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सामाजिक न्याय

देश देशांतर : अल्पसंख्यक कौन?

  • 23 Feb 2019
  • 14 min read

संदर्भ

देश में अल्पसंख्यक कौन हैं इसकी परिभाषा और आधार फिर से तय करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी को सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के TMA पाई मामले में दिये गए संविधान पीठ के फैसले को आधार बनाकर मांग की गई थी कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्य स्तर पर की जाए, न कि राष्ट्रीय स्तर पर क्योंकि कई राज्यों में जो वर्ग बहुसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल रहा है।

  • याचिका में अल्पसंख्यकों को 'अल्पसंख्यक संरक्षण' दिये जाने तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(c) को रद्द किये जाने की मांग की गई है क्योंकि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 तथा 21 का उल्लंघन करती है।
  • याचिका में यह भी कहा गया है कि इस धारा में केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित और मनमाने अधिकार दिये गए हैं।
  • याचिका में कहा गया है कि हिंदू जो राष्ट्रव्यापी आँकड़ों के अनुसार एक बहुसंख्यक समुदाय है, वह पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक है।
  • याचिका में यह भी कहा गया है कि हिंदू समुदाय उन लाभों से वंचित है जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिये मौजूद हैं। अल्पसंख्यक पैनल को इस संदर्भ में ‘अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा पर पुन: विचार करना चाहिये।

पृष्ठभूमि

  • 1947 में देश के विभाजन के दौरान मुस्लिम समुदाय के लगभग सभी लोग पाकिस्तान चले गए थे और भारत में इनकी संख्या बहुत कम रह गई।
  • हमारे संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क में यह आशंका थी कि ऐसा न हो कि हिन्दुओं की बहुसंख्यक आबादी के कारण यहाँ केवल हिन्दुओं की ही सरकार बने और वह अल्पसंख्यकों के त्योहारों या उनके रीति-रिवाज़ का पालन करने पर कोई रोक लगा दे।
  • यही वज़ह है कि अनुच्छेद 29 और 30 में कहा गया कि भारत में जो अल्पसंख्यक हैं उनको अपने रीति-रिवाज़ तथा धर्म का पालन करने का अधिकार होगा। इसके अलावा संविधान में और कुछ नहीं कहा गया।

अल्पसंख्यक कौन है?

  • संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, ‘Any group of community which is economically, politically non-dominant and inferior in population.’ अर्थात् ऐसा समुदाय जिसका सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव न हो और जिसकी आबादी नगण्य हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाएगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अल्पसंख्यक ऐसे समूह हैं जिनके पास विशिष्ट और स्थिर जातीय (Stable Ethnic), धार्मिक और भाषायी विशेषताएँ हैं।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29, 30, 350A तथा 350B में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन इसकी परिभाषा कहीं नहीं दी गई है।
  • अनुच्छेद 29 में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग किया गया है जिसमें कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 30 में बताया गया है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा, संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 350 A और 350 B केवल भाषायी अल्पसंख्यकों से संबंधित हैं।
  • 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(c) के तहत 23 अक्तूबर, 1993 को सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में पाँच समुदायों मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी तथा बौद्ध को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी गई।2014 में जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक की श्रेणी में शामिल किया गया।
  • गुजरात सरकार ने राज्य में जैन समुदाय को अलग से अल्पसंख्यक घोषित किया है।

TMA पाई फाउंडेशन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया का मामला

  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा है कि राज्य कानून के संबंध में धार्मिक या भाषायी अल्पसंख्यक का निर्धारण करने वाली इकाई केवल राज्य हो सकती है।
  • यहाँ तक ​​कि अल्पसंख्यक का निर्धारण करने में एक केंद्रीय कानून के लिये भी ईकाई का आधार राज्य होगा न कि संपूर्ण भारत। इस प्रकार, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक, जिन्हें अनुच्छेद 30 में बराबरी का दर्जा दिया गया है, को राज्य स्तर पर निर्धारित किया जाना चाहिये।


अल्पसंख्यकों के निर्धारण का एक समान राष्ट्रीय तरीका क्यों नहीं है?

  • भारत में समुदायों का असमान वितरण किसी समुदाय को राष्ट्रीय रूप से धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित करने में परस्पर विरोधी स्थिति पैदा करता है, जो कुछ राज्यों में बहुसंख्यक हो सकता है।
  • नागरिकों का लगातार हो रहा प्रवासन जनसांख्यिकी को प्रभावित करता है।
  • धार्मिक या भाषायी समुदाय की संरचना में बदलाव भी एक बड़ा कारण है। जिसके कारण किसी भी स्थिर नीति का कारगर होना मुश्किल है।
  • 1500 से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं वाले इस देश में भाषायी अल्पसंख्यकों का पदनाम (Designation) चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • हमें TMA पाई मामले में बताए गए स्रोत और क्षेत्रीय कानून के संबंध में अल्पसंख्यक का दर्जा निर्धारित करना चाहिये।

