कृषि
भारत में पराली दहन (स्टबल बर्निंग)
- 19 Sep 2025
- 73 min read
प्रिलिम्स के लिये: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (EPA), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) अधिनियम, 2021, दक्षिण-पश्चिम मानसून, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, MSP, जैव ईंधन, कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन, बायोचार।
मेन्स के लिये: पराली जलाने के प्रभाव, इसके पीछे के कारण, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के तरीके और शमन के संभावित समाधान।
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिये, सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को तीन महीने के भीतर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रिक्त पदों को भरने का निर्देश दिया और केंद्र सरकार से पराली जलाने के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का आग्रह किया।
पराली दहन क्या है?
- परिचय: यह धान और गेहूँ जैसी फसलों की कटाई के बाद बचे हुए पुआल को आग लगाने को संदर्भित करता है।
- इसका उपयोग आमतौर पर सितंबर के अंत और नवंबर की शुरुआत के बीच गेहूँ की बुवाई से पहले खेतों से धान की फसल के अवशेषों को साफ करने के लिये किया जाता है।
- यह इस अवधि के दौरान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में सबसे अधिक प्रचलित है।
- पराली जलाने का कारण:
- एकल फसल पैटर्न: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली मुख्य रूप से गेहूँ और धान के समर्थन में है, जिससे एकल फसल पैटर्न को बढ़ावा मिलता है।
- इसके परिणामस्वरूप किसान अक्सर अगली बुवाई के मौसम के लिये अपने खेतों को जल्दी तैयार करने हेतु फसल अवशेषों को जलाने का सहारा लेते हैं।
- लागत प्रभावशीलता: यह अन्य अवशेष निपटान विधियों की तुलना में काफी सस्ता है, जैसे फसल के अवशेषों को मिट्टी में मिलाना या बेलर एवं श्रेडर जैसी मशीनरी का उपयोग करना, जिनमें भारी निवेश और श्रम की आवश्यकता होती है।
- खरपतवार प्रबंधन: आग लगाने से फसल अवशेषों में मौजूद खरपतवार और उनके बीज नष्ट हो जाते हैं, जिससे अतिरिक्त शाकनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है। अगली फसल की बुवाई से पहले खरपतवार नियंत्रण का यह एक सरल तरीका है।
- सीमित अवशेष प्रबंधन विकल्प: वैकल्पिक अवशेष प्रबंधन के प्रति जागरूकता नहीं है। यही कारण है कि पराली दहन एक सामान्य प्रथा बन गई है।
- जलवायु परिवर्तनशीलता का प्रभाव: असामान्य मानसून और बढ़ते तापमान से फसल कटाई में देरी होती है, जिसके कारण किसान समय पर बुवाई पूरी करने के लिये पराली जलाने पर मजबूर हो जाते हैं।
- एकल फसल पैटर्न: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली मुख्य रूप से गेहूँ और धान के समर्थन में है, जिससे एकल फसल पैटर्न को बढ़ावा मिलता है।
- प्रभाव:
- वायु प्रदूषण: पराली दहन से प्रमुख वायु प्रदूषक निकलते हैं जैसे PM10, PM2.5, NOx, मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs)।
- ये प्रदूषक वायु में धुंध (स्मॉग) उत्पन्न करते हैं और दमा, COPD, ब्रोंकाइटिस तथा फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ाते हैं।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: यह प्रथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की गति तेज़ होती है।
- मृदा उर्वरता में ह्रास: अत्यधिक गर्मी मृदा की गहराई तक पहुँचकर उसकी आर्द्रता को कम कर देती है और लाभकारी सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप मृदा का स्वास्थ्य और भी प्रभावित होता है।
- वायु प्रदूषण: पराली दहन से प्रमुख वायु प्रदूषक निकलते हैं जैसे PM10, PM2.5, NOx, मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs)।
