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महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020

  • 23 Apr 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश, 2020

मेन्स के लिये

स्वास्थ्यकर्मियों के विरुद्ध हिंसा

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के विरुद्ध लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा के कृत्य को संज्ञेय और गैर-ज़मानती अपराध घोषित करने वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है।

अध्यादेश संबंधी प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि देश भर में स्वास्थ्यकर्मियों के के विरुद्ध हो रही हिंसा में बढ़ोतरी को देखते हुए 22 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन को मंज़ूरी दी थी, ताकि महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों और उनकी संपत्ति (आवास तथा कार्यस्थल) की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। 
  • महामारी रोग अधिनियम, 1897 में यह संशोधन स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा के कृत्य को संज्ञेय तथा गैर-ज़मानती अपराध बनाता है और स्वास्थ्यकर्मी को हुई क्षति अथवा उसकी संपत्ति को हुई क्षति के लिये मुआवज़े का प्रावधान करता है।
  • वर्तमान अध्यादेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी स्थिति में मौजूदा महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों के विरुद्ध हिंसा या संपत्ति का नुकसान होने पर दोषी के साथ शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई जाए।
  • अध्यादेश में हिंसा की जो परिभाषा दी गई है उसमें उत्पीड़न तथा शारीरिक चोट के अतिरिक्त संपत्ति को नुकसान पहुँचाना भी शामिल है।
  • अध्यादेश के अनुसार, स्वास्थ्यकर्मियों में सार्वजनिक तथा नैदानिक ​​स्वास्थ्य सेवा प्रदाता जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल कार्यकर्त्ता तथा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त स्वास्थ्यकर्मी की परिभाषा में ऐसे सभी लोगों को भी शामिल किया गया है जिन्हें इस महामारी के प्रकोप को रोकने या इसके प्रसार को रोकने के लिये अधिनियम के तहत अधिकार प्राप्त है।
  • अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार, स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा करने पर 3 माह से लेकर 5 वर्ष तक कैद और 50000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है। वहीं गंभीर चोट के मामले में 6 माह से 7 वर्ष तक कैद और 100000 रुपए से 500000 रुपए तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
    • इसके अतिरिक्त अपराधी पीड़ित को मुआवजे का भुगतान करने और संपत्ति के नुकसान का भुगतान करने के लिये भी उत्तरदायी होगा। ध्यातव्य है कि संपत्ति के नुकसान की स्थिति में भुगतान बाज़ार मूल्य का दोगुना होगा।
  • अध्यादेश के अनुसार, 30 दिनों की अवधि के भीतर इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी द्वारा अपराधों की जाँच की जाएगी।

अध्यादेश की आवश्यकता

  • COVID-19 महामारी के दौरान ऐसी कई घटनाएँ देखी गई हैं, जिनमें स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हिंसा की गई और उन्हें लक्षित करके उन पर हमले किये गए, जिससे उन्हें अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह में बाधाओं का सामना कर पड़ा।
  • चौबीसों घंटे कार्य करने और बिना किसी स्वार्थ के मानव जीवन को बचाने के बावजूद चिकित्सा समुदाय के सदस्यों को उत्पीड़न का सामना कर पड़ रहा है।
  • कई लोगों स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोनावायरस (COVID-19) का वाहक मान रहे हैं, जिसके कारण उन्हें चौतरफा संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
  • ऐसी स्थिति चिकित्सा समुदाय को अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन करने और उनके मनोबल को बनाए रखने से रोकती है, जो वैश्विक स्वास्थ्य संकट के इस समय में एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।

आगे की राह 

  • स्वास्थ्यकर्मी COVID-19 के प्रसार से रोकने और उस महामारी से लड़ने में हमारे अग्रिम पंक्ति के सैनिक हैं। ये लोग दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। 
  • मौजूदा समय में सभी स्वास्थ्यकर्मी सर्वोच्च सम्मान और प्रोत्साहन के हकदार हैं, किंतु उन्हें इस महामारी के दौर में हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, बीते कुछ दिनों में स्वास्थ्यकर्मियों के विरुद्ध हिंसा की कुछ घटनाएँ सामने आई हैं, इस घटनाओं के कारण चिकित्सा समुदाय का मनोबल काफी गिरता जाता है। 
  • आशा है कि इस अध्यादेश के माध्यम से चिकित्सा समुदाय में विश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी और वे मौजूदा कठिन परिस्थितियों अपने महान पेशे के माध्यम से अपना बहुमूल्य योगदान देते रहें।

स्रोत: पी.आई.बी

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