ष आने वाली कठिनाइयों की पृष्ठभूमि के विषय में अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इस समस्त कार्यशील आबादी के समक्ष सबसे बड़ी कठिनाई या तो एक प्रभावी कल्याणकरी विधान (Strong Welfare Legislation) अथवा प्रभावी प्रवर्तन नियमों (Effective Enforcement Rules) की कमी होना है| 
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त सभी समस्याओं से उप-सहारा अफ्रीका एवं दक्षिण एशिया में कार्यरत कार्यबल सबसे अधिक प्रभावित होता है|
  • अतः ऐसी स्थिति में एक सामान्य सी बात यह है कि वर्ष 2015 में इस समस्त कार्यबल की तकरीबन 46 फीसदी आबादी वर्ष 2016 में घटकर मात्र 42 फीसदी के स्तर पर आ गई है|  
  • हालाँकि, वर्ष 2017-18 के संदर्भ में प्राप्त रिपोर्टों में इस समस्त कार्यबल में मात्र 0.2% की कमी होने की संभावना व्यक्त की गई है|
  • इसकी तुलना में, इन रिपोर्टों में यह स्पष्ट किया गया है कि रोज़गार प्राप्त जनसंख्या के अनुपात में पिछले एक दशक में औसतन 0.5 प्रतिशत की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई है|
  • हालाँकि, हाल के कुछ सालों में रोज़गार की अपेक्षाकृत धीमी वृद्धि दर के बावजूद इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष तकरीबन 11 लाख नए लोग जुड़ रहे हैं|
  • यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि यदि असुरक्षात्मक कार्य स्थितियों में संलग्न लोगों की आबादी में बढ़ोतरी होती है तो इससे सबसे बड़ा खतरा यह होगा कि यह रोज़गार संबंधी गरीबी (Working Poverty) की घटनाओं को कम करने की दर को धीमा कर देगा, जिसका परिणाम बहुत ही भयावह होने की सम्भावना है|
  • हालाँकि, इन सबमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वैश्विकरण के इस दौर में विश्व की सबसे गरीब आबादी की आय में बढ़ोतरी होने से उनकी सामाजिक एवं राजनैतिक मान्यता (Political Legitimacy) में भी बढ़ोतरी होने की सम्भावना है| 

निष्कर्ष

वस्तुतः वर्तमान का यह दौर आर्थिक अव्यवस्था तथा वृहद स्तर पर होने वाले पलायन का दौर है| अत: ऐसी स्थिति में विश्व के सभी नीति-निर्माताओं को एक बात का विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता है कि विश्व की आबादी के इस सबसे निम्न वर्ग की आय में 2030 के सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के तहत वर्णित बुनियादी निर्वाह स्तर से कम की कमी नहीं होनी चाहिये|

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