भारत में पराली दहन पर नियंत्रण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- प्रौद्योगिकी और अवसंरचना की कमियाँ: मानक कंबाइन हार्वेस्टर 10–15 सेमी तक पराली छोड़ देते हैं, जिसे विशेष उपकरणों के बिना प्रबंधित करना कठिन होता है।
- कस्टम हायरिंग सेंटर्स (CHC) में प्राय: पर्याप्त मशीनरी की कमी होती है और कई किसानों को इन संसाधनों तक पहुँचने में तार्किक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- धान की पराली में उच्च सिलिका की मात्रा मशीनरी को नुकसान पहुँचा सकती है, जब इसे फीडस्टॉक के रूप में उपयोग किया जाता है और बायोमास के संग्रह एवं प्रसंस्करण के लिये प्रभावी आपूर्ति शृंखला की अनुपस्थिति समस्या को और गंभीर बना देती है।
- नीतिगत बाधाएँ: पराली दहन और पर्यावरणीय मुआवज़े की अस्पष्ट परिभाषाएँ, साथ ही जटिल रेड एंट्री अनुपालन चिह्नांकन, ऐसी चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं जो किसानों पर अतिरिक्त बोझ डालती हैं।
- वर्तमान नीतियाँ प्रायः प्रोत्साहन की बजाय दंड पर अधिक ज़ोर देती हैं, जिससे किसान पर्यावरण-अनुकूल तरीके अपनाने से हतोत्साहित होते हैं।
- आर्थिक एवं वित्तपोषण सीमाएँ: मशीनरी अपनाने हेतु सीमित सब्सिडी और पर्यावरण क्षतिपूर्ति कोष के उपयोग के लिये क्षीण रूपरेखा, प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
- अन्य बाधाएँ: पराली दहन के स्थायी विकल्पों पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण अंतराल है, जिसके कारण पारंपरिक प्रथाओं पर निर्भरता बढ़ रही है।
पराली दहन की समस्या से निपटने के लिये भारत की पहल
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा तैयार किया गया फ्रेमवर्क:
- इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन: कृषि मशीनरी, कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC), तेज़ी से बढ़ने वाली धान की किस्मों, क्रमिक कटाई और जैव-अपघटकों का उपयोग करके खेत में फसल अवशेषों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
- एक्स-सीटू फसल अवशेष उपयोग: धान की पराली के वैकल्पिक उपयोगों को बढ़ावा देता है, जैसे बायोमास ऊर्जा, ताप विद्युत संयंत्रों में सह-दहन, 2G इथेनॉल और संपीड़ित बायोगैस उत्पादन तथा पैकेजिंग सामग्री तैयार करना।
- प्रतिबंध और प्रवर्तन: फसल अवशेषों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिये निगरानी, प्रवर्तन और पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के माध्यम से पराली दहन पर प्रतिबंध लगाता है।
- वित्तीय सहायता: कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM) के अंतर्गत, किसानों, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों को कृषि मशीनरी तथा उपकरण खरीदने के लिये वित्तीय सहायता मिलती है।
- तकनीकी हस्तक्षेप:
- हैप्पी सीडर: ट्रैक्टर पर लगा उपकरण, गेहूँ और धान की बुवाई करता है, पराली काटता है, जलाने से बचाता है, समय बचाता है और मृदा स्वास्थ्य में सुधार करता है।
- पूसा डीकंपोजर: सूक्ष्मजीवी सूत्रीकरण, पराली को खाद में परिवर्तित करता है, जिससे मृदा उर्वरता बढ़ती है।
- पेलेटाइज़ेशन: फसल अवशेष, बायोमास पेलेट, ऊर्जा, जलाने में कमी, आय सृजन।
- बायोचार उत्पादन: पराली को परिवर्तित करना, बायोचार, मृदा उर्वरता में सुधार, जल धारण, सूक्ष्मजीवी गतिविधि, कार्बन पृथक्करण।
- स्थानीय पहल:
- छत्तीसगढ़: गौठान-गाँव के भूखंड जहाँ एकत्रित पराली को गाय के गोबर और प्राकृतिक एंजाइमों का उपयोग करके जैविक खाद में परिवर्तित किया जाता है, जिससे ग्रामीण युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर सृजित होते हैं।
- पंजाब: मोबाइल ऐप i-Khet और सहकारी मशीनरी ट्रैकर किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी तक पहुँच की सुविधा प्रदान करते हैं।
पराली जलाने पर अंकुश लगाने हेतु भारत क्या रणनीति अपना सकता है?
