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इंफ्लुएंजा प्रकोप : सवाल केवल आँकड़ों का नहीं

  • 04 Oct 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

  • आधिकारिक आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उक्त दोनों वर्षों की तुलना में वर्ष 2016 अपेक्षाकृत एक अधिक सौम्य वर्ष रहा। इस वर्ष मात्र 265 लोगों की एच1एन1 वायरस के कारण मौत हुई। 
  • हालाँकि इन आधिकारिक आँकड़ों के साथ समस्या यह है कि ये केवल एच1एन1 वायरस पर आधारित डाटा ही प्रस्तुत करते हैं। एच1एन1 वायरस के संबंध में आँकड़े एकत्रित करने का काम 2009 से आरंभ किया गया, हालाँकि इससे पूर्व भी देश में महामारी का प्रकोप जारी था।

पूर्व की स्थिति क्या थी?

  • भारत में 2009 से पहले इंफ्लुएंजा एच3एन2 और इंफ्लुएंजा बी वायरस के रूप में मौजूद था।
  • इनमें एच3एन2 वायरस एक ऐसा वायरस है जो एच1एन1 की ही भाँति बड़ा प्रकोप उत्पन्न करने में सक्षम है, तथापि भारत में एच3एन2 के संबंध में उस स्तर पर कार्यवाही नहीं की गई, जैसा कि एच1एन1 के संबंध में की जाती है। 

वास्तविक स्थिति

  • उल्लेखनीय है कि मणिपाल सेंटर फॉर वायरल रिसर्च (कर्नाटक) में तीव्र ज्वर संबंधी बीमारियों हेतु स्थापित एक निगरानी परियोजना द्वारा यह पाया गया है कि भारत के 10 राज्यों के ग्रामीण इलाकों में लगभग 20% बुखार इंफ्लुएंजा के कारण होते हैं। 
  • अक्सर इस प्रकार के बुखार को "अपरिवर्तनीय" और "रहस्य बुखार" के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • ध्यातव्य है कि जिन वर्षों में एच1एन1 वायरस का प्रकोप कम होता है, उन वर्षों में इन क्षेत्रों में एच3एन2 और इंफ्लुएंजा बी का परिसंचरण बहुत अधिक बढ़ जाता है।
  • इस जानकारी से यह स्पष्ट होता है कि न केवल भारत की निगरानी प्रणाली बहुत अधिक कमज़ोर है, बल्कि इसके अंतर्गत इंफ्लुएंजा के प्रभाव को बहुत कमतर आँका जाता है। 
  • मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology) के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, भारत जैसे बड़े देश द्वारा अपने आकार और आबादी के हिसाब से वैश्विक ओपेन-एक्सेस डाटाबेस (global open-access databases) हेतु एच1एन1 के आनुवंशिक अनुक्रमों (H1N1 genetic sequences) की एक बहुत छोटी संख्या प्रस्तुत की गई है। 
  • किसी भी वायरस का अनुक्रम बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि यह आनुवंशिक सामग्री में उत्परिवर्तन का पता लगाने में सक्षम होता है, जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस के प्रभाव से सुरक्षित रखता है।
  • क्योंकि, भारत वायरल जीनोम का एक बड़ा नमूना अनुक्रमित नहीं करता है, यही कारण है कि यह वायरस के संबंध में स्थितिभेद करने की स्थिति में ही नहीं होता है।
  • स्पष्ट रूप से यह वायरस की घातकता में परिवर्तन होने संबंधी कोई भी व्याख्या करने में असक्षम होता है। जिसके परिणामस्वरूप परिस्थितियाँ न केवल भयावह बन जाती हैं, बल्कि इससे देश को बहुत नुकसान भी उठाना पड़ता है।

क्या किया जाना चाहिये

  • यदि इस संबंध में प्राप्त आँकड़ों और अनुक्रम डाटा को एक साथ रखा जाए तो इस संदर्भ में प्रभावी टीकाकरण संबंधी निर्णय किये जा सकते हैं।
  • वस्तुतः भारत के पास इस महामारी से बचने का सबसे प्रभावी उपाय टीकाकरण है। इसके दम पर इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। 
  • उल्लेखनीय है कि ओसेल्तामिविर Oseltamivir एक ऐसा एंटीवायरल है, जिसे यदि समय रहते प्रशासित किया जाए तो इसके प्रयोग द्वारा फ्लू से आसानी से निपटा जा सकता है।

निष्कर्ष 

हालाँकि, इस संबंध में भारत की स्थिति बहुत अधिक गंभीर है। यहाँ अभी तक सभी गर्भवती महिलाओं और मधुमेह रोगियों जैसे उच्च जोखिम वाले समूहों को पूर्ण रूप से टीकाकरण के दायरे में शामिल नहीं किया जा सका है। इसका कारण यह है कि यहाँ इंफ्लुएंजा को तपेदिक की तुलना में अधिक प्रबंधनीय सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती माना जाता है। वस्तुतः यदि इंफ्लुएंजा  के संदर्भ में एक बेहतर निगरानी तंत्र की व्यवस्था की जाए तो इस सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के समाधान के संबंध में प्रभावी कार्यवाही की जा सकती है।

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