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सामाजिक न्याय

राज्य एवं अल्पसंख्यक संस्थान

  • 08 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

अल्पसंख्यक संस्थानों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यक संस्थानों के विनियमन से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की संवैधानिक वैधता को जारी रखते हुए अल्पसंख्यक संस्थानों के विनियमन से संबंधित निर्णय दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया था।
  • इस अधिनियम में कहा गया है कि अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में मान्यता प्राप्त तथा सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक आयोग द्वारा की जाएगी, जिसका निर्णय बाध्यकारी होगा।

क्या था विवाद?

  • विभिन्न मदरसों की प्रबंध समितियों ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में वर्ष 2008 के पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। जिसके तहत आयोग द्वारा मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला किया जाना था।
  • इस अधिनियम की धारा-8 के अनुसार, इस आयोग का कर्त्तव्य होगा कि वह मदरसों में शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्त किये जाने वाले उम्मीदवारों का चयन करे और उनके नाम की सिफारिश करे।
  • उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया था कि यह अनुच्छेद-30 का उल्लंघन है। जिसमें कहा गया है कि सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में बताया कि अपने शिक्षण संस्थानों को चलाने के अल्पसंख्यकों के अधिकार के संरक्षण के बीच शिक्षा में उत्कृष्टता तथा अल्पसंख्यकों का संरक्षण नामक दो उद्देश्यों में संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है।
  • राज्य अपने अधिकारों के भीतर अल्पसंख्यक संस्थानों में योग्य शिक्षकों द्वारा उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय हित में विनियामक व्यवस्था लागू कर सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अल्पसंख्यक संस्थानों का प्रबंधन इस तरह की कानूनी व्यवस्था को यह कहकर नज़रअंदाज नहीं कर सकता कि संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत उन्हें अपनी पसंद के शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का मूल अधिकार प्राप्त है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को आधार मानते हुए कहा कि अनुच्छेद 30(1) न तो आत्यंतिक है और न ही विधि से उपर है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जब शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति की बात आती है तो सभी संस्थानों पर विनियमन संबंधी नियम लागू होने चाहिये, चाहे वह बहुसंख्यक संस्थान हों या अल्पसंख्यक संस्थान। अनुच्छेद 30(1) बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक संस्थानों के बीच समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने शिक्षा को दो रूपों में वर्गीकृत किया-पहली धर्मनिरपेक्ष शिक्षा, और दूसरी धार्मिक, भाषायी अल्पसंख्यक की विरासत, संस्कृति, लिपि और विशेषताओं के संरक्षण के उद्देश्य से दी जाने वाली शिक्षा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने 2008 के इस अधिनियम की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह आयोग इस्लामिक संस्कृति और इस्लामी धर्मशास्त्र में गहन ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों से बना है।

स्रोत- द हिंदू

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