- कानूनी सुधार: एक संसदीय स्थायी समिति ने पराली जलाने की समस्या को कम करने हेतु धान की पराली (Paddy Residue) के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करने का प्रस्ताव रखा है, जो दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।
- यह सिफारिश अधीनस्थ विधान समिति की ओर से आई, जिसने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) नियम, 2023 की समीक्षा की।
- बुनियादी ढाँचा और रसद: वास्तविक समय फसल मानचित्रण को लागू करना, फसल परिपक्वता का पूर्वानुमान लगाना, अस्थायी भंडारण सुविधाओं का निर्माण करना तथा स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं और एग्रीगेटर्स का समर्थन करना।
- नवीन कृषि प्रौद्योगिकियाँ: पराली को 25 दिनों के भीतर खाद में बदलने हेतु माइक्रोब पूसा जैसे उपकरणों का उपयोग करना तथा अवशेषों को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई के लिये हैप्पी सीडर का उपयोग करना।
- कम अवधि वाली धान की किस्मों को प्रोत्साहित करना, खरीद प्रक्रियाओं को मानकीकृत करना तथा अवशेष को कम करने के लिये बीज प्रमाणीकरण को लागू करना।
- गेहूँ के पराली को पशुओं के चारे में परिवर्तित करना और इसे खाद, कागज, कार्डबोर्ड, जैव ईंधन और विद्युत उत्पादन के लिये पुनर्चक्रित कीजिये।
- आर्थिक सहायता और मूल्य निर्धारण: पराली के लिये गारंटीकृत मूल्य प्रदान करना, वार्षिक बेंचमार्क मूल्य निर्धारित करना तथा सुनिश्चित करना कि प्रतिफल संग्रहण और श्रम लागत को कवर करना।
- कटाई के बाद के समाधान: पराली की कटाई और खाद बनाने के लिये मनरेगा के समान कार्यक्रम शुरू करना, अवशेष प्रबंधन को विनियमित करना और पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाने वाले किसानों को पुरस्कृत करना।
निष्कर्ष
उत्तर भारत में पराली जलाना एक गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी चुनौती बना हुआ है, जिसका कारण फसल चक्र, सीमित विकल्प तथा जलवायु में अस्थिरता है। इससे निपटने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें तकनीकी हस्तक्षेप, वित्तीय प्रोत्साहन, विनियामक उपाय एवं स्थानीय नवाचारों का संयोजन शामिल हो। इसका उद्देश्य पराली प्रबंधन को सतत् बनाना, वायु प्रदूषण को कम करना एवं मिट्टी की उर्वरता की रक्षा करना है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: तकनीकी समाधान और सरकारी हस्तक्षेप की उपलब्धता के बावजूद उत्तर-पश्चिम भारत में पराली जलाने की प्रथा को जारी रखने वाले विभिन्न कारकों का विश्लेषण करें। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रारंभिक परीक्षा:
निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2012)
- कंटूर बंडिंग
- रिले फसल
- शून्य जुताई
वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन को अलग करने/भंडारण में मदद करता है?
A) केवल 1 और 2
B) केवल 3
C) 1, 2 और 3
D) उनमें से कोई नहीं
उत्तर: (B)
मेन्स:
प्रश्न. चावल-गेहूँ प्रणाली को सफल बनाने के लिए कौन से प्रमुख कारक ज़िम्मेदार हैं? इस सफलता के बावजूद भारत में यह व्यवस्था कैसे अभिशाप बन गई है? (वर्ष 2020)
प्रश्न. मुंबई, दिल्ली और कोलकाता देश के तीन बड़े शहर हैं लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण अन्य दो शहरों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर समस्या है। ऐसा क्यों है? (2015)