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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी नियम मामलों में उच्च न्यायालय की कार्यवाही पर रोक

  • 12 May 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया मध्यस्थ।

मेन्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021, केबल टेलीविज़न नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021 

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म के लिये नियामक ढाँचे की प्रभावकारिता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विभिन्न उच्च न्यायालयों में कार्यवाही पर रोक लगा दी है।

  • ये नियामक ढाँचे सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 और केबल टेलीविज़न नेटवर्क (संशोधन) नियम 2021 द्वारा स्थापित किये गए हैं।
  • यह मामला केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न उच्च न्यायालयों में सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को चुनौती देने वाले मामलों को एक आधिकारिक फैसले द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के अनुरोध के बाद सामने आया है।
  • विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष याचिकाओं में यह दावा किया गया है कि ये नियम भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को "कम और प्रतिबंधित" करते हैं।

केबल टेलीविज़न नेटवर्क (संशोधन) नियम, 2021:

  • परिचय: 
    • इसे केबल टेलीविज़न नेटवर्क अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुसार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था। 
      • केबल टेलीविज़न नेटवर्क अधिनियम, 1995 का उद्देश्य केबल नेटवर्क की सामग्री और संचालन को विनियमित करना है। यह अधिनियम 'केबल टेलीविज़न नेटवर्क के बेतरतीब ढंग से बढ़ने' की प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है।
  • प्रावधान: 
    • यह त्रिस्तरीय शिकायत निवारण तंत्र का प्रावधान करता है- प्रसारकों द्वारा स्व-विनियमन, प्रसारकों के निकायों द्वारा स्व-विनियमन और केंद्र सरकार के स्तर पर एक अंतर-विभागीय समिति द्वारा निरीक्षण।
  • महत्त्व: 
    • यह अधिसूचना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रसारकों और उनके स्व-नियामक निकायों पर जवाबदेही और ज़िम्मेदारी डालते हुए शिकायतों के निवारण हेतु एक मज़बूत संस्थागत प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करती है।
    • यह प्रसारकों और उनके स्व-नियामक निकायों के लिये जिम्मेदारी और जवाबदेही का प्रावधान करती है।
    • यह टेलीविज़न के स्व-नियामक तंत्र द्वारा OTT कंपनियों और डिजिटल समाचार प्रकाशकों पर भी लागू किया जाएगा, जैसा कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में परिकल्पित है।

सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021:

  • परिचय: 
    • ये व्यापक रूप से सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (Over-The-Top-OTT) प्लेटफाॅर्मों  से संबंधित हैं।
    • इन नियमों को सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 87 (2) के तहत तैयार किया गया है तथा पूर्ववर्ती सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियम, 2011 के स्थान पर लाया गया है।
  • प्रावधान: 
    • महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ (SSMIs):
      • भारत में एक अधिसूचित सीमा से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्त्ताओं वाले सोशल मीडिया मध्यस्थों को SSMIs के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
      • इन मध्यस्थों/इंटरमीडियरीज़ को अतिरिक्त सम्यक तत्परता दिखानी होगी, जैसे- मुख्य अनुपालन अधिकारियों (चीफ कंप्लायंस ऑफिसर) की नियुक्ति, कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अपने प्लेटफॉर्म पर सूचना के पहले ओरिजिनेटर (अर्थात् जिसने सबसे पहले सूचना दी) को चिह्नित करना तथा कुछ विशेष कॉन्टेंट की पहचान करने के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित उपायों को लागू करना।
    • ऑनलाइन पब्लिशर्स का विनियमन:  
      • ये नियम ऑनलाइन पब्लिशर्स (प्रकाशक) द्वारा समाचार और समसामयिक मामलों से संबंधित सामग्री एवं क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल सामग्री के नियमन हेतु एक रूपरेखा निर्धारित करते हैं।
    • बड़ी सोशल-मीडिया कंपनियों की जवाबदेही तय करना:
      • बड़ी सोशल-मीडिया कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्त्ता द्वारा पोस्ट किये गए कॉन्टेंट के लिये कानूनी सुरक्षा प्राप्त नहीं होगी। अतः वे भारतीय नागरिक एवं आपराधिक कानूनों के प्रति जवाबदेह होंगी।
    • शिकायत निवारण तंत्र: 
      • सभी मध्यस्थों के लिये यह अनिवार्य है कि वे उपयोगकर्त्ताओं या पीड़ितों की शिकायतों के समाधान हेतु एक शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराएँ।
      • प्रकाशकों हेतु स्व-नियमन के विभिन्न स्तरों के साथ एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का प्रावधान किया गया है।
  • महत्त्व: 
    • सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 का उद्देश्य मीडिया प्लेटफॉर्म और OTT प्लेटफॉर्म के सामान्य उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतों के निवारण तथा समयबद्ध समाधान के लिये एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना तथा शिकायत निवारण अधिकारी (Grievance Redressal Officer- GRO) जो कि भारत का निवासी होना चाहिये, की मदद से उस तंत्र को सशक्त बनाना है।
    • इन नियमों के तहत महिलाओं और बच्चों को यौन अपराधों, फेक न्यूज़ तथा सोशल मीडिया के अन्य दुरुपयोग से बचाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
  • महत्त्वपूर्ण मुद्दे: 
    • ये नियम कुछ मामलों में अधिनियम के तहत प्रत्यायोजित शक्तियों से स्वतंत्र हो सकते हैं, जैसे  वे महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों और ऑनलाइन प्रकाशकों का विनियमन करते  हैं तथा  जानकारी के पहले प्रवर्तक की पहचान करने के लिये कुछ मध्यस्थों की आवश्यकता होती है।
    • ऑनलाइन सामग्री को प्रतिबंधित करने के आधार अत्यंत व्यापक हैं और ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं।
    •  मध्यस्थों द्वारा अधिकृत सूचना प्राप्त करने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों से अनुरोध करने के कोई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं हैं।
    • इन प्लेटफ़ॉर्म पर सूचना के प्रथम प्रवर्तक की पहचान के लिये संदेश सेवाओं की आवश्यकता व्यक्तियों की गोपनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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