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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तालिबान प्रतिनिधि मंडल का पाकिस्तान दौरा

  • 25 Aug 2020
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अमेरिका और तालिबान शांति समझौता

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय शांति पर तालिबान शांति समझौते का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय से एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मंडल अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर पाकिस्तानी नेतृत्त्व से चर्चा के लिये पाकिस्तान पहुँचा।

प्रमुख बिंदु:

  • तालिबान के राजनीतिक प्रमुख ‘मुल्ला अब्दुल गनी बरादर’ (Mullah Abdul Ghani Baradar) के नेतृत्त्व में यह उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मंडल पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के निमंत्रण पर इस्लामाबाद पहुँचा है।
  • पाकिस्तानी विदेश मंत्री के अनुसार, पाकिस्तान अफगान मुद्दे पर एक मध्यस्थ/सहायक की भूमिका निभा रहा है, जिसके कारण अमेरिका और तालिबान के बीच यह समझौता सुनिश्चित हो सका है तथा अब इसका भविष्य अफगानिस्तान प्रशासन के निर्णय पर निर्भर करता है।
  • यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब दोनों तरफ से कैदियों के हस्तांतरण के विवादित प्रावधान के बीच अफगान शांति वार्ता पुनः स्थगित हो गई है।
  • गौरतलब है कि पिछले 10 माह में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की यह दूसरी पाकिस्तान यात्रा है।
  • पाकिस्तानी विदेशमंत्री के अनुसार, अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में अगला तार्किक कदम अंतर-अफगान वार्ता होगी जिसे शीघ्र ही शुरू किया जाना चाहिये।

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के प्रवेश के लगभग 2 दशक बाद फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इस समझौते के तहत अमेरिका अगले 14 महीनों में अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिक वापस बुलाने पर सहमत हुआ था।
  • फरवरी 2020 के समझौते के तहत अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच कैदियों की रिहाई पर भी एक समझौता हुआ।
  • इसके तहत अफगानिस्तान सरकार द्वारा देश की जेलों में बंद लगभग 5,000 तालिबानी कैदियों और तालिबान द्वारा पकड़े गए लगभग 1000 सरकारी कर्मचारियों तथा सैन्य कर्मियों को ‘अंतर-अफगान वार्ता’ (Intra-Afghan Negotiations) के पहले रिहा करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।

शांति प्रक्रिया के बाधित होने का कारण:

  • वर्तमान में तालिबान द्वारा लगभग 1,000 सरकारी कर्मचारियों और सैन्य कर्मियों तथा अफगानिस्तान सरकार द्वारा लगभग 4,680 चरमपंथियों को रिहा किया जा चुका है।
  • हालाँकि अफगानिस्तान सरकार ने हाल ही में कुछ बचे हुए (लगभग 300) तालिबानी कैदियों को रिहा करने मना कर दिया है। अफगानिस्तान सरकार के अनुसार, ये कैदी कई गंभीर हमलों से संबंधित हैं।

पाकिस्तान का हस्तक्षेप :

  • अफगानिस्तान सरकार द्वारा पाकिस्तान पर तालिबान को आश्रय देने और फंडिंग उपलब्ध कराने का आरोप लगाया जाता रहा है।
  • गौरतलब है कि 1990 के दशक के दौरान अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाले देशों में से पाकिस्तान भी एक था।
  • यदि अफगानिस्तान में तालिबान की स्थिति मज़बूत होती है तो इससे अफगानिस्तान की राजनीति में पाकिस्तान का हस्तक्षेप बढ़ेगा।

भारत पर प्रभाव :

  • भारत हमेशा से ही अफगानिस्तान में विदेशी हस्तक्षेप से मुक्त एक लोकतांत्रिक सरकार का समर्थक रहा है।
  • अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते हस्तक्षेप का लाभ पाकिस्तान कश्मीर में चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिये कर सकता है।

आगे की राह:

  • अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को पूरी तरह से हटाए जाने से क्षेत्र में एक बार पुनः अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • भारत को क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिये तालिबान से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करने पर विचार करना चाहिये।

स्त्रोत: द हिंदू

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