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भारतीय अर्थव्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा

  • 18 Nov 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, IBC के प्रमुख प्रावधान, दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), अनुच्छेद 21, व्यक्तिगत गारंटर।

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को बरकरार रखा है जिन्हें संवैधानिक आधार पर चुनौती दी गई थी।

  • न्यायालय ने दिवाला कार्यवाही में समानता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में चिंताओं को संबोधित किया।

याचिकाओं और सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों से क्या चिंताएँ बढ़ी हैं?

  • याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:
    • प्रमुख मुद्दा यह था कि व्यक्तिगत गारंटर को अपना मामला पेश करने या दिवाला समाधान प्रक्रिया की शुरुआत का विरोध करने या रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) की नियुक्ति में अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया था।
      • व्यक्तिगत गारंटर वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य पक्ष द्वारा लिये गए ऋण या वित्तीय दायित्व हेतु व्यक्तिगत गारंटी प्रदान करता है। जब कोई व्यक्ति धन उधार लेता है या ऋण प्राप्त करता है, तो ऋणदाता को सुरक्षा के रूप में व्यक्तिगत गारंटी की आवश्यकता हो सकती है।
    • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि दिवाला और दिवालियापन संहिता ( Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) के चुनौती वाले हिस्से निष्पक्ष सिद्धांतों (प्राकृतिक न्याय) का पालन नहीं करते हैं तथा संविधान के अनुच्छेद 21, 19(1)(g) एवं 14 के तहत आजीविका, व्यापार और समानता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं। 
  • न्यायालय की टिप्पणी:
    • संवैधानिकता और व्यक्तिगत गारंटर: न्यायालय ने IBC के प्रमुख प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जिसमें व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही की अनुमति भी शामिल है।
      • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि IBC पूर्वव्यापी नहीं है और माना कि धारा 95 से 100 को सिर्फ इसलिये असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि वे व्यक्तिगत गारंटरों को लेनदारों की दिवालिया संबंधी याचिकाओं से पहले सुनवाई का मौका नहीं देते हैं।
      • इसने उन दावों के खिलाफ निर्णय सुनाया कि इन प्रावधानों में निष्पक्षता की कमी है या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ है, यह कहते हुए कि निष्पक्षता का मूल्यांकन मामले-दर-मामले किया जाना चाहिये।
    • रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल्स (RP) की भूमिका: न्यायालय ने RP की नियुक्ति से पहले न्यायिक हस्तक्षेप को शामिल करने के विचार को खारिज़ कर दिया, यह कहते हुए कि एक निश्चित अनुभाग से पहले एक न्यायिक भूमिका जोड़ने से IBC की निर्धारित समय-सीमा बाधित हो जाएगी।
      • यह स्पष्ट कर दिया गया था कि RP सूचना एकत्र करने वाले और सिफारिश करने वाले सुविधा प्रदाता हैं, निर्णय लेने वाले नहीं।
    • अधिस्थगन प्रावधान: न्यायालय इस बात पर सहमत हुआ कि ये प्रावधान मुख्य रूप से देनदारों के बजाय ऋणों की रक्षा करते हैं।
      • इसने विधायिका के निर्णयों का समर्थन किया कि कब अधिस्थगन लागू होना चाहिये और IBC में व्यक्तिगत देनदारों, भागीदारों एवं कॉर्पोरेट देनदारों के बीच मतभेदों पर प्रकाश डाला।

IBC पर SC के निर्णय का संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?

  • लेनदार का विश्वास:
    • IBC के प्रावधानों की पुष्टि, विशेष रूप से व्यक्तिगत गारंटरों के संबंध में लेनदार का विश्वास बढ़ सकता है।
    • गारंटरों के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने के विषय में लेनदार अधिक सुरक्षित महसूस करेंगे, जिससे संभावित रूप से ऋण की वसूली में अधिक मुखर दृष्टिकोण अपनाया जा सकेगा।
  • स्पष्टता और पूर्वानुमेयता:
    • न्यायालय के निर्णय द्वारा प्रदान की गई स्पष्टता दिवाला ढाँचे के अंदर पूर्वानुमान को बढ़ा सकती है। यह सहज और अधिक कुशल समाधान प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित कर सकता है, उन अनिश्चितताओं को कम कर सकता है जो पहले लेनदार के कार्यों में बाधा बन सकती थीं।
  • समर्थकों को सतर्क करना:
    • यह निर्णय समर्थकों और कॉर्पोरेट ऋणों के लिये व्यक्तिगत गारंटी प्रदान करने वाले व्यक्तियों को सावधान करेगा।
    • समर्थक, यहाँ तक कि सॉल्वेंट कंपनियों के मामले में भी वे इस निर्णय द्वारा उजागर संभावित जोखिमों के कारण व्यक्तिगत गारंटी देने के विषय में अधिक सतर्क हो सकते हैं।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 क्या है?

  • सरकार ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता से संबंधित सभी कानूनों को समेकित करने तथा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) से निपटने के लिये IBC, 2016 को लागू किया, यह एक ऐसी समस्या है जो वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट ला रही है।
    • दिवाला एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अथवा कंपनियाँ अपना परादेय ऋण/बकाया ऋण (Outstanding Debt) चुकाने में असमर्थ होती हैं।
    • शोधन अक्षमता एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम अधिकारिता (Competent Jurisdiction) वाले न्यायालय में किसी व्यक्ति अथवा अन्य संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है, इसे हल करने तथा लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये उचित आदेश पारित किये गए हैं। यह ऋण चुकाने में असमर्थता की विधिक घोषणा है।
  • IBC सभी व्यक्तियों, कंपनियों, सीमित देयता भागीदारी (LLP) और साझेदारी फर्मों को कवर करता है।
    • न्याय-निर्णयन प्राधिकारी:
      • कंपनियों तथा LLP के लिये राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT)।
      • व्यक्तियों तथा साझेदारी फर्मों के लिये ऋण वसूली अधिकरण (DRT)।

विधिक अंतर्दृष्टि:

महत्त्वपूर्ण संस्थानों के बारे में विस्तार से पढ़ें:

www.drishtijudiciary.com 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए ‘दबावयुक्त परिसंपत्तियों के धारणीय संरचन पद्धत्ति (स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स/S4A)' का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है? (2017)

(a) यह सरकार द्वारा निरुपित विकासात्मक योजनाओं की पारिस्थितिकीय कीमतों पर विचार करने की पद्धत्ति है।
(b) यह वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रही बड़ी कॉर्पोरेट इकाइयों की वित्तीय संरचना के पुनर्संरचन के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक की स्कीम है।
(c) यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बारे में सरकार की एक विनिवेश योजना है।
(d) यह सरकार द्वारा हाल ही में क्रियान्वित 'द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड' का एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है।

उत्तर: (b)

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