मापदंड तय किये जाने की ज़रुरत

  • किसी समुदाय को राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित करने में जो मुख्य समस्या यह है कि इस शब्द की परिभाषा कहीं नहीं बताई गई है, दूसरा यह कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम में भी इसकी कोई परिभाषा नहीं बताई गई है तथा तीसरा यह है कि सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है उसका आधार क्या है यह निर्धारित नहीं है।
  • अगर हम मान लें कि राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या को आधार माना गया है तो ऐसा राज्य स्तर पर क्यों नहीं हो सकता?
  • याचिका में धारा 2(c) तथा 23 अक्तूबर,1993 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है तथा इसे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया गया है।
  • यह सही है कि अल्पसंख्यकों को संरक्षण मिलना चाहिये। यह भी सही है कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, काफी हिंसा हुई थी इसके बावजूद संविधान निर्माताओं ने यह दूरदर्शी फैसला लिया कि हिंदुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा और सबको बराबर का हक़ दिया जाएगा। लेकिन अल्पसंख्यक कौन हैं इसकी पहचान करना पहली शर्त होनी चाहिये।
  • यह विडंबनापूर्ण स्थिति है कि कहीं पर कोई समुदाय जो 96, 98 प्रतिशत है वह अल्पसंख्यक है और वहीँ किसी राज्य में 2 प्रतिशत आबादी वाले लोग बहुसंख्यक हैं और अल्पसंख्यक को मिलने वाले लाभ से वंचित हैं। यह गैर-बराबरी है। इसे एड्रेस किये जाने की ज़रूरत है।
  • आने वाले समय में हिंदुस्तान में मुसलमानों की आबादी दुनिया के सभी देशों से अधिक होगी। ऐसी स्थिति में मुसलमान अल्पसंख्यक किस आधार पर होंगे? अल्पसंख्यक स्थिति का एक मानदंड तय होना चाहिये जिसमें जनसंख्या के अलावा अन्य कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिये।

‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित किये जाने की आवश्यकता क्यों?

  • संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की परिभाषा कहीं नहीं दी गई है। अल्पसंख्यक कौन होगा? यह राष्ट्रीय स्तर पर तय होगा या राज्य स्तर पर इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
  • 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया उस समय भी ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया।
  • वर्ष 2006 में अल्पसंख्यक मामले मंत्रालय का गठन हुआ तब भी ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया।
  • आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी अल्पसंख्यक कौन हैं, न तो संविधान में परिभाषित किया गया और न ही किसी अन्य कानून में।
  • मिज़ोरम, मेघालय और नगालैंड ईसाई बहुसंख्यक राज्य हैं और अरुणाचल, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल में इनकी आबादी अच्छी खासी है फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है।
  • इसी तरह पंजाब में सिख बहुसंख्यक हैं तथा दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा में इनकी पर्याप्त आबादी है फिर भी इन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है।
  • लक्षद्वीप में 96.20% और जम्मू-कश्मीर में 68.30% मुसलमान हैं, जबकि असम (34.20%), पश्चिम बंगाल (27.5%), केरल (26.60%), उत्तर प्रदेश (19.30%) और बिहार (18%) में भी इनकी अच्छी-खासी जनसंख्या है फिर भी इन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है और वे इसका लाभ ले रहे हैं। दूसरी ओर वे समुदाय, जो वास्तविक रूप से अल्पसंख्यक हैं, राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त न होने के कारण लाभ से वंचित हैं।
  • लक्षद्वीप में मात्र 2% हिंदू हैं लेकिन वे वहाँ अल्पसंख्यक न होकर बहुसंख्यक हैं और 96% प्रतिशत आबादी वाले मुसलमान अल्पसंख्यक हैं।
  • उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति का व्यक्ति राजस्थान में अनुसूचित जाति का नहीं माना जाता। जब प्रदेश बदलने के साथ उस व्यक्ति की SC, ST, OBC स्थिति बदल जाती है तो अल्पसंख्यक की स्थिति को बदलने में क्या समस्या है?

निष्कर्ष

एक लोकतांत्रिक, बहुलवादी राजनीति में अल्पसंख्यक अधिकार आवश्यक हैं। फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने कहा है कि "कोई भी लोकतंत्र लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता है जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की मान्यता को अपने अस्तित्व के लिये मौलिक नहीं मानता है"।
संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित न करने का कारण उस समय की परिस्थितियाँ थीं लेकिन आज की परिस्थिति के अनुसार, इसमें बदलाव आवश्यक है। भारत लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और लोक कल्याणकारी राज्य है। अतः सभी वर्गों के लोगों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। संविधान सभा ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए संविधान में भाषायी और धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों को संरक्षित करने की बात की लेकिन अल्पसंख्यक को परिभाषित करने से परहेज़ किया। बदलते परिदृश्य में अब समय आ गया है क़ि राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि प्रादेशिक स्तर पर अल्पसंख्यकों को परिभाषित किया जाए, जिन राज्यों में जिस समुदाय के लोग सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से तथा जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए।

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